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देश के लिए 24 साल की उम्र में फांसी पर लटके थे शहीद केसरी चंद, अपने शौर्य से अंग्रेजों को किया था पस्त

वीर शहीद केसरी चंद, नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नारे 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रेरित होकर आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे. आजाद हिंद फौज की ओर से लड़ते हुए इंफाल के मोर्चे पर उन्हें ब्रिटिश फौजौं ने पकड़ लिया था. जिसके बाद उन्हें दिल्ली जिला जेल में रखा गया. 3 फरवरी 1945 को जनरल सीजे आचिनलेक ने उन्हें मृत्यु दंड की सजा सुजाई. 24 साल 6 महीने की अल्पायु में केसरी चंद को 3 मई 1945 को दिल्ली जिला जेल में फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया.

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Published : May 3, 2019, 5:44 PM IST

Updated : May 3, 2019, 8:45 PM IST

story of martyr veer shaheed kesri chand in chakrata

विकासनगरः देवभूमि उत्तराखंड शौर्य और बलिदान की अनेक गाथाएं समेटे हुए हैं. आजादी की लड़ाई से लेकर सरहद की सुरक्षा तक कई जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है. इन्हीं में देश को आजादी दिलाने में अमर शहीद वीर केसरी चंद का नाम भी शामिल है. जो भारत मां को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए 3 मई 1945 को 24 साल की अल्पायु में ही फांसी पर झूल गये थे.


बता दें कि देहरादून जिले के चकराता तहसील के रामताल गार्डन में हर साल तीन मई को केसरी चंद मेले का आयोजन होता है. इसी क्रम में शुक्रवार को रामताल गार्डन में विशाल मेले का आयोजन किया गया. हजारों की संख्या में लोग मेले में पहुंचे. इस दौरान मेले में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. मेले में पहुंले हजारों लोगों ने अमर शहीद वीर केसरी चंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि देकर उनकी शहादत को याद किया.

शहीद केसरी चंद की वीर गाथा


अमर शहीद वीर केसरी चंद की बलिदान की कहानी
अमर शहीद वीर केसरी चंद देहरादून जिले के पिछड़े पर्वतीय क्षेत्र जौनसार बावर के क्यावा गांव में 1 नवंबर 1920 को पैदा हुए थे. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा विकासनगर में पूरी हुई. जिसके बाद डीएवी कॉलेज से दसवीं और बारहवीं की शिक्षा ली. खेल कूद में कई खेलों के कप्तान भी रहे. उनके पिता पंडित शिव दत्त उन्हें सरकारी नौकरी में जाने के लिए प्रेरित करते रहे. इंटर की शिक्षा पूरा किए बिना ही वो 10 अप्रैल 1941 को रायल इंडियन आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए और उसी साल 1942 में ही फिरोजपुर में वायसराय कमीशन ऑफिसर का कोर्स पूरा किया. उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध जोरों पर था. 29 अक्टूबर 1941 को उन्हें मलायी के युद्ध के मोर्चे पर भेजा दिया गया. युद्ध के मोर्चे पर 15 फरवरी 1942 को जापानी फौज ने केसरी चंद को बंदी बना लिया. नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नारे 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रेरित होकर केसरी चंद आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे.

ये भी पढ़ेंः 7 मई को अक्षय तृतीया के दिन खुलेंगे गंगोत्री धाम के कपाट, तैयारियां पूरी

आजाद हिंद फौज की ओर से लड़ते हुए इंफाल के मोर्चे पर उन्हें ब्रिटिश फौजौं ने पकड़ लिया था. जिसके बाद उन्हें दिल्ली जिला जेल में रखा गया. आर्मी एक्ट की दफा 41 के भारतीय दंड संहिता की 121 की विरुद्ध ब्रिटिश राज्य के खिलाफ युद्ध करने के आरोप में 12 और 13 दिसंबर 1944 व 10 जनवरी 1945 को लाल किले में जनरल कोर्ट मार्शल में ट्राई किया गया. 3 फरवरी 1945 को जनरल सीजे आचिनलेक ने उन्हें मृत्यु दंड की सजा सुजाई. 24 साल 6 महीने की अल्पायु में केसरी चंद को 3 मई 1945 को दिल्ली जिला जेल में फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया. जिसके बाद से ही आज के दिन ही यानि तीन मई को उनके वीरता को लेकर वीर केसरी चंद के मेले का आयोजन किया जाता है.

विकासनगरः देवभूमि उत्तराखंड शौर्य और बलिदान की अनेक गाथाएं समेटे हुए हैं. आजादी की लड़ाई से लेकर सरहद की सुरक्षा तक कई जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है. इन्हीं में देश को आजादी दिलाने में अमर शहीद वीर केसरी चंद का नाम भी शामिल है. जो भारत मां को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए 3 मई 1945 को 24 साल की अल्पायु में ही फांसी पर झूल गये थे.


बता दें कि देहरादून जिले के चकराता तहसील के रामताल गार्डन में हर साल तीन मई को केसरी चंद मेले का आयोजन होता है. इसी क्रम में शुक्रवार को रामताल गार्डन में विशाल मेले का आयोजन किया गया. हजारों की संख्या में लोग मेले में पहुंचे. इस दौरान मेले में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. मेले में पहुंले हजारों लोगों ने अमर शहीद वीर केसरी चंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि देकर उनकी शहादत को याद किया.

