ऋषिकेशः एम्स ऋषिकेश में अब इन विट्रो फर्टिलाइजेशन सेंटर (IVF) की सुविधा शुरू हो गई है. यह तकनीक उन महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जो किन्हीं कारणों से मां नहीं बन पा रही हैं. यूं कहें कि आईवीएफ तकनीक के शुरू होने से उन परिवारों को सीधे तौर पर लाभ मिलेगा, जो अभी तक बांझपन का दंश झेल रहे थे. इसके साथ ही उत्तराखंड में एम्स ऋषिकेश पहला सरकारी स्वास्थ्य संस्थान बन गया है, जहां यह सुविधा शुरू की गई है.
क्या है आईवीएफ? आईवीएफ (IVF) यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, यह गर्भधारण की एक कृत्रिम प्रक्रिया है. आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से पैदा हुए बच्चे को टेस्ट ट्यूब बेबी (Test tube baby) कहा जाता है. यह एक सहायक प्रजनन तकनीक है, जहां भ्रूण के उत्पादन के लिए एक प्रयोगशाला में एक अंडे को शुक्राणु के साथ जोड़ा जाता है. इस प्रक्रिया में एक महिला के अंडाशय को हार्माेनल दवाओं के साथ उत्तेजित करना, अंडाशय (डिंब पिकअप) से अंडों को निकालना और शुक्राणु को एक प्रयोगशाला में एक विशेष तकनीक के माध्यम से उन्हें निषेचित करना शामिल है.
निषेचित अंडे (जाइगोट) को 2 से 5 दिनों के लिए भ्रूण संवर्धन से गुजरने के बाद, इसे एक सफल गर्भावस्था की स्थापना के लिए उसी या किसी अन्य महिला के गर्भाशय में डाला जाता है. इस तकनीक का उपयोग महिलाओं में बांझपन के प्रमुख कारणों (ट्यूबल क्षति, एंडोमेट्रियोसिस, खराब डिम्बग्रंथि रिजर्व, पीसीओएस आदि) या पुरुष कारक (असामान्य सीमन पैरामीटर आदि) या दोनों वाले जोड़ों में किया जाता है.
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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के निदेशक और सीईओ प्रोफेसर अरविंद रघुवंशी ने संस्थान के गायनी विभाग में आईवीएफ सेंटर का विधिवत उद्घाटन किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि देश में कई दंपति बांझपन की समस्या से जूझ रहे हैं. जो महिलाएं बांझपन की समस्या से ग्रसित हैं, उन्हें सामाजिक प्रताड़ना, वर्जना और मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है. एम्स ऋषिकेश में आईवीएफ केंद्र खुलने से उत्तराखंड और आसपास के शहरों में रहने वाले ऐसे सभी लोगों को लाभ मिल सकेगा, जो संतान सुख से वंचित हैं और इस सुविधा से माता-पिता का सुख प्राप्त करना चाहते हैं.
उत्तराखंड का पहला सरकारी संस्थान बना एम्सः डीन एकेडेमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने कहा कि इस सुविधा को शुरू करने वाला एम्स अस्पताल स्वास्थ्य क्षेत्र में राज्य का पहला सरकारी संस्थान है. उन्होंने कहा कि क्योंकि अभी तक यह बेहद जटिल और महंगा इलाज हुआ करता था, इसलिए अब एम्स ऋषिकेश में शुरू की गई इस सुविधा से मध्यम वर्ग के दंपति भी अपना उपचार करा सकेंगे. वहीं, मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रोफेसर अश्विनी कुमार दलाल ने कहा कि आज के दौर में ऐसे मैरीड कपल्स की संख्या ज्यादा बढ़ रही है, जिनकी अपनी कोई संतान नहीं है. इस सुविधा से पुरुष बांझपन और महिला बांझपन दोनों की समस्याओं का निदान संभव है.
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प्रसूति और स्त्री रोग विभाग की प्रमुख और एम्स के आईवीएफ केंद्र की प्रभारी प्रोफेसर जया चतुर्वेदी ने इस बाबत बताया कि गायनी विभाग पिछले 4 सालों से बांझपन वाले जोड़ों का प्रबंधन कर रहा है. इसमें बांझ दंपति का काम, ओव्यूलेशन इंडक्शन, फॉलिक्यूलर मॉनिटरिंग, बांझपन के लिए लेप्रोस्कोपिक और हिस्टेरोस्कोपिक सर्जरी शामिल हैं. उन्होंने बताया कि यह विभाग इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइडलाइन के अनुसार 45 वर्ष तक की महिलाओं और 50 वर्ष तक के पुरुषों के लिए यह सुविधा प्रदान करेगा.
आईवीएफ केंद्र की नोडल अधिकारी डॉ. लतिका चावला ने कहा कि आईवीएफ केंद्र में पुरुष शुक्राणुओं की जांच हेतु एंड्रोलॉजी लैब ने कार्य करना शुरू कर दिया है और केंद्र में अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान (आईयूआई) की सुविधा भी उपलब्ध है. इसके अलावा इस केंद्र में आईवीएफ प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. उन्होंने बताया कि निकट भविष्य में एम्स ऋषिकेश संतान से वंचित ऐसे माता-पिता का भी इलाज करेगा, जिनके शरीर में अंडाणु या शुक्राणु नहीं बनते और जिन्हें स्पर्मदाता की आवश्यकता होती है.