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बच्चों के टीकाकरण में कोरोना संक्रमण बना रुकावट, 42% बच्चे वैक्सीन से वंचित

उत्तराखंड में बच्चों का टीकाकरण स्वास्थ्य विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. कोरोना संक्रमण के चलते स्वास्थ्य विभाग टीकाकरण में लक्ष्य से 42% दूर है.

Uttarakhand News
टीकाकरण में कोरोना संक्रमण बना रुकावट
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Published : Nov 20, 2020, 5:12 PM IST

देहरादून: कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण बने हालात का असर बच्चों के टीकाकरण पर भी देखने को मिल रहा है. बच्चों को जन्म के बाद लगाए जाने वाले टीके देने में मुश्किल आ रही है. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 के कारण पूरे दक्षिण एशिया में करीब 40 लाख 50 हजार बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं हो पाया है. ऐसी स्थितियां पहले भी थीं. लेकिन अब स्थिति ज्यादा चिंताजनक हो गई हैं. यूनिसेफ ने चिंता जाहिर की है कि अगर बच्चों को समय से टीका या वैक्सीन नहीं दिया गया तो दक्षिण एशिया में एक और स्वास्थ्य आपातकाल का सामना करना पड़ सकता है.

कोरोना संक्रमण के कारण न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के देशों में टीकाकरण प्रभावित हुआ है. जिसकी वजह से भारत के विभिन्न राज्य टीकाकरण अभियान को रोकने के लिए मजबूर हुए हैं. बात अगर उत्तराखंड की करें तो साल भर के लक्ष्य के लिहाज से 58% टीकाकरण का काम अब तक हो चुका है. बाकी 42% टीकाकरण का काम करने की बड़ी चुनौती स्वास्थ्य विभाग के सामने हैं.

बच्चों को लगने वाले टीके

किसी बीमारी के खिलाफ बच्चे के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए उसे वैक्सीन दी जाती है. नवजात शिशु का शरीर वातावरण में मौजूद वायरस, बैक्टीरिया के हमले से अनजान होता है. ऐसे में बच्चे में कुछ खतरनाक बीमारियों के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जाती है. ताकि उस वायरस का हमला होने पर बच्चे का शरीर उससे लड़ सके. हर देश अपनी जनसंख्या और वहां मौजूद बीमारी के हिसाब से बच्चों के लिए टीके की श्रेणी बनाता है. जो टीके भारत में लगाए जाते हैं, जरूरी नहीं कि वो दूसरे देशों में भी दिए जाते हों.

उत्तराखंड में टीकाकरण की स्थिति

आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 42% बच्चे टीकाकरण से महरूम हैं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लक्ष्य के लिहाज से कुल 1 लाख 83 हजार 8 बच्चों को 2020-21 में टीकाकरण का लक्ष्य तय किया गया है. जिसमें 1 लाख 63 हजार 90 बच्चों का ही अभी तक टीकाकरण हुआ है. जिलेवार रिपोर्ट तस्दीक करते हैं कि सभी जिलों में 50% से ऊपर टीकाकरण किया गया है. वहीं, 77 हजार बच्चे अभी भी टीकाकरण का इंतजार कर रहे हैं.

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उत्तराखंड के जिलों की स्थिति.

ये भी पढ़ें: लंबी उम्र के लिए बच्चों का टीकाकरण जरूरी: विश्व टीकाकरण दिवस

महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्य ने भी माना है कि बच्चों के टीकाकरण को लेकर काम बेहद ज्यादा प्रभावित हुआ है. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ आंगनबाड़ी वर्कर्स को भी निर्देशित किया गया है कि वह घर-घर जाकर टीकाकरण के काम करें. ताकि लक्ष्य को पूरा किया जा सके और बच्चों का शत-प्रतिशत टीकाकरण हो सकें.

जानकारी देते राज्यमंत्री रेखा आर्य.

