देहरादून: वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत भारत सरकार सीमांत गांवों का विकस करना चाहती है, ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके. इसी बीच वैज्ञानिक वाइब्रेंट विलेज योजना को लेकर अभी से ही आगाह करते नजर रहे हैं, ताकि भविष्य में इन विलेज की स्थिति भी प्रदेश के जोशीमठ, नैनीताल, मसूरी, अल्मोड़ा समेत अन्य पर्यटक स्थलों जैसी न हो, इसलिए अभी से ही इस पर काम करने की जरूरत है. दरअसल, उत्तराखंड के तीन सीमांत जिला पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और चमोली की 5 विकासखंडों के 51 गांवों को वाइब्रेंट विलेज योजना में शामिल किया गया है. जिसकी कार्य योजना भी तैयार कर ली गई है.
वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत 51 गांवों में किए जाएंगे 510 कार्य: 758 करोड़ रुपए की लागत से विकसित होने वाले इन 51 गांवों में करीब 510 कार्य किए जायेंगे. इन गांवों के विकास कार्यों के लिए वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम के तहत 586.21 करोड़, केंद्र सहायतित योजना के तहत 118.64 करोड़ और राज्य पोषित योजना के तहत 53.99 करोड़ रुपए का बजट प्राप्त होगा. मुख्य रूप से स्थानीय लोगों की आर्थिक स्तिथि सुधारने के लिए आजीविका विकास और पर्यटन गतिविधियों पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान दिया जाएगा. जिससे इन सीमावर्ती गांवों से लगातार हो रहे पलायन पर लगाम लग सके.
उत्तरकाशी के 10 गांव वाइब्रेंट विलेज योजना में शामिल: वाइब्रेंट विलेज योजना में पिथौरागढ़ जिले के 27 गांव, उत्तरकाशी जिले के 10 गांव और चमोली जिले के 14 गांवों को शामिल किया गया है. इस योजना के तहत इन गांवों में आर्थिकी सुधार-आजीविका विकास के क्षेत्र में 60.05 करोड़ रुपए से 164 कार्य, ऊर्जा के क्षेत्र में 327.79 करोड़ रुपए की लागत से 52 कार्य, घर व ग्रामीण अवस्थापना के क्षेत्र में 114.09 करोड़ की लागत से 49 कार्य, पर्यटन के क्षेत्र में 105.78 करोड़ रुपए की लागत से 74 कार्य, पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार के क्षेत्र में 35.37 करोड़ की लागत से 11 कार्य, सड़क कनेक्टिविटी के क्षेत्र में 66.93 करोड़ रुपए की लागत से 53 कार्य, कौशल विकास के क्षेत्र में 1.24 करोड़ रुपए की लागत से 09 कार्य, सामुदायिक अवस्थापना सुविधा के क्षेत्र में 47.67 करोड़ रुपए की लागत से 98 कार्य किए जायेंगे.
हिमालय विलेज में बसने वाले लोगों को जागरूक होने की जरूरत: डॉ. स्वप्नमिता वैदेश्वरन ने बताया कि मुख्य रूप से माउंटेन टाउन और विलेज को प्लान करना चाहिए. साथ ही हिमालय विलेज में बसने वाले लोगों को भी इस बात को लेकर जागरूक होने की जरूरत है कि पहाड़ पर पक्का मकान न होने से सोशल स्टेट्स कम नहीं होगा. उन्होंने कहा कि पहले पहाड़ों में बहुत दूर-दूर और ऊंचाई पर मकान हुआ करते थे, लेकिन अब लोग मुख्य मार्ग और तमाम सुविधाओं को देखते हुए बाजारों के आसपास बसना चाहते हैं.
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