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उत्तराखंड में एसीआर के पीछे पड़े मंत्री!, क्या ACR का अधिकार मिलना है संभव?

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Published : Apr 26, 2023, 7:53 PM IST

Updated : Apr 27, 2023, 6:05 PM IST

उत्तराखंड में एसीआर लिखने का मामला सुर्खियों में है. खुद काबिना मंत्री सतपाल महाराज लंबे समय से सचिवों के एसीआर लिखने की मांग पर अड़े हैं. इसके अलावा अन्य मंत्रीगण भी एसीआर का अधिकार देने की मांग कर रहे हैं. आखिर क्या है एसीआर और मंत्री क्यों कर रहे हैं एसीआर लिखने की मांग. अधिकारियों की एसीआर लिखने की कितनी है संभावना? इस खबर में जानिए...

Ministers Demanding ACR Rights
उत्तराखंड में एसीआर
उत्तराखंड में एसीआर लिखने की मांग तेज.

देहरादूनः उत्तराखंड में एसीआर लिखने का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज समेत अन्य मंत्री इस मुद्दे को सीएम धामी के सामने रख चुके हैं, लेकिन अब एक बड़ा सवाल यही है कि आखिर मंत्री एसीआर लिखने जैसी छोटी चीज के पीछे क्यों पड़े हैं? जबकि एसीआर लिखने के अलावा भी एसीआर के दो और मुख्य बिंदु हैं. इस मामले पर महाराज ने भी बड़ा बयान जारी कर कहा कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव का मंतव्य अंकित हो रहा है तो इसी कड़ी में मंत्री का भी मंतव्य अंकित होना चाहिए. विपक्ष का भी मानना है कि एसीआर लिखने का अधिकार मिलना चाहिए.

दरअसल, धामी सरकार में वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज लंबे समय से सचिवों के एसीआर (Annual Confidential Report) लिखने की मांग कर रहे हैं. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने बयान जारी कर कहा कि पूर्वर्ती एनडी तिवारी सरकार में मंत्रियों को अधिकारियों की एसीआर लिखने का अधिकार था तो इस परिपाटी को फिर से लागू करने में किसी को क्या परेशानी हो सकती है. साथ ही महाराज ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव का मंतव्य अंकित हो रहा है तो इसी क्रम में मंत्री का भी मंतव्य अंकित होना चाहिए. यह सच है कि इस व्यवस्था में मुख्यमंत्री एक्सेप्टिंग अथॉरिटी हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मंत्री अपना मंतव्य अंकित नहीं कर सकता.

मंत्रियों की ओर से सचिवों का एसीआर लिखने की मांग के मामले पर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी निरंकुश मानी जाती है, जिसके कई कारण है, लेकिन जो घुड़सवार होता है. उसका भी फर्क पड़ता है कि वो कैसे अपने विभाग के ब्यूरोक्रेट्स को कंट्रोल करता है. हालांकि, ये अलग बात है, लेकिन रेखा आर्य समेत कई मंत्रियों की अधिकारियों से बनी नहीं. मंत्रियों को यही लगता है कि ब्यूरोक्रेसी बेलगाम हो गई है. क्योंकि, उनका बात नहीं मानते हैं, लेकिन अगर एसीआर की बात करें तो एसीआर के तीन चरण होते हैं. जिसके तहत सवाल यही खड़ा होता है कि एसीआर लिखेगा कौन, रिव्यू कौन करेगा और एक फाइनल अथॉरिटी होती है, जो पास करती है.
ये भी पढ़ेंः जानिए नौकरशाही के ACR मामले में क्या कह रहे राजनीतिक विशेषज्ञ, मंत्री मांग पर क्यों हैं मुखर

उन्होंने कहा कि एक बड़ा सवाल यही है कि मंत्री एसीआर के कौन से स्टेज की जिम्मेदारी चाह रहे हैं, लेकिन वर्तमान में मंत्री एसीआर लिखने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में अगर मंत्रियों को एसीआर लिखने की पावर दे दी जाती है तो उस एसीआर का सीएस रिव्यू करेगा. अगर मंत्री एसीआर की फाइनल अथॉरिटी चाहते हैं तो कोई भी मुख्यमंत्री अपने सारे अधिकार मंत्री को क्यों देगा. इसके अलावा प्रदेश में ऐसी स्थिति है कि मंत्री, सचिवों का एसीआर नहीं लिख सकते हैं. क्योंकि, एक मंत्री के पास कई विभागीय सचिव हैं और एक सचिव पर कई मंत्रियों के विभागों की जिम्मेदारी है.

