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शिव की जटाओं से निकलते ही गंगा ने यहां धरती को किया था स्पर्श, जानें गंगोत्री धाम की मान्यता

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Published : May 7, 2019, 7:32 AM IST

Updated : May 7, 2019, 1:26 PM IST

हर व्यक्ति जीवन में एक बार गंगोत्री धाम के दर्शन के लिए लालायित रहता है और दर्शन कर अपने को कृतार्थ मानता है. जहां लोगों को अध्यात्म के साथ ही प्रकृति से नजदीकी से रूबरू होने का मौका मिलता है.

गंगोत्री धाम.

देहरादून: हिन्दू स्वावलंबियों के लिए चारधाम यात्रा का खास महत्व है. जहां देश ही नहीं विदेश से भी लोग शीष नवाने आते हैं. गंगोत्री धाम से करोड़ों लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है. जहां लोगों को अध्यात्म के साथ ही प्रकृति से नजदीकी से रूबरू होने का मौका मिलता है. माना जाता है कि भगवान शिव की जटाओं से निकलने के बाद मां गंगा ने सबसे पहले गंगोत्री में ही धरती को स्पर्श किया था. इसलिए इस धाम का महत्व श्रद्धालुओं के लिए खास हो जाता है.

गंगोत्री धाम में देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रद्धालु.

उल्लेखनीय है कि हर व्यक्ति जीवन में एक बार गंगोत्री धाम के दर्शन के लिए लालायित रहता है और दर्शन कर अपने को कृतार्थ मानता है. सात मई यानि आज गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट पूरे विधि विधान से खुल जाएंगे. कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा की औपचारिक शुरुआत हो जाएगी. नौ मई को केदारनाथ जबकि 10 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे. वहीं गंगोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ यात्री मंदिर में दर्शन कर सकेंगे. गंगोत्री धाम में निर्मलता से बह रही गंगा का स्वरूप देखने के लिए विदेशी साधक खासे उत्सुकता रहते हैं.

पढ़ें- यहां स्नान करने से नहीं रहता मृत्यु का भय, यमुना मां हर लेती है भक्तों के कष्ट

गंगोत्री की पौराणिक कथा
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी. राजा सगर के वंशज राज भगीरथ ने अपने पुरखों के उद्धार के लिए मां गंगा को धरती पर लाने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की थी. राजा भगीरथ को ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद मां गंगा मृत्युलोक में आने को तैयार हो गईं, जिसके बाद मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से होते हुए राजा भगीरथ के पीछे-पीछे उनके पुरखों के उद्धार के लिए चल पड़ी.

माना जाता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती को स्पर्श किया था. हालांकि, गंगाजी का वास्तविक उद्गम स्थान गंगोत्री से 19 किमी दूर गोमुख में है लेकिन अतीत से ही गंगोत्री में ही श्रद्धालु गंगाजी के प्रथम दर्शन करते हैं. गंगोत्री धाम ही वह स्थान है जहां राजा भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तपस्या की थी. यहां आज भी श्रद्धालु भगीरथ शिला को देखने दूर-दूल से पहुंचते हैं. इस पवित्र शिलाखंड के पास ही 18वीं शताब्दी में गंगोत्री मंदिर का निर्माण किया गया था.

अन्य मान्यता ये है कि पांडवों ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गए अपने परिजनों की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ करवाया था. इस स्थान पर शंकराचार्य ने गंगा मां की एक मूर्ति स्थापित की थी. जहां इस मूर्ति की स्थापना हुई थी वहां गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18वीं शताब्दी में किया गया था. मंदिर में प्रबंध के लिए सेनापति थापा ने मुखबा गंगोत्री गांवों से पंडों को भी नियुक्त किया. इसके पहले टकनौर के राजपूत ही गंगोत्री के पुजारी थे.

गंगोत्री धाम की विशेषता

  • गंगोत्री मंदिर भारत के प्रमुख मंदिरों में एक है.
  • मां गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री चार धाम यात्रा का दूसरा पड़ाव है. पहला पड़ाव यमुनोत्री है.
  • गंगोत्री मंदिर भागीरथी नदी के तट पर स्थित है.
  • यह मंदिर 3100 मीटर (10,200 फीट) की ऊंचाई पर ग्रेटर हिमालय रेंज पर स्थित है.
  • गंगोत्री में गंगा का उद्गम स्रोत यहां से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4,225 मीटर की ऊंचाई पर होने का अनुमान है.
  • गंगा का मंदिर, सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल यहीं पर हैं.
  • गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर, समुद्रतल से तकरीबन 3,892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है गौमुख. ये गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना तथा भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है.
  • हर वर्ष मई से अक्टूबर के महीने के बीच पतित पावनी गंगा मां के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं.

