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एक कर्ज उतारने के लिए दूसरा कर्ज ले रहा उत्तराखंड, 22 सालों बाद भी हालात चिंताजनक

22 सालों बाद भी उत्तराखंड राज्य कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है. साल दर साल राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है. आलम यह है कि हर बार राज्य सरकार को कर्ज चुकाने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. ऐसे में जिस उदेश्य के साथ राज्य का गठन किया गया था, वो सपना अभी भी अधूरा लग रहा है. पढ़ें रिपोर्ट...

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कर्ज की बोझ तले दबा उत्तराखंड
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Published : Nov 3, 2022, 6:03 PM IST

Updated : Nov 3, 2022, 7:10 PM IST

देहरादून: 22 साल पहले उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया था, लेकिन जिस मकसद और सपनों को पूरा करने के लिए उत्तराखंड राज्य बना था, वो सपना आज भी अधूरा है. राज्य आंदोलनकारियों को उम्मीद थी कि राज्य गठन के बाद यहां के लोगों के जीवन शैली में बड़ा बदलाव आयेगा. उत्तराखंड आत्मनिर्भर राज्य बनेगा, युवाओं को रोजगार मिलेगा, पलायन रुकने से पहाड़ फिर से गुलजार होगा, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. 22 साल बाद भी उत्तराखंड कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है. आलम यह है कि कर्ज को चुकाने के लिए राज्य सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है.

आंदोलनकारियों का सपना अभी भी अधूरा: लंबे आंदोलन और संघर्ष के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग कर उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था. आंदोलनकारियों का शायद एक ही सपना था कि उत्तराखंड बनने के बाद राज्य बेहतर तरक्की करेगा और यहां के लोगों की जीवन शैली में बड़े बदलाव आएंगे. उस वक्त के नेताओं ने भी यही कल्पना की थी कि अलग राज्य बनने के बाद राजस्व जुटाने के बड़े साधन होंगे, लेकिन 22 साल बाद भी उत्तराखंड कर्ज के बोझ से दबा हुआ है और इस कर्ज चुकाने के लिए राज्य सरकार ही हर महीने-दो महीने बाद कर्ज ले रही है. ऐसे में आने वाले समय में हालात भयानक हो सकते हैं, क्योंकि राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड पर कर्ज का बोझ साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है.

हर मिनट कर्ज में डूबता उत्तराखंड: 9 नवंबर को जब उत्तराखंड अपना 23वां स्थापना दिवस मना रहा होगा, उस वक्त भी प्रदेश पर कर्ज का बोझ हर घंटे, हर मिनट बढ़ रहा होगा. पिछले 22 सालों में राज्य में बीजेपी या फिर कांग्रेस की सरकार रही हो, कर्ज लेकर ही उसने अपने वित्तीय खर्चों को पूरा किया है. उत्तराखंड पर इस समय ₹73,751 करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका है. प्रदेश की वित्तीय हालत हर महीने बेकार होती जा रही है. इस बात को सरकारें गंभीरता से समझें, लिहाजा बीते दिनों कैग की रिपोर्ट ने भी सरकार को चेताया था. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि प्रदेश में वित्तीय हालत बिल्कुल भी सही नहीं है.

साल दर साल बढ़ता कर्ज: कैग और राज्य के अर्थ एवं संख्या विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, साल 2016-17 की अगर बात करें तो प्रदेश पर 44,583 करोड़ रुपए का कर्ज था, जो साल 2021 में 73,751 करोड़ रुपए पहुंच गया. राज्य की वित्तीय हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता हैं कि अब सरकार हर साल अगर कर्ज ले रही है, इस वजह से कि जो कर्ज लिया गया है, उसका ब्याज और मूल चुका सके. यानी कर्ज उतारने के लिए राज्य सरकार और कर्ज ले रही है. और जो पैसा इसके लिए लिया जाता है, उसका ब्याज फिर दोबारा से राज्य सरकार के ऊपर लगने लगता है. बता दें कि उत्तराखंड सरकार रिजर्व बैंक से यह कर्ज लेती है और उत्तराखंड पर सबसे ज्यादा बाजारी ऋण है.

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कर्ज की बोझ तले दबा उत्तराखंड
ये भी पढ़ें: काली नदी में होगी नेशनल रीवर राफ्टिंग प्रतियोगिता, सुरक्षा के मद्देनजर केवल भारतीय होंगे शामिल

सरकारी कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा खर्च: रिजर्व बैंक का उत्तराखंड सरकार के ऊपर 53,302 करोड़ रुपए ऋण है. जबकि भारत सरकार को भी 3813 करोड़ रुपए देनदारी है. राज्य सरकार अपने कर्मचारियों के EF, जीपीएस, राष्ट्रीय बचत स्कीम से 16.636 करोड़ की उधारी चल रही है. मौजूदा समय में सबसे ज्यादा राज्य सरकार का पैसा कर्मचारियों की तनख्वाह और पेंशन में जा रहा है, जिसमें 39.68% खर्च हो रहा है, जबकि 8% वेतन और 7% पेंशन का सालाना खर्च सरकार के ऊपर बढ़ रहा है.

