ETV Bharat / state

प्रदेश भर में मकर संक्रांति की धूम, जानिए इस पर्व का महत्व

मकर संक्रांति भारत का प्रमुख पर्व है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है. वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है.

uttarakhand
मकर संक्रांति
author img

By

Published : Jan 14, 2021, 4:01 AM IST

Updated : Jan 14, 2021, 1:50 PM IST

देहरादून: उत्तराखण्ड में उत्तरायणी का त्यौहार मनाया जाता है. मकर संक्रान्ति से पूर्व की रात से ही त्यौहार मनाना शुरू हो जाता है. इस दिन को मसांत कहा जाता है, यानी त्यौहार की पूर्व संध्या. इस दिन हर शुभ अवसर की तरह बड़ुए और पकवान बनाये-खाए जाते हैं. इसी रात हर घर में घुघुत बनाये जाते हैं और बच्चों के लिए घुघुत की मालाएं भी तैयार कर ली जाती हैं.

उत्तराखंड में मकर संक्रांति.

ये घुघुत हिंदी के 4 के आकार के साथ ढाल-तलवार, फूल, डमरू तथा खजूर आदि की आकृतियों के बनाये जाते हैं. घुघुतों को घर भर के कई दिनों तक के खाने के अलावा नाते-रिश्तेदारों और पड़ोसियों को बांटने के लिए भी बनाया जाता है.

पढ़ें- मकर संक्रांति: गंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ की श्रद्धालुओं से अपील, कहा- बेझिझक आएं और स्नान करें

पुराने समय में इस दिन रात भर जागकर आग के चारों ओर लोकगीत व लोकनृत्य आयोजित किये जाते थे. रात भर जागकर अलसुबह ब्रह्म मुहूर्त में आस-पास की नदी, नौलों व गधेरों में नहाने के लिए निकल पड़ने की परंपरा हुआ करती थी. रात्रि जागरण की यह परंपरा अब लुप्त हो चुकी है लेकिन सुबह स्नान करने की परंपरा आज भी कायम है. इस दिन उत्तराखण्ड की सभी पवित्र मानी जाने वाली नदियों में लोग स्नान के लिए जुटते हैं. कई नदियों के तट पर ऐतिहासिक महत्त्व के मेले भी लगा करते हैं.

स्नान करने के बाद घरों में पकवान बनना शुरू हो जाते हैं. मसांत में बनाये गए घुघुतों को सबसे पहले कौवों को खिलाया जाता है. घुघुतों को घर, आंगन, छत की ऊंची दीवारों पर कौवों के खाने के लिए रख दिया जाता है. इसके बाद बच्चे जोर-जोर से ‘काले कौव्वा का-ले, घुघुति माला खाले!’ की आवाज लगाकर उन्हें बुलाते हैं. बच्चे मनगढ़ंत तुकबंदियां बोलकर कौवों से तोहफे भी मांगते हैं. बच्चों को जब घुघुती की माला पहनाते हैं तो गाते हैं...

लै कावा भात, मैं कैं दे सुनक थात!

लै कावा लगड़, मैं कैं दे भैबैणों दगड़!

लै कावा बौड़, मैं कैं दे सुनौक घ्वड़!

लै कावा क्वे, मैं कैं दे भली भली ज्वे!

मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है. इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है. सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है. यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है. भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है. मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है. अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है. इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है. किन्तु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाता है. अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है.

पढ़ें-हरिद्वार में मकर संक्रांति स्नान को लेकर सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त, जानिए स्नान का महत्व

दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा. अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है. प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी. ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है. सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है. इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को पड़ता है.

देहरादून: उत्तराखण्ड में उत्तरायणी का त्यौहार मनाया जाता है. मकर संक्रान्ति से पूर्व की रात से ही त्यौहार मनाना शुरू हो जाता है. इस दिन को मसांत कहा जाता है, यानी त्यौहार की पूर्व संध्या. इस दिन हर शुभ अवसर की तरह बड़ुए और पकवान बनाये-खाए जाते हैं. इसी रात हर घर में घुघुत बनाये जाते हैं और बच्चों के लिए घुघुत की मालाएं भी तैयार कर ली जाती हैं.

उत्तराखंड में मकर संक्रांति.

ये घुघुत हिंदी के 4 के आकार के साथ ढाल-तलवार, फूल, डमरू तथा खजूर आदि की आकृतियों के बनाये जाते हैं. घुघुतों को घर भर के कई दिनों तक के खाने के अलावा नाते-रिश्तेदारों और पड़ोसियों को बांटने के लिए भी बनाया जाता है.

पढ़ें- मकर संक्रांति: गंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ की श्रद्धालुओं से अपील, कहा- बेझिझक आएं और स्नान करें

पुराने समय में इस दिन रात भर जागकर आग के चारों ओर लोकगीत व लोकनृत्य आयोजित किये जाते थे. रात भर जागकर अलसुबह ब्रह्म मुहूर्त में आस-पास की नदी, नौलों व गधेरों में नहाने के लिए निकल पड़ने की परंपरा हुआ करती थी. रात्रि जागरण की यह परंपरा अब लुप्त हो चुकी है लेकिन सुबह स्नान करने की परंपरा आज भी कायम है. इस दिन उत्तराखण्ड की सभी पवित्र मानी जाने वाली नदियों में लोग स्नान के लिए जुटते हैं. कई नदियों के तट पर ऐतिहासिक महत्त्व के मेले भी लगा करते हैं.

स्नान करने के बाद घरों में पकवान बनना शुरू हो जाते हैं. मसांत में बनाये गए घुघुतों को सबसे पहले कौवों को खिलाया जाता है. घुघुतों को घर, आंगन, छत की ऊंची दीवारों पर कौवों के खाने के लिए रख दिया जाता है. इसके बाद बच्चे जोर-जोर से ‘काले कौव्वा का-ले, घुघुति माला खाले!’ की आवाज लगाकर उन्हें बुलाते हैं. बच्चे मनगढ़ंत तुकबंदियां बोलकर कौवों से तोहफे भी मांगते हैं. बच्चों को जब घुघुती की माला पहनाते हैं तो गाते हैं...

लै कावा भात, मैं कैं दे सुनक थात!

लै कावा लगड़, मैं कैं दे भैबैणों दगड़!

लै कावा बौड़, मैं कैं दे सुनौक घ्वड़!

लै कावा क्वे, मैं कैं दे भली भली ज्वे!

मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है. इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है. सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है. यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है. भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है. मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है. अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है. इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है. किन्तु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाता है. अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है.

पढ़ें-हरिद्वार में मकर संक्रांति स्नान को लेकर सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त, जानिए स्नान का महत्व

दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा. अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है. प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी. ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है. सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है. इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को पड़ता है.

Last Updated : Jan 14, 2021, 1:50 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.