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रोजगार का वादा भूली सरकार, जानिए चुनाव में क्या असर डालेगा ये मुद्दा ? - unemployment issue in Uttarakhand

2022 विधानसभा चुनाव में युवा किसी भी दल की सरकार बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. पलायन, रोजगार के मुद्दे पर हर दल वादा करके भूल जाते हैं. ऐसे में देखना होगा कि आने वाले चुनाव में प्रदेश के युवा रोजगार के मुद्दे पर किसका साथ देते हैं.

BJP on Employment
रोजगार का वादा भूली भाजपा
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Published : Jan 14, 2022, 6:23 PM IST

Updated : Jan 15, 2022, 3:06 PM IST

देहरादून: 14 फरवरी को उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस बार तकरीबन 1 लाख से ज्यादा युवा पहली दफा अपने मत का प्रयोग करेंगे, लेकिन हर बार चुनाव में युवाओं को रोजगार का सुनहरा सपना दिखाकर राजनीतिक दल अपने पक्ष में वोट लेकर, इन्हें भूल जाते हैं. ऐसे में इस बार उत्तराखंड में होने वाले सत्ता के दंगल में क्या युवा रोजगार के मुद्दे पर चोट करेंगे या फिर धर्म जाति और हिन्दुतत्व के मुद्दे पर ही अपना मत देंगे. इस सवाल का जवाब इस वक्त चुनावों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. चलिए इस सवाल की तह तक जाने के लिए रोजगार और बेरोजगारी पर प्रदेश के हालातों को जरा समझते हैं.

रोजगार का सपना दिखाया: 2017 में पीएम मोदी ने पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी को उत्तराखंड के काम में लाने का वादा किया था, जिसके परिणाम स्वरुप युवाओं ने प्रदेश में बीजेपी सरकार बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. लेकिन क्या पिछले पांच सालों में युवाओं को रोजगार मिला? क्या कोरोना काल में अपना सबकुछ लुटाकर पहाड़ों को लौटने वालों के सामने बेरोजगारी मुंह बाये नहीं खड़ी है. ईटीवी भारत इन्हीं सवालों के साथ प्रदेश के युवाओं और राजनीतिक की नब्ज टटोलने की कोशिश की. आखिरकार कब तक युवा इन नेताओं के वादों के पीछे अपना भविष्य सवांरने की बाट जोहते रहेंगे.

भाजपा के घोषणा पत्र में वादा: बात शुरू करते हैं 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा के वादे से. भाजपा के घोषणा पत्र के रूप में अपना दृष्टि पत्र जारी किया था, जिसके पेज नंबर 6 में 10वें बिंदु पर लिखा गया था कि अगर सरकार आती है तो प्रदेश के सभी सरकारी विभागों में रिक्त पदों को और उनमें होने वाली पदोन्नति को 6 महीने के भीतर भरा जाएगा. यहां मामला ही गोल है और सभी विभागों में रिक्त पदों की संख्या को एक साथ निकालना टेढ़ी खीर है. यह डेटा केवल सरकार ही निकाल सकती है. पूरे प्रदेश में कितने विभागों में कितने पद खाली हैं सरकार भला क्यों बताएगी? विभिन्न विभागों द्वारा रिक्त पदों को भरने के लिए चयन आयोग को अध्याचन के लिए प्रस्ताव भेजे गये, लेकिन यह काम सरकार ने काफी देर से शुरू किया.

ये भी पढ़ें: विधानसभा चुनाव 2022: आज कल में घोषित हो सकती है कांग्रेस की लिस्ट, बगावत की भी आशंका

आखिरी वक्त में निकाली गई भर्तियां: अब जब सरकार अपने कार्यकाल के आखिरी वक्त में थी, तब सरकार ने तकरीबन 22 हजार सरकारी पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की. इनमें से भी केवल उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग के अनुसार तकरीबन 10 हजार लोगों की ही नौकरी मिल पाई हैं. बाकी तकरीबन 11 हजार पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी है.

रोजगार का वादा भूले नेता

राजनीतिक आंकड़ा 11 लाख के पार: ऐसा नहीं है कि विपक्ष द्वारा सरकार से समय समय पर रोजगार के लेकर सवाल नहीं किया गया, लेकिन रोजगार को लेकर हर बार सरकार का आंकड़ा लाखों में ही रहता था. हद तो तब हो गई जब विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष के विधायक द्वारा जो रोजगार के आंकड़े पूछे गये तो पिछले सत्र में जो आंकड़ा 11 लाख का था, वो समय के साथ बढ़ना चाहिए था, लेकिन घट गया और सरकार ने सदन में जवाब दिया कि पिछले 5 सालों में 8 लाख रोजगार सरकार ने दिया है.

