देहरादूनः उत्तराखंड शासन में बीते 2 महीनों से कभी आईपीएस तो कभी आईएएस विवादों में घिर रहे हैं. आलम ये है कि उत्तर प्रदेश सरकार, उत्तराखंड में तैनात अधिकारियों की पहले जांच शुरू कर देती है. उसके बाद उत्तराखंड को अपने अधिकारियों के खिलाफ सुबूत जुटाने पड़ रहे हैं. पहले यशपाल तोमर मामले में उत्तराखंड में तैनात आईपीएस और आईएएस अधिकारियों के परिवारों के नाम सामने आए. उसके बाद उत्तराखंड में सचिवालय में सचिव रामविलास यादव के खिलाफ उत्तर प्रदेश से सुबूत आ गए. अब उत्तराखंड में समाज कल्याण विभाग के अपर सचिव रामविलास यादव के यहां लखनऊ से लेकर मेरठ, गाजियाबाद और देहरादून में छापेमारी में खूब बेनामी संपत्ति मिल रही है.
यह मामला तब शुरू हुआ, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने बीते साल रामविलास यादव के खिलाफ जांच शुरू की थी. दरअसल, रामविलास यादव सपा सरकार में लखनऊ विकास प्राधिकरण के सचिव थे. उत्तराखंड कैडर ज्वॉइन करने के बाद रामविलास यादव समाज कल्याण विभाग समेत कई विभागों के अपर सचिव थे. लेकिन अप्रैल महीने में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बार फिर से अपनी जांच तेज करते हुए सरकार को यादव की कुछ संपत्ति से जुड़े कागजात भेजे.
वहीं, कागजात मिलने के बाद रामविलास यादव के खिलाफ देहरादून में ही विजिलेंस ने मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज करने के बाद रामविलास यादव के खिलाफ जांच शुरू हुई. मालूम हुआ कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कई ऐसी संपत्तियां हैं, जो यह बताती हैं कि रामविलास यादव शासन में रहते हुए किस तरह से कार्य कर रहे थे.
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इस व्यक्ति की वजह से शुरू हुई रामविलास यादव के खिलाफ जांचः रामविलास यादव को सपा सरकार का बेहद करीबी अधिकारी माना जाता था. बताया जाता है कि यादव को सपा में तमाम कैबिनेट मंत्री और सपा के बड़े नेताओं का संरक्षण प्राप्त था. लेकिन उत्तर प्रदेश में जैसे ही बीजेपी की सरकार आई, वैसे ही रामविलास यादव उत्तराखंड आ गए. यह मामला उत्तर प्रदेश में शायद ही कभी सुर्खियों में आता, लेकिन बताया जाता है कि सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत मिश्रा ने बीजेपी सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ को रामविलास यादव से संबंधित कुछ कागजात भेजे थे.
जिसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने स्तर से जांच शुरू की और उत्तराखंड सरकार ने इस पूरे मामले पर मुकदमा दर्ज किया. शुरुआती जांच में ही विजिलेंस को यह साफ हो गया कि रामविलास यादव की संपत्ति आय से काफी अधिक है. लिहाजा, विजिलेंस जब-जब उनसे संपर्क करती रही, तब तक वो विजिलेंस का सहयोग करने नहीं आए.
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ये संपत्ति बनी जांच का विषयः बीते 10 दिनों में रामविलास यादव के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की संपत्तियों पर छापेमारी हुई है. जिसमें यह बात निकल कर आई है कि उनकी संपत्ति कुछ इस प्रकार है. गाजियाबाद में एक फ्लैट है. लखनऊ में एक बड़ा मकान है. इसके अलावा ट्रीहाउस राजपुर रोड गांव परेवा, दौलतपुर, गाजीपुर गुडंबा और लखनऊ के दिलकश विहार कॉलोनी में आवास है.
इसके साथ ही उनकी पत्नी के नाम से एक स्कूल भी चल रहा है. विजिलेंस सूत्र बताते हैं कि अब तक की जांच में जो संपत्तियां निकल कर आई हैं, वो 20 करोड़ से अधिक की हैं. हालांकि, अभी विजिलेंस लगातार संपत्तियों की रजिस्ट्री की जांच भी करवा रही है. ताकि यह बात साफ हो जाए कि जांच में आई संपत्ति रामविलास यादव की है.
जब हाईकोर्ट से भी लगा रामविलास को झटकाः उधर, लगातार विजिलेंस का शिकंजा रामविलास यादव पर कस रहा है तो बीते दिनों रामविलास यादव ने अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में भी अर्जी दी थी. जिसे हाईकोर्ट ने सिरे से नकार दिया. रामविलास यादव के वकील ने हाईकोर्ट में कहा था कि उनका बेटा सुप्रीम कोर्ट में वकील है. बेटी विदेश में है और पत्नी उस स्कूल की प्रबंधक है.
वो खुद एक अधिकारी हैं, लिहाजा सारी की सारी संपत्ति उनकी खुद की संपत्ति है. जो उन्होंने मेहनत से ही कमाई है. रामविलास यादव ने यह भी कहा था कि जिस व्यक्ति ने उनके खिलाफ शिकायत दी है, उस व्यक्ति के खिलाफ खुद कई मुकदमे चल रहे हैं. बुधवार को हाईकोर्ट की फटकार के बाद आखिरकार रामविलास यादव को देहरादून में विजिलेंस के दफ्तर जाकर पूछताछ के लिए पेश होना पड़ा. विजिलेंस ने 14 घंटे की कड़ी पूछताछ के बाद रात 2.15 बजे रामविलास यादव को अरेस्ट कर लिया.
सरकार को रखनी होगी अधिकारियों पर नजरः उत्तराखंड में लगातार विवादों में पड़ते जा रहे अधिकारियों को देखकर यह साफ लगता है कि यह तो एक रामविलास यादव की कहानी है. सरकार को चाहिए के तमाम ऐसे अधिकारियों पर नजर रखें और साल दर साल अधिकारी अपनी संपत्ति का ब्यौरा दे रहे हैं या नहीं. इस पर भी पैनी नजर रखनी होगी. नहीं तो उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य में ना जाने कितने अधिकारी उत्तराखंड का दोहन करके अपना बड़ा आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर लेंगे.