देहरादून: उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव 16 जनवरी को प्रस्तावित है. चुनाव की घोषणा होने के 24 घंटे के भीतर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 25 नेताओं को सरकार में एडजस्ट कर सबको चौंका दिया. इसके बाद ये चर्चा भी तेज हो गई है कि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री खाली पड़े कैबिनेट के तीन पदों को भी जल्द ही भरने वाले है. यानी तीन विधायकों को बहुत जल्द एडजस्ट किया जा सकता है. जैसा कि हम जानते हैं कि कांग्रेस नेता हरीश रावत लगातार बीजेपी को कांटे की टक्कर दे रहे हैं ऐसे मे मुख्यमंत्री कैसे लोगों को साधते हैं यह देखने वाली बात होगी
हालांकि ये भी कहा जा रहा है कि इस बार भी मुख्यमंत्री मीठी गोली देकर देकर पार्टी कार्यकर्ताओं और विधायकों को संतुष्ट करने की कोशिश करेंगे. लेकिन इसमें एक डर यर भी है कि यदि मुख्यमंत्री तीन कैबिनेट मंत्रियों की घोषणा कर देते तो उनका आखिरी हथियार भी खत्म हो जाएगा. ऐसे में जिन विधायकों को कैबिनेट में जगह नहीं मिलेगी तो वे अपनी नाराजगी खुल कर जाहिर कर सकते हैं. हालांकि इससे पार्टी पर कुछ ज्यादा असर तो पड़ने वाला नहीं है, लेकिन फिर भी संगठन और सरकार के लिए थोडी मुश्किलें जरूर खडी़ करेंगे.
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ऐसे माहौल में उत्तराखंड बीजेपी ने नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश कर रही है, जिसके लिए 16 जनवरी को चुनाव भी होना है. ऐसे में कुछ नेता अध्यक्ष पद के लिए भी भागदौड़ करते हुए नजर आ रहे हैं. क्योंकि जिन्हें अभी तक सरकार में जगह नहीं मिली है वो संगठन में बड़ा पद भी चाह रहे है, लेकिन यहां एक नेता एक पद का नियम प्रचलन में है. ऐसे मे प्रदेश अध्यक्ष कोई एक नेता ही बन सकता है. ऐसे में मुख्यमंत्री सबको खाली पड़े कैबिनेट मंत्री के पदों पर साधने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन यहां भी केवल तीन ही विधयाक एडजस्ट हो पाऐंगे.
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सरकार के आगे सबसे बड़ी समस्या ये है कि 2017 में जब बीजेपी प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतकर आई थी तो कुल नौ विधायकों को ही मंत्री पद की शपथ दिलायी गयी थी, जिसमें सात कैबिनेट और दो राज्य मंत्री बनाए गए थे, इनमें से पांच विधायक कांग्रेस से बागी होकर बीजेपी में आए थे, ऐसे में बीजेपी अपने उन विधायकों को सरकार में जगह नहीं दे पाई थी जो पुराने भाजपायी है. पार्टी के पुराने नेता (विधायक) पहले खाली पड़े दो कैबिनेट पद के आश में बैठे हुए. हालांकि बाद में वित्त मंत्री प्रकाश पंत के निधन के बाद कैबिनेट के तीन पद खाली हो गए थे, ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन खाली कैबिनेट के पदों पर अपने विधायकों को एडजस्ट करना है, ताकि पार्टी में कोई नाराज भी न हो और काम भी बन जाए.