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जयराज के जलवे के आगे नतमस्तक है वन विभाग, पूर्व प्रमुख वन संरक्षक से बंगला खाली कराने में छूटे पसीने - Chief Conservator of Forest Jayaraj hindi latest news

उत्तराखंड के पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज के सामने वन विभाग नतमस्तक हो गया है. विभाग रियटारमेंट के बाद भी जयराज से बंगला खाली नहीं करा पा रहा है.

पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज का जलवा कायम!
पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज का जलवा कायम!
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Published : Jun 16, 2021, 7:10 PM IST

Updated : Jun 16, 2021, 7:34 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में वन विभाग के अधिकारी यूं तो अपने कई कारनामों के चलते सुर्खियों में छा चुके हैं. लेकिन इस बार मामला IFS अधिकारी की हनक से जुड़ा हुआ है. पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज की तूती विभाग में नियुक्ति के दौरान भी बोलती थी और सेवानिवृत होने के बाद भी उनका अधिकारियों पर जलवा बरकरार है. शायद इसीलिए रिटायर होने के 6 महीने बाद तक भी विभाग के अधिकारी उनसे बंगला खाली नहीं करवा पा रहे हैं.

उत्तराखंड में रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी जयराज का रुतबा किसी से छिपा नहीं है. विभाग में प्रमुख वन संरक्षक रहते न केवल विभागीय मंत्री हरक सिंह रावत को उन्होंने सीधी चुनौती दी थी बल्कि कोई विभागीय अधिकारी भी उनके सामने जुबान तक नहीं खोल पाता था. लेकिन, रिटायरमेंट के बाद भी जयराज का पुराना रुतबा बरकरार है. तभी तो 6 महीने पहले रिटायर हो चुके जयराज अब भी वन विभाग के सरकारी बंगले पर कुंडली मारे बैठे हैं.

पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज का जलवा कायम!

वन विभाग जयराज से मिन्नतें कर रहा है लेकिन ना तो वह बाजार रेट के हिसाब से किराया वसूल पा रहा और ना ही उनसे सरकारी आवास खाली करवा पा रहा है. विभाग में जयराज का खौफ इस कदर है कि विभाग के अधिकारी इस मामले पर बोलने में संकोच करते दिख रहे हैं.

क्या है जयराज के सरकारी बंगले का मामला ?

दरअसल, जयराज को प्रमुख वन संरक्षक रहते सरकारी बंगला दिया गया था. इसे रिटायरमेंट के बाद उन्हें खाली करना था. बंगला खाली करने के लिए ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का वक्त दिया जाता है. लेकिन 6 महीने बीतने के बाद भी जयराज इस बंगले को खाली करने को तैयार नहीं हैं. ऐसे हालात में अधिकारी बेबस होकर सिर्फ मिन्नतें ही कर रहे हैं और कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.

पढ़ें: कॉर्बेट के जिस जोन में नहीं बन सकती एक दीवार, वहां बन रहा आलीशान बंगला

नियमों के मुताबिक, जयराज को वन विभाग ने निर्धारित बाजार मूल्य करीब 50 हजार रुपये महीना पर इस बंगले का किराया तय किया है. लेकिन जयराज को विभाग द्वारा तय बाजार मूल्य भी मंजूर नहीं है. सरकारी रिकॉर्ड के हिसाब से अभी तक डेढ़ लाख से ज्यादा का किराया जयराज पर बकाया है. लेकिन जयराज हैं कि मानने को तैयार ही नहीं.

विभाग की तरफ से बाजार मूल्य पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज को बता दिया गया है. लेकिन उनकी तरफ इस पर आपत्ति दर्ज कराते हुए चिट्ठी लिखी गई है. जयराज को अब तक 3 नोटिस दिए जा चुके हैं, लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं है.

-राजीव धीमान, डीएफओ, देहरादून

बिना बंगले के आईएफएस अधिकारी

जयराज जिस बंगले पर कब्जा जमाए बैठे हैं, उसे एक दूसरे आईएफएस अधिकारी विजय कुमार को आवंटित किया गया है. लेकिन मजाक देखिए विजय कुमार बिना बंगले के हैं और जयराज 6 महीने बाद भी उसी बंगले में कब्जा जमाए हुए हैं. इससे भी बड़ी हैरत की बात यह है कि प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी भी बिना सरकारी बंगले के ही हैं.

कौन हैं आईएफएस जयराज ?

1983 बैच के पूर्व आईएफएस जयराज उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक रह चुके हैं. जयराज को पहली पोस्टिंग डीएफओ टिहरी के पद पर मिली थी. इसके बाद उन्होंने विभाग में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वह वन चिकित्सालय ट्रस्ट हल्द्वानी के सदस्य सचिव भी रह चुके हैं. उनके कार्यकाल में ही 1996 में वहां सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के साथ ही मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास हुआ था.

उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव पद पर भी उन्होंने कार्य किया था. इसके अलावा वे स्टेट क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान के नोडल अधिकारी रहे और क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.

देहरादून: उत्तराखंड में वन विभाग के अधिकारी यूं तो अपने कई कारनामों के चलते सुर्खियों में छा चुके हैं. लेकिन इस बार मामला IFS अधिकारी की हनक से जुड़ा हुआ है. पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज की तूती विभाग में नियुक्ति के दौरान भी बोलती थी और सेवानिवृत होने के बाद भी उनका अधिकारियों पर जलवा बरकरार है. शायद इसीलिए रिटायर होने के 6 महीने बाद तक भी विभाग के अधिकारी उनसे बंगला खाली नहीं करवा पा रहे हैं.

उत्तराखंड में रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी जयराज का रुतबा किसी से छिपा नहीं है. विभाग में प्रमुख वन संरक्षक रहते न केवल विभागीय मंत्री हरक सिंह रावत को उन्होंने सीधी चुनौती दी थी बल्कि कोई विभागीय अधिकारी भी उनके सामने जुबान तक नहीं खोल पाता था. लेकिन, रिटायरमेंट के बाद भी जयराज का पुराना रुतबा बरकरार है. तभी तो 6 महीने पहले रिटायर हो चुके जयराज अब भी वन विभाग के सरकारी बंगले पर कुंडली मारे बैठे हैं.

पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज का जलवा कायम!

वन विभाग जयराज से मिन्नतें कर रहा है लेकिन ना तो वह बाजार रेट के हिसाब से किराया वसूल पा रहा और ना ही उनसे सरकारी आवास खाली करवा पा रहा है. विभाग में जयराज का खौफ इस कदर है कि विभाग के अधिकारी इस मामले पर बोलने में संकोच करते दिख रहे हैं.

क्या है जयराज के सरकारी बंगले का मामला ?

दरअसल, जयराज को प्रमुख वन संरक्षक रहते सरकारी बंगला दिया गया था. इसे रिटायरमेंट के बाद उन्हें खाली करना था. बंगला खाली करने के लिए ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का वक्त दिया जाता है. लेकिन 6 महीने बीतने के बाद भी जयराज इस बंगले को खाली करने को तैयार नहीं हैं. ऐसे हालात में अधिकारी बेबस होकर सिर्फ मिन्नतें ही कर रहे हैं और कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.

पढ़ें: कॉर्बेट के जिस जोन में नहीं बन सकती एक दीवार, वहां बन रहा आलीशान बंगला

नियमों के मुताबिक, जयराज को वन विभाग ने निर्धारित बाजार मूल्य करीब 50 हजार रुपये महीना पर इस बंगले का किराया तय किया है. लेकिन जयराज को विभाग द्वारा तय बाजार मूल्य भी मंजूर नहीं है. सरकारी रिकॉर्ड के हिसाब से अभी तक डेढ़ लाख से ज्यादा का किराया जयराज पर बकाया है. लेकिन जयराज हैं कि मानने को तैयार ही नहीं.

विभाग की तरफ से बाजार मूल्य पूर्व प्रमुख वन संरक्षक जयराज को बता दिया गया है. लेकिन उनकी तरफ इस पर आपत्ति दर्ज कराते हुए चिट्ठी लिखी गई है. जयराज को अब तक 3 नोटिस दिए जा चुके हैं, लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं है.

-राजीव धीमान, डीएफओ, देहरादून

बिना बंगले के आईएफएस अधिकारी

जयराज जिस बंगले पर कब्जा जमाए बैठे हैं, उसे एक दूसरे आईएफएस अधिकारी विजय कुमार को आवंटित किया गया है. लेकिन मजाक देखिए विजय कुमार बिना बंगले के हैं और जयराज 6 महीने बाद भी उसी बंगले में कब्जा जमाए हुए हैं. इससे भी बड़ी हैरत की बात यह है कि प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी भी बिना सरकारी बंगले के ही हैं.

कौन हैं आईएफएस जयराज ?

1983 बैच के पूर्व आईएफएस जयराज उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक रह चुके हैं. जयराज को पहली पोस्टिंग डीएफओ टिहरी के पद पर मिली थी. इसके बाद उन्होंने विभाग में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वह वन चिकित्सालय ट्रस्ट हल्द्वानी के सदस्य सचिव भी रह चुके हैं. उनके कार्यकाल में ही 1996 में वहां सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के साथ ही मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास हुआ था.

उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव पद पर भी उन्होंने कार्य किया था. इसके अलावा वे स्टेट क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान के नोडल अधिकारी रहे और क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.

Last Updated : Jun 16, 2021, 7:34 PM IST

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