देहरादूनः उत्तराखंड में 1700 से ज्यादा औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttarakhand Pollution Control Board) की हड़बड़ाहट का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. जी हां इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (Industry Association of Uttarakhand) के अध्यक्ष पंकज गुप्ता ने कुछ ऐसी ही आशंका हाल ही में बोर्ड की तरफ से औद्योगिक इकाइयों को दिए गए नोटिस को लेकर जताई है. खास बात यह है कि एक तरफ जहां बोर्ड की कार्रवाई पर स्टे लेने के लिए औद्योगिक संगठन हाईकोर्ट का रुख कर चुके हैं, तो वहीं सैकड़ों उद्योगों पर बंदी की तलवार भी लटक रही है.
इन दिनों औद्योगिक इकाइयों में उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एनओसी रद्द करने से जुड़े उस नोटिस से हड़कंप मचा हुआ है, जिसके चलते राज्य की सैकड़ों औद्योगिक इकाइयों पर ताला लगने की नौबत आ गई है. दरअसल मामला प्लास्टिक पैकेजिंग से जुड़े प्रोड्यूसर्स, ब्रांड ओनर और इंपोर्टर्स से जुड़ा है. इसके तहत प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन एक्ट के तहत इन इकाइयों को न केवल केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा विकसित पोर्टल में अपना रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है बल्कि ईपीआर यानी एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी में एक्शन प्लान जमा करना भी आवश्यक है. लेकिन राज्य में सैकड़ों औद्योगिक इकाइयों की तरफ से अब तक ईपीआर में एक्शन प्लान जमा नहीं किया गया है.
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1724 उद्योगों की NOC रद्दः लिहाजा, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से ऐसे कुल 1724 उद्योगों की NOC रद्द की गई है. लेकिन मामला बस यहीं तक सीमित नहीं है. क्योंकि उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से यह कार्रवाई हाईकोर्ट के उस आदेश के बाद की गई है, जिसमें 15 दिनों के भीतर औद्योगिक इकाइयों द्वारा रजिस्ट्रेशन या एक्शन प्लान नहीं देने की स्थिति में उन्हें बंद करने के लिए कहा गया. एक पीआईएल पर हाईकोर्ट के ऐसे आदेश के बाद उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 1724 इकाइयों की एनओसी तो रद्द कर दी. लेकिन अब तमाम उद्योगों की तरफ से बोर्ड की तरफ से की गई कार्रवाई को गलत ठहराया जा रहा है.
कोर्ट ऑफ कंडक्ट से बचने के लिए उठाया कदमः इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के अध्यक्ष पंकज गुप्ता कहते हैं कि किसी भी कार्रवाई से पहले एक प्रक्रिया होती है जिसमें उद्योगों की समस्याओं को सुनने से लेकर उन्हें समय देने तक का काम किया जाता है. लेकिन जिस तरह से उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से NOC रद्द किए गए हैं, उससे साफ है कि बोर्ड की तरफ से हाईकोर्ट की अवमानना से बचने के लिए आनन-फानन में यह कदम उठाया गया है.
6 हजार से ज्यादा छोटी बड़ी इकाइयां मौजूदः यह मामला जितना सरल दिखाई देता है, दरअसल उतना है नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि यह बात केवल किसी इंडस्ट्री को बंद करने तक सीमित नहीं है. बल्कि इसमें काम करने वाले हजारों लोगों से भी जुड़ी हुई है. फिलहाल 1724 इंडस्ट्री को यह नोटिस दिए गए हैं. लेकिन पंकज गुप्ता कहते हैं कि ऐसी करीब 6 हजार छोटी बड़ी इंडस्ट्री हैं, जिन्होंने या तो रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है या फिर ईपीआर में एक्शन प्लान जमा नहीं किया है. ऐसी स्थिति में यदि बोर्ड की तरफ से सभी पर ऐसी ही सख्ती दिखाई जाती है तो करीब 4 से 5 लाख लोग एकाएक बेरोजगार हो जाएंगे.
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क्या है ये एक्ट और ईपीआरः पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट के बेहतर प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार की तरफ से प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन एक्ट 2016 लाया गया. जिसे 2018 में संशोधित भी किया गया. हालांकि, इसी साल जुलाई से इस पर काम शुरू किया गया. इसके तहत प्लास्टिक पैकेजिंग से जुड़े तमाम उद्योग और इकाइयों को इसके प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई. यानी इकाइयों की तरफ से जितना प्लास्टिक बाजार में विभिन्न उत्पादों के जरिए भेजा जाता है. उसको इकट्ठा करने से लेकर उसके रीसाइकिल तक का काम भी इन्हीं इकाइयों को करना होता है.
ईपीआर यानी एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी है जिसमें विभिन्न इकाइयों को प्लास्टिक के निस्तारण को लेकर एक एक्शन प्लान भारत सरकार द्वारा बनाए गए पोर्टल में जमा करना होता है. इस मामले में उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव सुशांत पटनायक कहते हैं कि हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए आदेशों का अनुपालन किया गया है. इस मामले में जिन इकाइयों की तरफ से रजिस्ट्रेशन या अपना एक्शन प्लान जमा नहीं कराया गया था, उनको नोटिस सर्व कर दिए गए हैं.