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राज्य स्थापना दिवस: जब माननीय ही कर गए 'पलायन', उत्तराखंड में कैसे आबाद होंगे पहाड़?

आज जहां आम आदमी अपने विकास के लिए पहाड़ से पलायन कर रहा है तो वहीं राजनेता भी अस्तिव बचाने के लिए मैदानी इलाकों का रुख कर रहे है. अब नेताओं का भी पहाड़ से मोहभग होता जा रहा है.

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पलायन का शिकार उत्तराखंड
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Published : Nov 8, 2020, 4:57 PM IST

Updated : Nov 8, 2020, 5:40 PM IST

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मना रहा है. स्थापना दिवस के अवसर पर राज्य के चहुंमुखी विकास को किस तरह से आगे बढ़ाया जाए इसका संकल्प लिया जा रहा है. साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों से तेजी से हो रहे पलायन को रोकने के लिए भी सरकार हर संभव प्रयास कर रही है. हालांकि, वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते रिवर्स पलायन जरूर हुआ, लेकिन कुछ समय के लिए ही. जितने लोग रिवर्स पलायन कर अन्य राज्यों से प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में आए थे उसमें से अधिकांश लोग वापिस पलायन कर गए. सवाल यह है कि पहाड़ी क्षेत्रों का जनमानस अपनी जरूरतों के लिए पलायन कर रहा है तो वहीं राजनेता अपने सियासी भविष्य के लिए पलायन कर रहे हैं. आखिर क्यों हुआ है यह पलायन और क्या है असल स्थिति? इस पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट....

हिमालय की गोद में बसे और धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले उत्तराखंड का स्थापना दिवस आज बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. उत्तराखंड राज्य के 21वें स्थापना दिवस के इस शुभ अवसर पर जहां उत्तराखंड राज्य के आंदोलन में शहादत देने वाले शहीद राज्य आंदोलनकारियों को नमन किया जा रहा है तो वहीं प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से तेजी से हुए पलायन पर चर्चा होना भी स्वाभाविक है.

पढ़ें- सीएम त्रिवेंद्र ने डोबरा-चांठी पुल का किया उद्घाटन, ये खूबियां बनाती हैं खास

मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पहाड़ छोड़ रहे लोग

उत्तराखंड राज्य की परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न है. उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और मूलभूत सुविधाएं न होने की वजह से ही पहाड़ के ग्रामीण बेहतर जिंदगी और तरक्की के लिए ही पलायन कर रहे है. एक अनुमान के मुताबिक, पिछले 10-12 सालों में करीब डेढ़ लाख लोग पहाड़ से पलायन कर चुके हैं. करीब 3 से 4 लाख लोगों ने अस्थायी रूप से पहाड़ से मुह मोड़ लिया है. हालांकि, कोविड-19 में दौर में करीब एक लाख लोग रिवर्स पलायन कर अपने गांव में रुके हैं.

नेताओं के पलायन करने की मुख्य वजह है वोटर

आम आदमी तो छोड़िए यहां तो प्रदेश के बड़े नेताओं ने भी पलायन किया है. कांग्रेस-बीजेपी के कितने ही दिग्गज नेता है, जो पहाड़ की विधानसभा को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों में चुनाव लड़ रहे है. हालांकि, इसकी एक बड़ी वजह है पहाड़ों में वोटरों की कमी और उन्हें पाने के लिए मेहनत करना.

पढ़ें- राज्य स्थापना दिवस: पहाड़ के सामने 'पहाड़' सी चुनौतियां, अब भी सफर आसान नहीं

दरअसल, पहाड़ों पर 10 से 15 किमी पैदल चलने के बाद 100-200 वोटर से मिलते है, लेकिन मैदानी क्षेत्रों में कुछ दूर चलने पर वोटर मिल जाते हैं. प्रत्याशी एक दिन में ही पूरी विधानसभा क्षेत्र को घूम लेते हैं. इसी सहूलियत को देखते हुए पहाड़ के नेता मैदानी क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं.

