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देवस्थानम बोर्ड: जिस धाम में बजते थे ढोल-नगाड़े और शिव के जयकारे, आज वहां लग रहे हैं मुर्दाबाद के नारे

देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ चारों धामों के तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी 17 अगस्त से आंदोलन करेंगे. चार धाम से लेकर देहरादून तक प्रदेश के हर हिस्से में तीर्थ पुरोहित आंदोलन करेंगे. इसके बाद 16 सितंबर को तीर्थ पुरोहितों का सीएम आवास कूच भी है.

देहरादून
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Published : Aug 11, 2021, 3:14 PM IST

Updated : Aug 11, 2021, 7:26 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड विवाद थम नहीं रहा है. चारों धामों से जुड़े तमाम तीर्थपुरोहित और हक-हकूकधारियों ने न सिर्फ भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, बल्कि 17 अगस्त से प्रदेश स्तरीय आंदोलन का भी ऐलान कर दिया है. ऐसे में देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का विरोध कर रहे तीर्थपुरोहित और हक-हकूकधारियों को मनाना राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है.

17 अगस्त से शुरू होगा प्रदेश स्तरीय आंदोलन: उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग किए जाने की मांग को लेकर चारधाम तीर्थपुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत समिति ने 17 अगस्त से प्रदेश स्तरीय आंदोलन का ऐलान किया है. 17 अगस्त के बाद चारधाम समेत ऊखीमठ, खरसाली, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, ऋषिकेश और देहरादून में धरना प्रदर्शन किया जाएगा. पहले क्रमिक अनशन किया जाएगा, फिर आमरण अनशन किया जाएगा. प्रदेश सरकार का पुतला भी फूंका जाएगा. इसके बाद 16 सितंबर को सीएम आवास कूच किया जाएगा, जबकि पिछले दो महीने से तीर्थपुरोहित और हक-हकूकधारियों का धरना प्रदर्शन जारी है.

देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा फिर गरमाया.

एक साल पुराना आदेश बोतल से निकला बाहर: हालांकि, केदारनाथ धाम परिसर में धरना दे रहे तीर्थ पुरोहितों को हटाने के लिए करीब एक साल पुराने आदेश का जिन्न भी बोतल से बाहर आ गया है. उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के विरोध में पिछले 2 महीने से तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी, केदारनाथ धाम में धरना दे रहे हैं.

हालांकि, अभी तक धरना दे रहे तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों को मंदिर परिसर में धरना देने से मना नहीं किया गया था, लेकिन बीते सोमवार की देर शाम पुलिस प्रशासन ने एक आदेश की कॉपी को दिखाकर केदारनाथ परिसर में धरना न देने की बात कही, जिससे तीर्थ पुरोहितों में आक्रोश और बढ़ गया. इसके बाद से ही केदारनाथ धाम में तनातनी का माहौल है. दरअसल, यह आदेश करीब एक साल पुराना है जो 16 सितंबर 2020 को देवस्थानम बोर्ड के सीईओ की ओर से जारी किया गया था.

ये भी पढ़ेंः देवस्थानम बोर्ड को लेकर पुरोहितों ने BJP की प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

मंदिर से 200 मीटर की परिधि में नहीं कर सकते प्रदर्शन: उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के सीईओ रविनाथ रमन की ओर से 16 सितंबर 2020 को जारी किए गए आदेश के अनुसार, केदारनाथ देवस्थानम के 200 मीटर की परिधि और वैलीब्रिज से मंदिर तक के मुख्य पहुंच मार्ग में किसी भी तरह के धरना/प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया गया था.

यही नहीं, जारी आदेश में इस बात का भी जिक्र किया गया था कि अगर कोई इस आदेश का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ धारा 37 के तहत कार्रवाई की जाएगी. हालांकि, करीब एक साल पहले जारी इस आदेश को लेकर पुलिस प्रशासन, केदारनाथ धाम में धरना दे रहे तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों को हटाने की कोशिश कर रहा है.

आर पार की लड़ाई का ऐलान: लंबे समय से धरना दे रहे तीर्थ पुरोहितों ने आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है. केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित संतोष त्रिवेदी ने बताया कि सोमवार को देर शाम पुलिस प्रशासन की ओर से केदारनाथ मंदिर परिसर में धरना प्रदर्शन न किए जाने के आदेश के बाद से तीर्थ पुरोहित आक्रोशित हैं. पिछले साल के आदेश को आधार बनाकर केदारनाथ धाम में धरना-प्रदर्शन रोकने का दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन वो किसी दबाव में नहीं आएंगे, साथ ही आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं.

