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आपदा के बाद जागी सरकार, 20 साल से पुनर्वास का इंतजार कर रहे 300 से ज्यादा गांव

प्रदेश में ऐसे गांवों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, जो अब आपदा के लिहाज से संवेदनशील माने जा रहे हैं. मौजूदा समय में 300 से ज्यादा ऐसे गांव हैं, जो राज्य में आपदा के मुहाने पर खड़े हैं.

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Published : Feb 13, 2021, 3:46 PM IST

देहरादूनः चमोली जिले में त्रासदी की तस्वीरें सभी ने देखीं और इससे कुछ गांव भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. आपदा के इन हालातों को देखकर फिर एक बार उन संवेदनशील गांवों के विस्थापन की आवाज तेज होने लगी है, जो पिछले 20 सालों से विस्थापन का इंतजार कर रहे हैं. प्रदेश में शायद ही कोई बरसात का मौसम गुजरा हो, जब लैंडस्लाइड या तबाही मचाती बरसात ना देखने को मिली हो. इन्हीं हालातों के साथ प्रदेश में ऐसे गांवों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, जो अब आपदा के लिहाज से संवेदनशील माने जा रहे हैं. मौजूदा समय में 300 से ज्यादा ऐसे गांव हैं, जो राज्य में आपदा के मुहाने पर खड़े हैं.

चमोली आपदा के बाद जागी त्रिवेंद्र सरकार
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हाल ही में राज्य में अति संवेदनशील गांवों के प्रभावित परिवारों के पुनर्वास को लेकर अपनी सहमति दी है. इसमें 4 जिलों में आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित करने की सीएम ने मंजूरी दी है. इन गांवों में टिहरी का बेथाण नामे तोक, बागेश्वर का मललादेश, चमोली का फल्दिया, सनेड लगा जिनगोडा और उत्तरकाशी का अस्तल गांव के कई परिवारों को विस्थापित करने की मंजूरी दी गई है. लेकिन मुख्यमंत्री के इस फैसले के फौरन बाद ही इस पर बहस शुरू हो गई कि आखिरकार सरकार को अपने कार्यकाल के चौथे साल में चमोली त्रासदी के बाद विस्थापन की याद क्यों आई. इसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा है कि उनके द्वारा मुख्यमंत्री से विभिन्न गांवों के विस्थापन को लेकर बात की गई है और वह इस बात के लिए भी तैयार हैं कि भारत सरकार से मिलकर इस विस्थापन के लिए बजट की डिमांड की जाए.

पढ़ेंः चमोली आपदा: मौत को छूकर वापस आए विक्रम, कहा- मानों ऐसा लगा दुनिया समाप्त हो रही हो

उत्तराखंड में करीब 350 गांव ऐसे हैं, जो पिछले 20 सालों में समय के साथ-साथ आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील होते चले गए हैं. त्रिवेंद्र सरकार आने के बाद लक्ष्य रखा गया कि हर जिले से दो-दो गांवों को विस्थापित किया जाएगा. विस्थापन को लेकर किए गए अध्ययन से यह पता चला है कि राज्य में ऐसे 51 अति संवेदनशील गांव हैं, जिन्हें फौरन विस्थापित किए जाने की जरूरत है. जबकि 130 गांव ऐसे हैं, जिन्हें यदि ट्रीटमेंट दिया जाता है तो इन गांवों से आपदा के खतरा को हटाया जा सकता है. राज्य में करीब 350 गांवों में 600 से ज्यादा परिवार हैं, जिन्हें विस्थापित किया जाना है. इस विस्थापन के लिए राज्य को करीब 15 हजार करोड़ की जरूरत होगी. हालांकि हरीश रावत ने अपनी सरकार के दौरान केंद्र सरकार से 10 हजार करोड़ की डिमांड भी की थी.

राज्य में आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों की बात करें तो गढ़वाल मंडल में उत्तरकाशी, चमोली, टिहरी और रुद्रप्रयाग जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. उधर, कुमाऊं मंडल की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा प्रभावित पिथौरागढ़ जिला है. जबकि इसके बाद अल्मोड़ा, बागेश्वर और चंपावत जिले भी आपदा के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं.

इस मामले में सरकार जहां विस्थापन को लेकर फैसला लेने के बाद खुद को इस दिशा में गंभीर जताने की कोशिश कर रही है. लेकिन दूसरी तरफ सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिरकार सरकार ने अपने कार्यकाल के चौथे साल से ही विस्थापन के लिए बजट और दूसरी व्यवस्थाएं करना क्यों शुरू किया है. इस मामले में आम आदमी पार्टी के नेता संजय भट्ट कहते हैं कि सरकार दिखावा कर रही है और जिन गांवों को सरकार ने चयनित भी किया है, उनके लिए जारी किया गया बजट ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है. उधर, राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं, जिन्हें विस्थापित किया जाना है लेकिन सरकार की तरफ से इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया है.

