देहरादून: उत्तराखंड को प्रकृति ने कई अनमोल तोहफों से नवाजा है. इनमें ना सिर्फ हिमालय की गोद में बसी खूबसूरत वादियां हैं बल्कि इन वादियों में हजारों किस्म की बेशकीमती जड़ी-बूटियां भी मौजूद हैं. लेकिन मौजूदा समय में इन बेशकीमती जड़ी-बूटियों पर जलवायु परिवर्तन का सीधा असर देखने को मिल रहा है. क्योंकि, हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियां धीरे-धीरे उच्च हिमालयी क्षेत्रों की ओर खिसकती जा रही हैं. राज्य सरकार इन जड़ी-बूटियों को संरक्षित करने को लेकर समय-समय पर तमाम रणनीतियां भी बनाती रही है. आखिर जड़ी बूटियों पर जलवायु परिवर्तन का क्या पड़ रहा है असर और जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए क्या है राज्य सरकार की रणनीति. देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
जड़ी-बूटियों का विशेष महत्व
देश में प्राचीन समय से ही जड़ी-बूटियों का विशेष महत्व रहा है. यही वजह है कि प्राचीन समय में ऋषि-मुनि इन जड़ी-बूटियों का ही उपयोग कर बड़ी से बड़ी बीमारियों को ठीक कर देते थे. हालांकि, मौजूदा समय में भी बड़ी से बड़ी बीमारी में जड़ी-बूटी अपनी एक विशेष भूमिका अदा कर रही हैं. वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए देश के साथ-साथ विदेशों में भी जड़ी बूटियों की डिमांड काफी बढ़ गई है. इम्यूनिटी बढ़ाने में यह जड़ी-बूटियां काफी अच्छी साबित हो रही हैं. वहीं, लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन का असर अब इन हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों पर भी पड़ रहा है.
जलवायु परिवर्तन का जड़ी बूटियों पर असर
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के डायरेक्टर डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि क्लाइमेट चेंज होने के चलते हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली तमाम जड़ी बूटियां सरवाइव नहीं कर पा रही हैं. इसके चलते वह धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं. हालांकि, फिर उस एनवायरमेंट में कुछ और जड़ी बूटियां या पौधे उगते हैं. यह प्रकृति की एक सतत प्रक्रिया है. वहीं, कुछ संस्थान मुख्य रूप से जड़ी-बूटियों पर काम कर रहे हैं कि कौन सी जड़ी-बूटी किस क्लाइमेट में सरवाइव कर सकती है. साथ ही साईं ने बताया कि क्लाइमेट चेंज का असर हिमालय के ईको सिस्टम के साथ ग्लेशियर पर भी पड़ रहा है.
उच्च हिमालई क्षेत्रों पर शिफ्ट हो रही जड़ी बूटियां
प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि जलवायु परिवर्तन का असर हर चीज पर पड़ रहा है. चाहे वह जड़ी बूटियां हो या फिर पेड़ पौधे और जंगली जानवर. लगातार जलवायु में हो रहे परिवर्तन के चलते हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाली जड़ी बूटियां, उच्च हिमालई क्षेत्रों की ओर खिसक रही हैं. क्योंकि ये जड़ी बूटियां अपने वातावरण के अनुसार धीरे-धीरे ऊपर शिफ्ट होती रहती हैं. हालांकि प्रकृति का नियम है कि वह खुद चीजों को एडॉप्ट कर लेती है, लेकिन जिस तरह से हिमालयी क्षेत्रों में जड़ी बूटियां ऊपर की तरफ खिसक रही हैं ऐसे में एक समय ऐसा भी आएगा जब वहां भूमि खत्म हो जाएगी और यह जड़ी-बूटियां भी विलुप्त होने लगेंगी.