भारत में टीकाकरण का समय

  • जन्म पर बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV-0) और हैपेटाइटस बी टीकाकरण किया जाता है.
  • छह हफ्ते पर डीपीटी-1, इनएक्टिवेटिड पोलियो वैक्‍सीन (IPV-1), OPV-1, रोटावायरस-1, न्‍यूमोकॉकल कॉन्‍जुगेट वैक्‍सीन (PCV-1) दी जाती है.
  • 10 हफ्तों पर डीपीटी-2, OPV-2, रोटावायरस-2 दी जाती है.
  • 14 हफ्तों पर डीपीटी-3, OPV-3, रोटावायरस-3, IPV-2, PCV-2 का टीकाकरण किया जाता है.
  • 9-12 महीनों में खसरा और रूबेला-1 का टीका दिया जाता है.
  • 16-24 महीनों में खसरा-2, डीपीटी बूस्टर-1, OPV बूस्टर का टीकाकरण किया जाता है.
  • 5-6 साल होने पर पर डीपीटी बूस्टर-2 का टीकाकरण किया जाता है.
  • 10 साल होने पर टेटनस टोक्सॉइड/ टेटनस एंड एडल्ट डिप्थीरिया का टीका दिया जाता है.
  • 16 साल होने पर टेटनस टोक्सॉइड/ टेटनस एंड एडल्ट डिप्थीरिया का टीका दिया जाता है.

देहरादून के चिकित्सकों का कहना है कि बच्चे के जन्म के पहले साल में लगने वाले टीके बहुत अहम होते हैं. ये टीके समय से दिए जाने बहुत जरूरी होते हैं. इनमें देरी होना किसी बीमारी को न्योता दे सकता है. जन्म के समय लगने वाले बीसीजी, पोलियो और हैपेटाइटस-बी के टीके प्रसव के बाद अस्पताल में ही दे दिये जाते हैं. इसके बाद बच्चों को समय-समय पर टीके लगवाने के लिए डॉक्टर के पास जाना होता है. हालांकि टीकाकरण में अल्प अवधि के गैप को चिकित्सक हानिकारक नहीं मान रहे हैं.

टीकाकरण में कितनी देरी संभव

डॉक्टरों के मुताबिक पहले साल में लगने वाले टीकों को जितना हो सके समय से ही लगवाएं. लेकिन आजकल माता-पिता घबरा गए हैं. ऐसे में एक-दो हफ्ते की देरी चल सकती है. लेकिन, इसके बाद टीका जरूर लगवा लें. बच्चों में पोलियो और खसरे का टीका बहुत ही जरूरी होता है. 18 महीने वाले टीके में थोड़ी देर कर सकते हैं.

15 महीने के बाद ज्यादातर टीके बूस्टर्स होते हैं. यानी वो पहले से मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता को और बढ़ाते हैं. ये वैक्सीन अगर एक-दो महीने देरी से भी लगाई जाएं तो कोई दिक्कत नहीं क्योंकि पहले से ही शरीर में कुछ रोग प्रतिरोधक क्षमता मौजूद होती है. ऐसे में जितनी जल्दी हो सके बच्चों का प्राथमिक टीकाकरण कराना चाहिए.

देहरादून: कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण बने हालात का असर बच्चों के टीकाकरण पर भी देखने को मिल रहा है. बच्चों को जन्म के बाद लगाए जाने वाले टीके देने में मुश्किल आ रही है. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 के कारण पूरे दक्षिण एशिया में करीब 40 लाख 50 हजार बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं हो पाया है. ऐसी स्थितियां पहले भी थीं. लेकिन अब स्थिति ज्यादा चिंताजनक हो गई हैं. यूनिसेफ ने चिंता जाहिर की है कि अगर बच्चों को समय से टीका या वैक्सीन नहीं दिया गया तो दक्षिण एशिया में एक और स्वास्थ्य आपातकाल का सामना करना पड़ सकता है.

कोरोना संक्रमण के कारण न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के देशों में टीकाकरण प्रभावित हुआ है. जिसकी वजह से भारत के विभिन्न राज्य टीकाकरण अभियान को रोकने के लिए मजबूर हुए हैं. बात अगर उत्तराखंड की करें तो साल भर के लक्ष्य के लिहाज से 58% टीकाकरण का काम अब तक हो चुका है. बाकी 42% टीकाकरण का काम करने की बड़ी चुनौती स्वास्थ्य विभाग के सामने हैं.

बच्चों को लगने वाले टीके

किसी बीमारी के खिलाफ बच्चे के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए उसे वैक्सीन दी जाती है. नवजात शिशु का शरीर वातावरण में मौजूद वायरस, बैक्टीरिया के हमले से अनजान होता है. ऐसे में बच्चे में कुछ खतरनाक बीमारियों के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जाती है. ताकि उस वायरस का हमला होने पर बच्चे का शरीर उससे लड़ सके. हर देश अपनी जनसंख्या और वहां मौजूद बीमारी के हिसाब से बच्चों के लिए टीके की श्रेणी बनाता है. जो टीके भारत में लगाए जाते हैं, जरूरी नहीं कि वो दूसरे देशों में भी दिए जाते हों.

