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देहरादून: जैविक चाय उत्पादन बढ़ाने की कवायद तेज, सिलीगुड़ी से मंगवाई 15 हजार पौध - Arcadia and Harbanswala's tea estate in Dehradun

देहरादून में एक बार फिर से जैविक चाय उत्पादन को बढ़ाने के कवायद तेज हो गई है. इसके लिए आर्केडिया व हरबंसवाला स्थित चाय बागानों के पश्चिम बंगाल, सिलीगुड़ी से हजारों पौधे लाने के साथ ही राष्ट्रीय टी बोर्ड की तरफ से भी मदद ली जा रही है.

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देहरादून में जैविक चाय उत्पादन बढ़ाने की कवायद तेज
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Published : Oct 23, 2020, 6:33 PM IST

देहरादून: विश्व प्रसिद्ध जैविक चाय उत्पादन के अस्तित्व को बचाने के लिए इन दिनों आर्केडिया व हरबंसवाला स्थित चाय बागान को एक बार बड़े पैमाने विकसित किया जा रहा है. जिसके लिए यहां लाखों की तादाद में चाय प्लांटेशन करने की कवायद में तेज कर दी गई है. इसके लिए पश्चिम बंगाल, सिलीगुड़ी से हजारों पौधे लाने के साथ ही राष्ट्रीय टी बोर्ड की तरफ से भी मदद ली जा रही है. देहरादून के एक मात्र बचे इस चाय बागान को फिर से बड़े पैमाने में विकसित किये जाने की योजना है. देहरादून के आर्केडिया- हरबंस वाला में 1150 एकड़ भूमि में फैले इस चाय बागान का अगर फिर से जीर्णोंद्धार किया जाता है तो देहरादून के बिगड़ते पर्यावरण को भी आगामी दिनों में इससे काफी फायदा मिलेगा.

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सिलीगुड़ी से लाये गये 15 हजार हर्बल पौधे
ब्रिटिश काल से देहरादून में होता है चाय उत्पादन
अंग्रेजी शासन काल 1860 से देहरादून के आर्केडिया और हरबंसवाला ईस्टेट में चाय उत्पादन किया जाता रहा है. यहां लगभग 11 से 50 एकड़ भूमि में चाय की खेती होती थी, लेकिन समयानुसार रखरखाव की कमी होने के कारण आज मात्र 400 एकड़ पर ही चाय का उत्पादन होता हैं. ऐसे में एक फिर इस चाय बागान को उत्पादन के बड़े भंडार के रूप में विकसित करने के मकसद बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल, सिलीगुड़ी से 15 हजार हर्बल प्रजाति के पौधे लाकर प्लांटेशन कार्य इन दिनों जोर शोरों से किया जा रहा है.
देहरादून में जैविक चाय उत्पादन बढ़ाने की कवायद तेज

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देहरादून के इन क्षेत्रों की चाय देश-विदेश में थी प्रचलित

जानकारी के मुताबिक, सन 1860 ब्रिटिश शासन काल के समय में देहरादून शहर विश्वप्रसिद्ध चाय के उत्पादन के लिए अपनी अलग पहचान रखता था. मगर समय के साथ ही देहरादून के बदलते कंक्रीट के स्वरूप के कारण इसमें बदलाव आने शुरू हुए. हालात ये हैं कि आज देहरादून में ना के बराबर चाय का उत्पादन होता है. जानकारी के मुताबिक ओएनजीसी के नजदीक सिरमौर पार्क हरिद्वार रोड से लगता मथुरावाला, बंजारावाला, निरंजनपुर और मोहकमपुर सहित आर्केडिया और हरबंसवाला इलाके में काफी चाय की खेती का कारोबार हुआ करता था. आजकल मात्र आर्केडिया और हरबंशवाला ग्रांट क्षेत्र में ही चाय बागान उत्पादन के अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद चल रही है.

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देहरादून में जैविक चाय उत्पादन की तैयारी.

पढ़ें- सावधान! हंसी की मदद के नाम पर चल रहा फ्रॉड, झांसे में न आएं

जैविक तरल खाद्य का इस्तेमाल कर चाय की खेती को बढ़ावा

आर्केडिया चाय बागान के मैनेजर का कहना है कि वह धीरे-धीरे कर उजड़ चुके चाय बागान को फिर से विकसित करने का काम कर रहे हैं. इस काम में सबसे उपयोगी भारत सरकार की योजना के तहत गुड़ के सीरे से तैयार होने वाली तरल रसायन जैविक खाद कारगर है. इसी खाद के इस्तेमाल से बंजर पड़ी चाय बागान की भूमि को उपजाऊ बनाने में मदद मिली है. वर्तमान समय में उनके टी एस्टेट में 10,000 किलो हर्बल चाय का प्रतिवर्ष उत्पादन हो रहा है. अब चाय खेती को बढ़ाते हुए अगले साल तक प्रतिवर्ष 20 हजार किलो चाय उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.

