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विकास नगर: आधुनिकता के दौर में जनजातीय काष्ठ कला विलुप्ति की कगार पर

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Published : Feb 11, 2020, 1:55 PM IST

विकास नगर के जौनसार बाबर में जनजातीय संस्कृति की अनूठी काष्ठ कला विलुप्त होने की कगार पर है.

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जनजातीय काष्ठ कला के बर्तन विलुप्ति के कगार पर

विकास नगर: जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र अपने संस्कृति की अलग पहचान बनाए हुए हैं. यहां के लोग लकड़ी से बने बर्तनों का इस्तेमाल सदियों से करते आए हैं. लेकिन आज के आधुनिकता दौर में यह काष्ठ कला विलुप्त होने की कगार पर है.

वैसे तो जौनसार बाबर की जनजातीय संस्कृति अपने आप में अनूठी है. ऐसे में सदियों से चली आ रही परंपराओं में यहां कि काष्ठ कला भी अपनी एक अलग पहचान रखती है. जिसमें मुख्य तौर पर बनाए गए बर्तन शामिल हैं. जैसे नयारा जिसमें घर की महिलाएं छाछ बनाने का काम करती है तो वहीं, गबुआ जिसमें छाछ को मथने के बाद मक्खन रखा जाता है.

जनजातीय काष्ठ कला के बर्तन विलुप्ति के कगार पर

इसके अलावा दही जमाने की लकड़ी की परोटी इस्तेमाल में लाई जाती थी, जिसका स्वाद कुछ अलग ही निराला होता है. लेकिन विडंबना है कि वर्तमान में इस लकड़ी के बर्तनों की जगह आधुनिक धातु के बर्तनों ने ले ली है. इसलिए ना तो अब शिल्पकार इन बर्तनों का निर्माण करते हैं और ना ही सरकार उनकी सुध ले रही है. ऐसे में अब सरकार को इन लकड़ी के बर्तनों को संरक्षित करना चाहिए. ताकि जौनसारी जनजातीय संस्कृति का अस्तित्व बना रहे.

ये भी पढ़ें: धनौल्टी: प्रदूषण के चलते अलगाड नदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

वहीं, जौनसार बाबर के सामाजिक कार्यकर्ता टीकाराम शाह बताते हैं कि सदियों से जनजातीय लोग काष्ठ से बने बर्तनों का प्रयोग करते आए हैं. जिसमें नयारा, गबुवा,परोटी, दियोट और पाथा शामिल हैं. वहीं, ये विशिष्ट बर्तन जौनसारी संस्कृति की अलग पहचान थी, जोकि अब आधुनिकता के दौर में विलुप्त होने की कगार पर है, शाह ने सरकार से मांग की है कि इस अनूठी काष्ठकला और इन बर्तनों को संरक्षित किया जाना चाहिए.

विकास नगर: जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र अपने संस्कृति की अलग पहचान बनाए हुए हैं. यहां के लोग लकड़ी से बने बर्तनों का इस्तेमाल सदियों से करते आए हैं. लेकिन आज के आधुनिकता दौर में यह काष्ठ कला विलुप्त होने की कगार पर है.

वैसे तो जौनसार बाबर की जनजातीय संस्कृति अपने आप में अनूठी है. ऐसे में सदियों से चली आ रही परंपराओं में यहां कि काष्ठ कला भी अपनी एक अलग पहचान रखती है. जिसमें मुख्य तौर पर बनाए गए बर्तन शामिल हैं. जैसे नयारा जिसमें घर की महिलाएं छाछ बनाने का काम करती है तो वहीं, गबुआ जिसमें छाछ को मथने के बाद मक्खन रखा जाता है.