पलानय आयोग खुद कर गया पलायन

राजनीतिक विशेषज्ञ जय सिंह रावत की मानें तो पलायन की असल वजहों का पता लगाने के लिए राज्य सरकार ने पौड़ी में पलायन आयोग का दफ्तर खोला था, लेकिन पलायन आयोग के अधिकारी खुद ही पलायन कर गए हैं. खुद सूबे के मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के तमाम मंत्री खुद पहाड़ों से पलायन कर गए हैं. अब उन्हें मैदान की सीट रास आ रही है. ऐसे में जब नेताओं को पहाड़ों पर वोटर नहीं मिल रहे हैं और उन्हें पहाड़ का वोट नहीं चाहिए होता है तो ऐसे मंत्रियों को पहाड़ की सुख सुविधाओं से क्या मतलब है?

पढ़ें- राज्य स्थापना दिवस: विकास के रास्ते पर बढ़ा पहाड़, प्रदेश में बिछा सड़कों का जाल

इन दिग्गज नेताओं का मैदानी क्षेत्रों में बढ़ा है मोह

  • उत्तराखंड के दिग्गज नेता हरक सिंह रावत मूल रूप से पौड़ी के रहने वाले हैं, जबकि इन्होंने अपना आशियाना देहरादून के डिफेंस कॉलोनी में बना लिया है.
  • बीजेपी के वरिष्ठ नेता मौजूदा उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत पौड़ी गढ़वाल के ही हैं. इन्होंने भी अपना आवास रायपुर में बना लिया है.
  • प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री की जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही रेखा आर्य मूल रूप से अल्मोड़ा जनपद की है, लेकिन इन्होंने अपना आशियाना हल्द्वानी में बनाया लिया है
  • डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक इस प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा मंत्री है. वे भी मूल रूप से पौड़ी जनपद के ही रहने वाले हैं. इन्होंने भी अपना आशियाना देहरादून के विजय कॉलोनी में बना लिया है.
  • यही नहीं सूबे के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत मूल रूप से पौड़ी जिले के खैरागांव के रहने वाले हैं. जिन्होंने अपना आशियाना डिफेंस कॉलोनी देहरादून में बना लिया है.
  • भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान मुख्य रूप से चकराता के रहने वाले हैं, लेकिन राज्य गठन के बाद तीन बार विधानसभा चुनाव हारने के बाद चकराता की पहाड़ियों से उतरकर विकासनगर आ गए और देहरादून शहर में अपना घर भी बना लिया.
  • विपक्षी पार्टी के नेताओं की बात करें तो कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय मूल रूप से टिहरी के रहने वाले हैं. जिन्होंने अपना आवास देहरादून के डालनवाला में बना लिया है.
  • मातबर सिंह कंडारी कांग्रेसी नेता मूल रूप से रुद्रप्रयाग के रहने वाले हैं, जिनका मोह अब रुद्रप्रयाग से भंग होगा गया है. इन्होंने भी अपना आशियाना देहरादून के शास्त्री नगर में बना लिया है.
  • कांग्रेस के दिग्गज नेता राजेंद्र भंडारी मूल रूप से चमोली जिले के रहने वाले हैं, जिन्होंने अपना आशियाना देहरादून के जोगीवाला क्षेत्र में बना लिया है.
  • उत्तराखंड क्रांति दल यूकेडी के दिग्गज नेता दिवाकर भट्ट मूल रूप से देवप्रयाग के रहने वाले हैं, जिन्होंने अब अपना आवास हरिद्वार में बना लिया है.

सत्ता और विपक्ष के कई नेत जो मूल रूप से पहाड़ के रहने वाले थे, आज वे देहरादून में आकर बस गए हैं. भले ही वे अपने पैतृक पहाड़ी आवास पर यह कभी कबार चले जाते हो लेकिन स्थाई तौर पर इन नेताओं का मन मैदानी जिलों में ही लगता है. उसमें भी खासकर राजधानी देहरादून में. ऐसे में जब माननीय ही पलायन करने पर लगे हुए है तो पहाड़ कैसे आबाद होंगे?

देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड अपना 20वां स्थापना दिवस मना रहा है. स्थापना दिवस के अवसर पर राज्य के चहुंमुखी विकास को किस तरह से आगे बढ़ाया जाए इसका संकल्प लिया जा रहा है. साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों से तेजी से हो रहे पलायन को रोकने के लिए भी सरकार हर संभव प्रयास कर रही है. हालांकि, वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते रिवर्स पलायन जरूर हुआ, लेकिन कुछ समय के लिए ही. जितने लोग रिवर्स पलायन कर अन्य राज्यों से प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में आए थे उसमें से अधिकांश लोग वापिस पलायन कर गए. सवाल यह है कि पहाड़ी क्षेत्रों का जनमानस अपनी जरूरतों के लिए पलायन कर रहा है तो वहीं राजनेता अपने सियासी भविष्य के लिए पलायन कर रहे हैं. आखिर क्यों हुआ है यह पलायन और क्या है असल स्थिति? इस पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट....

हिमालय की गोद में बसे और धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले उत्तराखंड का स्थापना दिवस आज बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. उत्तराखंड राज्य के 21वें स्थापना दिवस के इस शुभ अवसर पर जहां उत्तराखंड राज्य के आंदोलन में शहादत देने वाले शहीद राज्य आंदोलनकारियों को नमन किया जा रहा है तो वहीं प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से तेजी से हुए पलायन पर चर्चा होना भी स्वाभाविक है.

पढ़ें- सीएम त्रिवेंद्र ने डोबरा-चांठी पुल का किया उद्घाटन, ये खूबियां बनाती हैं खास

मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पहाड़ छोड़ रहे लोग

उत्तराखंड राज्य की परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न है. उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और मूलभूत सुविधाएं न होने की वजह से ही पहाड़ के ग्रामीण बेहतर जिंदगी और तरक्की के लिए ही पलायन कर रहे है. एक अनुमान के मुताबिक, पिछले 10-12 सालों में करीब डेढ़ लाख लोग पहाड़ से पलायन कर चुके हैं. करीब 3 से 4 लाख लोगों ने अस्थायी रूप से पहाड़ से मुह मोड़ लिया है. हालांकि, कोविड-19 में दौर में करीब एक लाख लोग रिवर्स पलायन कर अपने गांव में रुके हैं.

नेताओं के पलायन करने की मुख्य वजह है वोटर

आम आदमी तो छोड़िए यहां तो प्रदेश के बड़े नेताओं ने भी पलायन किया है. कांग्रेस-बीजेपी के कितने ही दिग्गज नेता है, जो पहाड़ की विधानसभा को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों में चुनाव लड़ रहे है. हालांकि, इसकी एक बड़ी वजह है पहाड़ों में वोटरों की कमी और उन्हें पाने के लिए मेहनत करना.

पढ़ें- राज्य स्थापना दिवस: पहाड़ के सामने 'पहाड़' सी चुनौतियां, अब भी सफर आसान नहीं

दरअसल, पहाड़ों पर 10 से 15 किमी पैदल चलने के बाद 100-200 वोटर से मिलते है, लेकिन मैदानी क्षेत्रों में कुछ दूर चलने पर वोटर मिल जाते हैं. प्रत्याशी एक दिन में ही पूरी विधानसभा क्षेत्र को घूम लेते हैं. इसी सहूलियत को देखते हुए पहाड़ के नेता मैदानी क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं.

