देहरादून: बदलते दौर के साथ लोगों की जिंदगी और नजरिया भी बदलने लगा है. वहीं महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में पंरपराओं की बेड़ियों को तोड़कर पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं. यही कारण है कि आज हर क्षेत्र में महिलाएं उम्दा काम कर मुकाम सर्वोच्च मुकाम हासिल कर रही है. साथ ही समाज को आईना दिखाने का काम कर रही है. इसी कड़ी में एक नाम ज्योति शाह का भी है, जो छोटे पहाड़ी शहर से अपनी मेहनत और लगन के बल पर स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में टेबल टेनिस की कोच हैं.
मूल रूप से नैनीताल की रहने वाली ज्योति शाह वर्तमान में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में टेबल टेनिस की कोच हैं. ईटीवी भारत से बातचीत में ज्योति शाह ने बताया कि उन्हें बचपन से ही उन्हें टेबल टेनिस खेलने का शौक था. 1975 के दौर में टीवी नहीं हुआ करता था, तो उनका एक ग्रुप क्लब में जाकर टेनिश खेलते थे. इस दौरान कई लोगों ने उनके परिजनों को उन्हें बाहर भेजने पर मना किया साथ ही कई तरह के सवाल भी उठाये, लेकिन उनके इस शौक को करियर में बदलने में उनकी मां का सबसे बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने बताया कि 1985-86 में एनआईएस पटियाला में टेबल टेनिश में डिप्लोमा किया. उस दौरान कई लोगों की तानों और व्यंग्यों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी मां ने हौसला कम होने नहीं दिया. साथ ही बताती है कि उनके इस मुकाम तक पहुंचाने में मां का अहम रोल रहा है.
ज्योति ने बताया कि वो इंटरनेशनल अंपायरिंग कोर्स करने के बाद 2008 में इंटरनेशनल अंपायरिंग बनी. इसी के बदौलत आगे बढ़ती रही और एक पहचान बना पाई है. साथ ही बताया कि उनकी पहली जर्नी ग्वाटेमाला की थी. जहां पर उन्होंने बच्चों को कई पदक भी दिलाये हैं.
ज्योति बताती है कि खेल हो या दूसरा कोई भी क्षेत्र हो हर क्षेत्र में महिलाएं आज पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है. महिलाओं को अपने कार्यों के साथ घर की जिम्मेदारी भी संभालना पड़ती है. साथ ही बताती है कि ऐसे में महिलाओं को घरों में बैठ कर अपने सपनों को नहीं भूलना चाहिए.
ज्योति शाह का कहना है कि एक खिलाड़ी कभी भी पढ़ाई-लिखाई में पीछे नहीं होता है, बल्कि खेल तो एक ऐसी चीज है, जो बच्चे के लिए जरूरी होता है. उनका कहना है कि खेलने-कूदने से शरीर स्वस्थ रहने के साथ अलग ही ऊर्जा और ताजगी का एहसास भी कराता है.