देहरादून: टपकेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं की गहरी आस्था से जुड़ा हुआ है. यहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. पौराणिक मंदिर होने के साथ ही ये क्षेत्र अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए भी जाना जाता है. जहां लोग आध्यात्म को महसूस करने दूर-दूर से पहुंचते हैं.
राजधानी देहरादून के घंटाघर से महादेव शिव का यह पौराणिक मंदिर लगभग 5.5 किलोमीटर की दूरी पर है. इस मंदिर में पहुंचकर आपको एक अलग ही शांति का एहसास होगा. दरअसल, यह मंदिर टोंस नदी के किनारे हरे-भरे जंगलों के बीच मौजूद है. इस पौराणिक मंदिर का इतिहास काफी रोचक है. मंदिर के मुख्य पुरोहित भारत गिरी महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि यह मंदिर आदि अनादि काल से यहां स्थित है ऐसा माना जाता है. यह तीर्थस्थल गुरू द्रोणाचार्य की तपस्थली रह चुकी है.
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इसी स्थान पर द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने भी दूध के लिए भगवान शिव की तपस्या की थी. जिसके बाद महादेव ने प्रसन्न होकर अश्वत्थामा को दिव्य दर्शन दिए थे. बाद से ही इस गुफा की गौ के थन आकार की शिलाओं से दूध की बूंद टपकनी शुरू हो गई. अश्वत्थामा को दर्शन देने के बाद भगवान शिव यहां लिंग के रूप में विराजमान हो गए. माना जाता है कि जैसे-जैसे धरती पर पाप बढ़ता गया वैसे-वैसे यह दूध की बूंदें पानी में तब्दील हो गई. जिन्हें साफ देखा जा सकता है. मंदिर में श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ के साथ ही अन्य देवी-देवताओं के दर्शन भी कर सकते हैं.
श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए साल 1994 में इस मंदिर में मौजूद एक प्राकृतिक गुफा को माता वैष्णो देवी गुफा के तौर पर विकसित किया गया. इस गुफा में प्रवेश कर आपको वही आध्यात्मिक शांति का एहसास होगा जो एहसास आपको जम्मू के कटरा स्थित माता वैष्णो देवी दरबार में होता है. वहीं मौजूदा समय में टपकेश्वर महादेव का यह पौराणिक मंदिर एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल बन चुका है. जहां स्थानीय ही नहीं देश के अन्य प्रांतों से भी श्रद्धालु शीष नवाने आते हैं.