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आजादी का जश्न लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के संग, जानें गढ़ रत्न के अनछुए पहलू

नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों में उत्तराखंडियत का एक अलग ही संसार बसता है. पहाड़ के हर रंग की उनके गीतों में झलक होती है. समाज की समस्याओं, बुजुर्गों की पीड़ा, पहाड़ की बेटी-बहुओं की संवेदनाओं को वे हमेशा ही गीतों के माध्यम से उठाते रहे हैं. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह से खास बातचीत की.

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स्वतंत्रता दिवस दिवस का जश्न लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के संग
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Published : Aug 15, 2021, 5:06 AM IST

देहरादून: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) से खास बातचीत की. जिसमें हमने लोक जन चेतना के साथ-साथ उत्तराखंड की संस्कृति, जल-जंगल और जमीन और नेगी दा के संगीत के बारे में तफ्सील से चर्चा की. इसके साथ ही नेगी दा से हमने प्रदेश में जल रहे ज्वलंत मुद्दों को लेकर भी बात की.

ईटीवी भारत से बात करते हुए सबसे पहले लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने देश और प्रदेशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं दीं. उन्होंने आजादी को लेकर लिखी गई एक कविता के माध्यम से आजादी के महत्व को हमारे सामने रखा. इसके बाद नेगी दा से हमने उनके सफर को लेकर बात की.

दोस्तों को सुनाया था पहला गीत: जीवन के सफर के बारे में बात करते हुए नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया उनकी गीत यात्रा 1974 से शुरू हुई. तब उन्होंने एक गीत लिखा था. जिसे उन्होंने गाकर अपने साथियों को सुनाया. उस समय सभी ने उनके प्रयास को सराहते हुए उन्हें प्रोत्साहन दिया. दोस्तों से मिले प्यार और सहयोग के बाद उनके गीत लिखने और गाने का सिलसिला शुरू हुआ.

स्वसंत्रता दिवस का जश्न लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के संग

पढ़ें-जन्मदिन विशेष: उत्तराखंड का ऐसा गायक जिसके गीतों ने दो मुख्यमंत्रियों की गद्दी पलट दी

1976 में आकाशवाणी से जुड़े 'नेगी दा': लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया सन 1976 से उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ के लिए काम करना शुरू किया. उस समय आकाशवाणी लखनऊ में प्रोग्रामिंग एग्जीक्यूटिव केशव अनुरागी के अंडर में उन्होंने कैजुअल कलाकार के रूप में काम किया. तब उन्होंने उनके गानों की तारीफ करते हुए उन्हें ये सिलसिला जारी रखने को कहा था. नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया वह ज्यादातर पहाड़ के पारंपरिक लोकगीत गाते थे. जिसके बाद उन्होंने अपनी रचनाएं भी करनी शुरू कर दी. इसके बाद लगातार उनका सफर जारी रहा.

उत्तरायणी कार्यक्रम ने बनाया लोकप्रिय: उन्होंने बताया लोग उन्हें रेडियो पर बहुत ज्यादा पसंद करते थे. आकाशवाणी में लखनऊ से चलने वाले उत्तरायणी कार्यक्रम ने उन्हें काफी लोकप्रिय बनाया. इस कार्यक्रम के जरिए वह पहाड़ों से लेकर मैदानों में बसे प्रवासी उत्तराखंडियों तक पहुंचे. 1978 में आकाशवाणी का नजीबाबाद केंद्र खुला. जिसके बाद वे पहाड़ों के और करीब हो गये. नजीबाबाद से लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीत उत्तराखंड के गांव-गांव तक पहुंचने लगे.

