देहरादून: उत्तराखंड में वनाग्नि की घटनाओं में हर दिन नया चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आ रहा है. स्थिति यह है कि 24 घंटों में ही करीब 300 तक आग लगने की घटनाएं जंगलों में दर्ज की जा रही है. वनों के धू-धू कर जलते इन आंकड़ों के सामने वन विभाग कुछ बेबस नजर आ रहा है. हैरानी की बात यह है कि वनों की इन घटनाओं के लिए महकमा अब केंद्र से मदद को मजबूर दिख रहा है. इस बीच वन विभाग ने वनाग्नि की घटनाओं को लेकर बैठक की और इसमें अब तक उठाए गए कदम की जानकारी विभागीय मंत्री को दी गई.
बैठक के दौरान वन मंत्री सुबोध उनियाल (Forest Minister Subodh Uniyal) ने आग लगने वाले घटना क्षेत्रों में और अधिक कर्मचारियों को भेजे जाने की बात कही गई है. उधर, वायु सेना की भी मदद लेने की मांग की गई है. बड़ी बात यह है कि अब वन विभाग साल 2020 में जंगलों में आग लगने की घटनाएं कम होने के पीछे के कारणों को जानने के लिए अध्ययन करने पर विचार कर रहा है. यह स्थिति तब है जब प्रदेश में हर साल आग की घटनाएं होती हैं और अभी तक बस घटनाओं के अध्ययन तक के जरूरी काम को विभाग नहीं कर पाया है.
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बता दें कि जंगलों में आग की घटनाओं को देखते हुए क्रू स्टेशन (crew stations) स्थापित किए गए हैं, जिनमें फायर वाचर की तैनाती की गई है. अब वन रक्षकों की भी तैनाती करने की कोशिश की जा रही है. इस दौरान वन विभाग के अधिकारी सरकार से वायु सेना के हेलीकॉप्टर के जरिए पानी का छिड़काव करने की मांग कर रहे हैं, तो वन मंत्री हेलीकॉप्टर से आग और बढ़ने की बात कह कर इस से परहेज करने की बात कह रहे हैं.
आंकड़ों पर नजर: अब जानिए कि उत्तराखंड में पिछले 12 सालों के दौरान वनाग्नि की घटनाएं किस रूप में देखने को मिलीं. रिकॉर्ड बताते हैं कि हर तीसरे या चौथे साल में जंगलों में लगने वाली आग का ग्राफ बढ़ा है और समय के साथ साथ वनाग्नि की घटनाएं नया रिकॉर्ड बना रही हैं. पिछले 12 सालों में 13,500 से ज्यादा वनाग्नि की घटनाएं हुईं हैं, जबकि 25 हजार हेक्टेयर से ज्यादा जंगल आग से प्रभावित हुए हैं.
साल 2020 में पिछले 12 सालों के दौरान सबसे कम घटनाएं हुई इस साल कुल 133 आग लगने की घटना हुई जिसमें महज 172 हेक्टेयर जंगलों पर ही इसका असर पड़ा. साल 2020 इस साल कोरोना के चलते पूरी तरह से लॉकडाउन लगाया गया था और लोग इस दौरान अपने घरों से बाहर नहीं निकल पाए थे. लिहाजा, इसे इसकी बड़ी वजह माना गया.
इस साल 2022 में 15 फरवरी से अब तक यानी करीब 2 महीने में ही अब तक 1,443 आग की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. जिसमें 2432 हेक्टेयर जंगल को नुकसान हुआ है. आर्थिक रूप से इस नुकसान को करीब ₹62 लाख की आर्थिक क्षति माना जा रहा है.
यह आंकड़ा जाहिर करता है कि किस तरह साल-दर-साल प्रदेश में बहुमूल्य वन संपदा जलकर राख हो रही है. इसकी रोकथाम के लिए कुछ खास नहीं किया जा सका है. उधर, अभी 15 जून तक वनों में आग की घटनाओं के और भी तेजी से बढ़ने की आशंका जाहिर की जा रही है. जबकि जिस तरह इस बार करीब 60 फीसदी तक बारिश कम आंकी जा रही है. अचानक तापमान में भी कई डिग्री की बढ़ोतरी देखी गई है. उससे ऐसी घटनाओं में वृद्धि होने की उम्मीद बेहद ज्यादा है.
