ऋषिकेशः तीर्थनगरी में स्थित भगवान हृषिकेश के भरत मदिंर का चारों धामों के कपाट खुलने को लेकर प्राचीन काल से ही गहरा नाता रहा है. अक्षय तृतीया के मौके पर भरत मदिंर में भगवान हृषिकेश के चरण के दर्शन, परिक्रमा और पूर्जा-अर्चना के बाद गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलेंगे. चारधाम यात्रा के मुख्य पड़ाव में होने के कारण इस मंदिर में भी भक्तों का हुजूम उमड़ता है. माना जाता है कि यहां पर 108 बार परिक्रमा करने पर विशेष फल मिलता है.
बता दें कि अक्षय तृतीया के मौके पर पहले भरत मंदिर के कपाट खुलते हैं. फिर गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट खोले जाते हैं. इस दिन भरत मंदिर (हृषिकेश मंदिर) में भी भक्तों का तांता लग जाता है. साल भर खुले रहने वाले भरत मंदिर में सिर्फ अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान के चरण विग्रह के दर्शन होते हैं. स्कंदपुराण के केदारखंड में भी भरत मंदिर का वर्णन मिलता है. साथ ही भगवान हृषिकेश के भरत मदिंर को सतयुग का मदिंर माना जाता है.
क्या है भरत मंदिर का इतिहासः
गंगा के तट पर बने भगवान भरत के मंदिर के बारे में पुराणों से काफी वर्णन मिलता है. वराह पुराण के अनुसार ऋषि भारद्वाज के काल में ही रैभ्य नाम के मुनि हुए. वो भारद्वाज ऋषि के मित्र थे. उन्होंने इसी ऋषिकेश तीर्थ में घोर तप से भगवान नारायण को प्रसन्न किया था. जिसके बाद भगवान विष्णु ने आम के पेड़ पर बैठ कर मुनि रैभ्य को दर्शन दिया था. माना जाता है कि भगवान विष्णु के भार से आम का वृक्ष झुककर कुबड़ा हो गया था. इसी कारण ऋषिकेश का एक नाम कुब्जाम्रक भी पड़ा. स्कन्द पुराण के मुताबिक भगवान विष्णु ने मुनि रैभ्य को यह भी वरदान दिया था कि वो कुब्जाम्रक तीर्थ में लक्ष्मी समेत निवास करेंगे. भगवान विष्णु ने कहा था कि समस्त इंद्रियों (हृषीक) जीत कर मेरे (ईश के) दर्शन कर लिए हैं. इसीलिए यह स्थान अब हृषीकेश के नाम से जाना जायेगा.
कुब्जाम्रके महातीर्थ वसामि रमयासह,
हृषीकाणि पुराजित्वा दर्श ! संप्रार्थितस्त्वया.
यद्वाहं तु हृषीकशों भवाम्यत्र समाश्रित:
ततोस्या परकं नाम हृषीकेशाश्रित स्थलम्.
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स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु महामुनि नारद को ऋषिकेश की महत्ता बताते हुए कहते है कि-
कृते वराहरूपेण त्रेयायाम् कृतवीयर्यजम्
द्वापर वामनं देवं कलौ भरतमेव च
नमस्यंति महाभाग भवेयुर्मुक्ति भागिन
मान्यताओं के मुताबिक सतयुग में वराह, त्रेता में कृतवीर्य, द्वापर में वामन और कलयुग में जो भरत के नाम से उनकी पूजा-अर्चना करेगा उसे नित्य मुक्ति की प्राप्त होती है.
माना जाता है कि ऋषिकेश तीर्थ का महत्व शहर के बीचों-बीच स्थित भरत मंदिर से है. लोग इसे दशरथ पुत्र और श्री राम के छोटे भाई भरत का मंदिर मानते हैं, लेकिन यह विष्णु भगवान का मंदिर है. दरअसल इस मंदिर में भगवान श्री राम के छोटे भाई भरत ने पूजा-अर्चना की थी. तभी से इस मंदिर को भरत मंदिर के नाम से जाना जाता है.
वहीं, मंदिर के पुजारी धर्मानंद बताते हैं कि भरत मंदिर के अंदर काली शालिग्राम की शिला की पांच फीट ऊंची हृषीकेश नारायण की चतुर्भुजी प्रतिमा है. वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में भरत महाराज की 108 परिक्रमा करने वाले व्यक्ति को चारधाम यात्रा के दर्शनों के लाभ की प्राप्त होती है. उन्होंने बताया कि अक्षय तृतीया के दिन मंदिर में विशेष तरह की तैयारियां भी की जाती हैं. यहां पहुंचने वाले हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के लिए सत्तू के भोग की व्यवस्था की जाती है. साथ ही सत्तू का प्रसाद भी लोगों को दिया जाता है.