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उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे बाल अपराध, जानें पॉक्सो कोर्ट की स्थिति

उत्तराखंड में बच्चों के साथ यौन अपराधों की तादाद जिस तरह बढ़ती जा रही है, अब इन मामलों में सरकार से लेकर पॉक्सो कोर्ट तक गंभीर दिखने लगी है. ईटीवी भारत अपनी खास रिपोर्ट में बता रहा है कि मौजूदा दौर में उत्तराखंड के पॉक्सो कोर्ट की हालत क्या है और कितने केस कोर्ट में पेंडिंग हैं.

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उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे बाल अपराध
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Published : Mar 25, 2021, 5:04 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड में बच्चों के खिलाफ अपराध साल दर साल तेजी से बढ़ रहे हैं. प्रदेश में नाबालिक बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों में साल दर साल वृद्धि हो रही है. उत्तराखंड में बच्चों के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अपराधों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रदेश के सभी 13 जिलों में पॉक्सो कोर्ट की स्थापना की गई है.

हालांकि अभी तक देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में अलग से पॉक्सो कोर्ट संचालित हो रही हैं. इन चारों कोर्ट में सुनवाई के लिए महिला जज की नियुक्तियां भी की गई हैं. जबकि प्रदेश के दूसरे जिलों में जिला जज द्वारा ही पॉक्सो से जुड़े मामलों की सुनवाई की जाती है.

उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे बाल अपराध.

शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक नाबालिक बच्चों के साथ दुष्कर्म और यौन शोषण से जुड़ी मामलों के लिए गठित पॉक्सो कोर्ट की कानूनी प्रक्रिया सीधे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी द्वारा मॉनिटर होती है. ऐसे में पॉक्सो कोर्ट तेजी से न्यायिक प्रक्रिया को पूरा करते हुए दोषियों को सजा सुनाती है.

देहरादून में 300 पेंडिंग केस

राजधानी देहरादून की पॉक्सो कोर्ट में 300 यौन शोषण से जुड़े मामले लंबित हैं. इन पेंडिंग केस में 90 मामलों का ट्रायल कोर्ट में चल रहा है. पॉक्सो कोर्ट में अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक इन 90 ट्रायल मामलों में आरोपी जेल से मुकदमा लड़ रहे हैं. देहरादून पॉक्सो कोर्ट में लगातार तेजी से मामलों की सुनवाई जारी है. उसी का परिणाम है कि कोर्ट द्वारा बीते कई वर्षों में दोषियों को 20 साल से लेकर आजीवन कारावास और फांसी की सजा भी सुनाई गई है.

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पॉक्सो एक्ट की प्रमुख विशेषताएं.

ये भी पढ़ें: दुष्कर्म का केस दर्ज कराने वाली युवती गिरफ्तार, POCSO के तहत लड़की की गिरफ्तारी का पहला मामला

स्टाफ की कमी के चलते न्यायिक प्रक्रिया में देरी

शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक देहरादून पॉक्सो कोर्ट में स्टेनो जैसे स्टाफ की कमी के कारण कई बार कानूनी प्रक्रिया में अधिक समय लग जाता है. स्टेनो एक ही होने की वजह से बयानों को दर्ज करने, जजमेंट लिखने के साथ दूसरी न्यायिक प्रक्रिया में समय लगता है. ऐसे में अगर कोर्ट में दो स्टेनो की नियुक्ति हो तो कानूनी प्रक्रिया में तेजी आएगी.

लेट पेशी से काम होता है बाधित

पॉक्सो कोर्ट के अधिवक्ताओं के मुताबिक जेल में बंद मुल्जिमों की कोर्ट में देरी से पेशी के चलते कानूनी प्रक्रिया बाधित होती रहती है. कोर्ट का समय सुबह 10 बजे का होता है तो जेल में बंद मुल्जिम को दोपहर 12 बजे के आसपास कोर्ट में पेश किया जाता है, जिसके चलते न तो बयान समय पर दर्ज हो पाते हैं और न ही पीड़ित पक्ष की बात को नियम के मुताबिक समय से सुना जा सकता है. ऐसे में अगर जेल विभाग द्वारा समय से मुल्जिम की पेशी की जाए तो प्रतिदिन होने वाली पॉक्सो कोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी.