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देहरादून में जैविक चाय उत्पादन बढ़ाने की कवायद तेज

पढ़ें- जॉलीग्रांट एयरपोर्ट विस्तारीकरण पर बोले सीएम- हो रही राजनीति, काटे जाने वाले पेड़ों से तीन गुना पेड़ लगेंगे

वहीं, ब्रिटिश काल से ही चाय का उत्पादन करने वाली कंपनी के जनरल मैनेजर डीके सिंह ने बताया कि कभी देश-विदेश में देहरादून में होने वाली चाय का बड़ा नाम था. चाय के अच्छे खासे उत्पादन के कारण देहरादून का नाम विशेष तौर पर जाना जाता था. आज के समय में यहां के सभी टी गार्डन खत्म हो चुके हैं. ऐसे में अब एक बार फिर से आर्केडिया और हरबंसवाला चाय बागानों को विकसित करने का काम किया जा रहा है, जो कि काफी अच्छा है.

देहरादून: विश्व प्रसिद्ध जैविक चाय उत्पादन के अस्तित्व को बचाने के लिए इन दिनों आर्केडिया व हरबंसवाला स्थित चाय बागान को एक बार बड़े पैमाने विकसित किया जा रहा है. जिसके लिए यहां लाखों की तादाद में चाय प्लांटेशन करने की कवायद में तेज कर दी गई है. इसके लिए पश्चिम बंगाल, सिलीगुड़ी से हजारों पौधे लाने के साथ ही राष्ट्रीय टी बोर्ड की तरफ से भी मदद ली जा रही है. देहरादून के एक मात्र बचे इस चाय बागान को फिर से बड़े पैमाने में विकसित किये जाने की योजना है. देहरादून के आर्केडिया- हरबंस वाला में 1150 एकड़ भूमि में फैले इस चाय बागान का अगर फिर से जीर्णोंद्धार किया जाता है तो देहरादून के बिगड़ते पर्यावरण को भी आगामी दिनों में इससे काफी फायदा मिलेगा.

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सिलीगुड़ी से लाये गये 15 हजार हर्बल पौधे
ब्रिटिश काल से देहरादून में होता है चाय उत्पादन अंग्रेजी शासन काल 1860 से देहरादून के आर्केडिया और हरबंसवाला ईस्टेट में चाय उत्पादन किया जाता रहा है. यहां लगभग 11 से 50 एकड़ भूमि में चाय की खेती होती थी, लेकिन समयानुसार रखरखाव की कमी होने के कारण आज मात्र 400 एकड़ पर ही चाय का उत्पादन होता हैं. ऐसे में एक फिर इस चाय बागान को उत्पादन के बड़े भंडार के रूप में विकसित करने के मकसद बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल, सिलीगुड़ी से 15 हजार हर्बल प्रजाति के पौधे लाकर प्लांटेशन कार्य इन दिनों जोर शोरों से किया जा रहा है.
देहरादून में जैविक चाय उत्पादन बढ़ाने की कवायद तेज

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देहरादून के इन क्षेत्रों की चाय देश-विदेश में थी प्रचलित

जानकारी के मुताबिक, सन 1860 ब्रिटिश शासन काल के समय में देहरादून शहर विश्वप्रसिद्ध चाय के उत्पादन के लिए अपनी अलग पहचान रखता था. मगर समय के साथ ही देहरादून के बदलते कंक्रीट के स्वरूप के कारण इसमें बदलाव आने शुरू हुए. हालात ये हैं कि आज देहरादून में ना के बराबर चाय का उत्पादन होता है. जानकारी के मुताबिक ओएनजीसी के नजदीक सिरमौर पार्क हरिद्वार रोड से लगता मथुरावाला, बंजारावाला, निरंजनपुर और मोहकमपुर सहित आर्केडिया और हरबंसवाला इलाके में काफी चाय की खेती का कारोबार हुआ करता था. आजकल मात्र आर्केडिया और हरबंशवाला ग्रांट क्षेत्र में ही चाय बागान उत्पादन के अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद चल रही है.

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देहरादून में जैविक चाय उत्पादन की तैयारी.

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जैविक तरल खाद्य का इस्तेमाल कर चाय की खेती को बढ़ावा

आर्केडिया चाय बागान के मैनेजर का कहना है कि वह धीरे-धीरे कर उजड़ चुके चाय बागान को फिर से विकसित करने का काम कर रहे हैं. इस काम में सबसे उपयोगी भारत सरकार की योजना के तहत गुड़ के सीरे से तैयार होने वाली तरल रसायन जैविक खाद कारगर है. इसी खाद के इस्तेमाल से बंजर पड़ी चाय बागान की भूमि को उपजाऊ बनाने में मदद मिली है. वर्तमान समय में उनके टी एस्टेट में 10,000 किलो हर्बल चाय का प्रतिवर्ष उत्पादन हो रहा है. अब चाय खेती को बढ़ाते हुए अगले साल तक प्रतिवर्ष 20 हजार किलो चाय उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.

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देहरादून में जैविक चाय उत्पादन बढ़ाने की कवायद तेज

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वहीं, ब्रिटिश काल से ही चाय का उत्पादन करने वाली कंपनी के जनरल मैनेजर डीके सिंह ने बताया कि कभी देश-विदेश में देहरादून में होने वाली चाय का बड़ा नाम था. चाय के अच्छे खासे उत्पादन के कारण देहरादून का नाम विशेष तौर पर जाना जाता था. आज के समय में यहां के सभी टी गार्डन खत्म हो चुके हैं. ऐसे में अब एक बार फिर से आर्केडिया और हरबंसवाला चाय बागानों को विकसित करने का काम किया जा रहा है, जो कि काफी अच्छा है.

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