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गोरखालियों ने अंग्रेजों के इस युद्ध में छुड़ा दिए थे छक्के, खुखरी से दिया था बंदूक का जवाब

उत्तराखंड केवल देवभूमि नहीं बल्कि, वीरभूमि के रूप में भी जाना जाता है. जिसकी एक शौर्य गाथा आज से तकरीबन 200 साल पहले देहरादून में लिखी गयी थी. जहां गोरखा और अग्रेंजों के बीच एक भीषण युद्ध हुआ.

गोरखा सैनिकों ने
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Published : Apr 19, 2019, 4:45 PM IST

Updated : Apr 19, 2019, 11:55 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड केवल देवभूमि नहीं बल्कि, वीरभूमि के रूप में भी जाना जाता है. जिसकी एक शौर्य गाथा आज से तकरीबन 200 साल पहले देहरादून में लिखी गयी थी. जहां गोरखा और अग्रेंजो के बीच एक भीषण युद्ध हुआ.

इस युद्ध में गोरखा सैनिकों ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के

उत्तराखंड के इतिहास में अंग्रेजों और गोरखाओं के बीच एक भीषण युद्ध सन् 1814 में अक्टूबर और नवंबर माह के बीच हुआ था. जो देहरादून के नालापानी स्थित खलंगा पहाड़ी पर हुआ था. इस लड़ाई में 600 गोरखाली, गढ़वाली, कुमांऊनी सैनिकों के साथ औरतों और बच्चों ने मिलकर अंग्रेजी सेना का जमकर मुकाबला किया था.

पढ़ें- देवभूमि में हनुमान जी का ये मंदिर है बेहद खास, 2025 तक हो चुकी है भंडारे की एडवांस बुकिंग

खलंगा युद्ध के दौरान अंग्रेज उस समय के आधुनिक हथियारों से लैस थे, लेकिन गोरखा सेना के पास हथियार के नाम पर केवल खुखरी थी. खलंगा पहाड़ी पर हुए गोरखा सेना और अंग्रेजों के बीच युद्ध में न केवल गोरखा सेना ने अंग्रेजी सेना के लगातार चार आक्रमणों को विफल किया था बल्कि उनके सेनानायक जनरल जिलेप्सी को भी मार गिराया था.

पढ़ें- ​​​​​​​वन विभाग और रेलवे की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे हाथी, मौत का आंकड़ा देख चौंक जाएंगे आप

सेनानायक बलभद्र के नेतृत्व में सभी लड़ रहे थे. अंत में गोरखा सेना ने राशन और पानी की कमी के चलते खलंगा किला छोड़ कर नहान की ओर चले गए. क्योंकि उनके ज्यादातर सैनिकों के घायल होने के कारण विषम परिस्थिति बन गई थीं. जिससे 30 नवंबर 1814 की सुबह 70 गोरखा सैनिकों ने इस प्रकार एक लंबी लड़ाई लड़ी. हालांकि बाद में अंग्रेजों ने खलंगा किले को अपने कब्जे में कर लिया था. यह युद्ध सन् 1814 में अक्टूबर से नवंबर के बीच पूरे महीने सात अलग-अलग चरणों में हुआ. खलंगा युद्ध आज देहरादून के इतिहास में दर्ज है.

पढ़ें- ​​​​​​​नए कलेवर में नजर आ रहा धर्मनगरी का बिरला टावर, लोगों को अपनी ओर कर रहा आकर्षित

बहुत बड़ा अंतर था गोरखा सेना और अंग्रेजी सेना के बीच में-

गोरखा सेना

  • सेनानायक- बलभद्र सिंह थापा
  • सैन्य बल - गोरखा सैनिक 300
  • गढ़वाली कुमाऊंनी 200
  • औरत बच्चे 100- कुल मिलाकर 600 लोग
  • हथियार - खुखरी, धनुष बाण