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पॉक्सो एक्ट की प्रमुख विशेषताएं.

पॉक्सो कोर्ट में ऐसी होती है सुनवाई

शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज होने के बाद पुलिस जांच से लेकर कोर्ट की प्रक्रिया के दौरान पीड़ित पक्ष की पहचान पूरी तरह से गोपनीय रखी जाता है. कोर्ट में सुनवाई और बहस के दौरान आरोपी को एक बंद बॉक्स में रखा जाता है और पीड़ित पक्ष के बयान और सुनवाई के दौरान कोर्ट के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं.

ताकि किसी भी स्थिति में पीड़ित की पहचान उजागर न हो और वो सुरक्षित तरीके से कोर्ट में अपनी कानूनी प्रक्रिया में शामिल हो सके. भरत सिंह नेगी का कहना है कि पॉक्सो कोर्ट में यौन शोषण मामले में पीड़ित परिवारों को पहचान जाहिर होने की चिंता किए बिना आना चाहिए. ताकि कोर्ट से समय पर उन्हें न्याय मिल सके.

क्या होता है POCSO एक्ट

'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस' पॉक्सो एक्ट-2012 में यौन शोषण से जुड़े मामले में कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान था. लेकिन देशभर में बच्चों से जुड़े यौन शोषण के मामलों में वृद्धि को देखते 2018 में संसोधन किया.

पॉक्सो एक्ट में संशोधन के बाद 16 साल से कम उम्र की लड़की से रेप करने पर न्यूनतम सजा को 10 साल से बढ़ाकर 20 साल किया गया है. दोषी को उम्रकैद भी दी जा सकती है. इतना ही नहीं, इस प्रस्ताव में यह भी प्रावधान किया गया है कि 12 साल से कम उम्र की लड़की से रेप के दोषी को न्यूनतम 20 साल की जेल, उम्रकैद और फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है.

ये भी पढ़ें: पॉक्सो कोर्ट की सुनवाई पर भी कोरोना की मार, पीड़ित परेशान, आरोपियों की 'बहार'

कुकर्म के मामले में पहली बार हुई फांसी

13 मार्च 2021 को उधम सिंह नगर के रुद्रपुर पॉक्सो कोर्ट ने नाबालिग से कुकर्म के मामले में दोषी को फांसी की सजा सुनाई है. यह पहला मामला है जब पॉक्सो एक्ट में कुकर्म के मामले में दोषी को फांसी की सजा सुनाई गई है.

वहीं, ऋषिकेश में वर्ष 2017 में गुरुद्वारे के सेवादार द्वारा दो मासूम बच्चों की रेप के बाद हत्या के मामले में कोर्ट ने दोषी सेवादार को फांसी की सजा सुनाई थी. हालांकि कानूनी तकनीकी का की वजह से नैनीताल हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था. इस मामले में राज्य सरकार से अनुमति मिलने के बाद देहरादून पुलिस ने हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देते हुए फरवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट में आरोपी के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की है.

पॉक्सो कोर्ट के नए भवन में मिलेंगी कई सुविधाएं

पॉक्सो कोर्ट के शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक देहरादून जिला कोर्ट से संचालित पॉक्सो कोर्ट में सुनवाई के दौरान उठने-बैठने से लेकर कई समस्याएं आती थी. ऐसे में 1 अप्रैल 2021 से हरिद्वार रोड स्थित नवनिर्मित जिला कोर्ट परिसर में अलग से पॉक्सो कोर्ट संचालित होगा.

इस नए पॉक्सो कोर्ट में पीड़ित पक्ष के ठहरने की व्यवस्था से लेकर खाने-पीने, उठने-बैठने और अन्य तरह की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा गया है. साथ ही नए पॉक्सो कोर्ट भवन में कई तरह की सुविधाएं मिलने की वजह से शासकीय अधिवक्ता भी नई ऊर्जा के साथ न्यायिक प्रक्रिया में तेजी से काम करेंगे.

हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन अपराध का शिकार

बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू के मुताबिक भारत में हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन अपराध का शिकार बनता है और पिछले 10 सालों में नाबालिगों के खिलाफ अपराध में 500 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है.

एक रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया कि बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध के मामलों में से 50 प्रतिशत से भी ज्यादा महज पांच राज्यों में दर्ज किए गए. इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल शामिल हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में बच्चों के खिलाफ अपराध साल दर साल तेजी से बढ़ रहे हैं. प्रदेश में नाबालिक बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों में साल दर साल वृद्धि हो रही है. उत्तराखंड में बच्चों के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अपराधों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रदेश के सभी 13 जिलों में पॉक्सो कोर्ट की स्थापना की गई है.

हालांकि अभी तक देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में अलग से पॉक्सो कोर्ट संचालित हो रही हैं. इन चारों कोर्ट में सुनवाई के लिए महिला जज की नियुक्तियां भी की गई हैं. जबकि प्रदेश के दूसरे जिलों में जिला जज द्वारा ही पॉक्सो से जुड़े मामलों की सुनवाई की जाती है.

उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे बाल अपराध.

शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक नाबालिक बच्चों के साथ दुष्कर्म और यौन शोषण से जुड़ी मामलों के लिए गठित पॉक्सो कोर्ट की कानूनी प्रक्रिया सीधे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी द्वारा मॉनिटर होती है. ऐसे में पॉक्सो कोर्ट तेजी से न्यायिक प्रक्रिया को पूरा करते हुए दोषियों को सजा सुनाती है.

देहरादून में 300 पेंडिंग केस

राजधानी देहरादून की पॉक्सो कोर्ट में 300 यौन शोषण से जुड़े मामले लंबित हैं. इन पेंडिंग केस में 90 मामलों का ट्रायल कोर्ट में चल रहा है. पॉक्सो कोर्ट में अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक इन 90 ट्रायल मामलों में आरोपी जेल से मुकदमा लड़ रहे हैं. देहरादून पॉक्सो कोर्ट में लगातार तेजी से मामलों की सुनवाई जारी है. उसी का परिणाम है कि कोर्ट द्वारा बीते कई वर्षों में दोषियों को 20 साल से लेकर आजीवन कारावास और फांसी की सजा भी सुनाई गई है.

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पॉक्सो एक्ट की प्रमुख विशेषताएं.

ये भी पढ़ें: दुष्कर्म का केस दर्ज कराने वाली युवती गिरफ्तार, POCSO के तहत लड़की की गिरफ्तारी का पहला मामला

स्टाफ की कमी के चलते न्यायिक प्रक्रिया में देरी

शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक देहरादून पॉक्सो कोर्ट में स्टेनो जैसे स्टाफ की कमी के कारण कई बार कानूनी प्रक्रिया में अधिक समय लग जाता है. स्टेनो एक ही होने की वजह से बयानों को दर्ज करने, जजमेंट लिखने के साथ दूसरी न्यायिक प्रक्रिया में समय लगता है. ऐसे में अगर कोर्ट में दो स्टेनो की नियुक्ति हो तो कानूनी प्रक्रिया में तेजी आएगी.

लेट पेशी से काम होता है बाधित

पॉक्सो कोर्ट के अधिवक्ताओं के मुताबिक जेल में बंद मुल्जिमों की कोर्ट में देरी से पेशी के चलते कानूनी प्रक्रिया बाधित होती रहती है. कोर्ट का समय सुबह 10 बजे का होता है तो जेल में बंद मुल्जिम को दोपहर 12 बजे के आसपास कोर्ट में पेश किया जाता है, जिसके चलते न तो बयान समय पर दर्ज हो पाते हैं और न ही पीड़ित पक्ष की बात को नियम के मुताबिक समय से सुना जा सकता है. ऐसे में अगर जेल विभाग द्वारा समय से मुल्जिम की पेशी की जाए तो प्रतिदिन होने वाली पॉक्सो कोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी.

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पॉक्सो एक्ट की प्रमुख विशेषताएं.

