देहरादून: उत्तराखंड में सरकारी कामकाज किन हालात में आगे बढ़ता है, इसकी बानगी स्वास्थ्य विभाग में एक रिटायर्ड अधिकारी की पुनर्नियुक्ति से समझा जा सकता है. स्वास्थ्य महानिदेशक 4 सदस्य कमेटी बनाकर जिस दिन आईईसी में हुई अनियमितता की जांच के आदेश करती है, उसी दिन यहां तैनात रहे अधिकारी को आउट सोर्स पर पुनर्नियुक्ति भी दे दी जाती है. मजे की बात ये है कि इस पुनर्नियुक्ति की जानकारी न तो सूबे के मुखिया यानी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को है और नहीं विभागीय मंत्री डॉ धन सिंह रावत को.
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का नारा देने वाली भाजपा सरकार में ऐसे कारनामे सामने आ रहे हैं, जो बेहद चौंकाने वाले हैं. वैसे तो इस जीरो टॉलरेंस की सरकार में नियुक्ति घोटालों की चर्चा होती रही है, लेकिन इस बार मामला पुनर्नियुक्ति का है. दस्तावेज बताते हैं कि कैसे स्वास्थ्य महानिदेशक महानिदेशालय में मुद्रण स्टेशनरी और आईईसी यानी इंफॉर्मेशन एजुकेशन कम्युनिकेशन में हुई अनियमितताओं को लेकर 3 सदस्य जांच कमेटी का गठन कर जांच के आदेश देती है. वहीं, इसी आईईसी की कमान संभालने वाले सूचना शिक्षा एवं संचार अधिकारी को भी इसी दिन सेवानिवृत्त होने के बाद पुनर्नियुक्ति दे दी जाती है. हैरानी की बात यह है कि इस नियुक्ति के बारे में न तो मुख्यमंत्री और न ही विभागीय मंत्री को बताया जाता है.
क्या है मामला: बता दें कि 23 जुलाई 2022 यानी इसी महीने स्वास्थ्य महानिदेशक शैलजा भट्ट की तरफ से एक जांच संबंधी आदेश किया जाता है, जिसमें अपर निदेशक स्वास्थ्य की अध्यक्षता में 4 सदस्य कमेटी को 15 दिनों के भीतर स्वास्थ्य महानिदेशालय में मुद्रण स्टेशनरी और आईईसी सामग्री की अनियमितताओं की जांच के आदेश दिए जाते हैं.
बड़ी बात यह है कि जांच के आदेश प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा भेजे गए इस पत्र के आधार पर किए जाते हैं, जिसका जिक्र स्वास्थ्य महानिदेशक की तरफ से जांच आदेश में किया गया है. अब बड़ा मजाक देखिए कि जिस दिन यानी 23 जुलाई को भ्रष्टाचार को लेकर जांच के आदेश दिए गए थे, उसी दिन स्वास्थ्य महानिदेशक की तरफ से ही एक और आदेश किया जाता है, जिसमें आईईसी से हाल ही में सेवानिवृत्त हुए अधिकारी जेसी पांडे को उसी विभाग में उसी काम के लिए दोबारा पुनर्नियुक्ति दे दी जाती है.
इससे भी बड़ी बात यह है कि भाजपा सरकार में ही शिक्षा मंत्री रहे अरविंद पांडे इस अधिकारी की पैरवी करते हुए इससे दोबारा विभाग में नियुक्ति देने की सिफारिश भी करते हुए दिखाई देते हैं. हैरानी की बात यह है कि इस सिफारिश के बाद संबंधित अधिकारी को नियुक्ति भी दे दी जाती है और इसकी भनक विभागीय मंत्री को भी नहीं लगती.