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BJP प्रदेश अध्यक्ष चुनाव से पहले सरकार और संगठन को साधने की कोशिश या कुछ और? - बीजेपी में चुनाव

मुख्यमंत्री सबको खाली पड़े कैबिनेट मंत्री के पदों पर साधने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन यहां भी केवल तीन ही विधयाक एडजस्ट हो पाऐंगे. जिसके बाद बाकी के विधायक नाराज हो सकते है.

Uttarakhand BJP
उत्तराखंड बीजेपी
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Published : Jan 15, 2020, 7:10 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव 16 जनवरी को प्रस्तावित है. चुनाव की घोषणा होने के 24 घंटे के भीतर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 25 नेताओं को सरकार में एडजस्ट कर सबको चौंका दिया. इसके बाद ये चर्चा भी तेज हो गई है कि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री खाली पड़े कैबिनेट के तीन पदों को भी जल्द ही भरने वाले है. यानी तीन विधायकों को बहुत जल्द एडजस्ट किया जा सकता है. जैसा कि हम जानते हैं कि कांग्रेस नेता हरीश रावत लगातार बीजेपी को कांटे की टक्कर दे रहे हैं ऐसे मे मुख्यमंत्री कैसे लोगों को साधते हैं यह देखने वाली बात होगी

हालांकि ये भी कहा जा रहा है कि इस बार भी मुख्यमंत्री मीठी गोली देकर देकर पार्टी कार्यकर्ताओं और विधायकों को संतुष्ट करने की कोशिश करेंगे. लेकिन इसमें एक डर यर भी है कि यदि मुख्यमंत्री तीन कैबिनेट मंत्रियों की घोषणा कर देते तो उनका आखिरी हथियार भी खत्म हो जाएगा. ऐसे में जिन विधायकों को कैबिनेट में जगह नहीं मिलेगी तो वे अपनी नाराजगी खुल कर जाहिर कर सकते हैं. हालांकि इससे पार्टी पर कुछ ज्यादा असर तो पड़ने वाला नहीं है, लेकिन फिर भी संगठन और सरकार के लिए थोडी मुश्किलें जरूर खडी़ करेंगे.

पढ़ें- RTE एक्ट में संशोधन बहुत जल्द, कक्षा पांच से आठवीं के छात्रों पर पड़ेगा खासा असर

ऐसे माहौल में उत्तराखंड बीजेपी ने नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश कर रही है, जिसके लिए 16 जनवरी को चुनाव भी होना है. ऐसे में कुछ नेता अध्यक्ष पद के लिए भी भागदौड़ करते हुए नजर आ रहे हैं. क्योंकि जिन्हें अभी तक सरकार में जगह नहीं मिली है वो संगठन में बड़ा पद भी चाह रहे है, लेकिन यहां एक नेता एक पद का नियम प्रचलन में है. ऐसे मे प्रदेश अध्यक्ष कोई एक नेता ही बन सकता है. ऐसे में मुख्यमंत्री सबको खाली पड़े कैबिनेट मंत्री के पदों पर साधने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन यहां भी केवल तीन ही विधयाक एडजस्ट हो पाऐंगे.

पढ़ें- मुंबई: उत्तराखंड भवन का राज्यपाल कोश्यारी और सीएम त्रिवेंद्र ने किया उद्धाटन

सरकार के आगे सबसे बड़ी समस्या ये है कि 2017 में जब बीजेपी प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतकर आई थी तो कुल नौ विधायकों को ही मंत्री पद की शपथ दिलायी गयी थी, जिसमें सात कैबिनेट और दो राज्य मंत्री बनाए गए थे, इनमें से पांच विधायक कांग्रेस से बागी होकर बीजेपी में आए थे, ऐसे में बीजेपी अपने उन विधायकों को सरकार में जगह नहीं दे पाई थी जो पुराने भाजपायी है. पार्टी के पुराने नेता (विधायक) पहले खाली पड़े दो कैबिनेट पद के आश में बैठे हुए. हालांकि बाद में वित्त मंत्री प्रकाश पंत के निधन के बाद कैबिनेट के तीन पद खाली हो गए थे, ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन खाली कैबिनेट के पदों पर अपने विधायकों को एडजस्ट करना है, ताकि पार्टी में कोई नाराज भी न हो और काम भी बन जाए.