अंग्रेजी सेना

  • सेनानायक- मेजर जनरल सर रॉबर्ट रोला, जिलेप्सी, केसीबी
  • सैन्य बल- इन्फेंट्री 450 नेटिभ केभलरी
  • रेजीमेंट-1,
  • ब्रिजिंग फोर्स-900
  • न. 53 रेजिमेंट-1
  • न. 8 ड्रेगन-1
  • नेटिव इन्फेंट्री -3000
  • रिइंफोर्स: नेटिभ बटालियन-1
  • होर्स आर्टिलरी- 2 ट्रम्प, पाइनर्स कंपनी 140
  • रेगुलर सैनिक 6668
  • हथियार - 6 पाउडर तोप- 8
  • 12 पाउडर तोप-2
  • 18 पाउडर तोप - 4 रिजर्व
  • 8 इंच मोटर -2
  • मोटर 4

देहरादून: उत्तराखंड केवल देवभूमि नहीं बल्कि, वीरभूमि के रूप में भी जाना जाता है. जिसकी एक शौर्य गाथा आज से तकरीबन 200 साल पहले देहरादून में लिखी गयी थी. जहां गोरखा और अग्रेंजो के बीच एक भीषण युद्ध हुआ.

इस युद्ध में गोरखा सैनिकों ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के

उत्तराखंड के इतिहास में अंग्रेजों और गोरखाओं के बीच एक भीषण युद्ध सन् 1814 में अक्टूबर और नवंबर माह के बीच हुआ था. जो देहरादून के नालापानी स्थित खलंगा पहाड़ी पर हुआ था. इस लड़ाई में 600 गोरखाली, गढ़वाली, कुमांऊनी सैनिकों के साथ औरतों और बच्चों ने मिलकर अंग्रेजी सेना का जमकर मुकाबला किया था.

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खलंगा युद्ध के दौरान अंग्रेज उस समय के आधुनिक हथियारों से लैस थे, लेकिन गोरखा सेना के पास हथियार के नाम पर केवल खुखरी थी. खलंगा पहाड़ी पर हुए गोरखा सेना और अंग्रेजों के बीच युद्ध में न केवल गोरखा सेना ने अंग्रेजी सेना के लगातार चार आक्रमणों को विफल किया था बल्कि उनके सेनानायक जनरल जिलेप्सी को भी मार गिराया था.

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सेनानायक बलभद्र के नेतृत्व में सभी लड़ रहे थे. अंत में गोरखा सेना ने राशन और पानी की कमी के चलते खलंगा किला छोड़ कर नहान की ओर चले गए. क्योंकि उनके ज्यादातर सैनिकों के घायल होने के कारण विषम परिस्थिति बन गई थीं. जिससे 30 नवंबर 1814 की सुबह 70 गोरखा सैनिकों ने इस प्रकार एक लंबी लड़ाई लड़ी. हालांकि बाद में अंग्रेजों ने खलंगा किले को अपने कब्जे में कर लिया था. यह युद्ध सन् 1814 में अक्टूबर से नवंबर के बीच पूरे महीने सात अलग-अलग चरणों में हुआ. खलंगा युद्ध आज देहरादून के इतिहास में दर्ज है.

पढ़ें- ​​​​​​​नए कलेवर में नजर आ रहा धर्मनगरी का बिरला टावर, लोगों को अपनी ओर कर रहा आकर्षित

बहुत बड़ा अंतर था गोरखा सेना और अंग्रेजी सेना के बीच में-

गोरखा सेना

  • सेनानायक- बलभद्र सिंह थापा
  • सैन्य बल - गोरखा सैनिक 300
  • गढ़वाली कुमाऊंनी 200
  • औरत बच्चे 100- कुल मिलाकर 600 लोग
  • हथियार - खुखरी, धनुष बाण

अंग्रेजी सेना

  • सेनानायक- मेजर जनरल सर रॉबर्ट रोला, जिलेप्सी, केसीबी
  • सैन्य बल- इन्फेंट्री 450 नेटिभ केभलरी
  • रेजीमेंट-1,
  • ब्रिजिंग फोर्स-900
  • न. 53 रेजिमेंट-1
  • न. 8 ड्रेगन-1
  • नेटिव इन्फेंट्री -3000
  • रिइंफोर्स: नेटिभ बटालियन-1
  • होर्स आर्टिलरी- 2 ट्रम्प, पाइनर्स कंपनी 140
  • रेगुलर सैनिक 6668
  • हथियार - 6 पाउडर तोप- 8
  • 12 पाउडर तोप-2
  • 18 पाउडर तोप - 4 रिजर्व
  • 8 इंच मोटर -2
  • मोटर 4
Intro:खलंगा स्मारक- वर्ल्ड हैरीटेज स्पेशल