जनजातीय काष्ठ कला के बर्तन विलुप्ति के कगार पर

इसके अलावा दही जमाने की लकड़ी की परोटी इस्तेमाल में लाई जाती थी, जिसका स्वाद कुछ अलग ही निराला होता है. लेकिन विडंबना है कि वर्तमान में इस लकड़ी के बर्तनों की जगह आधुनिक धातु के बर्तनों ने ले ली है. इसलिए ना तो अब शिल्पकार इन बर्तनों का निर्माण करते हैं और ना ही सरकार उनकी सुध ले रही है. ऐसे में अब सरकार को इन लकड़ी के बर्तनों को संरक्षित करना चाहिए. ताकि जौनसारी जनजातीय संस्कृति का अस्तित्व बना रहे.

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वहीं, जौनसार बाबर के सामाजिक कार्यकर्ता टीकाराम शाह बताते हैं कि सदियों से जनजातीय लोग काष्ठ से बने बर्तनों का प्रयोग करते आए हैं. जिसमें नयारा, गबुवा,परोटी, दियोट और पाथा शामिल हैं. वहीं, ये विशिष्ट बर्तन जौनसारी संस्कृति की अलग पहचान थी, जोकि अब आधुनिकता के दौर में विलुप्त होने की कगार पर है, शाह ने सरकार से मांग की है कि इस अनूठी काष्ठकला और इन बर्तनों को संरक्षित किया जाना चाहिए.

Intro:विकासनगर_ जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र अपने संस्कृति की अलग पहचान बनाए हुए हैं काष्ठ कला के बने बर्तनों का इस्तेमाल सदियों से करते आए हैं लेकिन आधुनिकता की इस दौड़ में यह काष्ठ कला के बर्तन आज विलुप्त की कगार पर है


Body:वैसे तो जौनसार बाबर की जनजातीय संस्कृति अपने आप में अनूठी है इसी कड़ी में हम आपको बता दें कि जौनसार बाबर इस सदियों से चली आ रही परंपराओं में कास्ट कला भी इस संस्कृति की अपनी एक पहचान है जिसमें मुख्य तौर पर काष्ठ कला से बने अनेकों प्रकार के बर्तनों का जिक्र भी हम आपको बता देते हैं घरों में इस्तेमाल होने वाले अनेक प्रकार के बर्तन जैसे कि नयारा जिसमें प्रातकाल ही घर की महिला छाछ बनाने का कार्य करती है तो वहीं मक्खन रखने वाला काष्ठ से बना जिसे गबुआ कहते हैं तो दही जमाने के लिए परोटी जिसमें कि दही जमाई जाती थी जिसका स्वाद कुछ अलग ही निराला और पोस्टिक कहा जा सकता है लेकिन विडंबना यह है कि वर्तमान में काष्ठ कला के बर्तनों के स्थान पर आधुनिक बर्तनों ने ले लिए हैं वही ना तो इस काष्ट कला के शिल्पकार जो इसका निर्माण करते थे उनकी सुतली गई नाही इन बर्तनों को सरकार द्वारा संरक्षित किया गया जो कि एक जौनसारी जनजातीय संस्कृति की एक अनूठी पहचान रही है


Conclusion:वही जौनसार बाबर के सामाजिक कार्यकर्ता टीकाराम शाह बताते हैं कि सदियों से जनजातीय लोग काष्ट कला से निर्मित बर्तनों का प्रयोग करते आए हैं जैसे कि नयारा मट्ठा बनाने वाला, गबुवा मक्खन रखने वाला, परोटी दही जमाने वाला, वह दियोट दीपक रखने वाला ,पाथा अनाज मापने वाला, काष्ट कला से बने बर्तन ऐसे तमाम लकड़ी के बर्तन हमारी अपनी संस्कृति मैं से एक है जोकि विलुप्त की कगार पर है यह हमारी संस्कृति का विशेष स्थान रखती थी .आज जो इसके निर्माता शिल्पकार जो इसे बनाते थे वह वो लकडी जिनसे काष्ठ के बर्तन बनाए जाते है उन्हें बचाने की जरूरत है सरकार का इस ओर अभी तक ध्यान नहीं गया.
बाइट_ टीकाराम शाह_ सामाजिक कार्यकर्ता चकराता
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