देहरादूनः चमोली जिले में त्रासदी की तस्वीरें सभी ने देखीं और इससे कुछ गांव भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. आपदा के इन हालातों को देखकर फिर एक बार उन संवेदनशील गांवों के विस्थापन की आवाज तेज होने लगी है, जो पिछले 20 सालों से विस्थापन का इंतजार कर रहे हैं. प्रदेश में शायद ही कोई बरसात का मौसम गुजरा हो, जब लैंडस्लाइड या तबाही मचाती बरसात ना देखने को मिली हो. इन्हीं हालातों के साथ प्रदेश में ऐसे गांवों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, जो अब आपदा के लिहाज से संवेदनशील माने जा रहे हैं. मौजूदा समय में 300 से ज्यादा ऐसे गांव हैं, जो राज्य में आपदा के मुहाने पर खड़े हैं.

चमोली आपदा के बाद जागी त्रिवेंद्र सरकार
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हाल ही में राज्य में अति संवेदनशील गांवों के प्रभावित परिवारों के पुनर्वास को लेकर अपनी सहमति दी है. इसमें 4 जिलों में आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित करने की सीएम ने मंजूरी दी है. इन गांवों में टिहरी का बेथाण नामे तोक, बागेश्वर का मललादेश, चमोली का फल्दिया, सनेड लगा जिनगोडा और उत्तरकाशी का अस्तल गांव के कई परिवारों को विस्थापित करने की मंजूरी दी गई है. लेकिन मुख्यमंत्री के इस फैसले के फौरन बाद ही इस पर बहस शुरू हो गई कि आखिरकार सरकार को अपने कार्यकाल के चौथे साल में चमोली त्रासदी के बाद विस्थापन की याद क्यों आई. इसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा है कि उनके द्वारा मुख्यमंत्री से विभिन्न गांवों के विस्थापन को लेकर बात की गई है और वह इस बात के लिए भी तैयार हैं कि भारत सरकार से मिलकर इस विस्थापन के लिए बजट की डिमांड की जाए.

पढ़ेंः चमोली आपदा: मौत को छूकर वापस आए विक्रम, कहा- मानों ऐसा लगा दुनिया समाप्त हो रही हो

उत्तराखंड में करीब 350 गांव ऐसे हैं, जो पिछले 20 सालों में समय के साथ-साथ आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील होते चले गए हैं. त्रिवेंद्र सरकार आने के बाद लक्ष्य रखा गया कि हर जिले से दो-दो गांवों को विस्थापित किया जाएगा. विस्थापन को लेकर किए गए अध्ययन से यह पता चला है कि राज्य में ऐसे 51 अति संवेदनशील गांव हैं, जिन्हें फौरन विस्थापित किए जाने की जरूरत है. जबकि 130 गांव ऐसे हैं, जिन्हें यदि ट्रीटमेंट दिया जाता है तो इन गांवों से आपदा के खतरा को हटाया जा सकता है. राज्य में करीब 350 गांवों में 600 से ज्यादा परिवार हैं, जिन्हें विस्थापित किया जाना है. इस विस्थापन के लिए राज्य को करीब 15 हजार करोड़ की जरूरत होगी. हालांकि हरीश रावत ने अपनी सरकार के दौरान केंद्र सरकार से 10 हजार करोड़ की डिमांड भी की थी.

राज्य में आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों की बात करें तो गढ़वाल मंडल में उत्तरकाशी, चमोली, टिहरी और रुद्रप्रयाग जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. उधर, कुमाऊं मंडल की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा प्रभावित पिथौरागढ़ जिला है. जबकि इसके बाद अल्मोड़ा, बागेश्वर और चंपावत जिले भी आपदा के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं.

इस मामले में सरकार जहां विस्थापन को लेकर फैसला लेने के बाद खुद को इस दिशा में गंभीर जताने की कोशिश कर रही है. लेकिन दूसरी तरफ सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिरकार सरकार ने अपने कार्यकाल के चौथे साल से ही विस्थापन के लिए बजट और दूसरी व्यवस्थाएं करना क्यों शुरू किया है. इस मामले में आम आदमी पार्टी के नेता संजय भट्ट कहते हैं कि सरकार दिखावा कर रही है और जिन गांवों को सरकार ने चयनित भी किया है, उनके लिए जारी किया गया बजट ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है. उधर, राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं, जिन्हें विस्थापित किया जाना है लेकिन सरकार की तरफ से इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया है.

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