घट रही है प्रति व्यक्ति आय: किसी भी राज्य के लिए कर्ज बढ़ना और राजस्व घटना चिंताजनक है. उत्तराखंड में भी प्रति व्यक्ति आय लगातार घट रही है. 1999 और साल 2000 तक उत्तराखंड में प्रति व्यक्ति आय ₹13,762 थी. जबकि 2019 और 2020 में प्रति व्यक्ति आय बढ़कर ₹2,02,895 हो गई. वहीं, 2020 और 2021 में प्रति व्यक्ति आय घटकर ₹1,86,557 हो गई. ये आंकड़े चिंताजनक है. हो सकता है कि यह फर्क महामारी की चपेट में आने के बाद बढ़ा हो, लेकिन उत्तराखंड में जिस तरह से बेरोजगारी चरम पर है. कम से कम यह तो उत्तराखंड बनाते समय आंदोलनकारियों ने नहीं सोचा था.

उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा का भी कहना है कि उत्तराखंड का ये दुर्भाग्य है कि लगातार हमारे ऊपर कर्ज बढ़ रहा है. ये कर्ज सरकारी कर्मचारियों के ऊपर सबसे अधिक है. यानी मात्र 15% ही हम राज्य में सड़क और पुल बनाने में खर्च कर रहे हैं. ये बात सभी के सामने है कि किस तरह से भर्ती राज्य में हो रही है. इस पर कोई नहीं ध्यान दे रहा है. इसलिए राज्य सरकार को इन सब बातों पर ध्यान देना चाहिए. जो पैसा विकास में खर्च होना है या हो रहा है, वो ऐसी जगह पर हो जो दिखे. जैसे सड़क, महिलाओं से जुड़ी समस्या और स्वास्थ्य सुविधा जैसी समस्या, लेकिन इतना कर्ज लेने के बाद भी आज समस्या जस की तस बनी हुई है.

क्या सोचती है सरकार: राज्य गठन के बाद से जीतने भी मुख्यमंत्री रहे हो, सभी को राज्य की वित्तीय हातल के बारे में पता है. वहीं, राज्य पर बढ़ते कर्ज को लेकर सीएम पुष्कर धामी ने कहा कि हमने 22 साल में अगर कर्ज लिया है तो वो काम दिखता है. पिछले 22 साल में राज्य में बहुत विकास कार्य हुए हैं. आगे हम कुछ आगे ऐसा करने जा रहे है, जिससे राज्य के संसाधनों को और बेहतर कर सकें, जिससे राज्य को फायदा हो और ये आने वाले समय में होने जा रहा है.

देहरादून: 22 साल पहले उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया था, लेकिन जिस मकसद और सपनों को पूरा करने के लिए उत्तराखंड राज्य बना था, वो सपना आज भी अधूरा है. राज्य आंदोलनकारियों को उम्मीद थी कि राज्य गठन के बाद यहां के लोगों के जीवन शैली में बड़ा बदलाव आयेगा. उत्तराखंड आत्मनिर्भर राज्य बनेगा, युवाओं को रोजगार मिलेगा, पलायन रुकने से पहाड़ फिर से गुलजार होगा, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. 22 साल बाद भी उत्तराखंड कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है. आलम यह है कि कर्ज को चुकाने के लिए राज्य सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है.

आंदोलनकारियों का सपना अभी भी अधूरा: लंबे आंदोलन और संघर्ष के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग कर उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था. आंदोलनकारियों का शायद एक ही सपना था कि उत्तराखंड बनने के बाद राज्य बेहतर तरक्की करेगा और यहां के लोगों की जीवन शैली में बड़े बदलाव आएंगे. उस वक्त के नेताओं ने भी यही कल्पना की थी कि अलग राज्य बनने के बाद राजस्व जुटाने के बड़े साधन होंगे, लेकिन 22 साल बाद भी उत्तराखंड कर्ज के बोझ से दबा हुआ है और इस कर्ज चुकाने के लिए राज्य सरकार ही हर महीने-दो महीने बाद कर्ज ले रही है. ऐसे में आने वाले समय में हालात भयानक हो सकते हैं, क्योंकि राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड पर कर्ज का बोझ साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है.

हर मिनट कर्ज में डूबता उत्तराखंड: 9 नवंबर को जब उत्तराखंड अपना 23वां स्थापना दिवस मना रहा होगा, उस वक्त भी प्रदेश पर कर्ज का बोझ हर घंटे, हर मिनट बढ़ रहा होगा. पिछले 22 सालों में राज्य में बीजेपी या फिर कांग्रेस की सरकार रही हो, कर्ज लेकर ही उसने अपने वित्तीय खर्चों को पूरा किया है. उत्तराखंड पर इस समय ₹73,751 करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका है. प्रदेश की वित्तीय हालत हर महीने बेकार होती जा रही है. इस बात को सरकारें गंभीरता से समझें, लिहाजा बीते दिनों कैग की रिपोर्ट ने भी सरकार को चेताया था. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि प्रदेश में वित्तीय हालत बिल्कुल भी सही नहीं है.

