विकासनगर: एक तरफ जहां फिल्म स्टार और खिलाड़ी ब्रांडेड जूतों का प्रचार करते हैं तो उन्हें लोग महंगे दामों में हाथों हाथ खरीद लेते हैं तो वहीं, जमीन से जुड़े जूता बनाने वाले कारीगरों की कला दम तोड़ती नजर आ रही है. ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया में लोग ब्रांड के नाम पर हजारों रुपये खर्च कर देते हैं लेकिन दुकान में बैठे कारीगर दिनभर ग्राहकों का इंतजार करते रहते हैं.
ऐसी ही कुछ कहानी सहसपुर थाने के ठीक सामने बूट मेकिंग का काम करने वाले 62 वर्षीय बलवंत सिंह की है, जो करीब 40 साल से जूते, चप्पल और सैंडल बनाकर अपने परिवार की गुजर-बसर कर रहे हैं. बलवंत सिंह की माने तो उन्होंने अपने पुरखों के काम को अभी तक जिंदा रखा हुआ है. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के समय 1980 में सरकार ने उनकी मदद के नाम पर 10,000 रुपये की दुकान आवंटित की थी, तब से लेकर अभी तक उत्तराखंड सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की है.
बलवंत सिंह बताते हैं कि कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से उनको भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. दुकान बंद होने से परिवार के भरण-पोषण के लिए उनको काफी दिक्कत हुई. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अपने काम को जारी रखा और अपने परिवार का भरण-पोषण किया. बलवंत सिंह बताते हैं कि परिवार के 7 सदस्यों में दो बेटे हैं, जो मेहनत मजदूरी करते हैं और दुकान के काम में उनका हाथ बंटाते हैं.
बलवंत सिंह की माने तो इंटरनेट की दुनिया में उनके बनाये जूते-चप्पलों को कोई पूछता नहीं पूछता है. हफ्तेभर में एक-दो जोड़ी जूते बिक जाते हैं. एक जोड़ी जूते पर औसतन 100 से 150 रुपये ही बचते हैं. बलवंत सिंह कहते हैं कि आधुनिकता के इस दौर में उनके सामने अपना परिवार पालना भी मुश्किल हो रहा है.
राज्य सरकार से कोई मदद नहीं: हाल ही में धामी सरकार ने कोरोना कोल में प्रभावित हुए पर्यटन व्यवसायियों और कारोबारियों को 200 करोड़ का राहत पैकेज दिया था. इससे लगभग 1 लाख 64 हजार लाभार्थी/परिवार लाभान्वित हुए. सरकार ने ये पैकेज पर्यटन क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की मदद के लिए दिया. क्योंकि पर्यटन बढ़ने से राज्य की आर्थिकी भी बढ़ती है. लेकिन इन हस्तकला को जिंदा रखने वालों की तरफ राज्य सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया.
पढ़ें- 7 अक्टूबर से शुरू होगी पिथौरागढ़ में हेली सेवा, किराये में वृद्धि को लेकर कांग्रेस हमलावर
लोकल कैसे होगा वोकल: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘वोकल फॉर लोकल’ का मंत्र दिया है और इसे सार्थक बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें इसके लिए करोड़ों की योजनाएं भी चला रही हैं. ऐसे में मनोज सिंह जैसे कारीगरों को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है. ऐसे में सरकार को ध्यान देना होगा कि आखिर लोकल वोकल कैसे होगा ?