उत्तराखंड में टीकाकरण की स्थिति

आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 42% बच्चे टीकाकरण से महरूम हैं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लक्ष्य के लिहाज से कुल 1 लाख 83 हजार 8 बच्चों को 2020-21 में टीकाकरण का लक्ष्य तय किया गया है. जिसमें 1 लाख 63 हजार 90 बच्चों का ही अभी तक टीकाकरण हुआ है. जिलेवार रिपोर्ट तस्दीक करते हैं कि सभी जिलों में 50% से ऊपर टीकाकरण किया गया है. वहीं, 77 हजार बच्चे अभी भी टीकाकरण का इंतजार कर रहे हैं.

Uttarakhand News
उत्तराखंड के जिलों की स्थिति.

ये भी पढ़ें: लंबी उम्र के लिए बच्चों का टीकाकरण जरूरी: विश्व टीकाकरण दिवस

महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्य ने भी माना है कि बच्चों के टीकाकरण को लेकर काम बेहद ज्यादा प्रभावित हुआ है. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ आंगनबाड़ी वर्कर्स को भी निर्देशित किया गया है कि वह घर-घर जाकर टीकाकरण के काम करें. ताकि लक्ष्य को पूरा किया जा सके और बच्चों का शत-प्रतिशत टीकाकरण हो सकें.

जानकारी देते राज्यमंत्री रेखा आर्य.

भारत में टीकाकरण का समय

  • जन्म पर बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV-0) और हैपेटाइटस बी टीकाकरण किया जाता है.
  • छह हफ्ते पर डीपीटी-1, इनएक्टिवेटिड पोलियो वैक्‍सीन (IPV-1), OPV-1, रोटावायरस-1, न्‍यूमोकॉकल कॉन्‍जुगेट वैक्‍सीन (PCV-1) दी जाती है.
  • 10 हफ्तों पर डीपीटी-2, OPV-2, रोटावायरस-2 दी जाती है.
  • 14 हफ्तों पर डीपीटी-3, OPV-3, रोटावायरस-3, IPV-2, PCV-2 का टीकाकरण किया जाता है.
  • 9-12 महीनों में खसरा और रूबेला-1 का टीका दिया जाता है.
  • 16-24 महीनों में खसरा-2, डीपीटी बूस्टर-1, OPV बूस्टर का टीकाकरण किया जाता है.
  • 5-6 साल होने पर पर डीपीटी बूस्टर-2 का टीकाकरण किया जाता है.
  • 10 साल होने पर टेटनस टोक्सॉइड/ टेटनस एंड एडल्ट डिप्थीरिया का टीका दिया जाता है.
  • 16 साल होने पर टेटनस टोक्सॉइड/ टेटनस एंड एडल्ट डिप्थीरिया का टीका दिया जाता है.

देहरादून के चिकित्सकों का कहना है कि बच्चे के जन्म के पहले साल में लगने वाले टीके बहुत अहम होते हैं. ये टीके समय से दिए जाने बहुत जरूरी होते हैं. इनमें देरी होना किसी बीमारी को न्योता दे सकता है. जन्म के समय लगने वाले बीसीजी, पोलियो और हैपेटाइटस-बी के टीके प्रसव के बाद अस्पताल में ही दे दिये जाते हैं. इसके बाद बच्चों को समय-समय पर टीके लगवाने के लिए डॉक्टर के पास जाना होता है. हालांकि टीकाकरण में अल्प अवधि के गैप को चिकित्सक हानिकारक नहीं मान रहे हैं.

टीकाकरण में कितनी देरी संभव

डॉक्टरों के मुताबिक पहले साल में लगने वाले टीकों को जितना हो सके समय से ही लगवाएं. लेकिन आजकल माता-पिता घबरा गए हैं. ऐसे में एक-दो हफ्ते की देरी चल सकती है. लेकिन, इसके बाद टीका जरूर लगवा लें. बच्चों में पोलियो और खसरे का टीका बहुत ही जरूरी होता है. 18 महीने वाले टीके में थोड़ी देर कर सकते हैं.

15 महीने के बाद ज्यादातर टीके बूस्टर्स होते हैं. यानी वो पहले से मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता को और बढ़ाते हैं. ये वैक्सीन अगर एक-दो महीने देरी से भी लगाई जाएं तो कोई दिक्कत नहीं क्योंकि पहले से ही शरीर में कुछ रोग प्रतिरोधक क्षमता मौजूद होती है. ऐसे में जितनी जल्दी हो सके बच्चों का प्राथमिक टीकाकरण कराना चाहिए.

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