साल दर साल बढ़ता कर्ज: कैग और राज्य के अर्थ एवं संख्या विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, साल 2016-17 की अगर बात करें तो प्रदेश पर 44,583 करोड़ रुपए का कर्ज था, जो साल 2021 में 73,751 करोड़ रुपए पहुंच गया. राज्य की वित्तीय हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता हैं कि अब सरकार हर साल अगर कर्ज ले रही है, इस वजह से कि जो कर्ज लिया गया है, उसका ब्याज और मूल चुका सके. यानी कर्ज उतारने के लिए राज्य सरकार और कर्ज ले रही है. और जो पैसा इसके लिए लिया जाता है, उसका ब्याज फिर दोबारा से राज्य सरकार के ऊपर लगने लगता है. बता दें कि उत्तराखंड सरकार रिजर्व बैंक से यह कर्ज लेती है और उत्तराखंड पर सबसे ज्यादा बाजारी ऋण है.

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कर्ज की बोझ तले दबा उत्तराखंड
ये भी पढ़ें: काली नदी में होगी नेशनल रीवर राफ्टिंग प्रतियोगिता, सुरक्षा के मद्देनजर केवल भारतीय होंगे शामिल

सरकारी कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा खर्च: रिजर्व बैंक का उत्तराखंड सरकार के ऊपर 53,302 करोड़ रुपए ऋण है. जबकि भारत सरकार को भी 3813 करोड़ रुपए देनदारी है. राज्य सरकार अपने कर्मचारियों के EF, जीपीएस, राष्ट्रीय बचत स्कीम से 16.636 करोड़ की उधारी चल रही है. मौजूदा समय में सबसे ज्यादा राज्य सरकार का पैसा कर्मचारियों की तनख्वाह और पेंशन में जा रहा है, जिसमें 39.68% खर्च हो रहा है, जबकि 8% वेतन और 7% पेंशन का सालाना खर्च सरकार के ऊपर बढ़ रहा है.

घट रही है प्रति व्यक्ति आय: किसी भी राज्य के लिए कर्ज बढ़ना और राजस्व घटना चिंताजनक है. उत्तराखंड में भी प्रति व्यक्ति आय लगातार घट रही है. 1999 और साल 2000 तक उत्तराखंड में प्रति व्यक्ति आय ₹13,762 थी. जबकि 2019 और 2020 में प्रति व्यक्ति आय बढ़कर ₹2,02,895 हो गई. वहीं, 2020 और 2021 में प्रति व्यक्ति आय घटकर ₹1,86,557 हो गई. ये आंकड़े चिंताजनक है. हो सकता है कि यह फर्क महामारी की चपेट में आने के बाद बढ़ा हो, लेकिन उत्तराखंड में जिस तरह से बेरोजगारी चरम पर है. कम से कम यह तो उत्तराखंड बनाते समय आंदोलनकारियों ने नहीं सोचा था.

उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा का भी कहना है कि उत्तराखंड का ये दुर्भाग्य है कि लगातार हमारे ऊपर कर्ज बढ़ रहा है. ये कर्ज सरकारी कर्मचारियों के ऊपर सबसे अधिक है. यानी मात्र 15% ही हम राज्य में सड़क और पुल बनाने में खर्च कर रहे हैं. ये बात सभी के सामने है कि किस तरह से भर्ती राज्य में हो रही है. इस पर कोई नहीं ध्यान दे रहा है. इसलिए राज्य सरकार को इन सब बातों पर ध्यान देना चाहिए. जो पैसा विकास में खर्च होना है या हो रहा है, वो ऐसी जगह पर हो जो दिखे. जैसे सड़क, महिलाओं से जुड़ी समस्या और स्वास्थ्य सुविधा जैसी समस्या, लेकिन इतना कर्ज लेने के बाद भी आज समस्या जस की तस बनी हुई है.

क्या सोचती है सरकार: राज्य गठन के बाद से जीतने भी मुख्यमंत्री रहे हो, सभी को राज्य की वित्तीय हातल के बारे में पता है. वहीं, राज्य पर बढ़ते कर्ज को लेकर सीएम पुष्कर धामी ने कहा कि हमने 22 साल में अगर कर्ज लिया है तो वो काम दिखता है. पिछले 22 साल में राज्य में बहुत विकास कार्य हुए हैं. आगे हम कुछ आगे ऐसा करने जा रहे है, जिससे राज्य के संसाधनों को और बेहतर कर सकें, जिससे राज्य को फायदा हो और ये आने वाले समय में होने जा रहा है.

Last Updated : Nov 3, 2022, 7:10 PM IST
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