गठित नहीं हो पाई हाई पावर कमेटी: वहीं, 16 जुलाई को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की पहली बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारियों की समस्याओं के निराकरण के लिए हाई पावर कमेटी का गठन किया जाएगा. मुख्यमंत्री धामी की इस घोषणा को काफी दिन बीत गए हैं, लेकिन कमेटी का गठन नहीं हो पाया और न ही इस बाबत कोई आदेश जारी हुआ है.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड : चारधाम के गर्भगृह से नहीं होगी पूजा की LIVE स्ट्रीमिंग

मुख्यमंत्री का गोलमोल जवाब: बोर्ड के बढ़ते विरोध को देखते हुए भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गोलमोल जवाब दिया है. उनका कहना है कि देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में जो तीर्थ पुरोहित, हक-हकूकधारी समेत पुजारी आते हैं, उन सभी की बात को राज्य सरकार सुनेगी. उसके बाद निर्णय लेगी. उन्होंने कहा कि इनकी समस्याओं के निराकरण के लिए हाई पावर कमेटी बनाई गई है जो जल्द ही काम करना शुरू कर देगी. लिहाजा सबकी बात सुनने के बाद, उनकी परेशानियों का निराकरण किया जाएगा, तब तक के लिए बोर्ड का काम यथावत रखते हुए रोक रहे हैं.

क्यों शुरू हुई बोर्ड बनाने की कवायद: बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की अपनी एक अलग मान्यता है. हर साल इन दोनों धामों में ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. ये दोनों ही धाम पर्वतीय क्षेत्रों में मौजूद हैं जहां पर सुख-सुविधाएं विकसित करना पहाड़ जितना चुनौतीपूर्ण है. क्योंकि पहले से ही बदरीनाथ और केदारनाथ धाम के लिए मौजूद बीकेटीसी (बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति) के माध्यम से तमाम व्यवस्थाएं मुकम्मल नहीं हो पा रही थीं.

इसके अतिरिक्त गंगोत्री धाम के लिए अलग गंगोत्री मंदिर समिति और यमुनोत्री धाम के लिए अलग यमुनोत्री मंदिर समिति कार्य कर रहे थे. इन सभी चीजों को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में यह निर्णय लिया कि वैष्णो देवी में मौजूद श्राइन बोर्ड की तर्ज पर उत्तराखंड में भी एक बोर्ड का गठन किया जाएगा, जिसके अधीन सभी मुख्य मंदिरों को शामिल किया जाएगा.

बोर्ड गठन को लेकर कब-कब, क्या हुआ: साल 2017 में बीजेपी सत्ता में आई. इसके बाद वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी बोर्ड की तर्ज पर यहां भी चारधाम के लिए बोर्ड बनाने की कसरत हुई. इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने साल 2019 में पर्यटन विभाग को एक मसौदा तैयार करने के निर्देश दिए, जिसमें उन्होंने चारधाम समेत अन्य मंदिरों को शामिल करने की बात कही.

बोर्ड का मसौदा तैयार होने के बाद फिर 27 नवंबर 2019 को सचिवालय में त्रिवेंद्र की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में काफी चर्चा की गयी और मंत्रिमंडल ने बोर्ड बनाने पर सहमति जता दी. जम्मू-कश्मीर में बने श्राइन एक्ट की तर्ज पर उत्तराखंड चारधाम बोर्ड विधेयक-2019 को मंजूरी दे दी गई. इसके बाद फिर इस विधेयक को दिसंबर 2019 में हुए अनुपूरक बजट के दौरान 5 दिसंबर को सदन में पारित कर दिया गया. 14 जनवरी 2020 को देवस्थानम विधेयक को राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद ये एक्ट के रूप में प्रभावी हो गया. 24 फरवरी 2020 को चारधाम देवस्थानम बोर्ड का सीईओ नियुक्त किया गया था. बोर्ड के सीईओ पद पर मंडलायुक्त रविनाथ रमन को जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है.

ये भी पढ़ेंः देवस्थानम बोर्ड बनाने की मंशा, तीर्थ पुरोहितों का विवाद, जानें क्या है कहानी

बोर्ड को लेकर क्या थी सरकार की मंशा: उत्तराखंड की विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने और यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा देने के साथ ही प्रदेश के अन्य मंदिरों को भी एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर राज्य सरकार ने उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया.