देहरादून: उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव 16 जनवरी को प्रस्तावित है. चुनाव की घोषणा होने के 24 घंटे के भीतर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 25 नेताओं को सरकार में एडजस्ट कर सबको चौंका दिया. इसके बाद ये चर्चा भी तेज हो गई है कि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री खाली पड़े कैबिनेट के तीन पदों को भी जल्द ही भरने वाले है. यानी तीन विधायकों को बहुत जल्द एडजस्ट किया जा सकता है. जैसा कि हम जानते हैं कि कांग्रेस नेता हरीश रावत लगातार बीजेपी को कांटे की टक्कर दे रहे हैं ऐसे मे मुख्यमंत्री कैसे लोगों को साधते हैं यह देखने वाली बात होगी

हालांकि ये भी कहा जा रहा है कि इस बार भी मुख्यमंत्री मीठी गोली देकर देकर पार्टी कार्यकर्ताओं और विधायकों को संतुष्ट करने की कोशिश करेंगे. लेकिन इसमें एक डर यर भी है कि यदि मुख्यमंत्री तीन कैबिनेट मंत्रियों की घोषणा कर देते तो उनका आखिरी हथियार भी खत्म हो जाएगा. ऐसे में जिन विधायकों को कैबिनेट में जगह नहीं मिलेगी तो वे अपनी नाराजगी खुल कर जाहिर कर सकते हैं. हालांकि इससे पार्टी पर कुछ ज्यादा असर तो पड़ने वाला नहीं है, लेकिन फिर भी संगठन और सरकार के लिए थोडी मुश्किलें जरूर खडी़ करेंगे.

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ऐसे माहौल में उत्तराखंड बीजेपी ने नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश कर रही है, जिसके लिए 16 जनवरी को चुनाव भी होना है. ऐसे में कुछ नेता अध्यक्ष पद के लिए भी भागदौड़ करते हुए नजर आ रहे हैं. क्योंकि जिन्हें अभी तक सरकार में जगह नहीं मिली है वो संगठन में बड़ा पद भी चाह रहे है, लेकिन यहां एक नेता एक पद का नियम प्रचलन में है. ऐसे मे प्रदेश अध्यक्ष कोई एक नेता ही बन सकता है. ऐसे में मुख्यमंत्री सबको खाली पड़े कैबिनेट मंत्री के पदों पर साधने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन यहां भी केवल तीन ही विधयाक एडजस्ट हो पाऐंगे.

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सरकार के आगे सबसे बड़ी समस्या ये है कि 2017 में जब बीजेपी प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतकर आई थी तो कुल नौ विधायकों को ही मंत्री पद की शपथ दिलायी गयी थी, जिसमें सात कैबिनेट और दो राज्य मंत्री बनाए गए थे, इनमें से पांच विधायक कांग्रेस से बागी होकर बीजेपी में आए थे, ऐसे में बीजेपी अपने उन विधायकों को सरकार में जगह नहीं दे पाई थी जो पुराने भाजपायी है. पार्टी के पुराने नेता (विधायक) पहले खाली पड़े दो कैबिनेट पद के आश में बैठे हुए. हालांकि बाद में वित्त मंत्री प्रकाश पंत के निधन के बाद कैबिनेट के तीन पद खाली हो गए थे, ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन खाली कैबिनेट के पदों पर अपने विधायकों को एडजस्ट करना है, ताकि पार्टी में कोई नाराज भी न हो और काम भी बन जाए.

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प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव 16 जनवरी को प्रस्तावित है और उससे ठीक पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने 24 घंटे के भीतर 25 पार्टी कार्यकर्ताओं को सरकार मे एडजस्ट करके सभी को चौंका दिया है. यही नहीं चर्चा अब जोरों पर है कि आने वाले दिनों मे कैबिनेट मे तीन खाली पडी सीटों पर भी तीन विधायकों को बहुत जल्द एडजस्ट किया जा सकता है जैसा कि हम जानते हैं कि स्वर्गीय प्रकाश पंत की मंत्री रहते काल कवलित हो गए और तभी से खाली पडी मंत्रीमंडल की सीट दो से तीन हो गयी.