पढ़ें- लोक गायक 'नेगी दा' को मिल सकता है पद्म पुरस्कार, केंद्र से अनुरोध करेगी राज्य सरकार

1982 से संगीत के क्षेत्र में ऑडियो कैसेट का दौर शुरू हुआ. जिसके बाद नरेंद्र सिंह नेगी ने भी ऑडियो कैसेट के रूप में अपने गाने रिलीज किये. जिसके बाद उन्हें प्रसिद्धि मिली. काफी समय तक इस तरह से ऑडियो कैसेट के बाद उन्होंने वीडियो कैसेट और अलग-अलग फॉर्मेट में भी गीत निकाले, जो खासे लोकप्रिय हुए. अब सोशल मीडिया के दौर में वह यूट्यूब और फेसबुक के जरिए लगातार अपने गानों से उत्तराखंड की लोक संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

बचपन और शुरुआती शिक्षा दीक्षा के सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि वह पौड़ी गांव के निवासी हैं. उनका पूरा जीवन पहाड़ी गांव में ही बीता है. उन्होंने बताया उनके पिताजी फौज में थे. पौड़ी में ही उनकी पढ़ाई लिखाई हुई. हालांकि, अब नरेंद्र सिंह नेगी के पुत्र देहरादून में काम करते हैं. नेगी भी कभी पौड़ी तो कभी देहरादून में रहते हैं.

पढ़ें- युवाओं को गीत से देवभूमि की संस्कृति से रूबरू करा रहे गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी

नेगी दा के बारे में कहा जाता है कि उनके गीतों में पूरा पहाड़ समाया हुआ है. उत्तराखंड की संस्कृति का कोई ऐसा पहलू नहीं है जिसे लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने ना छुआ हो. अपने गीतों और रचनाओं के बारे में बात करते हुए नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि उन्होंने अपना पूरा जीवन पहाड़ों में बिताया है. यही नहीं जीवन के इस पड़ाव में भी वह कोशिश करते हैं कि पहाड़ों के बीच ही रहें. वे हमेशा पहाड़ी संस्कृति से जुड़े रहे हैं. जिसका कारण है कि पहाड़ उनके जीवन में गहराई तक बसा हुआ है. ये ही उनका रचनाओं में निकलकर सामने आता है.

पढ़ें- क्षेत्रीय भाषाओं को संरक्षित करने की UOU की पहल सराहनीय- लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी

नेगी दा ने हमेशा ही लिखे जन पक्षीय गीत: लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने शुरू से ही कोशिश की है कि उनके गीतों में लोगों की भावनाएं हों. जिस कारण उन्होंने हमेशा ही जन पक्षीय गीत लिखे हैं. इसके अलावा आम लोगों की भावनाएं उनकी परेशानियां और उनसे जुड़ी तमाम बातों को भी उन्होंने समझकर अपने गीतों में उतारा. नरेंद्र सिंह नेगी बताते हैं उन्होंने कभी भी किसी के प्रचार या फिर प्रसार के लिए गीत नहीं लिखे. हमेशा उनकी एक ही लाइन रही है जिस वजह से वह लोगों में जनप्रिय हैं.

पढ़ें- सीएम धामी के निर्देश, बरसात के बाद अभियान चलाकर गड्ढा मुक्त करें प्रदेश की सड़कें

किसान आंदोलन पर नेगी दा का पक्ष: देश में चल रहे किसान आंदोलन पर बोलते हुए उत्तराखंड के जनकवि नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा वह इस कानून को लेकर काफी अध्ययन कर रहे हैं, वे समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर इस कानून को लेकर किसी को क्या समस्या हो सकती है? लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कोई भी सरकार अपनी राजनीतिक रणनीति इतनी कमजोर नहीं बना सकती है कि वह देश के एक बड़े हिस्से के रूप में मौजूद किसानों को नाराज करें या फिर उनका अहित करें. उन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतनी कमजोर रणनीति नहीं बनाएंगे जिसमें किसानों का अहित होगा. उन्होंने कहा इस कानून को ठीक से समझने की जरूरत है.

