देहरादून: समाज में कर्ज लेना वैसे तो एक बुरी आदत के रूप में माना जाता है, लेकिन उत्तराखंड के लिए ऐसा करना एक बड़ी मजबूरी बन गया है. हालत यह है कि राज्य स्थापना के दौरान से ही कर्जदार बने उत्तराखंड में अब कर्ज का ऐसा पहाड़ खड़ा हो गया है, जिसे चुकता करना आज के हालात में राज्य के लिए मुमकिन नहीं दिखाई देता. इस मामले में वित्तीय जानकार भी बड़ी चिंता के संकेत देकर राज्य की वित्तीय बिगड़ती स्थिति को बड़ी परेशानी भरा बता रहे हैं.
कर्ज के पहाड़ तले दबा उत्तराखंड: उत्तराखंड की पिछले 23 सालों के दौरान भले ही विकास दर सुधरी हो, लेकिन राज्य का कर्ज भी दिनों दिन ऊंचे पहाड़ सा बढ़ता चला गया है. आज हालात यह हैं कि राज्य का कर्ज 80,000 करोड़ से ज्यादा का हो चुका है. आने वाले सालों में भी इसमें तेजी से बढ़ोत्तरी की आशंका है. आंकड़े यह जाहिर करते हैं कि कैसे राज्य स्थापना के दौरान राज्य को बड़े भाई उत्तर प्रदेश से जो कर्जा मिला, उसमें अब तक करीब 20 गुना बढ़ोत्तरी हो चुकी है. वैसे तो बढ़ते कर्ज के पीछे राज्य में विकास कार्यों की बढ़ती रफ्तार को भी वजह माना जा रहा है, लेकिन अयोजनागत मद में होती बढ़ोत्तरी राज्य की सबसे बड़ी चिंता बन गई है. अब जानिए उधारी पर राज्य के चलते सिस्टम में क्या कहते हैं आंकड़े.
उत्तराखंड के कर्ज की कहानी
उत्तर प्रदेश से अलग होने के दौरान राज्य को करीब 4500 करोड़ का कर्ज विरासत में मिला
मौजूदा समय में उत्तराखंड पर करीब 80,000 करोड़ का कर्ज है
सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर और अपने दूसरे लक्ष्यों को पाने के लिए भविष्य में 20 हज़ार करोड़ से ज्यादा की जरूरत होगी
सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में खर्च हो जाती है बड़ी रकम
राज्य सरकार को बजट का करीब 45% कर्मचारी, पेंशनर्स और पुराने कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए खर्च करने पड़ते हैं
वेतन और पेंशन पर सालाना 7% तक की बढ़ोत्तरी की उम्मीद
कर्ज के ब्याज में भी सालाना 8% तक की वृद्धि की संभावना
ये आंकड़े भी डरावने हैं!
उत्तराखंड पर औसतन प्रति व्यक्ति करीब 65,000 रुपए का कर्ज है
छत्तीसगढ़ पर औसतन प्रति व्यक्ति कर्ज 33,607 रुपए है
झारखंड पर 27,069 रुपए प्रति व्यक्ति कर्ज है
उत्तराखंड पर करीब 80,000 करोड़ का कर्ज है
छत्तीसगढ़ पर 100,150 करोड़ का कर्ज है
झारखंड पर 105,570 करोड़ का कर्ज है
राज्य स्थापना के दौरान उत्तराखंड का सकल घरेलू उत्पाद 14,501 करोड़ था
जबकि साल 2022 में अब सकल घरेलू उत्पाद 265,488 करोड़ हो चुका है
वित्त विशेषज्ञों ने बढ़ते कर्ज पर जताई चिंता: इस मामले में वित्तीय मामलों के जानकार राजेंद्र बिष्ट कहते हैं कि उत्तराखंड में जिस तरह से कर्ज बढ़ रहा है, वह चिंताजनक है और सबसे बड़ी चिंता यह है कि राज्य पर सालाना बजट के बराबर अब कर्ज हो चुका है. हालांकि उन्होंने इस बात को लेकर खुशी जताई कि प्रदेश में जीएसटी कलेक्शन में पिछले कुछ सालों में बढ़ोत्तरी हुई है जो कि अच्छे संकेत हैं. उन्होंने कहा कि राज्य में इन्वेस्टर्स भी लाने की कोशिश की जा रही है और राज्य की कुल जीडीपी भी बढ़ी है. ऐसे में उत्तराखंड के लिए एक तरफ जहां बेहतर परफॉर्मेंस की चुनौती है, तो दूसरी तरफ कर्ज को चुकाने के लिए नया एक्शन प्लान बनाने की जरूरत भी है.
कांग्रेस ने कर्ज के लिए बीजेपी सरकार को ठहराया जिम्मेदार: उत्तराखंड में साल दर साल बढ़ता कर्ज राज्य सरकारों के लिए भी परेशानी रहा है. इसके कारण जहां कई योजनाओं पर भी असर पड़ता है, वहीं कई बार कर्मचारियों के वेतन को देने के लिए भी सरकार के सामने परेशानियां खड़ी होती हुई दिखाई देती हैं. इस मामले में सत्ता संभालने वाले राजनीतिक दल राजनीति करते हुए नजर आते हैं. उत्तराखंड कांग्रेस के नेता कहते हैं कि प्रदेश के इन हालातों के पीछे सत्ताधारी भाजपा जिम्मेदार है, क्योंकि उन्हीं के कार्यकाल में सबसे ज्यादा कर्ज लिया गया है. उन्होंने कहा कि भाजपा ट्रिपल इंजन की बात कह कर राज्य के विकास के दावे करती रही है, लेकिन हकीकत में भाजपा सरकार वित्तीय रूप से राज्य को कोई लाभ नहीं पहुंच पाई है.
कर्ज पर बीजेपी ने दिया ये तर्क: एक तरफ राज्य में भारी कर्ज के कारण स्थितियों के बिगड़ने को लेकर कांग्रेस ने सत्ताधारी भाजपा को जिम्मेदार बताया है, तो वहीं बीजेपी इन हालातों को लेकर भी अपने तर्क पेश कर रही है. उत्तराखंड बीजेपी की मानें तो उत्तराखंड में बजट का आकार राज्य स्थापना के बाद से कई गुना बढ़ चुका है. इसी तरह राज्य की विकास दर भी राज्य स्थापना के दौरान जो थी उससे कई गुना आगे बढ़ गई है. ऐसे में उत्तराखंड में भाजपा सरकार कर्ज को कम करने के लिए भी प्रयास कर रही है और राज्य का रेवेन्यू बढ़ाने के भी प्रयास हो रहे हैं. ऐसे में राज्य का कर्ज लेने का जो डेटा है उससे कम कर्ज राज्य की तरफ से लिया गया है, जबकि बाकी ऐसे कई राज्य हैं, जहां उत्तराखंड से कई गुना ज्यादा कर्ज राज्य सरकारों द्वारा लिया गया है.
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