कौन मंत्री, किस सचिव का एसीआर लिखेगा? यह काफी कॉम्प्लिकेटेड है. कुल मिलाकर यह न तो व्यवहारिक है और न ही इतना आसान है. इसके साथ ही एक बड़ा सवाल ये भी खड़ा होता है कि जो मंत्री अधिकारियों की एसीआर लिखना चाहते हैं, क्या वो इतने कैपेवल है कि वो ब्यूरोक्रेट्स की एसीआर लिख सकें. हालांकि, उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी एरोगेंट तो है, लेकिन मंत्री खुद भी ब्यूरोक्रेट्स से उल्टे सीधे काम कराते रहते हैं. ये भी एक वजह है कि ब्यूरोक्रेसी, मंत्रियों के बात को नहीं मानती है. ऐसे में उलटे पुलटे काम कराने को लेकर ही मंत्री, ब्यूरोक्रेट्स का एसीआर लिखने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड जैसे राज्य में एसीआर लिखने की पावर मंत्रियों को मिलने की संभावना न के बराबर है.

वहीं, इस पूरे मामले पर उत्तराखंड में सियासत भी गरमाई हुई है. दरअसल, सीएम धामी के समक्ष कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज कई बार एसीआर लिखने की मांग उठा चुके हैं. इतना ही नहीं हाल ही में हुए कैबिनेट बैठक के दौरान भी मंत्री सतपाल महाराज समेत कई मंत्रियों ने एसीआर का मुद्दा उठाया था. वहीं मंत्रियों के एसीआर लिखने के सवाल पर सीएम धामी ने कहा कि पूरे देश में जो व्यवस्था है, साथ ही जो बिजनेस ऑफ रूल्स है, उसके आधार पर देखा जाएगा.
ये भी पढ़ेंः सतपाल महाराज लिख पाएंगे अधिकारियों की ACR? मंत्रियों और नौकरशाही के बीच अक्सर दिखा टकराव

प्रीतम सिंह ने कही ये बातः एसीआर के मामले पर पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि अगर मंत्री यह कहें कि अधिकारी मेरा कहना नहीं मान रहा है. लिहाजा, एसीआर लिखने का अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन अगर एसीआर लिखने का अधिकार नहीं मिल रहा है और अधिकारी भी बात नहीं मान रहा है तो उस मंत्री को तत्काल प्रभाव से मंत्रिमंडल पद से हट जाना चाहिए. क्योंकि, उसको कोई नैतिक अधिकार नहीं रहता है कि वो मंत्री परिषद में बना रहे. साथ ही सवाल खड़े करते हुए प्रीतम सिंह ने कहा कि जब मंत्री की बात अधिकारी नहीं सुन रहे हैं तो वो प्रदेश का क्या ही विकास करेंगे?

उत्तराखंड में एसीआर लिखने की मांग तेज.

देहरादूनः उत्तराखंड में एसीआर लिखने का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज समेत अन्य मंत्री इस मुद्दे को सीएम धामी के सामने रख चुके हैं, लेकिन अब एक बड़ा सवाल यही है कि आखिर मंत्री एसीआर लिखने जैसी छोटी चीज के पीछे क्यों पड़े हैं? जबकि एसीआर लिखने के अलावा भी एसीआर के दो और मुख्य बिंदु हैं. इस मामले पर महाराज ने भी बड़ा बयान जारी कर कहा कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव का मंतव्य अंकित हो रहा है तो इसी कड़ी में मंत्री का भी मंतव्य अंकित होना चाहिए. विपक्ष का भी मानना है कि एसीआर लिखने का अधिकार मिलना चाहिए.

दरअसल, धामी सरकार में वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज लंबे समय से सचिवों के एसीआर (Annual Confidential Report) लिखने की मांग कर रहे हैं. कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने बयान जारी कर कहा कि पूर्वर्ती एनडी तिवारी सरकार में मंत्रियों को अधिकारियों की एसीआर लिखने का अधिकार था तो इस परिपाटी को फिर से लागू करने में किसी को क्या परेशानी हो सकती है. साथ ही महाराज ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव का मंतव्य अंकित हो रहा है तो इसी क्रम में मंत्री का भी मंतव्य अंकित होना चाहिए. यह सच है कि इस व्यवस्था में मुख्यमंत्री एक्सेप्टिंग अथॉरिटी हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मंत्री अपना मंतव्य अंकित नहीं कर सकता.

