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मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए जलागम को मिली जिम्मेदारी, 5 गांवों को किया चिन्हित - Uttarakhand Watershed Department

अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन (Additional Chief Secretary Anand Vardhan) ने मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत 5 गांवों को चिन्हित किया है. वहीं प्रभावी समाधान के क्रियान्वयन को शुरू करने के निर्देश जलागम विभाग (Uttarakhand Watershed Department) को दिए हैं.

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Published : Nov 22, 2022, 7:39 AM IST

देहरादून: प्रदेश में मानव-वन्यजीव संघर्ष (Measures to prevent human wildlife conflict) के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. जिसको देखते हुए अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन (Additional Chief Secretary Anand Vardhan) ने मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत 5 गांवों को चिन्हित किया है. साथ ही प्रभावी समाधान के क्रियान्वयन को शुरू करने के निर्देश जलागम विभाग (Uttarakhand Watershed Department) को दिए हैं.

अपर मुख्य सचिव (Uttarakhand Additional Chief Secretary) ने मानव-वन्यजीव संघर्षों को रोकने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ ही सामुदायिक भागीदारी, ग्राम पंचायतों की भूमिका तथा स्थानीय लोगों के सहयोग को भी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों और गांवों में माइक्रो प्लान पर गंभीरता से कार्य करने के निर्देश दिए हैं. इसके साथ ही उन्होंने प्रोजेक्ट के तहत राजाजी कॉर्बेट लैंडस्केप (Rajaji Corbett Landscape) के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में मानव-वन्यजीव संघर्ष के पैटर्न का अध्ययन करने तथा क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रति स्थानीय लोगों के रूझान व धारणाओं तथा सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का डॉक्यूमेंटेशन करने के भी निर्देश दिए हैं.

पढ़ें-कैबिनेट बैठक में 18 प्रस्तावों पर लगी मुहर, 4867 करोड़ के अनुपूरक बजट को भी मिली मंजूरी

अपर मुख्य सचिव जलागम प्रबंधन एवं कृषि उत्पादन आयुक्त आनंद वर्धन ने सचिवालय में राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने के संबंध में जलागम, भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों एवं कंसल्टेंट्स के साथ बैठक की. एसीएस ने लोगों को जंगली जानवरों के हमलों से सतर्क करने हेतु अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने के निर्देश दिए हैं. बैठक में मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं के पीछे गांवों से पलायन के कारण कम आबादी घनत्व, एलपीजी सिलेंडरों की त्वरित आपूर्ति सेवा का अभाव, सड़कों में लाइटों का कार्य न करना, पालतू पशुओं की लंबी अवधि तक चराई, गांवों की खाली एवं बंजर जमीनों पर लेन्टाना, बिच्छू घास, काला घास, गाजर घास के उगने से जंगली जानवरों को छुपने की जगह मिलना जैसे कारणों के समाधानों पर भी चर्चा की गई.

भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों तथा जलागम के अधिकारियों ने जानकारी दी कि मानव-वन्य जीवन संघर्ष को नियंत्रित करने हेतु एक प्रोजेक्ट अल्मोड़ा, देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल तथा पौड़ी गढ़वाल में संचालित किया जाएगा. फिलहाल यह प्रोजेक्ट पौड़ी गढ़वाल जनपद के कुछ क्षेत्रों जिसमें कॉर्बेट तथा राजाजी टाइगर रिजर्व (Rajaji Tiger Reserve) भी सम्मिलित हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत सर्वाधिक मानव-वन्यजीव संघर्षों वाले गांवों जिनमें 17 से अधिक मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं हुई हैं, उनकी पहचान की गई है. इन 15 गांवों में गोहरी फॉरेस्ट रेंज में स्थित गंगाभोगपुर गांव, लाल ढांग फॉरेस्ट रेंज में स्थित किमसर, देवराना, धारकोट, अमोला, तचिया, रामजीवाला, केस्था, गुमा, कांडी, दुगड्डा में स्थित किमुसेरा, सैलानी, पुलिण्डा, दुराताल तथा लैंसडाउन की सीमा में कलेथ गांव हैं.
पढ़ें-UKSSSC पेपर लीक केस: STF ने कोर्ट में दाखिल की चार्जशीट, सरकार से स्पेशल प्राइवेट सॉलिसिटर की मांग

वन्य जीव संस्थान देहरादून (Wildlife Institute Dehradun) के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी कि फसलों को जंगली सूअर व भालू काफी नुकसान पहुंचाते हैं. मानव-वन्यजीव संघर्ष से प्रभावित जिन गांवों में सर्वे किया गया, उन्होंने गेहूं का उत्पादन बंद कर दिया है. ग्रामीणों ने मंडुआ, हल्दी तथा मिर्च का उत्पादन करना शुरू कर दिया है, ताकि अनुमान लगाया जा सके कि क्या इन फसलों के उत्पादन से कुछ अंतर पड़ रहा है. 50 प्रतिशत गांवों में सभी मौसमों में 60-80 प्रतिशत फसलें वन्यजीवों द्वारा नष्ट की जा रही हैं. अधिकांश ग्रामीणों ने माना कि यदि वन्यजीवों द्वारा फसलें नष्ट नहीं की जाती तो कृषि कार्य उनके लिए लाभकारी होता. प्रभावित गांवों के कुल कृषिक्षेत्र का 50 प्रतिशत क्षेत्र खाली पड़ा हैं.

