देहरादून: लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस की हुई करारी हार के बाद न तो पार्टी संगठन की तरफ से किसी ने हार की जिम्मेदारी ली है और न ही चुनावी हार की समीक्षा की गई है. उत्तराखंड में खोये जनाधार को वापस पाने में नाकाम कांग्रेस पर देखिए ये खास रिपोर्ट...
लोकसभा चुनाव 2019 में भी उत्तराखंड कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई. 2014 की तरह ही राज्य की पांचों सीटों पर कमल खिला. खास बात यह है कि लगातार हो रही करारी हार के बावजूद कांग्रेस संगठन न तो इससे सबक ले रहा है और न ही आने वाली चुनौतियों से निपटने की कोई तैयारी ही कर रहा है.
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दरअसल, 23 मई को लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी हार को लेकर मंथन कर रही है. हार के बाद ही राहुल गांधी ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा तक पेश किया. इसके बाद बकायदा सीडब्ल्यूसी (कांग्रेस वर्कर्स कमेटी) की बैठक की गई. यही नहीं देश भर के तमाम राज्यों ने भी हार की वजह जानने के लिए समीक्षा की. लेकिन, उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस संगठन न तो हार की समीक्षा के लिए कोई मंथन कर पाया है और न ही पार्टी के किसी नेता ने हार के लिए अपनी जिम्मेदारी तय की है.
उत्तराखंड में कांग्रेस कई धड़ों में बटा हुआ है. इनमें से कोई भी धड़ चुनावी हार के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं मानता. अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने वाले प्रीतम सिंह भी इस हार की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर चुके हैं. इससे साफ होता है कि हार के बाद भी कांग्रेस के नेता न तो एक होने को तैयार हैं और न ही कांग्रेस को आगे बढ़ाने के लिए आगामी चुनौतियों से निपटने की तैयारी कर रहे हैं. वहीं, पंचायत चुनाव भी उत्तराखंड में जल्द होने वाले हैं. 19 जून को मतदाता सूची में नाम शामिल करने की अंतिम तिथि है. बावजूद कांग्रेस ने किसी तरह की तैयारियां शुरू नहीं की है.
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कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मथुरादत्त जोशी की मानें तो अब पार्टी में मंथन का वक्त है. चिंतन-मंथन की तैयारी जल्द ही की जाएगी. उत्तराखंड संगठन की सबसे बड़ी हार की वजह पार्टी के अंदर चल रही गुटबाजी है. ये गुटबाजी चुनावी हार के बाद भी खत्म नहीं हुई. इसका उदाहरण सोशल मीडिया पर भी देखने को मिल रहा है. यहां पार्टी के बड़े नेताओं से जुड़े कार्यकर्ता एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़कर छींटाकशी कर रहे हैं. इससे तो यही कहा जा सकता है कि आने वाले पंचायत चुनाव में भी कांग्रेस को चुनावी जीत को लेकर कोई खास परवाह नहीं है.