देहरादून: हिन्दू स्वावलंबियों के लिए चारधाम यात्रा का खास महत्व है. जहां देश ही नहीं विदेश से भी लोग शीष नवाने आते हैं. गंगोत्री धाम से करोड़ों लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है. जहां लोगों को अध्यात्म के साथ ही प्रकृति से नजदीकी से रूबरू होने का मौका मिलता है. माना जाता है कि भगवान शिव की जटाओं से निकलने के बाद मां गंगा ने सबसे पहले गंगोत्री में ही धरती को स्पर्श किया था. इसलिए इस धाम का महत्व श्रद्धालुओं के लिए खास हो जाता है.

गंगोत्री धाम में देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रद्धालु.

उल्लेखनीय है कि हर व्यक्ति जीवन में एक बार गंगोत्री धाम के दर्शन के लिए लालायित रहता है और दर्शन कर अपने को कृतार्थ मानता है. सात मई यानि आज गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट पूरे विधि विधान से खुल जाएंगे. कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा की औपचारिक शुरुआत हो जाएगी. नौ मई को केदारनाथ जबकि 10 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे. वहीं गंगोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ यात्री मंदिर में दर्शन कर सकेंगे. गंगोत्री धाम में निर्मलता से बह रही गंगा का स्वरूप देखने के लिए विदेशी साधक खासे उत्सुकता रहते हैं.

पढ़ें- यहां स्नान करने से नहीं रहता मृत्यु का भय, यमुना मां हर लेती है भक्तों के कष्ट

गंगोत्री की पौराणिक कथा
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी. राजा सगर के वंशज राज भगीरथ ने अपने पुरखों के उद्धार के लिए मां गंगा को धरती पर लाने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की थी. राजा भगीरथ को ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद मां गंगा मृत्युलोक में आने को तैयार हो गईं, जिसके बाद मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से होते हुए राजा भगीरथ के पीछे-पीछे उनके पुरखों के उद्धार के लिए चल पड़ी.

माना जाता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती को स्पर्श किया था. हालांकि, गंगाजी का वास्तविक उद्गम स्थान गंगोत्री से 19 किमी दूर गोमुख में है लेकिन अतीत से ही गंगोत्री में ही श्रद्धालु गंगाजी के प्रथम दर्शन करते हैं. गंगोत्री धाम ही वह स्थान है जहां राजा भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तपस्या की थी. यहां आज भी श्रद्धालु भगीरथ शिला को देखने दूर-दूल से पहुंचते हैं. इस पवित्र शिलाखंड के पास ही 18वीं शताब्दी में गंगोत्री मंदिर का निर्माण किया गया था.

अन्य मान्यता ये है कि पांडवों ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गए अपने परिजनों की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ करवाया था. इस स्थान पर शंकराचार्य ने गंगा मां की एक मूर्ति स्थापित की थी. जहां इस मूर्ति की स्थापना हुई थी वहां गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18वीं शताब्दी में किया गया था. मंदिर में प्रबंध के लिए सेनापति थापा ने मुखबा गंगोत्री गांवों से पंडों को भी नियुक्त किया. इसके पहले टकनौर के राजपूत ही गंगोत्री के पुजारी थे.

गंगोत्री धाम की विशेषता

  • गंगोत्री मंदिर भारत के प्रमुख मंदिरों में एक है.
  • मां गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री चार धाम यात्रा का दूसरा पड़ाव है. पहला पड़ाव यमुनोत्री है.
  • गंगोत्री मंदिर भागीरथी नदी के तट पर स्थित है.
  • यह मंदिर 3100 मीटर (10,200 फीट) की ऊंचाई पर ग्रेटर हिमालय रेंज पर स्थित है.
  • गंगोत्री में गंगा का उद्गम स्रोत यहां से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4,225 मीटर की ऊंचाई पर होने का अनुमान है.
  • गंगा का मंदिर, सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल यहीं पर हैं.
  • गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर, समुद्रतल से तकरीबन 3,892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है गौमुख. ये गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना तथा भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है.
  • हर वर्ष मई से अक्टूबर के महीने के बीच पतित पावनी गंगा मां के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं.
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शिव की जटाओं से निकलते ही गंगा ने यहां धरती को किया था स्पर्श, जानें गंगोत्री धाम की मान्यता

