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Joshimath Crisis: 'देवस्थानम बोर्ड होता तो पैसों के लिए नहीं भटकना पड़ता, पुनर्वास में बजट की कमी पर बोले त्रिवेंद्र - त्रिवेंद्र सिंह रावत

जोशीमठ में भू-धंसाव के कारण जो लोग प्रभावित हुए उनके स्थानी पुनर्वास के लिए उत्तराखंड सरकार को बड़े बजट की जरूरत महसूस हो रही है, लेकिन सरकार के पास इतना बजट है ही नहीं. ऐसे में धामी सरकार केंद्र से आस लगातार बैठी है. लेकिन जोशीमठ को फिर से बसाने के सवाल पर जब बजट की कमी को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से सवाल पूछा गया तो उन्होंने उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की याद दिला दी.

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Published : Jan 21, 2023, 5:50 PM IST

जोशीमठ पुनर्वास में बजट की कमी पर बोले त्रिवेंद्र.

देहरादून: उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में आज जो हालात बने हुए हैं, उसमें सरकार की कोशिश प्रभावित परिवार को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करना और फिर उनका उनका स्थायी पुनर्वास करना है. इसके लिए उत्तराखंड की धामी सरकार को बड़े बजट की दरकार है, जिसके लिए धामी सरकार की नजर केंद्र की तरफ टिकी है. हालांकि इस बारे में जब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि यदि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड अस्तित्व में होता तो राज्य सरकार के पास धन की कमी नहीं होती.

दरअसल, जोशीमठ में भू-धंसाव के कारण करीब 900 से ज्यादा घरों में दरारें पड़ चुकी है. वहीं दरारें आने के बाद जो भवन रहने लायक नहीं बचे हैं, उन्हें ध्वस्त किया जा रहा है. करीब 200 परिवारों की अस्थाई रूप से शिफ्ट किया गया है. वहीं प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए भी स्थायी जगह की तलाश कर रही है, इसके के लिए सरकार को बड़ा बजट चाहिए.
पढ़ें- Joshimath Crisis: एनडीएमए तैयार करेगी आपदा की फाइनल रिपोर्ट, भवनों में पड़ी दरारें हो रही है चौड़ी

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड से राज्य सरकार को करीब सवा सौ करोड़ रुपए की आमदनी होती. लिहाजा चारधाम से जो आय प्राप्त होती उसी से ही जोशीमठ के प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया जा सकता था और राज्य सरकार को जोशीमठ पुनर्वास बजट के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि कुछ फैसले दूरगामी सोच के साथ होते थे. हालांकि ये उनका दुर्भाग्य है कि वह लोगों को देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के फायदों के बारे में समझा नहीं पाए.

बता दें कि साल 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी बोर्ड की तर्ज पर यहां भी चारधाम के लिए बोर्ड बनाने की कसरत हुई थी. इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने साल 2019 में पर्यटन विभाग को एक मसौदा तैयार करने के निर्देश दिए, जिसमें उन्होंने चारधाम समेत अन्य मंदिरों को शामिल करने की बात कही थी. बोर्ड का मसौदा तैयार होने के बाद फिर 27 नवंबर 2019 को सचिवालय में त्रिवेंद्र की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में काफी चर्चा किया गया और मंत्रिमंडल ने बोर्ड बनाने पर सहमति जता दी और जम्मू-कश्मीर में बने श्राइन एक्ट के तर्ज पर उत्तराखंड चारधाम बोर्ड विधेयक-2019 को मंजूरी दे दी गयी.