पॉक्सो कोर्ट में ऐसी होती है सुनवाई

शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज होने के बाद पुलिस जांच से लेकर कोर्ट की प्रक्रिया के दौरान पीड़ित पक्ष की पहचान पूरी तरह से गोपनीय रखी जाता है. कोर्ट में सुनवाई और बहस के दौरान आरोपी को एक बंद बॉक्स में रखा जाता है और पीड़ित पक्ष के बयान और सुनवाई के दौरान कोर्ट के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं.

ताकि किसी भी स्थिति में पीड़ित की पहचान उजागर न हो और वो सुरक्षित तरीके से कोर्ट में अपनी कानूनी प्रक्रिया में शामिल हो सके. भरत सिंह नेगी का कहना है कि पॉक्सो कोर्ट में यौन शोषण मामले में पीड़ित परिवारों को पहचान जाहिर होने की चिंता किए बिना आना चाहिए. ताकि कोर्ट से समय पर उन्हें न्याय मिल सके.

क्या होता है POCSO एक्ट

'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस' पॉक्सो एक्ट-2012 में यौन शोषण से जुड़े मामले में कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान था. लेकिन देशभर में बच्चों से जुड़े यौन शोषण के मामलों में वृद्धि को देखते 2018 में संसोधन किया.

पॉक्सो एक्ट में संशोधन के बाद 16 साल से कम उम्र की लड़की से रेप करने पर न्यूनतम सजा को 10 साल से बढ़ाकर 20 साल किया गया है. दोषी को उम्रकैद भी दी जा सकती है. इतना ही नहीं, इस प्रस्ताव में यह भी प्रावधान किया गया है कि 12 साल से कम उम्र की लड़की से रेप के दोषी को न्यूनतम 20 साल की जेल, उम्रकैद और फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है.

ये भी पढ़ें: पॉक्सो कोर्ट की सुनवाई पर भी कोरोना की मार, पीड़ित परेशान, आरोपियों की 'बहार'

कुकर्म के मामले में पहली बार हुई फांसी

13 मार्च 2021 को उधम सिंह नगर के रुद्रपुर पॉक्सो कोर्ट ने नाबालिग से कुकर्म के मामले में दोषी को फांसी की सजा सुनाई है. यह पहला मामला है जब पॉक्सो एक्ट में कुकर्म के मामले में दोषी को फांसी की सजा सुनाई गई है.

वहीं, ऋषिकेश में वर्ष 2017 में गुरुद्वारे के सेवादार द्वारा दो मासूम बच्चों की रेप के बाद हत्या के मामले में कोर्ट ने दोषी सेवादार को फांसी की सजा सुनाई थी. हालांकि कानूनी तकनीकी का की वजह से नैनीताल हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था. इस मामले में राज्य सरकार से अनुमति मिलने के बाद देहरादून पुलिस ने हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देते हुए फरवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट में आरोपी के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की है.

पॉक्सो कोर्ट के नए भवन में मिलेंगी कई सुविधाएं

पॉक्सो कोर्ट के शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के मुताबिक देहरादून जिला कोर्ट से संचालित पॉक्सो कोर्ट में सुनवाई के दौरान उठने-बैठने से लेकर कई समस्याएं आती थी. ऐसे में 1 अप्रैल 2021 से हरिद्वार रोड स्थित नवनिर्मित जिला कोर्ट परिसर में अलग से पॉक्सो कोर्ट संचालित होगा.

इस नए पॉक्सो कोर्ट में पीड़ित पक्ष के ठहरने की व्यवस्था से लेकर खाने-पीने, उठने-बैठने और अन्य तरह की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा गया है. साथ ही नए पॉक्सो कोर्ट भवन में कई तरह की सुविधाएं मिलने की वजह से शासकीय अधिवक्ता भी नई ऊर्जा के साथ न्यायिक प्रक्रिया में तेजी से काम करेंगे.

हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन अपराध का शिकार

बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू के मुताबिक भारत में हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन अपराध का शिकार बनता है और पिछले 10 सालों में नाबालिगों के खिलाफ अपराध में 500 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है.

एक रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया कि बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध के मामलों में से 50 प्रतिशत से भी ज्यादा महज पांच राज्यों में दर्ज किए गए. इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल शामिल हैं.

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