देहरादून: यूपी एसटीएफ ने कानपुर शूटआउट के मुख्य आरोपी विकास दुबे को एनकाउंटर के दौरान ढेर कर दिया है. यूपी पुलिस का कहना है कि कानपुर लाते समय उसने पुलिसवालों का हथियार छीनकर भागने की कोशिश की और पुलिस एनकाउंटर में मारा गया. विकास दुबे के मारे जाने के बाद यूपी पुलिस का एनकाउंटर पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. ETV BHARAT अपनी इस रिपोर्ट में उत्तराखंड पुलिस के चर्चित रणवीर सिंह फर्जी एनकाउंटर की कहानी बताने जा रहा है, जो पूरे देश में चर्चा का विषय बना था.
3 जुलाई 2009 को देहरादून में हुए रणवीर एनकाउंटर लंबे समय तक पूरे देश में छाया रहा. 2009 में उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में हुए रणवीर एनकाउंटर ने उत्तराखंड के साथ-साथ कई राज्यों की पुलिस कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे. एमबीए छात्र रणवीर सिंह फर्जी एनकाउंटर का असर उत्तराखंड पुलिस पर इस कदर हुआ कि साल 2009 के बाद पुलिस ने एनकाउंटर के दौरान किसी अपराधी को ढेर नहीं किया. उत्तराखंड पुलिस की संलिप्तता के चलते इस केस की जांच सीबीआई से करवाई गई थी. बागपत का रहने वाल रणवीर एक छात्र था और उसका कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं था.
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रणवीर एनकाउंटर की कहानी
3 जुलाई 2009 की शाम 3.50 बजे उत्तराखंड पुलिस के कंट्रोल रूम पर एक सूचना प्राप्त होती है कि देहरादून से सटे लाडपुर के जंगलों में कुछ बदमाशों और पुलिसकर्मियों के बीच फायरिंग हो रही है. पुलिस अधिकारियों की तरफ से कंट्रोल रूम को एनकाउंटर की जगह अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का आदेश दिया गया. इस बीच पुलिस को सूचना मिलती है कि मुठभेड़ के दौरान रणवीर नाम का एक बदमाश मारा गया और उसके साथी मौके से भागने में कामयाब हो गए. रणवीर उत्तर प्रदेश के बागपत का रहने वाला था और उस पर पुलिस की रिवॉल्वर छीनकर भागने का आरोप था.
रणवीर को मारी गई थी 22 गोलियां
इस कथित फर्जी मुठभेड में पुलिस ने रणवीर पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं. उस समय पुलिस ने मुठभेड़ में 29 राउंड फायरिंग किए जाने का दावा किया था. पांच जुलाई 2009 को आई पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने पुलिस की पोल खोल दी. मृतक के शरीर में 22 गोलियों के निशान पाए गए थे. रणवीर के शरीर पर मिले चोटों के गहरे निशान से हकीकत का खुलासा हुआ था. यही नहीं रणवीर के शरीर पर 28 चोट के निशान मिले थे.
परिजनों ने लगाया आरोप
रणवीर के परिजनों ने पूरे एनकाउंटर को फर्जी बताया था. परिजनों के अनुसार रणवीर 3 जुलाई के दिन ही देहरादून में नई नौकरी ज्वॉइन करने वाला था. इसी दौरान मोहिनी रोड पर गाली-गलौज को लेकर एक दारोगा से टकराव हो गया था. चौकी में सबक सिखाने के लिए दी गई यातनाओं के दौरान हालात बिगड़ने पर पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर किया. 5 जुलाई 2009 को रणवीर की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत से पहले गंभीर चोट पहुंचाए जाने की बात की पुष्टि हुई. रिपोर्ट में कुल 28 चोटें और 22 गोलियां लगने की बात सामने आई थी.
रणवीर एनकाउंटर केस में कब क्या हुआ?
3 जुलाई 2009 को एनकाउंटर में रणवीर की हत्या हुई थी. 4 जुलाई 2009 को हत्या का आरोप को लेकर परिजनों ने हंगामा किया. 5 जुलाई 2009 को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई और 5 जुलाई 2009 को ही CBCID की जांच को सौंपा गया. 6 जुलाई को पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया. 7 जुलाई 2009 को CBCID ने जांच शुरू करते हुए 8 जुलाई 2009 को नेहरु कॉलोनी थाने का रिकॉर्ड जब्त किया. इस दौरान 8 जुलाई को तत्कालीन सरकार ने CBI जांच की सिफारिश की और 31 जुलाई 2009 में CBI ने देहरादून में एनकाउंटर की जांच शुरू की. 4 जून 2014 को दिल्ली की विशेष अदालत का फैसला सुरक्षित रखा. 6 जून 2014 को 18 पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया. 6 फरवरी 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने सबूत के अभाव में 11 पुलिसकर्मियों को बरी किया.
SC के आदेश पर केस हुआ था ट्रांसफर
रणवीर के परिजनों ने 9 मार्च 2010 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 29 मार्च 2011 को केस देहरादून की विशेष अदालत से दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ट्रांसफर हुआ था और 4 मई 2011 से दिल्ली में रणवीर फर्जी एनकाउंटर की सुनवाई शुरू हुई थी.
दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने रणवीर एनकाउंटर केस में फैसला सुनाते हुए 6 जून 2014 को 22 आरोपी पुलिसकर्मियों में से 18 को हत्या, अपहरण, सबूत मिटाने और आपराधिक साजिश रचने का दोषी करार दिया था और सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. 6 फरवरी 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान 18 दोषियों में से 11 पुलिसकर्मियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया और अन्य सात पुलिसकर्मियों की सजा बरकरार रखी.
रणवीर एनकाउंटर में कत्ल और इंसाफ का एक ही दिन
रणवीर सिंह एनकाउंटर में कत्ल और इंसाफ का दिन एक ही रहा. 3 जुलाई 2009 को जिस दिन रणवीर को कथित मुठभेड़ में मारा गया था, उस दिन शुक्रवार था. सीबीआई की विशेष अदालत ने 6 जून 2014 शुक्रवार को दोषियों को सजा सुनाई थी.