रोजगार पर सरकार का जवाब: विधानसभा के आखिरी और शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष ने सरकार को इस मामले पर खूब घेरा. जवाब में सरकार का कहना था कि रोजगार केवल सरकारी नौकरी को ना समझे स्वरोजगार को भी रोजगार माना जाए, जो सरकार की मदद से ही संभव हो पाया है. इसके अलावा मनरेगा में दिया गया काम को भी सरकार ने रोजगार में परिभाषित कर दिया. इस तरह से केवल नंबर बड़ा करने के लिए सरकार ने हर तरह की आजीविका का भी श्रेय लेते हुए पिछले 5 सालों में रोजगार देने का आंकड़ा बताया.

धरने पर बैठे बेरोजगार: सरकार चाहे लाख दावे करें, लेकिन सरकार को उन नौजवानों को भी जवाब देना होगा, जो लगातार प्रदेश में सरकार भर्तियों की बहाली की मांग को लेकर धरने पर बैठे थे. सरकार को उन नौजवानों को भी जवाब देना चाहिए, जो विभागीय लापरवाही की वजह से वन दरोगा और पटवारी भर्ती का इंतजार करते करते थक गये. सरकार को उन नौजवानों को भी जवाब देना होगा, जिनकी पिछले 6 सालों से पुलिस भर्ती का इंतजार करते करते उम्र निकल गई. इन लोगों का जिम्मेदार कौन है? सरकार को बताना चाहिए.

बेरोजगारों ने सरकार पर उठाये सवाल: उत्तराखंड बेरोजगार महासंघ के अध्यक्ष दीपक डोभाल का कहना है कि पिछले लंबे समय से कई भर्तियों को लेकर प्रदेश का युवा बेरोजगार सरकार का मुंह ताक रहे हैं, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है. कुछ भर्तियां अगर लाख इंतजार के बाद आती भी हैं तो वह घोटालों की भेंट चढ़ जाती है. बेरोजगारों की इसी पीड़ा को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी उठाया और सरकार को चुनौती दी है कि एक भी रोजगार पाया व्यक्ति, उन्हे दिखा दें, अगर सरकार ने रोजगार दिया है तो. जबकि कांग्रेस रोजगार को लेकर सरकार पर समय-समय पर हमला करती रही है.

देहरादून: 14 फरवरी को उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस बार तकरीबन 1 लाख से ज्यादा युवा पहली दफा अपने मत का प्रयोग करेंगे, लेकिन हर बार चुनाव में युवाओं को रोजगार का सुनहरा सपना दिखाकर राजनीतिक दल अपने पक्ष में वोट लेकर, इन्हें भूल जाते हैं. ऐसे में इस बार उत्तराखंड में होने वाले सत्ता के दंगल में क्या युवा रोजगार के मुद्दे पर चोट करेंगे या फिर धर्म जाति और हिन्दुतत्व के मुद्दे पर ही अपना मत देंगे. इस सवाल का जवाब इस वक्त चुनावों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. चलिए इस सवाल की तह तक जाने के लिए रोजगार और बेरोजगारी पर प्रदेश के हालातों को जरा समझते हैं.

रोजगार का सपना दिखाया: 2017 में पीएम मोदी ने पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी को उत्तराखंड के काम में लाने का वादा किया था, जिसके परिणाम स्वरुप युवाओं ने प्रदेश में बीजेपी सरकार बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. लेकिन क्या पिछले पांच सालों में युवाओं को रोजगार मिला? क्या कोरोना काल में अपना सबकुछ लुटाकर पहाड़ों को लौटने वालों के सामने बेरोजगारी मुंह बाये नहीं खड़ी है. ईटीवी भारत इन्हीं सवालों के साथ प्रदेश के युवाओं और राजनीतिक की नब्ज टटोलने की कोशिश की. आखिरकार कब तक युवा इन नेताओं के वादों के पीछे अपना भविष्य सवांरने की बाट जोहते रहेंगे.

