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उत्तराखंड में भी दिखा ट्रेड यूनियन की हड़ताल का असर, ज्यादातर बैंक और सरकारी दफ्तर रहे बंद

ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर 2 दिन की हड़ताल का असर उत्तराखंड में भी देखने को मिला. राजधानी देहरादून में ज्यादातर बैंक, एलआईसी व पब्लिक सेक्टर के संस्थान बंद है और कर्मचारी धरना दे रहे हैं. कर्मचारियों की ये हड़ताल निजीकरण बंद किए जाने समेत 13 सूत्रीय मांगों को लेकर है.

Bharat Band of Trade Unions
बैंकों की हड़ताल
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Published : Mar 28, 2022, 3:28 PM IST

देहरादून: निजीकरण-आउटसोर्सिंग के खिलाफ 2 दिनों की देशभर के साथ उत्तराखंड में भी बैंकों की हड़ताल जारी है. सोमवार को ऑल इंडिया बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन के बैनर तले राष्ट्रीयकृत बैंकों में हड़ताल कर कर्मचारियों ने केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ बैंकों के बाहर धरना देकर जमकर नारेबाजी की. बैंक हड़ताल के चलते कर्मचारी अपने-अपने बैंकों के बाहर तालाबंदी कर कार्य बहिष्कार में बैठे रहे. ऐसे में बैंक आने वाले ग्राहकों को खासी परेशानी उठानी पड़ रही है.

हालांकि, ट्रेड यूनियनों द्वारा आहुत इस बैंक हड़ताल को SBI बैंक ने समर्थन नहीं दिया है. ऐसे में एसबीआई बैंक सामान्य दिनों की तरह ही खुले रहे. हालांकि, इस देशव्यापी हड़ताल के चलते एसबीआई में कुछ हद तक काम जरूर प्रभावित रहने की आशंका जताई गई है.
पढ़ें- चिदानंद मुनि के खिलाफ संतों की नाराजगी, सनातन धर्म बाहर करने की बात कही, जानिए पूरा मामला

गौर हो कि, 28 और 29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल के दृष्टिगत तमाम सरकारी राष्ट्रीयकृत बैंक द्वारा केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध किया जा रहा है. हड़ताल संगठन के मुताबिक, बैंकों में निजीकरण और आउटसोर्सिंग के साथ ही पुरानी पेंशन बहाल करना उनकी हड़ताल को लेकर मुख्य मांगे हैं.

वित्तीय वर्ष 31 मार्च तक का कामकाज प्रभावित: ऑल इंडिया बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन के बैनर तले होने वाली देशव्यापी-दो दिवसीय हड़ताल के कारण वित्तीय वर्ष 2021-22 का बैंकिंग क्लोजिंग लेखा-जोखा और आर्थिक नुकसान हो सकता हैं. इसकी बड़ी वजह है, वित्तीय वर्ष माह के 2 दिन बैंक कामकाज प्रभावित होने से 31 मार्च में बैंकिंग कार्य पर अधिक भार पड़ता तय है.

वहीं, बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन पदाधिकारियों के मुताबिक, केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध स्वरूप इस देशव्यापी 2 दिनों की हड़ताल में बैंकों का कार्य पूरी तरह बहिष्कृत रहेगा. केंद्र सरकार द्वारा जिस तरह सरकारी बैंकों का निजीकरण व आउटसोर्सिंग बढ़ाने के साथ ही बैंक कर्मियों की पुरानी पेंशन बंद करने की कवायद चल रही है, उसको लेकर लंबे समय से केंद्र की नीतियों के विरुद्ध बैंककर्मियों की हड़ताल समय-समय चेतावनी स्वरूप सामने आती है.
पढ़ें- बढ़ती महंगाई के विरोध में सड़कों पर उतरी कांग्रेस, प्रदर्शन कर सरकार को जगाने की कोशिश

ऑल इंडिया बैंक एम्पलाइज पदाधिकारी सुरेंद्र कुमार के अनुसार, लंबे समय से देश के बैंक एनपीए की गिरावट यानी कर्ज लेने वाले बड़े डिफॉल्टर ग्राहकों से वसूली न होने के चलते घाटे पर चल रहे हैं. ऐसे में इस हड़ताल में इस महत्वपूर्ण विषय पर भी मांग रखी गई है कि भारी भरकम करोड़ों रुपए लोन लेकर उसका भुगतान न करने वाले डिफाल्टर ग्राहकों से ऋण वसूली में प्रभावी कदम उठाए जाएं, ताकि बैंकों को NPA के घाटे से उभारा जा सके.

गांधी पार्क में विरोध प्रदर्शन: उत्तराखंड संयुक्त ट्रेड यूनियंस के बैनर तले विभिन्न ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए अपना विरोध प्रकट किया. इस दौरान यूनियन के पदाधिकारियों ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र की मोदी सरकार श्रम कानूनों को समाप्त करने में लगी हुई है और मजदूरों को गुलामी की ओर धकेल रही है.