राज्य सरकार का कहना है कि चारधाम देवस्थानम अधिनियम, गंगोत्री-यमुनोत्री-बदरीनाथ-केदारनाथ और उनके आसपास के मंदिरों की व्यवस्था में सुधार के लिए है. जिसका मकसद ये है कि यहां आने वाले यात्रियों का ठीक से स्वागत हो और उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल सकें. इसके साथ ही बोर्ड भविष्य की जरूरतों को भी पूरा कर सकेगा. बोर्ड में प्रदेश के मुख्यमंत्री को अध्यक्ष, धर्मस्व मंत्री को बोर्ड का उपाध्यक्ष और सम्बंधित क्षेत्रों के सांसद, विधायक और प्रमुख दानकर्ताओं को बोर्ड में सदस्य के रूप में शामिल किया गया है.

देहरादून: उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड विवाद थम नहीं रहा है. चारों धामों से जुड़े तमाम तीर्थपुरोहित और हक-हकूकधारियों ने न सिर्फ भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है, बल्कि 17 अगस्त से प्रदेश स्तरीय आंदोलन का भी ऐलान कर दिया है. ऐसे में देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का विरोध कर रहे तीर्थपुरोहित और हक-हकूकधारियों को मनाना राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है.

17 अगस्त से शुरू होगा प्रदेश स्तरीय आंदोलन: उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग किए जाने की मांग को लेकर चारधाम तीर्थपुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत समिति ने 17 अगस्त से प्रदेश स्तरीय आंदोलन का ऐलान किया है. 17 अगस्त के बाद चारधाम समेत ऊखीमठ, खरसाली, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, ऋषिकेश और देहरादून में धरना प्रदर्शन किया जाएगा. पहले क्रमिक अनशन किया जाएगा, फिर आमरण अनशन किया जाएगा. प्रदेश सरकार का पुतला भी फूंका जाएगा. इसके बाद 16 सितंबर को सीएम आवास कूच किया जाएगा, जबकि पिछले दो महीने से तीर्थपुरोहित और हक-हकूकधारियों का धरना प्रदर्शन जारी है.

देवस्थानम बोर्ड का मुद्दा फिर गरमाया.

एक साल पुराना आदेश बोतल से निकला बाहर: हालांकि, केदारनाथ धाम परिसर में धरना दे रहे तीर्थ पुरोहितों को हटाने के लिए करीब एक साल पुराने आदेश का जिन्न भी बोतल से बाहर आ गया है. उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के विरोध में पिछले 2 महीने से तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी, केदारनाथ धाम में धरना दे रहे हैं.

हालांकि, अभी तक धरना दे रहे तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों को मंदिर परिसर में धरना देने से मना नहीं किया गया था, लेकिन बीते सोमवार की देर शाम पुलिस प्रशासन ने एक आदेश की कॉपी को दिखाकर केदारनाथ परिसर में धरना न देने की बात कही, जिससे तीर्थ पुरोहितों में आक्रोश और बढ़ गया. इसके बाद से ही केदारनाथ धाम में तनातनी का माहौल है. दरअसल, यह आदेश करीब एक साल पुराना है जो 16 सितंबर 2020 को देवस्थानम बोर्ड के सीईओ की ओर से जारी किया गया था.

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मंदिर से 200 मीटर की परिधि में नहीं कर सकते प्रदर्शन: उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के सीईओ रविनाथ रमन की ओर से 16 सितंबर 2020 को जारी किए गए आदेश के अनुसार, केदारनाथ देवस्थानम के 200 मीटर की परिधि और वैलीब्रिज से मंदिर तक के मुख्य पहुंच मार्ग में किसी भी तरह के धरना/प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया गया था.

यही नहीं, जारी आदेश में इस बात का भी जिक्र किया गया था कि अगर कोई इस आदेश का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ धारा 37 के तहत कार्रवाई की जाएगी. हालांकि, करीब एक साल पहले जारी इस आदेश को लेकर पुलिस प्रशासन, केदारनाथ धाम में धरना दे रहे तीर्थ पुरोहितों और हक-हकूकधारियों को हटाने की कोशिश कर रहा है.

आर पार की लड़ाई का ऐलान: लंबे समय से धरना दे रहे तीर्थ पुरोहितों ने आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है. केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित संतोष त्रिवेदी ने बताया कि सोमवार को देर शाम पुलिस प्रशासन की ओर से केदारनाथ मंदिर परिसर में धरना प्रदर्शन न किए जाने के आदेश के बाद से तीर्थ पुरोहित आक्रोशित हैं. पिछले साल के आदेश को आधार बनाकर केदारनाथ धाम में धरना-प्रदर्शन रोकने का दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन वो किसी दबाव में नहीं आएंगे, साथ ही आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं.

गठित नहीं हो पाई हाई पावर कमेटी: वहीं, 16 जुलाई को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की पहली बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारियों की समस्याओं के निराकरण के लिए हाई पावर कमेटी का गठन किया जाएगा. मुख्यमंत्री धामी की इस घोषणा को काफी दिन बीत गए हैं, लेकिन कमेटी का गठन नहीं हो पाया और न ही इस बाबत कोई आदेश जारी हुआ है.