देहरादून: प्रदेश में मानव-वन्यजीव संघर्ष (Measures to prevent human wildlife conflict) के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. जिसको देखते हुए अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन (Additional Chief Secretary Anand Vardhan) ने मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत 5 गांवों को चिन्हित किया है. साथ ही प्रभावी समाधान के क्रियान्वयन को शुरू करने के निर्देश जलागम विभाग (Uttarakhand Watershed Department) को दिए हैं.

अपर मुख्य सचिव (Uttarakhand Additional Chief Secretary) ने मानव-वन्यजीव संघर्षों को रोकने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ ही सामुदायिक भागीदारी, ग्राम पंचायतों की भूमिका तथा स्थानीय लोगों के सहयोग को भी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों और गांवों में माइक्रो प्लान पर गंभीरता से कार्य करने के निर्देश दिए हैं. इसके साथ ही उन्होंने प्रोजेक्ट के तहत राजाजी कॉर्बेट लैंडस्केप (Rajaji Corbett Landscape) के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में मानव-वन्यजीव संघर्ष के पैटर्न का अध्ययन करने तथा क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रति स्थानीय लोगों के रूझान व धारणाओं तथा सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का डॉक्यूमेंटेशन करने के भी निर्देश दिए हैं.

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अपर मुख्य सचिव जलागम प्रबंधन एवं कृषि उत्पादन आयुक्त आनंद वर्धन ने सचिवालय में राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने के संबंध में जलागम, भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों एवं कंसल्टेंट्स के साथ बैठक की. एसीएस ने लोगों को जंगली जानवरों के हमलों से सतर्क करने हेतु अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने के निर्देश दिए हैं. बैठक में मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं के पीछे गांवों से पलायन के कारण कम आबादी घनत्व, एलपीजी सिलेंडरों की त्वरित आपूर्ति सेवा का अभाव, सड़कों में लाइटों का कार्य न करना, पालतू पशुओं की लंबी अवधि तक चराई, गांवों की खाली एवं बंजर जमीनों पर लेन्टाना, बिच्छू घास, काला घास, गाजर घास के उगने से जंगली जानवरों को छुपने की जगह मिलना जैसे कारणों के समाधानों पर भी चर्चा की गई.

भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों तथा जलागम के अधिकारियों ने जानकारी दी कि मानव-वन्य जीवन संघर्ष को नियंत्रित करने हेतु एक प्रोजेक्ट अल्मोड़ा, देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल तथा पौड़ी गढ़वाल में संचालित किया जाएगा. फिलहाल यह प्रोजेक्ट पौड़ी गढ़वाल जनपद के कुछ क्षेत्रों जिसमें कॉर्बेट तथा राजाजी टाइगर रिजर्व (Rajaji Tiger Reserve) भी सम्मिलित हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत सर्वाधिक मानव-वन्यजीव संघर्षों वाले गांवों जिनमें 17 से अधिक मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं हुई हैं, उनकी पहचान की गई है. इन 15 गांवों में गोहरी फॉरेस्ट रेंज में स्थित गंगाभोगपुर गांव, लाल ढांग फॉरेस्ट रेंज में स्थित किमसर, देवराना, धारकोट, अमोला, तचिया, रामजीवाला, केस्था, गुमा, कांडी, दुगड्डा में स्थित किमुसेरा, सैलानी, पुलिण्डा, दुराताल तथा लैंसडाउन की सीमा में कलेथ गांव हैं.
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वन्य जीव संस्थान देहरादून (Wildlife Institute Dehradun) के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी कि फसलों को जंगली सूअर व भालू काफी नुकसान पहुंचाते हैं. मानव-वन्यजीव संघर्ष से प्रभावित जिन गांवों में सर्वे किया गया, उन्होंने गेहूं का उत्पादन बंद कर दिया है. ग्रामीणों ने मंडुआ, हल्दी तथा मिर्च का उत्पादन करना शुरू कर दिया है, ताकि अनुमान लगाया जा सके कि क्या इन फसलों के उत्पादन से कुछ अंतर पड़ रहा है. 50 प्रतिशत गांवों में सभी मौसमों में 60-80 प्रतिशत फसलें वन्यजीवों द्वारा नष्ट की जा रही हैं. अधिकांश ग्रामीणों ने माना कि यदि वन्यजीवों द्वारा फसलें नष्ट नहीं की जाती तो कृषि कार्य उनके लिए लाभकारी होता. प्रभावित गांवों के कुल कृषिक्षेत्र का 50 प्रतिशत क्षेत्र खाली पड़ा हैं.

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