इसके बाद फिर इस विधेयक को दिसंबर 2019 में हुए अनुपूरक बजट के दौरान 5 दिसंबर को सदन में पारित कर दिया गया और फिर 14 जनवरी 2020 को देवस्थानम विधेयक को राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद एक्ट के रूप में प्रभावी हो गया. 24 फरवरी 2020 को चारधाम देवस्थानम बोर्ड का सीईओ नियुक्त किया गया था. इसके बाद साल 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस्तीफा देना पड़ा और फिर देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की कसरत तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के कार्यकाल में शुरू हुई. हालांकि, पूरी तरह से देवस्थानम बोर्ड भंग होता इससे पहले ही तत्कालीन मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद सत्ता पर काबिज हुए पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल के दौरान बोर्ड को विधिवत रूप से भंग कर दिया गया.

जोशीमठ पुनर्वास में बजट की कमी पर बोले त्रिवेंद्र.

देहरादून: उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में आज जो हालात बने हुए हैं, उसमें सरकार की कोशिश प्रभावित परिवार को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करना और फिर उनका उनका स्थायी पुनर्वास करना है. इसके लिए उत्तराखंड की धामी सरकार को बड़े बजट की दरकार है, जिसके लिए धामी सरकार की नजर केंद्र की तरफ टिकी है. हालांकि इस बारे में जब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि यदि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड अस्तित्व में होता तो राज्य सरकार के पास धन की कमी नहीं होती.

दरअसल, जोशीमठ में भू-धंसाव के कारण करीब 900 से ज्यादा घरों में दरारें पड़ चुकी है. वहीं दरारें आने के बाद जो भवन रहने लायक नहीं बचे हैं, उन्हें ध्वस्त किया जा रहा है. करीब 200 परिवारों की अस्थाई रूप से शिफ्ट किया गया है. वहीं प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए भी स्थायी जगह की तलाश कर रही है, इसके के लिए सरकार को बड़ा बजट चाहिए.
पढ़ें- Joshimath Crisis: एनडीएमए तैयार करेगी आपदा की फाइनल रिपोर्ट, भवनों में पड़ी दरारें हो रही है चौड़ी

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड से राज्य सरकार को करीब सवा सौ करोड़ रुपए की आमदनी होती. लिहाजा चारधाम से जो आय प्राप्त होती उसी से ही जोशीमठ के प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया जा सकता था और राज्य सरकार को जोशीमठ पुनर्वास बजट के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि कुछ फैसले दूरगामी सोच के साथ होते थे. हालांकि ये उनका दुर्भाग्य है कि वह लोगों को देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के फायदों के बारे में समझा नहीं पाए.

बता दें कि साल 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी बोर्ड की तर्ज पर यहां भी चारधाम के लिए बोर्ड बनाने की कसरत हुई थी. इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने साल 2019 में पर्यटन विभाग को एक मसौदा तैयार करने के निर्देश दिए, जिसमें उन्होंने चारधाम समेत अन्य मंदिरों को शामिल करने की बात कही थी. बोर्ड का मसौदा तैयार होने के बाद फिर 27 नवंबर 2019 को सचिवालय में त्रिवेंद्र की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में काफी चर्चा किया गया और मंत्रिमंडल ने बोर्ड बनाने पर सहमति जता दी और जम्मू-कश्मीर में बने श्राइन एक्ट के तर्ज पर उत्तराखंड चारधाम बोर्ड विधेयक-2019 को मंजूरी दे दी गयी.

इसके बाद फिर इस विधेयक को दिसंबर 2019 में हुए अनुपूरक बजट के दौरान 5 दिसंबर को सदन में पारित कर दिया गया और फिर 14 जनवरी 2020 को देवस्थानम विधेयक को राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद एक्ट के रूप में प्रभावी हो गया. 24 फरवरी 2020 को चारधाम देवस्थानम बोर्ड का सीईओ नियुक्त किया गया था. इसके बाद साल 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस्तीफा देना पड़ा और फिर देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की कसरत तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के कार्यकाल में शुरू हुई. हालांकि, पूरी तरह से देवस्थानम बोर्ड भंग होता इससे पहले ही तत्कालीन मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद सत्ता पर काबिज हुए पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल के दौरान बोर्ड को विधिवत रूप से भंग कर दिया गया.

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