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मुख्यमंत्री का गोलमोल जवाब: बोर्ड के बढ़ते विरोध को देखते हुए भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गोलमोल जवाब दिया है. उनका कहना है कि देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में जो तीर्थ पुरोहित, हक-हकूकधारी समेत पुजारी आते हैं, उन सभी की बात को राज्य सरकार सुनेगी. उसके बाद निर्णय लेगी. उन्होंने कहा कि इनकी समस्याओं के निराकरण के लिए हाई पावर कमेटी बनाई गई है जो जल्द ही काम करना शुरू कर देगी. लिहाजा सबकी बात सुनने के बाद, उनकी परेशानियों का निराकरण किया जाएगा, तब तक के लिए बोर्ड का काम यथावत रखते हुए रोक रहे हैं.

क्यों शुरू हुई बोर्ड बनाने की कवायद: बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की अपनी एक अलग मान्यता है. हर साल इन दोनों धामों में ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. ये दोनों ही धाम पर्वतीय क्षेत्रों में मौजूद हैं जहां पर सुख-सुविधाएं विकसित करना पहाड़ जितना चुनौतीपूर्ण है. क्योंकि पहले से ही बदरीनाथ और केदारनाथ धाम के लिए मौजूद बीकेटीसी (बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति) के माध्यम से तमाम व्यवस्थाएं मुकम्मल नहीं हो पा रही थीं.

इसके अतिरिक्त गंगोत्री धाम के लिए अलग गंगोत्री मंदिर समिति और यमुनोत्री धाम के लिए अलग यमुनोत्री मंदिर समिति कार्य कर रहे थे. इन सभी चीजों को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में यह निर्णय लिया कि वैष्णो देवी में मौजूद श्राइन बोर्ड की तर्ज पर उत्तराखंड में भी एक बोर्ड का गठन किया जाएगा, जिसके अधीन सभी मुख्य मंदिरों को शामिल किया जाएगा.

बोर्ड गठन को लेकर कब-कब, क्या हुआ: साल 2017 में बीजेपी सत्ता में आई. इसके बाद वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी बोर्ड की तर्ज पर यहां भी चारधाम के लिए बोर्ड बनाने की कसरत हुई. इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने साल 2019 में पर्यटन विभाग को एक मसौदा तैयार करने के निर्देश दिए, जिसमें उन्होंने चारधाम समेत अन्य मंदिरों को शामिल करने की बात कही.

बोर्ड का मसौदा तैयार होने के बाद फिर 27 नवंबर 2019 को सचिवालय में त्रिवेंद्र की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में काफी चर्चा की गयी और मंत्रिमंडल ने बोर्ड बनाने पर सहमति जता दी. जम्मू-कश्मीर में बने श्राइन एक्ट की तर्ज पर उत्तराखंड चारधाम बोर्ड विधेयक-2019 को मंजूरी दे दी गई. इसके बाद फिर इस विधेयक को दिसंबर 2019 में हुए अनुपूरक बजट के दौरान 5 दिसंबर को सदन में पारित कर दिया गया. 14 जनवरी 2020 को देवस्थानम विधेयक को राजभवन से मंजूरी मिलने के बाद ये एक्ट के रूप में प्रभावी हो गया. 24 फरवरी 2020 को चारधाम देवस्थानम बोर्ड का सीईओ नियुक्त किया गया था. बोर्ड के सीईओ पद पर मंडलायुक्त रविनाथ रमन को जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है.

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बोर्ड को लेकर क्या थी सरकार की मंशा: उत्तराखंड की विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने और यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा देने के साथ ही प्रदेश के अन्य मंदिरों को भी एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर राज्य सरकार ने उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया.

राज्य सरकार का कहना है कि चारधाम देवस्थानम अधिनियम, गंगोत्री-यमुनोत्री-बदरीनाथ-केदारनाथ और उनके आसपास के मंदिरों की व्यवस्था में सुधार के लिए है. जिसका मकसद ये है कि यहां आने वाले यात्रियों का ठीक से स्वागत हो और उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल सकें. इसके साथ ही बोर्ड भविष्य की जरूरतों को भी पूरा कर सकेगा. बोर्ड में प्रदेश के मुख्यमंत्री को अध्यक्ष, धर्मस्व मंत्री को बोर्ड का उपाध्यक्ष और सम्बंधित क्षेत्रों के सांसद, विधायक और प्रमुख दानकर्ताओं को बोर्ड में सदस्य के रूप में शामिल किया गया है.

Last Updated : Aug 11, 2021, 7:26 PM IST
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