इस मौके पर एटक के उपाध्यक्ष समर भंडारी ने कहा कि सरकार 29 श्रम कानूनों के स्थान पर लाई जा रही चार श्रम संहिताओं को रद्द करें और 12 घंटे काम करने के आदेश को भी रद्द करें. उन्होंने कहा कि सरकार एमएसपी पर कानून बनाए, और सभी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने वाले श्रम कानूनों में किए गए भारी बदलाव को तत्काल वापस लें. उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार लगातार बढ़ती महंगाई पर रोक नहीं लगा पा रही है, और पेट्रोल डीजल गैस के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में लगातार बढ़ते जा रहे पेट्रोल डीजल के दामों में बेतहाशा मूल्यवृद्धि को वापस लें.
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उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करने में लगी हुई है. ऐसे में सभी ट्रेड यूनियन केंद्र सरकार से बैंक, बीमा रक्षा पोस्टल रेलवे सहित अन्य सार्वजनिक स्थानों के निगमीकरण और निजीकरण पर रोक लगाए जाने की मांग करती है. वहीं, इंटक के प्रदेश अध्यक्ष हीरा सिंह बिष्ट ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि चार श्रम संहिता अभी लागू नहीं हुई है किंतु विभिन्न सरकारी संस्थानों व निजी संस्थानों में श्रम कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है. कई वर्षों से वहां काम कर रहे श्रमिकों को बिना किसी ग्रेच्युटी व देयों के संस्थानों से निकाला जा रहा है. वहीं, केंद्र सरकार लाभ के संस्थानों को निजी हाथों में सौंप रही है, इसलिए केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में यह प्रदर्शन करना पड़ रहा है.

वहीं, ट्रेड यूनियनों की ओर से प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को जिला प्रशासन के माध्यम से एक ज्ञापन भी भेजा गया है. प्रदर्शन के दौरान यूनियन के सदस्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि उनकी मांगों पर शीघ्र अमल नहीं किया गया तो, ऐसे में उन्हें बड़ा आंदोलन करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा.

अल्मोड़ा में विरोध प्रदर्शन: अल्मोड़ा में भी संयुक्त ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर गांधी पार्क में आंगनबाड़ी, आशा वर्कर, भोजन माता, पीटीसी, अखिल भारतीय किसान सभा, जनवादी महिला समिति सहित कई संगठनों के लोगों ने धरना प्रदर्शन किया और कार्य बहिष्कार किया. इस दौरान सभी ने वेतन वृद्धि समेत कई मांग उठाई. इस दौरान आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कहा कि कोरोनाकाल जैसे कठिन समय में ड्यूटी करने के बाद भी सरकार द्वारा उनकी मांगों की अनदेखी कर, उन्हें हर तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है.

देहरादून: निजीकरण-आउटसोर्सिंग के खिलाफ 2 दिनों की देशभर के साथ उत्तराखंड में भी बैंकों की हड़ताल जारी है. सोमवार को ऑल इंडिया बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन के बैनर तले राष्ट्रीयकृत बैंकों में हड़ताल कर कर्मचारियों ने केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ बैंकों के बाहर धरना देकर जमकर नारेबाजी की. बैंक हड़ताल के चलते कर्मचारी अपने-अपने बैंकों के बाहर तालाबंदी कर कार्य बहिष्कार में बैठे रहे. ऐसे में बैंक आने वाले ग्राहकों को खासी परेशानी उठानी पड़ रही है.

हालांकि, ट्रेड यूनियनों द्वारा आहुत इस बैंक हड़ताल को SBI बैंक ने समर्थन नहीं दिया है. ऐसे में एसबीआई बैंक सामान्य दिनों की तरह ही खुले रहे. हालांकि, इस देशव्यापी हड़ताल के चलते एसबीआई में कुछ हद तक काम जरूर प्रभावित रहने की आशंका जताई गई है.
पढ़ें- चिदानंद मुनि के खिलाफ संतों की नाराजगी, सनातन धर्म बाहर करने की बात कही, जानिए पूरा मामला

गौर हो कि, 28 और 29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल के दृष्टिगत तमाम सरकारी राष्ट्रीयकृत बैंक द्वारा केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध किया जा रहा है. हड़ताल संगठन के मुताबिक, बैंकों में निजीकरण और आउटसोर्सिंग के साथ ही पुरानी पेंशन बहाल करना उनकी हड़ताल को लेकर मुख्य मांगे हैं.

वित्तीय वर्ष 31 मार्च तक का कामकाज प्रभावित: ऑल इंडिया बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन के बैनर तले होने वाली देशव्यापी-दो दिवसीय हड़ताल के कारण वित्तीय वर्ष 2021-22 का बैंकिंग क्लोजिंग लेखा-जोखा और आर्थिक नुकसान हो सकता हैं. इसकी बड़ी वजह है, वित्तीय वर्ष माह के 2 दिन बैंक कामकाज प्रभावित होने से 31 मार्च में बैंकिंग कार्य पर अधिक भार पड़ता तय है.

