देहरादून: उत्तराखंड के किसानों के लिए मौसम बेईमान बना हुआ है. बारिश नहीं हो रही है. प्रकृति से लाचार किसानों की नजर अब सरकार पर है. किसानों को उम्मीद है कि सरकार उनके नुकसान की भरपाई करेगी. इस बीच उत्तराखंड के कृषि विभाग ने भी अब तक खेती को हुए नुकसान का आकलन करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं.
मौसम का बदलाव किसानों पर पड़ा भारी: उत्तराखंड में ऐसे कई जिले हैं जहां अक्टूबर से अच्छी बारिश नहीं हुई है. उधर दिसंबर महीने से तो पूरे प्रदेश में ही बारिश और बर्फबारी का लोग इंतजार कर रहे हैं. बुरी खबर यह है कि दिसंबर का महीना सूखा बीतने के बाद अब जनवरी का पहला हफ्ता भी बारिश के लिहाज से कुछ खास संकेत नहीं दे रहा है. लिहाजा उत्तराखंड कृषि विभाग ने किसानों को हुए नुकसान का आकलन करने की तैयारी कर ली है. इसके लिए अधिकारियों को निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं.
उत्तराखंड में चौपट हो रही है खेती: प्रदेश में करीब 6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है. इसमें तमाम फसलों से लेकर बागवानी के बगीचे भी शामिल हैं. इस वक्त सबसे ज्यादा चिंता गेहूं की फसल को लेकर है, जिसे अच्छी बारिश की जरूरत होती है. लेकिन पिछले कुछ महीने बारिश के लिहाज से कुछ खास नहीं रहे हैं. जबकि जनवरी का पहला हफ्ता भी करीब सूखा ही बीत रहा है.
49 फीसदी कृषि मौसम पर आधारित: उत्तराखंड में खेती के लिहाज से देखें तो प्रदेश में करीब 51 फ़ीसदी कृषि क्षेत्रफल ऐसा है, जहां सिंचाई के लिए व्यवस्थाएं मौजूद हैं. इसमें बाकी 49% कृषि क्षेत्र मौसम पर आधारित है. पहाड़ और मैदानी क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र को वर्गीकृत करें तो ऐसे मौसम का सबसे ज्यादा नुकसान पहाड़ों पर खेती करने वाले किसानों को होता है. दरअसल असिंचित भूमि वाले खेत सबसे ज्यादा पहाड़ों पर ही हैं. जानकारी के अनुसार पर्वतीय जनपदों में 80% खेती मौसम पर आधारित है, जबकि करीब 10 से 12% खेतों में सिंचाई की व्यवस्था है.
कृषि मंत्री ने किसानों को किया आश्वस्त: मौसम की मार के चलते किसानों को हो रहे नुकसान पर उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी कहते हैं कि जिस तरह राज्य भर में बारिश नहीं हो रही है, उसका नुकसान किसानों को होता हुआ दिखाई दे रहा है. ऐसे में उन्होंने अधिकारियों को किसानों को होने वाले नुकसान का आकलन करने के निर्देश दे दिए हैं. इसके अलावा कृषि मंत्री गणेश जोशी ने किसानों को आश्वस्त करते हुए यह भी साफ किया है कि जो भी जरूरत किसानों को होगी, उसके लिए सरकार पूरी तरह से काम करेगी.
बारिश नहीं हुई तो फसलों पर प्रभाव: राज्य में उधमसिंह नगर, देहरादून और हरिद्वार में गेहूं की खेती पर कम बारिश का खराब असर कुछ हद तक नहीं पड़ेगा. क्योंकि सूखे की स्थिति में भी इन क्षेत्रों में मौजूद खेती सिंचाई की व्यवस्था होने के कारण खराब नहीं होगी. इसके विपरीत पर्वतीय क्षेत्रों में गेहूं की खेती पर बेहद ज्यादा असर होगा. दूसरी तरफ इस समय सेब की पैदावार का भी समय है. लिहाजा चिलिंग आवर्स यानी पैदावार के लिए जरूरी कम तापमान इस समय काफी मायने रखता है. ऐसे में यदि बर्फबारी नहीं होती है, तो सेब की पैदावार पर भी इसका सीधा असर होगा. हालांकि इसके अलावा सरसों, मटर, आलू, मसूर और तोरी की फसल पर भी कम बारिश का असर पढ़ना आता है.
2023 रहा सबसे गर्म साल: जानकारों की मानें तो साल 2023 अब तक सबसे गर्म सालों में से एक रहा है. लगातार ग्लोबल वार्मिंग के कारण आ रहे मौसम पर असर ने पर्यावरणीय बदलाव को चिंताजनक हालात में पहुंचा दिया है. उत्तराखंड में भले ही तापमान काफी कम हो गया है, लेकिन बारिश और बर्फबारी नहीं होने के कारण मौसम में नमी नहीं मिल पा रही. लिहाजा सूखी ठंड का सामना लोगों को करना पड़ रहा है.
किसानों को सरकार से मदद की उम्मीद: मौसम की मार केवल उत्तराखंड में ही नहीं है, बल्कि तमाम राज्यों में इसका असर देखने को मिल रहा है. पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में भी खेती पर पड़ रहे प्रतिकूल असर को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों को कुछ राहत देने का फैसला किया है. इस दौरान ट्यूबवेल के बिल को लेकर किसानों को छूट दी गई है. उधर उत्तराखंड के किसान फिलहाल सरकार से किसी बड़ी राहत का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि अभी उत्तराखंड सरकार ने किसानों के नुकसान को लेकर ही कोई आकलन नहीं किया है. ऐसे में किसानों का इंतजार थोड़ा लंबा हो सकता है.
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