जड़ी-बूटियों को खेतों तक लाने की तैयारी
उत्तराखंड वन विभाग हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों के संरक्षण के साथ ही इन्हें खेतों तक लाने की तैयारी कर रही है. अगर यह जड़ी-बूटियां खेतों में उगाई जाएंगी, तो ऐसे में ना सिर्फ किसानों को अच्छा फायदा होगा, बल्कि इन जड़ी-बूटियों का संरक्षण भी किया जा सकेगा. मौजूदा समय में इंटरनेशनल बाजार में जड़ी-बूटियों की बहुत अधिक डिमांड है. लिहाजा स्थानीय किसानों को मोटिवेट करने और जागरूक करने के लिए वन विभाग लगातार जुटा हुआ है.
जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए बनाया जाएगा कॉरिडोर
जड़ी बूटियों को खेतों में उगाने के लिए वन विभाग की कोशिश है कि इसके लिए एक कॉरिडोर का तरीका अपनाया जाए, जिससे आर्टिफिशियल तरीके से इन जड़ी-बूटियों को उगाने के लिए एनवायरमेंट तैयार किया जाए. एक बार जब यह जड़ी-बूटियां उस पर्यावरण में ढल जाएंगी, तो इन्हें बड़ी आसानी से खेतों में उगाया जा सकेगा. अगर किसान जड़ी-बूटियों को खेतों में उगाएंगे तो उन्हें सबसे अधिक फायदा इस चीज का होगा कि जंगली जानवर इन्हें नुकसान नहीं कर पाएंगे.
जड़ी बूटियों को बचाने के लिए बुग्यालों पर की गयी जिओ मैटिंग
हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले बुग्यालों में लगातार हो रहे भूस्खलन के चलते बुग्यालों पर इसका सीधा असर पड़ रहा है. यही नहीं, इन बुग्यालों में तमाम बेशकीमती जड़ी-बूटियां भी पाई जाती हैं. लिहाजा पिछले साल से इन बुग्यालों के हो रहे भूक्षरण को रोकने के लिए उनका ट्रीटमेंट शुरू किया गया. इसके लिए बुग्यालों की जिओ मैटिंग की गयी. यानी जिओ जूट के मैट बुग्याल पर लगाये गये जिससे भूक्षरण को रोका जा सके. इससे वहां पाए जाने वाली बेशकीमती जड़ी-बूटियों को नया जीवन मिला है.
विलुप्त होती जड़ी-बूटियों की तैयार होगी रिपोर्ट
प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों से जो जड़ी-बूटियां विलुप्त होने के कगार पर हैं उनको बचाने के लिए अधिकारियों को रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं. इसके बाद इन जड़ी-बूटियों को बचाने के लिए एक पूरा एक्शन प्लान तैयार किया जाएगा. जिसके तहत इन जड़ी-बूटियों को किस-किस जगह पर लगाया जा सकता है उस पर काम किया जाएगा. ताकि इन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके.
आयुर्वेद इंडस्ट्री लगाने पर दी जा रही है सब्सिडी
आयुष मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने बताया कि उत्तराखंड में बेशकीमती जड़ी-बूटियों की भरमार है. इन जड़ी-बूटियों के सदुपयोग के लिए राज्य सरकार लगातार काम कर रही है. साथ ही जड़ी-बूटियों की खेती पर भी जोर दिया जा रहा है. यही नहीं इन जड़ी-बूटियों का सही ढंग से सदुपयोग हो सके इसके लिए राज्य सरकार तमाम सब्सिडी भी दे रही है. आयुर्वेद के क्षेत्र में अगर कोई जड़ी-बूटियों से संबंधित कार्य करता है तो उन औद्योगिक इकाइयों को पर्वतीय क्षेत्रों में डेढ़ करोड़ रुपए तक की अधिकतम सब्सिडी और मैदानी क्षेत्रों में एक करोड़ रुपए तक की अधिकतम सब्सिडी दी जाएगी. जिससे आयुर्वेद की इंडस्ट्री लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा सके.