देहरादून: गौहत्या के मामले में जावेद नामक शख्स की जमानत याचिका को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव दिया गया है. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि गौरक्षा को किसी धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर हमारे देश में गौमाता कितनी सुरक्षित है?
बात पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की करें तो साल 2000 में जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तब प्रदेश में उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 लागू था. इस अधिनियम के तहत 14 साल से ऊपर के बैल को मारने की अनुमति थी. इसके साथ ही ट्रेन या फिर हवाई जहाज में गौ मांस खाना भी गैरकानूनी नहीं था. लेकिन साल 2007 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश के गौवध निवारण अधिनियम 1955 को खारिज करते हुए उत्तराखंड गौवंश संरक्षण अधिनियम 2007 ले आई. वहीं, साल 2011 में प्रदेश की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने उत्तराखंड गौवंश संरक्षण नियमावली प्रदेश में लागू कर दी. हालांकि इसके बाद भी प्रदेश में गौ संरक्षण को लेकर कोई खास पहल देखने को नहीं मिली.
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अक्टूबर 2016 में उच्च न्यायालय नैनीताल की ओर से प्रदेश सरकार को सख्त लहजे में गौ संरक्षण को लेकर निर्देशित किया गया. जिसमें उच्च न्यायालय ने प्रदेश के प्रत्येक नगर निकायों और ग्रामीण क्षेत्रों में 25-25 गांव की दूरी में निराश्रित गौवंशों के लिए गौशालाओं का संचालन करने के निर्देश जारी किए. ऐसे में उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करते हुए नवंबर 2016 में तत्कालीन मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह ने उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन किए जाने को लेकर शासनादेश जारी कर दिया.
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इसके बाद से ही प्रदेश में धीरे-धीरे गौ सदनों की संख्या बढ़ती चली गई. वर्तमान में प्रदेश में 38 गौ सदन निआश्रित गायों के भरण पोषण के लिए काम कर रहे हैं, जबकि साल 2016 तक इनकी संख्या प्रदेश में महज 23 थी.
वित्तीय वर्ष | गौ सदन की संख्या | आश्रित गौवंश |
2012-2013 | 18 | 2252 |
2013-2014 | 22 | 2484 |
2014-2015 | 21 | 2909 |
2015-2016 | 23 | 3669 |
2016-2017 | 22 | 4207 |
2017-2018 | 21 | 4685 |
2018-2019 | 22 | 5497 |
2019-2020 | 27 | 6680 |
2020-2021 | 30 | 7981 |
2021-2022 | 38 | 9356 |
ईटीवी भारत से बात करते हुए उत्तराखंड पशु कल्याण बोर्ड के प्रभारी अधिकारी डॉ. आशुतोष जोशी ने बताया कि प्रदेश में वर्तमान में उत्तराखंड गौवंश संरक्षण नियमावली के तहत निराश्रित गौवंश को सोसायटी एक्ट में पंजीकृत समाजसेवी संस्थाओं के माध्यम से संरक्षित किया जा रहा है. वर्तमान में प्रदेश में 38 गौ सदन गोवंश के भरण-पोषण के कार्य में जुटे हुए हैं. वहीं इन सभी गौ सदनों को राज्य सरकार की ओर से राजकीय अनुदान राशि दी जाती है. वर्तमान में बीते तीन सालों से इसके तहत 250 करोड़ का बजट स्वीकृत है. जिससे निर्माण मद और गौवंश भरण-पोषण मद में गौ सदनों को गौ संख्या के आधार पर सरकार की ओर से सहायता राशि दी जाती है.
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बता दें कि बीती 27 अगस्त को वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए विभागीय मंत्री रेखा आर्य की ओर से प्रदेश के 38 गौ सदनों को गौवंशों के भरण-पोषण के लिए कुल 183 करोड़ की अनुदान राशि दी जा चुकी है. इस दौरान विभागीय मंत्री की ओर से यह भी कहा गया था कि उनका प्रयास रहेगा कि गौवंशों के संरक्षण के लिए स्वीकृत 250 करोड़ की धनराशि को अगले वित्तीय वर्ष तक और बढ़ाया जाएगा.
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यहां गौर करने वाली सबसे बड़ी बात यह है कि हालांकि ढाई सौ करोड़ की धनराशि गौवंश संरक्षण के लिए काफी अधिक सुनाई पड़ती है. लेकिन प्रदेश के 38 गौ सदनों में आश्रित गौवंश की संख्या पर अगर गौर करें जो वर्तमान में 9356 है, तो प्रतिदिन प्रत्येक पशु के भरण-पोषण के लिए इस राशि से महज 5 रुपए ही हो पाते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार प्रत्येक पशुओं के प्रति दिन के भरण पोषण के लिए 30 रुपए की सहायता राशि देती है.
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बहरहाल कुल मिलाकर देखें तो यदि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणी का संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार गाय को राष्ट्र पशु घोषित करती है तो सरकार को गौवंश के संरक्षण के लिए काफी अच्छे बजट का प्रावधान करना होगा. तभी वास्तव में सड़कों पर आवारा घूमते देखे जाने वाले गौवंशों का संरक्षण हो सकेगा. अन्यथा सिर्फ सरकारी कागजों में ही गौ माता राष्ट्र पशु बनकर रह जाएगी.