वहीं, बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन पदाधिकारियों के मुताबिक, केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध स्वरूप इस देशव्यापी 2 दिनों की हड़ताल में बैंकों का कार्य पूरी तरह बहिष्कृत रहेगा. केंद्र सरकार द्वारा जिस तरह सरकारी बैंकों का निजीकरण व आउटसोर्सिंग बढ़ाने के साथ ही बैंक कर्मियों की पुरानी पेंशन बंद करने की कवायद चल रही है, उसको लेकर लंबे समय से केंद्र की नीतियों के विरुद्ध बैंककर्मियों की हड़ताल समय-समय चेतावनी स्वरूप सामने आती है.
पढ़ें- बढ़ती महंगाई के विरोध में सड़कों पर उतरी कांग्रेस, प्रदर्शन कर सरकार को जगाने की कोशिश

ऑल इंडिया बैंक एम्पलाइज पदाधिकारी सुरेंद्र कुमार के अनुसार, लंबे समय से देश के बैंक एनपीए की गिरावट यानी कर्ज लेने वाले बड़े डिफॉल्टर ग्राहकों से वसूली न होने के चलते घाटे पर चल रहे हैं. ऐसे में इस हड़ताल में इस महत्वपूर्ण विषय पर भी मांग रखी गई है कि भारी भरकम करोड़ों रुपए लोन लेकर उसका भुगतान न करने वाले डिफाल्टर ग्राहकों से ऋण वसूली में प्रभावी कदम उठाए जाएं, ताकि बैंकों को NPA के घाटे से उभारा जा सके.

गांधी पार्क में विरोध प्रदर्शन: उत्तराखंड संयुक्त ट्रेड यूनियंस के बैनर तले विभिन्न ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए अपना विरोध प्रकट किया. इस दौरान यूनियन के पदाधिकारियों ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र की मोदी सरकार श्रम कानूनों को समाप्त करने में लगी हुई है और मजदूरों को गुलामी की ओर धकेल रही है.

इस मौके पर एटक के उपाध्यक्ष समर भंडारी ने कहा कि सरकार 29 श्रम कानूनों के स्थान पर लाई जा रही चार श्रम संहिताओं को रद्द करें और 12 घंटे काम करने के आदेश को भी रद्द करें. उन्होंने कहा कि सरकार एमएसपी पर कानून बनाए, और सभी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने वाले श्रम कानूनों में किए गए भारी बदलाव को तत्काल वापस लें. उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार लगातार बढ़ती महंगाई पर रोक नहीं लगा पा रही है, और पेट्रोल डीजल गैस के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में लगातार बढ़ते जा रहे पेट्रोल डीजल के दामों में बेतहाशा मूल्यवृद्धि को वापस लें.
पढ़ें- पिता ने फोन चलाने से मना किया तो छात्रा ने खा लिया जहर, आज था 12वीं का बोर्ड एग्जाम

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करने में लगी हुई है. ऐसे में सभी ट्रेड यूनियन केंद्र सरकार से बैंक, बीमा रक्षा पोस्टल रेलवे सहित अन्य सार्वजनिक स्थानों के निगमीकरण और निजीकरण पर रोक लगाए जाने की मांग करती है. वहीं, इंटक के प्रदेश अध्यक्ष हीरा सिंह बिष्ट ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि चार श्रम संहिता अभी लागू नहीं हुई है किंतु विभिन्न सरकारी संस्थानों व निजी संस्थानों में श्रम कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है. कई वर्षों से वहां काम कर रहे श्रमिकों को बिना किसी ग्रेच्युटी व देयों के संस्थानों से निकाला जा रहा है. वहीं, केंद्र सरकार लाभ के संस्थानों को निजी हाथों में सौंप रही है, इसलिए केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में यह प्रदर्शन करना पड़ रहा है.

वहीं, ट्रेड यूनियनों की ओर से प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को जिला प्रशासन के माध्यम से एक ज्ञापन भी भेजा गया है. प्रदर्शन के दौरान यूनियन के सदस्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि उनकी मांगों पर शीघ्र अमल नहीं किया गया तो, ऐसे में उन्हें बड़ा आंदोलन करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा.

अल्मोड़ा में विरोध प्रदर्शन: अल्मोड़ा में भी संयुक्त ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर गांधी पार्क में आंगनबाड़ी, आशा वर्कर, भोजन माता, पीटीसी, अखिल भारतीय किसान सभा, जनवादी महिला समिति सहित कई संगठनों के लोगों ने धरना प्रदर्शन किया और कार्य बहिष्कार किया. इस दौरान सभी ने वेतन वृद्धि समेत कई मांग उठाई. इस दौरान आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कहा कि कोरोनाकाल जैसे कठिन समय में ड्यूटी करने के बाद भी सरकार द्वारा उनकी मांगों की अनदेखी कर, उन्हें हर तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है.

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