उठ रहे कई सवाल: एक बड़ी बात यह भी है कि आग की घटनाएं काफी ज्यादा हो चुकी हैं. अभी वन विभाग वन रक्षकों को रखने के लिए विचार ही कर रहा है. जाहिर है कि जिस स्तर पर वन विभाग की तैयारी होनी चाहिए थी उस स्तर पर अभी फुलप्रूफ तैयारी महकमा नहीं कर पाया है. अब तक हजारों हेक्टेयर बहुमूल्य वन संपदा जलकर स्वाहा हो चुकी है. सैकड़ों करोड़ रुपए वनाग्नि पर काबू पाने में बर्बाद भी हो चुके हैं लेकिन अब वन मंत्री कहते हैं कि वनाग्नि पर कंट्रोल के लिए पुराने रिकॉर्ड्स का अध्ययन होगा.
क्या अब वनाग्नि के इतिहास के पन्नों को पलटा जाएगा और फिर किसी चमत्कार की उम्मीद की जाएगी. शर्म की बात यह है कि वन मंत्री सुबोध उनियाल भविष्य की तैयारियों में शुमार इस फॉर्मूले को बयां कर रहे थे और सालों साल से जंगलों को आग की आगोश में जाते देखने वाले वन महकमे के अधिकारी ऐसा महसूस करा रहे थे. जैसे वनाग्नि की घटनाओं को रोक पाना उनके बस से बाहर की बात है.
सबसे बड़ा मजाक तो जंगलों में लगी आग का अध्ययन करने की बात से शुरू हुआ. कहा गया कि साल 2020 में वनाग्नि की सबसे कम घटनाएं होने के चलते इस साल घटनाओं के लिए अधिकारी अध्ययन करेंगे, जबकि साल 2020 में लॉकडाउन होने के चलते लोगों के घर से बाहर नहीं निकले. ऐसे में को इन घटनाओं की कमी के रूप में देखा गया था. लेकिन सवाल इस बात का नहीं है कि साल 2020 में आग की घटनाएं कम होने के पीछे क्या वजह रही? हैरत इस बात पर है कि पिछले सालों साल से प्रदेश के जंगल जल रहे हैं. लेकिन वन विभाग अब तक यह अध्ययन भी नहीं कर पाया है कि वनाग्नि की घटनाएं क्यों बढ़ रही है? या फिर पिछले जिन सालों में घटनाएं कम हुई उसकी वजह क्या थी?
इन स्थितियों के बीच वन विभाग असहाय की स्थिति में दिखाई दे रहा है. बड़ी बात यह है कि वन पंचायतों से लेकर वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का सहयोग लेने का भी कुछ खास प्रयास नहीं किया गया है. यही कारण है कि आग की घटनाओं को रोकने के लिए लोगों कि इतनी सहायता नहीं मिल पा रही है, जितनी उम्मीद की जा रही थी. चौंकाने वाली बात यह भी है कि आग की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ रही हैं. अब जाकर वन विभाग वन रक्षकों की तैनाती करने की बात कह रहा है.
आग लगने की वजह: जंगलों में आग की घटनाओं के लिए इंसान ही जिम्मेदार है. वन विभाग के मुताबिक जंगल में आग लगने की एक वजह मानव जनित होती है. कई बार ग्रामीण जंगल में जमीन पर गिरी पत्तियों या सूखी घास में आग लगा देते हैं, जिससे उसकी जगह नई घास उग सके.
लेकिन आग इस कदर फैल जाती है कि वन संपदा को खासा नुकसान होता है. वहीं, दूसरा कारण चीड़ की पत्तियों में आग का भड़कना भी है. चीड़ की पत्तियां (पिरुल) और छाल से निकलने वाला रसायन, रेजिन, बेहद ज्वलनशील होता है. जरा सी चिंगारी लगते ही आग भड़क जाती है और विकराल रूप ले लेती है.
फायर लाइन कारगर: जंगलों में आग की घटनाओं से बचने के लिए सबसे पुराना और बेहतरीन तरीका फायर लाइन है. फायर सीजन आने से पहले ही फायर लाइन तैयार की जाती है. ताकि आग की घटना होने पर फायर लाइन के आगे जंगलों को बचाया जा सके. इसके अलावा स्थानीय लोगों और ग्रामीणों का सहयोग लेकर भी आग की घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है. स्थानीय लोगों में जागरूकता भी आग की घटनाओं पर रोकथाम के लिए बेहद कारगर हो सकती है. आग की घटना होने पर रिस्पॉन्सस टाइम को कम करके भी ज्यादा नुकसान से बचा जा सकता है.