देहरादूनः हिमालय को एशिया का 'वाटर टावर' भी कहा जाता है. हिमालयी ग्लेशियर में वो पानी जमा है, जो पिघल कर नदियों के रूप में करीब 90 करोड़ जनसंख्या के लिए वरदान बना है. हिमालयी ग्लेशियर में एक महासागर जितना पानी जमा है, जो नदियों से इंसानी बस्तियों तक पहुंचता है. इतनी बड़ी मात्रा में पानी होने के बावजूद हिमालयी राज्य उत्तराखंड के कई क्षेत्र पानी को तरसने की स्थिति में हैं.
दरअसल, गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है और अभी से सूबे के कई क्षेत्रों में पानी की कमी साफ महसूस की जा रही है. वैसे हालात देश के दूसरे राज्यों के भी अच्छे नहीं हैं. पानी को लेकर हुए अध्ययनों ने पेयजल की स्थितियों पर चिंता बढ़ाई है. सबसे ज्यादा पेयजल की समस्या से उत्तर भारत जूझ रहा है. जिसमें सभी महत्वपूर्ण और बड़े राज्य शामिल हैं. जो काफी चिंताजनक है.
राष्ट्रीय स्तर पर पेयजल संकट की स्थितिः राष्ट्रीय स्तर पर 90% उत्तर भारत के राज्य पेयजल संकट से प्रभावित हैं. देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता आजादी के बाद करीब 8,170 घन मीटर थी, जो अब करीब 1,293 घन मीटर पर पहुंच गई है.
देश में भूजल खपत मामले में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान राज्य सबसे ऊपर है. राष्ट्रीय औसत 63% की तुलना में इन चार राज्यों में खपत 100% से भी ज्यादा है. वहीं, देश के मेट्रो सिटी के अलावा बड़े शहरों में भूजल के प्रदूषण में तेजी से इजाफा हो रहा है.
वैसे तो देशभर में भूजल के कम होने के पीछे इसके बेहद ज्यादा उपयोग और वाटर रिचार्ज की मात्रा कम होना माना जा सकता है, लेकिन एक बड़ी वजह पर्यावरण में आ रहा वो बदलाव भी है, जिसके कारण तमाम क्षेत्रों में बारिश का बेहद कम होना है और तापमान में बेहद ज्यादा बढ़ोत्तरी होना भी है.
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बता दें कि देश में 45% कृषि भूमि सिंचित है. लिहाजा, पानी को लेकर संकट केवल पेयजल से जुड़ा नहीं है. बल्कि इसका व्यापक असर है. देश में कुल 146 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का करीब 55% वर्षा आधारित है. भारत में वार्षिक औसत वर्षा करीब 1160 मिलीमीटर है. जबकि, विदेशों में 80 से 85% पेयजल की आपूर्ति भूमिगत जल से होती है.
वहीं, 60 से 65% सिंचाई भी भूमिगत जल से किया जाता है. उधर, उत्तराखंड में मोटा अनाज जिस भूमि पर होता है, वो क्षेत्र भी वर्षा आधारित खेती से ही जुड़ा है. खास बात ये है कि राज्य में न केवल बारिश को लेकर स्थिति चिंताजनक है, बल्कि कम बर्फबारी के कारण तमाम स्रोत भी प्रभावित हो रहे हैं.
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून के पूर्व वैज्ञानिक डीपी डोभाल कहते हैं कि बर्फबारी के कम होने कारण तमाम जल स्रोत कम हुए हैं और इसका पेयजल संकट से सीधा नाता भी है. देश विभिन्न राज्यों के लिहाज से राष्ट्रीय स्तर पर जिस संकट से गुजर रहा है, उत्तराखंड में इसके हालात और भी चिंताजनक है.
वैज्ञानिक डीपी डोभाल का कहना है कि उत्तराखंड में खासतौर पर प्राकृतिक जल स्रोतों की स्थिति बेहद गंभीर बनी हुई है. जल संस्थान के स्तर पर गर्मी शुरू होने से पहले किए गए अध्ययन में यह साफ हुआ है कि जल स्रोतों में मौजूद पानी कम हुआ है. यह सीधे पेयजल संकट को जाहिर करता है.
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जल स्रोतों के ताजा हालातः पेयजल योजनाओं के प्राकृतिक जल स्रोतों में पानी की भारी कमी पाई गई है. उत्तराखंड में 4,624 प्राकृतिक जल स्रोत मौजूद हैं. इसके 10% यानी 461 जल स्रोतों में 76% से भी ज्यादा पानी सूख चुका है. वहीं, 1,290 यानी 28% जल स्रोत 51% से लेकर 75% तक सूख गए हैं. उधर, 2,873 यानी 62% जल स्रोतों में जीरो से 50% तक पानी में कमी आई है.
उत्तराखंड में सूख चुके जल स्रोतः उत्तराखंड में जल स्रोत सूखने के बाद पहाड़ी जिलों के अलावा मैदानी जिलों में भी परेशानियां बढ़ी हैं. देहरादून के विभिन्न क्षेत्रों में टैंकर के जरिए पानी पहुंचाया जा रहा है. देहरादून जिले में 142 जल स्रोत मौजूद हैं, जिनमें 46% ऐसे हैं, जिनका पानी 76% से ज्यादा सूख चुका है.
इसी तरह पौड़ी में 645 में से 161 जल स्रोत सूख गए हैं. चमोली में 436 में से 36 सूख चुके हैं. उधर, रुद्रप्रयाग में 313 में से 5 जल स्रोत अब गायब हो गए हैं. नई टिहरी में 627 में से 77 जल स्रोत का पानी सूख चुके हैं. उत्तरकाशी में 415 में से 63 जल स्रोत सूख गए हैं.
वहीं, नैनीताल में 459 में से 36, अल्मोड़ा में 570 में से 13, पिथौरागढ़ में 542 में से 25 जबकि, चंपावत में 277 और बागेश्वर में 198 में से एक-एक जल स्रोत 76% से ज्यादा सूख चुके हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि आने वाला समय भयानक पेयजल संकट से गुजरेगा. हालांकि, जल संस्थान के अधिकारी गर्मियों में पानी की समस्या बढ़ने की स्थिति में पानी के टैंकर लगाने की बात कह रहे हैं.
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