देहरादूनः देश के जाने-माने समाजसेवी अवधेश कौशल का आज (12 जुलाई 2022) सुबह देहरादून के मैक्स अस्पताल में निधन हो गया. समाजसेवी अवधेश कौशल किसी परिचय के मोहताज नहीं थे. पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी से लेकर मुख्यमंत्रियों तक को अपनी कार्यप्रणाली से कटघरे में खड़े करने वाले अवधेश कौशल के 'कौशल' से हर कोई परिचित था. राजनीति के धुरंधर हों या फिर सरकारी कुर्सी के शासक अवधेश कौशल को उनके काम के लिए याद करते हैं. अवधेश कौशल के ऐसे कई किस्से हैं, जो उत्तराखंड की शांत वादियों से लेकर दिल्ली के शासकों तक जुड़े हैं.
मसूरी में माइनिंग बंद करवाई: 87 साल के समाजसेवी अवधेश कौशल के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जब भी दबे कुचले वर्ग की पीड़ा देखी, तभी सरकार के खिलाफ खड़े हो गए. अवधेश कौशल शुरुआती दिनों में मसूरी लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर थे. अवधेश कौशल वहां पर सार्वजनिक प्रशासन विषय पढ़ाया करते थे. वहां से रिटायर होने के बाद अवधेश कौशल ने पहाड़ों के लिए आवाज उठानी शुरू की. उन्होंने देखा कि मसूरी क्षेत्र में बड़ी संख्या में बाहर से आ रहे लोग माइनिंग के काम को अंजाम दे रहे हैं.
तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने लिया संज्ञान: मसूरी में लगातार हो रहे खनन से ना केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा था बल्कि, वहां काम कर रहे मजदूरों से भी बर्बर तरीके से काम करवाया जा रहा था. इस क्रूर नीति के खिलाफ अवधेश कौशल ने 80 के दशक में आवाज उठाई. दून घाटी में माइनिंग से मसूरी के पहाड़ जो हरे-भरे दिखते थे, वह सफेद हो रहे थे. इसके खिलाफ अवधेश कौशल ने ना केवल सरकार से लड़ाई लड़ी बल्कि कोर्ट में भी लंबी जद्दोजहद के बाद माइनिंग को बंद करवाया. इतना ही नहीं, उनके द्वारा आवाज उठाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी मसूरी आकर इस पूरे मामले का संज्ञान लेना पड़ा था.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेशः इसके बाद उन्होंने मसूरी के तलहटी राजपुर रोड पर सीमेंट की अंधाधुंध फैक्ट्रियां के खिलाफ आवाज उठाई. जिससे लोगों की आवाज को अवधेश कौशल का समर्थन मिला. अवधेश कौशल ने उस वक्त यूपी केमिकल फैक्ट्री, आदित्य बिरला केमिकल फैक्ट्री, चड्ढा सीमेंट फैक्ट्री सहित तमाम फैक्ट्रियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और सुप्रीम कोर्ट तक गए. 1985 में उनकी ही लड़ाई का नतीजा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार को तमाम फैक्ट्रियों को बंद करने का आदेश देना पड़ा.
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...जब जाना पड़ा जेलः इसके बाद समाजसेवी अवधेश कौशल ने यूपी व तमाम राज्यों का भ्रमण किया और देखा कि जंगलों में रहने वाले गुर्जरों की समस्या बेहद कठिन है. जबकि वह जंगल की हिफाजत करते हैं. लिहाजा, उन्होंने 1995 के बाद लगातार केंद्र सरकार पर गुर्जरों के लिए काम करने की आवाज उठाई. इसका नतीजा रहा कि साल 2006 में शेड्यूल्ड ट्राइब्स एंड ट्रेडिशनल फॉरेस्ट एक्ट लागू हुआ. इससे गुर्जरों को संरक्षित करने का अधिकार मिला. अपनी अंतिम सांस से पहले भी वह लगातार अपनी संस्था रूलक के माध्यम से गुर्जरों की आवाज उठा रहे थे. देश भर के तमाम गुर्जर उनके यहां आकर उनका आज भी धन्यवाद करते हैं. साल 2015 में उन्हें गुर्जरों के कारण या यों कहें उनके लिए आवाज उठाने के कारण जेल भी जाना पड़ा था.
पूर्व सीएम द्वारा सरकारी धन के दुरुपयोग की खिलाफ उठाई आवाज: 2015 के बाद समाजसेवी अवधेश कौशल ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों द्वारा सरकारी पैसों के दुरुपयोग का मामला उठाया. उन्होंने देखा कि कैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों का सरकारी बंगला, गाड़ी की सेवा, खाने-पीने से लेकर टेलीफोन तक का सारा खर्चा सरकारी खजाने से हो रहा है. लिहाजा, अवधेश कौशल ने इसके खिलाफ आवाज उठाई और इस पूरे मामले को उच्च न्यायालय तक लेकर गए. उनकी आवाज का ही नतीजा था कि कई पूर्व मुख्यमंत्रियों को कोर्ट की चौखट तक आना पड़ा. साल 2019 में हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक, नारायण दत्त तिवारी, भगत सिंह कोश्यारी, विजय बहुगुणा के ऊपर जो सरकारी खजाने से पैसा खर्च हुआ है, सरकार उसकी रिकवरी करे.
लिहाजा, कोर्ट की फटकार के बाद तमाम पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं वापस करनी पड़ी. इसके बाद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दोनों जगहों पर सरकारों को यह निर्णय लेना पड़ा कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास, सरकारी गाड़ी उपलब्ध नहीं कराई जाएगी. वहीं, कोर्ट ने आदेश दिए थे कि पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक से 40 लाख रुपए सरकारी खजाने में जमा करवाएं. जबकि बीसी खंडूड़ी से 46 लाख, विजय बहुगुणा से 37 लाख, जबकि भगत सिंह कोश्यारी से 47 लाख और एनडी तिवारी से 1 करोड़ 20 लाख रुपए जमा कराएं.
पद्मश्री अवधेश कौशलः केंद्र सरकार ने उनके कार्यों के अनुरूप उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया. अवधेश कौशल को 'द वीक' पत्रिका द्वारा साल 2003 में मैन ऑफ द ईयर भी चुना गया. उनके निधन के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सहित राज्य के तमाम बड़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.