भाजपा के घोषणा पत्र में वादा: बात शुरू करते हैं 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा के वादे से. भाजपा के घोषणा पत्र के रूप में अपना दृष्टि पत्र जारी किया था, जिसके पेज नंबर 6 में 10वें बिंदु पर लिखा गया था कि अगर सरकार आती है तो प्रदेश के सभी सरकारी विभागों में रिक्त पदों को और उनमें होने वाली पदोन्नति को 6 महीने के भीतर भरा जाएगा. यहां मामला ही गोल है और सभी विभागों में रिक्त पदों की संख्या को एक साथ निकालना टेढ़ी खीर है. यह डेटा केवल सरकार ही निकाल सकती है. पूरे प्रदेश में कितने विभागों में कितने पद खाली हैं सरकार भला क्यों बताएगी? विभिन्न विभागों द्वारा रिक्त पदों को भरने के लिए चयन आयोग को अध्याचन के लिए प्रस्ताव भेजे गये, लेकिन यह काम सरकार ने काफी देर से शुरू किया.

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आखिरी वक्त में निकाली गई भर्तियां: अब जब सरकार अपने कार्यकाल के आखिरी वक्त में थी, तब सरकार ने तकरीबन 22 हजार सरकारी पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की. इनमें से भी केवल उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग के अनुसार तकरीबन 10 हजार लोगों की ही नौकरी मिल पाई हैं. बाकी तकरीबन 11 हजार पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी है.

रोजगार का वादा भूले नेता

राजनीतिक आंकड़ा 11 लाख के पार: ऐसा नहीं है कि विपक्ष द्वारा सरकार से समय समय पर रोजगार के लेकर सवाल नहीं किया गया, लेकिन रोजगार को लेकर हर बार सरकार का आंकड़ा लाखों में ही रहता था. हद तो तब हो गई जब विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष के विधायक द्वारा जो रोजगार के आंकड़े पूछे गये तो पिछले सत्र में जो आंकड़ा 11 लाख का था, वो समय के साथ बढ़ना चाहिए था, लेकिन घट गया और सरकार ने सदन में जवाब दिया कि पिछले 5 सालों में 8 लाख रोजगार सरकार ने दिया है.

रोजगार पर सरकार का जवाब: विधानसभा के आखिरी और शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष ने सरकार को इस मामले पर खूब घेरा. जवाब में सरकार का कहना था कि रोजगार केवल सरकारी नौकरी को ना समझे स्वरोजगार को भी रोजगार माना जाए, जो सरकार की मदद से ही संभव हो पाया है. इसके अलावा मनरेगा में दिया गया काम को भी सरकार ने रोजगार में परिभाषित कर दिया. इस तरह से केवल नंबर बड़ा करने के लिए सरकार ने हर तरह की आजीविका का भी श्रेय लेते हुए पिछले 5 सालों में रोजगार देने का आंकड़ा बताया.

धरने पर बैठे बेरोजगार: सरकार चाहे लाख दावे करें, लेकिन सरकार को उन नौजवानों को भी जवाब देना होगा, जो लगातार प्रदेश में सरकार भर्तियों की बहाली की मांग को लेकर धरने पर बैठे थे. सरकार को उन नौजवानों को भी जवाब देना चाहिए, जो विभागीय लापरवाही की वजह से वन दरोगा और पटवारी भर्ती का इंतजार करते करते थक गये. सरकार को उन नौजवानों को भी जवाब देना होगा, जिनकी पिछले 6 सालों से पुलिस भर्ती का इंतजार करते करते उम्र निकल गई. इन लोगों का जिम्मेदार कौन है? सरकार को बताना चाहिए.

बेरोजगारों ने सरकार पर उठाये सवाल: उत्तराखंड बेरोजगार महासंघ के अध्यक्ष दीपक डोभाल का कहना है कि पिछले लंबे समय से कई भर्तियों को लेकर प्रदेश का युवा बेरोजगार सरकार का मुंह ताक रहे हैं, लेकिन कोई सुध लेने वाला नहीं है. कुछ भर्तियां अगर लाख इंतजार के बाद आती भी हैं तो वह घोटालों की भेंट चढ़ जाती है. बेरोजगारों की इसी पीड़ा को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी उठाया और सरकार को चुनौती दी है कि एक भी रोजगार पाया व्यक्ति, उन्हे दिखा दें, अगर सरकार ने रोजगार दिया है तो. जबकि कांग्रेस रोजगार को लेकर सरकार पर समय-समय पर हमला करती रही है.

Last Updated : Jan 15, 2022, 3:06 PM IST
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