मंत्रियों की ओर से सचिवों का एसीआर लिखने की मांग के मामले पर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी निरंकुश मानी जाती है, जिसके कई कारण है, लेकिन जो घुड़सवार होता है. उसका भी फर्क पड़ता है कि वो कैसे अपने विभाग के ब्यूरोक्रेट्स को कंट्रोल करता है. हालांकि, ये अलग बात है, लेकिन रेखा आर्य समेत कई मंत्रियों की अधिकारियों से बनी नहीं. मंत्रियों को यही लगता है कि ब्यूरोक्रेसी बेलगाम हो गई है. क्योंकि, उनका बात नहीं मानते हैं, लेकिन अगर एसीआर की बात करें तो एसीआर के तीन चरण होते हैं. जिसके तहत सवाल यही खड़ा होता है कि एसीआर लिखेगा कौन, रिव्यू कौन करेगा और एक फाइनल अथॉरिटी होती है, जो पास करती है.
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उन्होंने कहा कि एक बड़ा सवाल यही है कि मंत्री एसीआर के कौन से स्टेज की जिम्मेदारी चाह रहे हैं, लेकिन वर्तमान में मंत्री एसीआर लिखने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में अगर मंत्रियों को एसीआर लिखने की पावर दे दी जाती है तो उस एसीआर का सीएस रिव्यू करेगा. अगर मंत्री एसीआर की फाइनल अथॉरिटी चाहते हैं तो कोई भी मुख्यमंत्री अपने सारे अधिकार मंत्री को क्यों देगा. इसके अलावा प्रदेश में ऐसी स्थिति है कि मंत्री, सचिवों का एसीआर नहीं लिख सकते हैं. क्योंकि, एक मंत्री के पास कई विभागीय सचिव हैं और एक सचिव पर कई मंत्रियों के विभागों की जिम्मेदारी है.

कौन मंत्री, किस सचिव का एसीआर लिखेगा? यह काफी कॉम्प्लिकेटेड है. कुल मिलाकर यह न तो व्यवहारिक है और न ही इतना आसान है. इसके साथ ही एक बड़ा सवाल ये भी खड़ा होता है कि जो मंत्री अधिकारियों की एसीआर लिखना चाहते हैं, क्या वो इतने कैपेवल है कि वो ब्यूरोक्रेट्स की एसीआर लिख सकें. हालांकि, उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी एरोगेंट तो है, लेकिन मंत्री खुद भी ब्यूरोक्रेट्स से उल्टे सीधे काम कराते रहते हैं. ये भी एक वजह है कि ब्यूरोक्रेसी, मंत्रियों के बात को नहीं मानती है. ऐसे में उलटे पुलटे काम कराने को लेकर ही मंत्री, ब्यूरोक्रेट्स का एसीआर लिखने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड जैसे राज्य में एसीआर लिखने की पावर मंत्रियों को मिलने की संभावना न के बराबर है.

वहीं, इस पूरे मामले पर उत्तराखंड में सियासत भी गरमाई हुई है. दरअसल, सीएम धामी के समक्ष कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज कई बार एसीआर लिखने की मांग उठा चुके हैं. इतना ही नहीं हाल ही में हुए कैबिनेट बैठक के दौरान भी मंत्री सतपाल महाराज समेत कई मंत्रियों ने एसीआर का मुद्दा उठाया था. वहीं मंत्रियों के एसीआर लिखने के सवाल पर सीएम धामी ने कहा कि पूरे देश में जो व्यवस्था है, साथ ही जो बिजनेस ऑफ रूल्स है, उसके आधार पर देखा जाएगा.
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प्रीतम सिंह ने कही ये बातः एसीआर के मामले पर पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि अगर मंत्री यह कहें कि अधिकारी मेरा कहना नहीं मान रहा है. लिहाजा, एसीआर लिखने का अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन अगर एसीआर लिखने का अधिकार नहीं मिल रहा है और अधिकारी भी बात नहीं मान रहा है तो उस मंत्री को तत्काल प्रभाव से मंत्रिमंडल पद से हट जाना चाहिए. क्योंकि, उसको कोई नैतिक अधिकार नहीं रहता है कि वो मंत्री परिषद में बना रहे. साथ ही सवाल खड़े करते हुए प्रीतम सिंह ने कहा कि जब मंत्री की बात अधिकारी नहीं सुन रहे हैं तो वो प्रदेश का क्या ही विकास करेंगे?

Last Updated : Apr 27, 2023, 6:05 PM IST
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