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देहरादून: हिन्दू स्वावलंबियों के लिए चारधाम यात्रा का खास महत्व है. जहां देश ही नहीं विदेश से भी लोग शीष नवाने आते हैं. गंगोत्री धाम से करोड़ों लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है. जहां लोगों को अध्यात्म के साथ ही प्रकृति से नजदीकी से रूबरू होने का मौका मिलता है. माना जाता है कि भगवान शिव की जटाओं से निकलने के बाद मां गंगा ने सबसे पहले गंगोत्री में ही धरती को स्पर्श किया था. इसलिए इस धाम का महत्व श्रद्धालुओं के लिए खास हो जाता है.  

उल्लेखनीय है कि हर व्यक्ति जीवन में एक बार गंगोत्री धाम के दर्शन के लिए लालायित रहता है और दर्शन कर अपने को कृतार्थ मानता है. सात मई यानि आज गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट पूरे विधि विधान से खुल जाएंगे. कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा की औपचारिक शुरुआत हो जाएगी. नौ मई को केदारनाथ जबकि 10 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे. वहीं गंगोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ यात्री मंदिर में दर्शन कर सकेंगे. गंगोत्री धाम में निर्मलता से बह रही गंगा का स्वरूप देखने के लिए विदेशी साधक खासे उत्सुकता रहते हैं. 

गंगोत्री  की पौराणिक कथा 

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी. राजा सगर के वंशज राज भगीरथ ने अपने पुरखों के उद्धार के लिए मां गंगा को धरती पर लाने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की थी. राजा भगीरथ को ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद मां गंगा मृत्युलोक में आने को तैयार हो गईं, जिसके बाद मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से होते हुए राजा भगीरथ के पीछे-पीछे उनके पुरखों के उद्धार के लिए चल पड़ी.

माना जाता है कि  स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती को स्पर्श किया था. हालांकि, गंगाजी का वास्तविक उद्गम स्थान गंगोत्री से 19 किमी दूर गोमुख में है लेकिन अतीत से ही गंगोत्री में ही श्रद्धालु गंगाजी के प्रथम दर्शन करते हैं. गंगोत्री धाम ही वह स्थान है जहां राजा भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तपस्या की थी. यहां आज भी श्रद्धालु भगीरथ शिला को देखने दूर-दूल से पहुंचते हैं. इस पवित्र शिलाखंड के पास ही 18वीं शताब्दी में गंगोत्री मंदिर का निर्माण किया गया था.

अन्य मान्यता ये है कि पांडवों ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गए अपने परिजनों की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ करवाया था. इस स्थान पर शंकराचार्य ने गंगा मां की एक मूर्ति स्थापित की थी. जहां इस मूर्ति की स्थापना हुई थी वहां गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18वीं शताब्दी में किया गया था. मंदिर में प्रबंध के लिए सेनापति थापा ने मुखबा गंगोत्री गांवों से पंडों को भी नियुक्त किया. इसके पहले टकनौर के राजपूत ही गंगोत्री के पुजारी थे.

गंगोत्री धाम की विशेषता

गंगोत्री मंदिर भारत के प्रमुख मंदिरों में एक है.

मां गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री चार धाम यात्रा का दूसरा पड़ाव है. पहला पड़ाव यमुनोत्री है. 

गंगोत्री मंदिर भागीरथी नदी के तट पर स्थित है.

यह मंदिर 3100 मीटर (10,200 फीट) की ऊंचाई पर ग्रेटर हिमालय रेंज पर स्थित है.

गंगोत्री में गंगा का उद्गम स्रोत यहां से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4,225 मीटर की ऊंचाई पर होने का अनुमान है.

गंगा का मंदिर, सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल यहीं पर हैं.

गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर, समुद्रतल से तकरीबन 3,892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है गौमुख. ये गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना तथा भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है.

हर वर्ष मई से अक्टूबर के महीने के बीच पतित पावनी गंगा मां के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं.

 


Conclusion:
Last Updated : May 7, 2019, 1:26 PM IST
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