देहरादून: लॉकडाउन के बीच पढ़ाई को सुचारू रूप से चलाने के लिए ऑनलाइन क्लासेस ही एक मात्र जरिया बनी हुई है. देशभर में यू तो ऑनलाइन क्लासेस का छात्रों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल पा रहा है, लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता के चलते उत्तराखंड में हालात इससे कुछ जुदा हैं. ईटीवी भारत ने ऑनलाइन क्लासेस की सफलता के दावे और हकीकत का रियलिटी चैक किया है, ताकि सरकार और शिक्षा विभाग को जमीनी हकीकत दिखाई जा सकें.
मुख्यमंत्री आवास/कार्यालय और शिक्षा महकमा ऑनलाइन सिस्टम के भरोसे राज्य में बच्चों की पढ़ाई करवाने का दावा कर रहा है. कई बार भरोसा दिलाया जाता है कि करीब 60 प्रतिशत बच्चे इसका पूरी तरह से फायदा ले रहे हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पहाड़ी जिले ही नहीं बल्कि मैदानी जिले भी ऑनलाइन क्लासेस में खराब प्रदर्शन कर रहे हैं.
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ईटीवी भारत ने ऑनलाइन कक्षाओं की हकीकत को जानने के लिए मुख्यमंत्री आवास के आस-पास के क्षेत्रों में बच्चों और अभिभावकों से संपर्क करने की कोशिश की. ईटीवी भारत की टीम ने सीएम आवास के सबसे पास के गांव गजवाड़ी और टटोला समेत आसपास के इलाकों का दौरा किया और ऑनलाइन क्लासेस की हकीकत जानी. लेकिन यहां छात्रों और उनके अभिभावकों ने जो हालात बताए उसके सुनकर को यही लगाता है कि सरकार के सभी दावें और कोशिश सिर्फ हवा हवाई है.
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इन गांवों में छात्रों के सामने ऑनलाइन क्लासेस किसी पहाड़ जैसी मुश्किल से कम नहीं है. ऑनलाइन क्लासेस में यहा सिर्फ नेटवर्क ही बाधा नहीं बन रहा है, बल्कि स्मार्ट फोन का न होना ही एक बड़ी समस्या है. इसके आलावा ऑनलाइन क्लास को एप्लिकेशन के जरिये ऑपरेट करना भी अभिभावकों के लिए काफी मुश्किल है. ऑनलाइन क्लास में बच्चों को टीचर की बातें न समझ आना भी बड़ी समस्या है. कुछ जगह तकनीकी समस्या भी आ रही है. एक साथ कई बच्चों के जुड़े होने से टीचर के सामने अपनी समस्या रख पाना भी बेहद मुश्किल है. ऐसे कई समस्या है, जो ऑनलाइन क्लासेस में उनकी बांधा बन रही है. जिसका फिलहाल कोई हल नहीं निकाला गया है.
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ईटीवी भारत की टीम कुछ दूसरी जगहों पर भी गयी और लोगों से बात की. यहां भी बच्चों ने कहा कि कमजोर सिग्नल के साथ पढ़ाई करना मुश्किल हो गया है. उन्हें तो कभी कभी सिग्नल ठीक होने पर मौका भी मिल जाता है, लेकिन उनके कई दोस्त जो पहाड़ी जिलों में रहते हैं वो तो बिल्कुल भी क्लास में नहीं जुड़ पाते हैं, जबकि शिक्षकों की तरफ से लगातार क्लास में उपस्थित होने का दबाव बनाया जाता है. स्थानीय लोग कहते हैं कि उनका गांव सीएम आवास से बेहद नजदीक है तब ये हालात है, बाकी पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों के वर्चुअल क्लासेस की क्या स्थिति होगी इसका साफ अंदाजा लगा सकते हैं.