देहरादून: भाजपा में नेताओं को सरकार में एडजस्ट (Adjust in Uttarakhand government) करने करने को लेकर समय-समय पर सुगबुगाहट तेज होती रहती है. वहीं चंपावत से पूर्व विधायक कैलाश गहतोड़ी को वन विकास निगम का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद भाजपा में अंदरखाने दायित्वों को लेकर चर्चा तेज है. हालांकि उत्तराखंड में राजनीतिक दल सत्ता में आते ही पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को मलाईदार पद देने में कंजूसी करते हुए दिखाई देते हैं. राज्य में पिछले कुछ सरकारों ने तो न केवल दायित्व बल्कि मंत्री के पदों को भी भरने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है. हालांकि इसके पीछे राजनीतिक रूप (Uttarakhand Politics) से सत्ता धारियों की किसी खास मनसा को माना जाता है. या यूं कहे कि इसके पीछे भी सियासी रणनीति ही वजह होती है.
पिछली सरकार में भी पद खाली: उत्तराखंड में धामी सरकार (Dhami government in Uttarakhand) को करीब 4 महीने से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है, लेकिन इतने समय में भी ना तो मंत्री पदों पर कोई फैसला (Uttarakhand cabinet expansion) हो पाया है और ना ही पार्टी कार्यकर्ताओं को दायित्वों की ही सौगात सरकार की तरफ से दी जा सकती है. इतने समय में भाजपा सरकार इस फैसले को क्यों नहीं ले पाई इसका जवाब तो सरकार ही दे पाएगी, लेकिन भाजपा सरकार की यह स्थिति कोई बड़ी हैरानी की बात नहीं है. भाजपा की ही पिछली सरकार में सालों से मंत्री पद खाली रहे.
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रणनीतिक मानी जाती है वजह: ना तो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उस दौरान मुख्यमंत्री रहते हुए मंत्रिमंडल का विस्तार किया और ना ही कई साल तक उन्होंने खाली पड़े दायित्व को पार्टी कार्यकर्ताओं को बांटा. मौजूदा सरकार में लगातार मंत्रिमंडल विस्तार और दायित्वों के बंटवारे को लेकर चर्चा गर्म है, लेकिन सरकार इस पर कब तक निर्णय लेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता है. ये फैसले मुख्यमंत्री के विशेष अधिकार भी शामिल हैं, मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर तो मुख्यमंत्री को हाईकमान तक भी पूछना होता है, उधर कार्यकर्ताओं को दायित्व बांटते समय संगठन से भी विचार विमर्श जरूरी माना जाता है. लेकिन हकीकत में यह कोई बड़ी परेशानी नहीं है, उसके पीछे रणनीतिक वजह मानी जाती है.
विधायक राजनीति करने से बचते हैं: माना जाता है कि कोई भी मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल में खाली जगह रखकर विधायकों को लंबे समय तक असमंजस में रखता है और ऐसी स्थिति में विधायक मंत्री पद के लिए अपना नंबर आने की संभावना के साथ मुख्यमंत्री दरबार के चक्कर काटते रहते हैं. माना जाता है कि इस दौरान विधायक मुख्यमंत्री के खिलाफ किसी भी तरह की गतिविधि से बचते हैं, क्योंकि ऐसा करने पर मंत्री पद नहीं मिलने का डर होता है और इसी मजबूरी को सत्ता में बैठे रणनीतिकार फैसला देरी से लेकर इसे हथियार बनाते हैं.
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संतुष्ट कर पाना मुश्किल: संगठन में दायित्व को लेकर भी ऐसी ही सोच हो सकती है, ताकि संगठन के तमाम पदाधिकारी और कार्यकर्ता संगठन के लिए क्षेत्र में काम करें और बेहतर परफॉर्मेंस दिखाकर दायित्व की दौड़ में खुद को लाने की कोशिश करें, इससे पार्टी को भी फायदा होता है. हालांकि दूसरी वजह एक अनार सौ बीमार वाली कहावत को माना जाता है. दरअसल, खाली मंत्री पद या दायित्व गिनती के ही होते हैं ऐसी स्थिति में कई विधायकों की दावेदारी को संतुष्ट कर पाना मुश्किल होता है, यही स्थिति दायित्व में भी होती है. लिहाजा इसी मुश्किल को देखते हुए मुख्यमंत्री या सरकार ऐसे पदों को लंबे समय तक ठंडे बस्ते में डाल देते हैं ताकि पास बैठकर होने वाले विवाद से बचा जा सके.
जल्द भरे जाएंगे पद: सरकार में आने के बाद ऐसे पदों को खाली कई बार इससे भी रखा जाता है ताकि इनका इस्तेमाल ऐसे वक्त पर कर सकें जब चुनाव नजदीक हो ताकि चुनाव के दौरान पद देकर पार्टी नेताओं या कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया जा सकें. जिसके चलते चुनाव के दौरान पार्टी के नेता और कार्यकर्ता अपनी पूरी ताकत के साथ क्षेत्र में काम करें. हालांकि पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स कहते हैं कि कांग्रेस सरकारों में क्या होता है यह वह कह नहीं सकते और ना ही कांग्रेस की सरकार से उनकी सरकार की कोई तुलना की जानी चाहिए. लेकिन वह केवल इतना कहना चाहते हैं कि उनकी सरकार जल्द ही दायित्व और खाली मंत्री पदों को भरने के प्रयास में जुटी हुई है. जैसे ही उचित समय सरकार की तरफ से महसूस किया जाएगा, उसी स्थिति में इन पदों को भर दिया जाएगा.