देहरादून: 22 सालों के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार 14 जनवरी को उत्तराखंड का पहला शौर्य स्मारक खुलने जा रहा है. इस शौर्य स्मारक का लोकार्पण रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करेंगे. हालांकि, इस शौर्य स्मारक निर्माण में सरकारों के आने जाने से काफी देरी भी हुई और कुछ विवाद भी खड़े हुए. ऐसे में हम आपको बताते हैं कि इस शौर्य स्मारक की निर्माण की शुरुआत कैसे हुई और देश की किन-किन महान विभूतियों का इसके निर्माण में योगदान रहा है.
साल 2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने देहरादून के गढ़ी कैंट स्थित चीड़ बाग में शौर्य स्मारक स्थल का भूमि पूजन कर इसकी नींव रखी थी. वहीं, इस स्मारक स्थल के निर्माण में पूर्व सांसद तरुण विजय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए पूर्व सांसद तरुण विजय ने बताया कि देहरादून चीड़ बाग में बने इस युद्ध स्मारक के लिए लगातार वह प्रयासरत रहे और पहली बार देश में किसी सांसद ने अपनी सांसद निधि से तकरीबन ढाई करोड़ रुपए किसी शौर्य स्मारक के निर्माण में दिए हैं.
इसके अलावा उन्होंने बताया कि शौर्य स्मारक में लैंड क्लीयरेंस के साथ-साथ शौर्य स्मारक में लगने वाले टैंक, मिग-21, नेवल शिप, के लिए देश के प्रथम सीडीएस रहे जनरल बिपिन रावत से कारगिल के महत्वपूर्ण ताम्र भित्ति चित्रों को प्राप्त करना और तमाम तरह के कार्यों के लिए उनके द्वारा अथक प्रयास किए गए.
पूर्व सांसद तरुण विजय ने बताया कि राज्य गठन के बाद 22 सालों से और उत्तर प्रदेश में रहते हुए पिछले 75 सालों से लगातार एक युद्ध स्मारक की मांग चली आ रही थी. इस दौरान कई सैनिक संगठनों ने इस मांग को उठाया. समय-समय पर आए तमाम मुख्यमंत्रियों ने इस पर हामी भी भरी, लेकिन शौर्य स्मारक के नाम पर 1 इंच जमीन भी कहीं पर मिल नहीं पाई थी. फिर उनके अथक प्रयासों के बाद इस शौर्य स्मारक का काम शुरू किया गया.
शौर्य स्मारक निर्माण में इन लोगों का योगदान: उत्तराखंड में पहला शौर्य स्मारक के निर्माण में पूर्व CDS जनरल बिपिन रावत, पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, शौर्य स्मारक निर्माण के संचालन मंडल में एयर मार्शल बीएस जुयाल, वाइस एडमिरल बसंत कोपिकर, ब्रिगेडियर आरएस रावत, एयर कोमोडोर अनूप कपूर, सूबेदार मेजर तीरथ रावत और केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने संरक्षक के रूप में योगदान दिया.
वहीं, गढ़वाल राइफल से अधिकारी मेघना गिरीश के पिता ने अपनी पेंशन से 50 हजार रुपए दिए. पूर्व नौसेना अध्यक्ष और वर्तमान में अंडमान निकोबार के उपराज्यपाल एडमिरल देवेंद्र कुमार जोशी जो उत्तराखंड से आते हैं, उन्होंने अपनी सारे अवार्ड इस वॉर मेमोरियल के लिए दान कर दी. स्वामी नारायण संप्रदाय के प्रमुख महंत स्वामी, जिन्हे प्रधानमंत्री भी अपने गुरु तुल्य मानते हैं, उन्होंने उन्होंने शिलाओं पर शहीदों के नामों को उकारने की जिम्मेदारी उठाई. इसके अलावा आम नागरिक और विद्यार्थियों ने 10, 50 और 100 रुपए दान देकर अपना अहम योगदान दिया है.