एंकर- आज वर्ल्ड हेरिटेज दिवस के मौके पर Etv भारत आपको देहरादून की एक ऐसी धरोहर के बारे में बताने जा रहे हैं जो की देहरादून के अस्तित्व को हमेशा एक अलग पहचान देता आया है। देवभूमि उत्तराखंड केवल देवभूमि नही बल्कि वीरभूमि के रूप में रही है जिसकी एक शौर्य गाथा आज से तकरीबन 200 साल पहले देहरादून में लिखी गयी थी।


Body: उत्तराखंड के इतिहास में अंग्रेजों और गोरखाओं के बीच एक भीषण युद्ध सन 1814 के अक्टूबर और नवंबर माह के बीच देहरादून के नालापानी स्थित खलंगा पहाड़ी पर हुआ था। इस लड़ाई में 600 गोरखाली, गढ़वाली, कुमाऊनी सैनिकों के साथ औरतों और बच्चों ने मिलकर अंग्रेज सेना का जमकर मुकाबला किया था। खलंगा युद्ध के दौरान अंग्रेज उस समय के सभी आधुनिक हथियारों से लैस थे लेकिन गोरखा सेना के पास हथियार के नाम पर केवल खुंकरी थी। खलंगा पहाड़ी पर हुए गोरखा सेना और अंग्रेजों के बीच युद्ध में न केवल गोरखा सेना ने अंग्रेजी सेना के लगता चार आक्रमणों को विफल किया था बल्कि उनके सेनानायक जनरल जिलेप्सी को भी मार गिराया था।
आखिरकार सेनानायक बलभद्र के नेतृत्व में लड़ रहे गोरखा सेना ने राशन और पानी की कमी के चलते और ज्यादातर सैनिकों के घायल होने के कारण विषम परिस्थिति में 30 नवंबर 1814 की सुबह 70 गोरखा सैनिकों ने खलंगा किला छोड़ कर नहान की ओर चले गए और इस प्रकार एक लंबी लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने खलंगा किले को अपने कब्जे में कर लिया था।

बहुत बड़ा अंतर था गोरखा सेना और अंग्रेज सेना के बीच में---

गोरखा सेना--
सेनानायक- बलभद्र सिंह थापा
सैन्य बल - गोरखा सैनिक 300
गढ़वाली कुमाऊनी 200
औरत बच्चे 100- कुल मिलाकर 600 लोग
हथियार - खूंकरी, धनुष बाण, घुएन्त्रे

अंग्रेज सेना--
सेनानायक- मेजर जनरल सर रॉबर्ट रोला, जिलेप्सी, केसीबी
सैन्य बल- इन्फेंट्री 450 नेटिभ केभलरी
रेजीमेंट-1,
ब्रिजिंग फोर्स-900
न. 53 रेजिमेंट-1
न. 8 ड्रेगन-1
नेटिव इन्फेंट्री -3000
रिइंफोर्स: नेटिभ बटालियन-1
साथ में इन्फेंट्री कंपनी-2
होर्स आर्टिलरी-2 ट्रम्प, पाइनर्स कंपनी 140
रेगुलर सैनिक 6668
हथियार - 6 पाउंडर तोप-8
12 पाउंडर तोप-2
18 पाउडर तोप -4 रिजर्व
8 इंच मोटर -2
मोटर 4


अक्टूबर 1814 से नवंबर 1814 के बीच पूरे महीने सात अलग-अलग चरणों में हुआ खलंगा युद्ध आज देहरादून के इतिहास में दर्ज है वही खनन का स्मारक आज देहरादून के की कुछ प्रमुख करोड़ों में से एक है ऐसे में वर्ल्ड हेरिटेज दिवस के मौके पर गंगा खनन का युद्ध में गोरखा सिपाहियों के शौर्य और देहरादून के इतिहास को याद करते हुए गोरखा समाज आज भी इस लड़ाई से प्रेरणा लेता है।


Conclusion:
Last Updated : Apr 19, 2019, 11:55 PM IST
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