शहीद केसरी चंद की वीर गाथा


अमर शहीद वीर केसरी चंद की बलिदान की कहानी
अमर शहीद वीर केसरी चंद देहरादून जिले के पिछड़े पर्वतीय क्षेत्र जौनसार बावर के क्यावा गांव में 1 नवंबर 1920 को पैदा हुए थे. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा विकासनगर में पूरी हुई. जिसके बाद डीएवी कॉलेज से दसवीं और बारहवीं की शिक्षा ली. खेल कूद में कई खेलों के कप्तान भी रहे. उनके पिता पंडित शिव दत्त उन्हें सरकारी नौकरी में जाने के लिए प्रेरित करते रहे. इंटर की शिक्षा पूरा किए बिना ही वो 10 अप्रैल 1941 को रायल इंडियन आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए और उसी साल 1942 में ही फिरोजपुर में वायसराय कमीशन ऑफिसर का कोर्स पूरा किया. उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध जोरों पर था. 29 अक्टूबर 1941 को उन्हें मलायी के युद्ध के मोर्चे पर भेजा दिया गया. युद्ध के मोर्चे पर 15 फरवरी 1942 को जापानी फौज ने केसरी चंद को बंदी बना लिया. नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नारे 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रेरित होकर केसरी चंद आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे.

ये भी पढ़ेंः 7 मई को अक्षय तृतीया के दिन खुलेंगे गंगोत्री धाम के कपाट, तैयारियां पूरी

आजाद हिंद फौज की ओर से लड़ते हुए इंफाल के मोर्चे पर उन्हें ब्रिटिश फौजौं ने पकड़ लिया था. जिसके बाद उन्हें दिल्ली जिला जेल में रखा गया. आर्मी एक्ट की दफा 41 के भारतीय दंड संहिता की 121 की विरुद्ध ब्रिटिश राज्य के खिलाफ युद्ध करने के आरोप में 12 और 13 दिसंबर 1944 व 10 जनवरी 1945 को लाल किले में जनरल कोर्ट मार्शल में ट्राई किया गया. 3 फरवरी 1945 को जनरल सीजे आचिनलेक ने उन्हें मृत्यु दंड की सजा सुजाई. 24 साल 6 महीने की अल्पायु में केसरी चंद को 3 मई 1945 को दिल्ली जिला जेल में फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया. जिसके बाद से ही आज के दिन ही यानि तीन मई को उनके वीरता को लेकर वीर केसरी चंद के मेले का आयोजन किया जाता है.

Intro:गढ़वाल मंडल का चप्पा चप्पा वीरत्व शौर्य व बलिदान की न जाने कितनी गाथाएं अपने अंदर समेटे हुए है.1857से अब तक यहां सेकडों सूरमा भारत मां को गुलामी की बेडियों से मुक्त कराने के लिए अपनें प्राण न्यौछावर खर चुके है अमर शहीद वीर केसरी चंद कीअनुपम कुबार्नी हिन्दुस्तान के इतिहास में एक नये कीर्तिमान की जन्म दाता है


Body:भारत माता का यह.वीर सपूत जनपद देहरादून के पिछडे पर्वतीय क्षेत्र जौनसार बावर के ग्राम क्यावा मे 1नवम्बर 1920 को पैदा हुए थे प्रारम्भिक शिक्षा विकास नगर मे पूरी करने के बादडीएवी कालेज सेदसवीं व बारवीं की शिक्षा ली खेल कूद मे अनेकों खेलों के कप्तान भी रहे. पन्डित शिव दत्त इनके पिता सरकारी नौकरी में जाने के लिए प्रेरित करते रहे. इन्टर की शिक्षा पूर्ण किए बिना ही यह युवक 10अप्रैल1941 को रायल इन्डियन आर्मी सर्विस कोर मे नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए और उसी वर्ष 1942 मे ही फिरोज पुर मे वायसराय कमीशन आफिसर का कोर्स पूर्ण कर लिया इन्हीं दिनों द्वितीय विश्व युद्ध जोरों पर था. 29अक्टूबर 1941 को इन्हें मलायि के युद्ध के मोर्चे पर भेज दिया.
युद्ध के मोर्चे पर 15 फरवरी 1942 को जापानी फौज ने बंदी बना लिया. नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के नारे तुम मुझे खून दो मे तुम्हें आजादी दूगा केसरी चंद आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गए.

आजाद हिन्द फौज की आऔर से लडते हुए इम्फाल के मोर्चे पर इन्हें ब्रिटिश फौजौ ने पकड लिया तथा दिल्ली जिला जेल मे रखा गया.आरमी एक्ट की दफा 41 के भारतीय दन्ड संहिता की दफा 121 की विरूद्व ब्रिटिश राज्य के खिलाफ युद्ध करने के आरोप मे 12व 13 दिसम्बर 1944व10जनवरी1945को लाल किलेमे जनरल कोर्ट माशर्ल मे ट्राई किया गया.3फरवरी1945 कोजनरल सीजे आचिनलेक ने इनको मृत्यु दंड की सजा देने की पुष्टि की.
24वर्ष6माह कीआयु मे देश भक्त को3मई1945को प्रातः दिल्ली जिला जेल में फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया.



Conclusion:चकराता के रामताल गार्डन मे केसरी चन्द मेले का आयोजन होता आ रहा है.
बाइट-आर एस तोमर स्मारक समिति
बाइट-विपिनचन्द्र शहीद केसरी चंद के पौत्र
Last Updated : May 3, 2019, 8:45 PM IST
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