पलानय आयोग खुद कर गया पलायन

राजनीतिक विशेषज्ञ जय सिंह रावत की मानें तो पलायन की असल वजहों का पता लगाने के लिए राज्य सरकार ने पौड़ी में पलायन आयोग का दफ्तर खोला था, लेकिन पलायन आयोग के अधिकारी खुद ही पलायन कर गए हैं. खुद सूबे के मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के तमाम मंत्री खुद पहाड़ों से पलायन कर गए हैं. अब उन्हें मैदान की सीट रास आ रही है. ऐसे में जब नेताओं को पहाड़ों पर वोटर नहीं मिल रहे हैं और उन्हें पहाड़ का वोट नहीं चाहिए होता है तो ऐसे मंत्रियों को पहाड़ की सुख सुविधाओं से क्या मतलब है?

पढ़ें- राज्य स्थापना दिवस: विकास के रास्ते पर बढ़ा पहाड़, प्रदेश में बिछा सड़कों का जाल

इन दिग्गज नेताओं का मैदानी क्षेत्रों में बढ़ा है मोह

  • उत्तराखंड के दिग्गज नेता हरक सिंह रावत मूल रूप से पौड़ी के रहने वाले हैं, जबकि इन्होंने अपना आशियाना देहरादून के डिफेंस कॉलोनी में बना लिया है.
  • बीजेपी के वरिष्ठ नेता मौजूदा उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत पौड़ी गढ़वाल के ही हैं. इन्होंने भी अपना आवास रायपुर में बना लिया है.
  • प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री की जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही रेखा आर्य मूल रूप से अल्मोड़ा जनपद की है, लेकिन इन्होंने अपना आशियाना हल्द्वानी में बनाया लिया है
  • डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक इस प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा मंत्री है. वे भी मूल रूप से पौड़ी जनपद के ही रहने वाले हैं. इन्होंने भी अपना आशियाना देहरादून के विजय कॉलोनी में बना लिया है.
  • यही नहीं सूबे के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत मूल रूप से पौड़ी जिले के खैरागांव के रहने वाले हैं. जिन्होंने अपना आशियाना डिफेंस कॉलोनी देहरादून में बना लिया है.
  • भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान मुख्य रूप से चकराता के रहने वाले हैं, लेकिन राज्य गठन के बाद तीन बार विधानसभा चुनाव हारने के बाद चकराता की पहाड़ियों से उतरकर विकासनगर आ गए और देहरादून शहर में अपना घर भी बना लिया.
  • विपक्षी पार्टी के नेताओं की बात करें तो कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय मूल रूप से टिहरी के रहने वाले हैं. जिन्होंने अपना आवास देहरादून के डालनवाला में बना लिया है.
  • मातबर सिंह कंडारी कांग्रेसी नेता मूल रूप से रुद्रप्रयाग के रहने वाले हैं, जिनका मोह अब रुद्रप्रयाग से भंग होगा गया है. इन्होंने भी अपना आशियाना देहरादून के शास्त्री नगर में बना लिया है.
  • कांग्रेस के दिग्गज नेता राजेंद्र भंडारी मूल रूप से चमोली जिले के रहने वाले हैं, जिन्होंने अपना आशियाना देहरादून के जोगीवाला क्षेत्र में बना लिया है.
  • उत्तराखंड क्रांति दल यूकेडी के दिग्गज नेता दिवाकर भट्ट मूल रूप से देवप्रयाग के रहने वाले हैं, जिन्होंने अब अपना आवास हरिद्वार में बना लिया है.

सत्ता और विपक्ष के कई नेत जो मूल रूप से पहाड़ के रहने वाले थे, आज वे देहरादून में आकर बस गए हैं. भले ही वे अपने पैतृक पहाड़ी आवास पर यह कभी कबार चले जाते हो लेकिन स्थाई तौर पर इन नेताओं का मन मैदानी जिलों में ही लगता है. उसमें भी खासकर राजधानी देहरादून में. ऐसे में जब माननीय ही पलायन करने पर लगे हुए है तो पहाड़ कैसे आबाद होंगे?

Last Updated : Nov 8, 2020, 5:40 PM IST
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