देहरादून: उत्तराखंड में मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार विभिन्न स्तर पर एक्शन प्लान तैयार कर रही है. इसी कड़ी में मुख्य सचिव डॉक्टर एसएस संधू ने अधिकारियों की बैठक लेते हुए मोटे अनाजों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराने और इसके जरिए किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में जरूरी दिशा निर्देश दिए.
मिलेट्स को बाजार उपलब्ध कराने का निर्देश: मुख्य सचिव ने कहा कि प्रदेश के सभी जनपदों में मिलेट्स के उत्पादन और बाजार उपलब्ध कराए जाने के लिए अच्छे रेस्टोरेंट में इनसे बने पकवानों के लिए कॉर्नर की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए. मोटे अनाजों को बढ़ावा दिए जाने को लेकर मुख्य सचिव डॉक्टर एसएस संधू ने शुक्रवार को सचिवालय में बैठक के दौरान यह निर्देश दिए. मुख्य सचिव ने कहा कि प्रदेश के स्थानीय मोटे अनाज उत्पादों का पौष्टिक मूल्य बहुत अधिक होने के कारण बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं. मैदानी क्षेत्रों में मंडुवा, झंगोरा आदि के प्रचार प्रसार की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि बाजार उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है.
छात्रों को वीडियो से समझाएं मोटे अनाज के लाभ: मुख्य सचिव ने कहा कि प्रदेश के किसान मोटे अनाजों के उत्पादन में रुचि दिखाएं, इसके लिए किसानों को उचित मूल्य और बाजार की सुनिश्चितता का विश्वास दिलाना आवश्यक है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के मोटे अनाजों को स्वस्थ भोजन के रूप में बढ़ावा दिया जाए. उन्होंने निर्देश दिए कि छात्र छात्राओं को पौष्टिक भोजन की जानकारी और मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए छोटे-छोटे वीडियोज के माध्यम से जानकारी उपलब्ध कराई जाए.
मोटा अनाज वर्ष है 2023: वर्ष 2023 को विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है. इसका प्रस्ताव भारत ने दिया था और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसका अनुमोदन किया था. भारत के इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 मार्च 2021 को अपनी स्वीकृति दी थी. इसका उद्देश्य विश्व स्तर पर मोटे अनाज के उत्पादन और खपत के प्रति जागरूकता पैदा करना है.
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विश्व का 20 फीसदी मोटा अनाज भारत में पैदा होता है: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के इस प्रयास के पीछे भारत को मोटे अनाज का वैश्विक केंद्र बनाना और अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 को ‘जन आंदोलन’ बनाने की सोच है. भारत में एशिया का लगभग 80 प्रतिशत और विश्व का 20 प्रतिशत मोटा अनाज पैदा होता है. वर्तमान में 130 से अधिक देशों में मोटे अनाज की खेती होती है, जिसे एशिया और अफ्रीका में लगभग आधे अरब से अधिक लोगों के लिए पारंपरिक भोजन माना जाता है. हालांकि, कई देशों में इसकी खेती में कमी आ रही है और जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के पर्याप्त उपाय नहीं किए जा रहे हैं.