हालांकि पुर्व की तरह यह अनुमान लगाया जा रहा था कि इस बार भी मुख्यमंत्री मीठी गोली देकर पार्टी कार्यकर्ताओं और विधायकों को संतुष्ट करने की कोशिश करेंगे. ऐसा माना जा रहा था कि इनके पास एक आखिरा अस्त्र होगी,



जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 2018 से जिस किसी भी राज्यों मे विधान सभा के चुनाव हुए हैं वहां बीजेपी को मुंह की खानी पडी है, बात हम करें मध्य प्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ की करे तो बीजेपी को हार का सामना करना पडा. हालांकि लोकसभा चुनाव मे बीजेपी ने 2014 के मुकाबले ज्यादा सीटें जीतकर अपने विपक्षियों के मुंह पर ताला जड दिया. बात हम यदि लोकसभा चुनाव 2019 के बाद की करें तो पार्टी की हालत दिन दूनी पतली होती जा रही है. इससे कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना दिवास्वपन मात्र रह गया है. जैसा कि हमने देखा कि महाराष्ट्र मे बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन जीता परन्तु सरकार कांग्रेस रूपी क्रच के सहारे बनी और बीजेपी हाथ पर हाथ धरे बैठी रह गयी. वहीं हाल हरियाणा मे हुआ बीजेपी सहयोगी दलों के सहारे सरकार बना पायी. यहां तक कि झारखंड मे भी बीजेपी को मुंह की खानी पडी.



जैसा कि हम सभी जानते है कि बीजेपी प्रजातात्रिक पार्टी होने के नाते अपने अध्यक्ष का चुनाव प्रजातांत्रिक रूप से करती है. इन दिनों जिस तरह से बीजेपी विपक्ष के चौतरफा हमलों से घिरी है, इन हालातों मे बीजेपी  एक एक  इंच फुंक फुंक कर चल रही है. बात हम यदि उतराखंड की करें तो 2017 मे पार्टी ने अपने सबसे वफादार सिपहसलार तत्कालीन विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत पर विश्वास जताया. उन्होंने भी आठ विधायकों को मंत्री और राज्य मंत्री पद की गौपनीयता की शपथ दिलायी. इसके साथ ही खाली पडे दो मंत्री पद के लिए विधायकों की जद्दोजहद शुरू हुई. कोई दिल्ली तो कोई नागपुर की दौैड लगा रहा है मानों शेष बचे कार्यकाल में उनकी लाटरी लग जाए.



ऐसे ही माहौल के बीच प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव का ूबिगुल बजा और 16 जनवरी यानि वीरवार को होना तय हुआ. इसी बीच मुख्यमंत्री ने जनवरी 14 को दस नेताओं को दायित्व बांटकर लोगों को चौंका दिया. दुसरा झटका जनवरी 15 को तब लगा जब उनकी सरकार ने 15 ऩए कार्यकर्ताओं को मंडी समिति का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाकर चौंका दिया. हालांकि शुरूआत से ही यह उम्मीद लगायी जा रही थी कि पार्टी सरकार के क्रियाकलाप मे बदलाव कर सकती है. हालांकि पार्टी ने बडे नेता यानि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र का राज्यपाल बना कर साधने कि भरपुर कोशिश भी की. लेकिन लगातार तीन बीजेपी शासित प्रदेशों मे से दो का संपुर्ण रूप से निकल जाना खतरे की घंटी है. ऐसे मे पार्टी बनी निर्णय ले सकती है. इन सभी के बीच मुख्यमंत्री की पार्टी नेताओं को साधने की इमानदार कोशिश एक तरफ चौंकाने वाली है तो वहीं पार्टी के भीतर सुगबुगाहट पैदा करती है कि यदि वे अपने मंत्रीमंडल का विस्तार करते है तो वह उनके द्वारा अपनी सरकार को बचाने की आखिरी कोशिश होगी.


Conclusion:
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