देहरादून: राज्य सरकार पौड़ी जिले में स्थित माता सीता के पौराणिक धाम का कायाकल्प करने की तैयारी में है. मंदिर को धार्मिक पर्यटन के तौर पर 'सीता माता सर्किट' के रूप में विकसित करने से क्षेत्र में पर्यटन को भी पंख लगेंगे. जिससे राष्ट्रीय स्तर पर जनपद को एक अलग पहचान मिलेगी. साथ ही प्रदेश सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अभियान भी चलाएगी.
यू तो उत्तराखंड में चारधामों के रूप में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ विश्व विख्यात है. इसी तरह राज्य सरकार, सीता सर्किट को उत्तराखंड के पांचवे धाम के रूप में विकसित करने की योजना पर काम कर रही है. आखिर क्या है पौड़ी जिले में स्थित माता सीता मंदिर का पौराणिक महत्त्व और किस स्वरुप में पौड़ी के फलस्वाड़ी गांव में सीता सर्किट को विकसित किया जायेगा? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...
हिमालय की गोद में बसे और धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले उत्तराखंड को देवताओं की भूमि भी कहा जाता है. इस तपोभूमि के पग-पग पर देवी-देवता निवास करते हैं. इसी तरह पौड़ी जिले स्थित सीता माता मंदिर के इस धार्मिक स्थल की न सिर्फ स्थानीय लोगों में बड़ी मान्यता है, बल्कि इन स्थानों को राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान मिल सके इसके लिए प्रदेश सरकार अलग से अभियान भी चलाएगी. इसके लिए इन स्थानों पर भव्य मंदिर की स्थापना करने के साथ ही पौराणिक मन्दिर का भी संरक्षण किया जायेगा.
भव्य बनाया जाएगा मंदिर
गौर हो कि बीते दिनों एक कार्यक्रम में शिरकत करते हुए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था कि जिले के कोट ब्लाक में फलस्वाड़ी गांव में स्थित सीता माता मंदिर को सीता सर्किट के रूप में विकसित करने की कार्ययोजना तैयार की गई है. जो जिले के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा. वहीं बनने वाले सीता सर्किट में हर किसी के सहयोग से माता सीता का भव्य मंदिर बनाया जाएगा.
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विकसित करने से खुलेंगे नए आयाम
इसके लिए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सीता सर्किट को विकसित करने के लिए श्रद्धालुओं से डेढ़ फुट लंबी व छह इंच चौड़ी शिला, अपने खेत की एक मुट्ठी मिट्टी और 11 रुपए दान में मांगे हैं, जिससे भव्य मंदिर बनाया जा सके. इसके साथ ही बाकी खर्च का पैसा जनसहयोग से लिया जाएगा. जो मंदिर की भव्यता व दिव्यता को अलौकिक रूप देने में अहम योगदान होगा.
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार सीता माता ने फलस्वाड़ी गांव में भू-समाधि ली थी. सनातन समय से फलस्वाड़ी, कोटसाड़ा व देवल गांव के ग्रामीण फलस्वाड़ी में उनके भू-समाधि दिवस को मंसार मेले के रूप में मनाते हैं. माना जाता है कि पौड़ी जिले के फलस्वाड़ी गांव में इसी स्थान पर पहुंचकर माता सीता ने भू-समाधि ली थी. यही नहीं फल्सवाड़ी गांव में आज भी माता सीता का पौराणिक मंदिर देखा जा सकता है. इसके साथ ही माता सीता को फल्सवाड़ी गांव के जंगल तक छोड़ने आए लक्ष्मण के विश्राम करने का स्थान देवाल गांव में पौराणिक लक्षमण मंदिर आज भी मौजूद है.
जहां दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. दीपावली के ठीक 12 दिन बाद भू-समाधि दिवस को मंसार मेले के रूप में मनाया जाता है. जिसमें सीता माता की पूजा, आराधना की जाती है. यही नहीं पौराणिक महत्व वाले पौड़ी जनपद के बाल्मीकि और सीता मंदिर को जल्द ही सीता सर्किट के रूप में विकसित किया जाएगा.