देहरादूनः ई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट पर्यावरण के लिए लगातार खतरा बनता जा रहा है. ऐसे में ई-वेस्ट के निस्तारण के लिए देहरादून के आईटी पार्क स्थित आइटीडीए (सूचना प्रौद्योगिकी भवन) परिसर में प्रदेश का पहला ई-वेस्ट स्टूडियो तैयार किया जा रहा है. यह करीब 15 लाख रुपये की लागत से बनाई जा रही है. जहां ई-वेस्ट से तैयार किए गए तरह-तरह के सजावटी सामान जैसे घड़ी, पेन स्टैंड इत्यादि प्रदर्शित किए जाएंगे.
बता दें कि प्रदेश के इस पहले ई-वेस्ट स्टूडियो की छत को तैयार करने के लिए पुरानी और खराब सीडी का इस्तेमाल किया गया है. साथ ही पुराने कंप्यूटर मॉनिटर और सीपीयू का भी स्टूडियो में अलग-अलग तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है. साथ ही बेहतर तरीके से इसे डिजाइन भी किया जा रहा है. जो अभी से ही खूबसूरत नजर आ रहा है.
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आईटीडीए के निदेशक अमित कुमार सिन्हा ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और आईटीडीए संयुक्त रूप से ई-वेस्ट स्टूडियो का निर्माण किया जा रहा है. फिलहाल, इसके निर्माण का कार्य अंतिम चरण में है. ऐसे में जल्द ही अगले एक या दो महीने के भीतर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस ई-वेस्ट स्टूडियो का शुभारंभ करेंगे. जिसके बाद लोग निःशुल्क इस ई-वेस्ट स्टूडियो का दीदार कर सकेंगे.
वर्तमान में इस ई-वेस्ट स्टूडियो में कंप्यूटर समेत अन्य तरह के ई-वेस्ट का इस्तेमाल हो रहा है. वो सभी उत्तराखंड सचिवालय में कबाड़ के रूप में सालों से पड़े ई-वेस्ट हैं. इस ई-वेस्ट स्टूडियो को तैयार करने का मुख्य उद्देश्य यही है कि लोगों में ई-वेस्ट और पर्यावरण पर पड़ते उसके दुष्प्रभाव के प्रति जागरुकता बढ़े. साथ ही लोगों को यह भी पता चले कि आखिर वो किस तरह अपने घर में पड़े ई-वेस्ट का सदुपयोग कर सकते हैं.
आखिर क्या होता है ई-वेस्ट?
जैसे-जैसे डिजिटलाइजेशन बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ही लोग इलेक्ट्रॉनिक सामान का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं. इसमें कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल फोन, फ्रिज, टीवी समेत कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक सामान शामिल हैं, लेकिन समस्या यह है कि जब ये इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खराब हो जाते हैं. तब इन्हें इधर-उधर कहीं भी कूड़े में फेंक दिया जाता है. जिसे ई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट कहा जाता है. जो आसानी से नष्ट नहीं होती है.
ई-वेस्ट का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव?
एक इलेक्ट्रॉनिक वस्तु को बनाने में काम आने वाली सामग्रियों में ज्यादातर विषैले पदार्थ जैसे कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, बेरिलियम, आर्सेनिक और पारे का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में यदि इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट का सही तरह से निस्तारण न किया जाए तो यह पर्यावरण को दूषित करने लगता है. इससे मिट्टी और भू-जल दूषित होता है, जिसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है.