पढ़ें- लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने शिक्षकों को किया सम्मानित

भू कानून पर जनता के साथ नेगी दा: प्रदेश में चल रहे भू-कानून आंदोलन को लेकर भी लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने विचार रखे. उन्होंने कहा यह मांग उत्तराखंड में कई सालों से चलती आ रही है. नेगी दा ने जनता का समर्थन करते हुए करते हुए कहा उत्तराखंड में हिमाचल की तरह सख्त कानून की जरूरत है.

देहरादून: स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) से खास बातचीत की. जिसमें हमने लोक जन चेतना के साथ-साथ उत्तराखंड की संस्कृति, जल-जंगल और जमीन और नेगी दा के संगीत के बारे में तफ्सील से चर्चा की. इसके साथ ही नेगी दा से हमने प्रदेश में जल रहे ज्वलंत मुद्दों को लेकर भी बात की.

ईटीवी भारत से बात करते हुए सबसे पहले लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने देश और प्रदेशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं दीं. उन्होंने आजादी को लेकर लिखी गई एक कविता के माध्यम से आजादी के महत्व को हमारे सामने रखा. इसके बाद नेगी दा से हमने उनके सफर को लेकर बात की.

दोस्तों को सुनाया था पहला गीत: जीवन के सफर के बारे में बात करते हुए नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया उनकी गीत यात्रा 1974 से शुरू हुई. तब उन्होंने एक गीत लिखा था. जिसे उन्होंने गाकर अपने साथियों को सुनाया. उस समय सभी ने उनके प्रयास को सराहते हुए उन्हें प्रोत्साहन दिया. दोस्तों से मिले प्यार और सहयोग के बाद उनके गीत लिखने और गाने का सिलसिला शुरू हुआ.

स्वसंत्रता दिवस का जश्न लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के संग

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1976 में आकाशवाणी से जुड़े 'नेगी दा': लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया सन 1976 से उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ के लिए काम करना शुरू किया. उस समय आकाशवाणी लखनऊ में प्रोग्रामिंग एग्जीक्यूटिव केशव अनुरागी के अंडर में उन्होंने कैजुअल कलाकार के रूप में काम किया. तब उन्होंने उनके गानों की तारीफ करते हुए उन्हें ये सिलसिला जारी रखने को कहा था. नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया वह ज्यादातर पहाड़ के पारंपरिक लोकगीत गाते थे. जिसके बाद उन्होंने अपनी रचनाएं भी करनी शुरू कर दी. इसके बाद लगातार उनका सफर जारी रहा.

उत्तरायणी कार्यक्रम ने बनाया लोकप्रिय: उन्होंने बताया लोग उन्हें रेडियो पर बहुत ज्यादा पसंद करते थे. आकाशवाणी में लखनऊ से चलने वाले उत्तरायणी कार्यक्रम ने उन्हें काफी लोकप्रिय बनाया. इस कार्यक्रम के जरिए वह पहाड़ों से लेकर मैदानों में बसे प्रवासी उत्तराखंडियों तक पहुंचे. 1978 में आकाशवाणी का नजीबाबाद केंद्र खुला. जिसके बाद वे पहाड़ों के और करीब हो गये. नजीबाबाद से लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीत उत्तराखंड के गांव-गांव तक पहुंचने लगे.

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1982 से संगीत के क्षेत्र में ऑडियो कैसेट का दौर शुरू हुआ. जिसके बाद नरेंद्र सिंह नेगी ने भी ऑडियो कैसेट के रूप में अपने गाने रिलीज किये. जिसके बाद उन्हें प्रसिद्धि मिली. काफी समय तक इस तरह से ऑडियो कैसेट के बाद उन्होंने वीडियो कैसेट और अलग-अलग फॉर्मेट में भी गीत निकाले, जो खासे लोकप्रिय हुए. अब सोशल मीडिया के दौर में वह यूट्यूब और फेसबुक के जरिए लगातार अपने गानों से उत्तराखंड की लोक संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

बचपन और शुरुआती शिक्षा दीक्षा के सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि वह पौड़ी गांव के निवासी हैं. उनका पूरा जीवन पहाड़ी गांव में ही बीता है. उन्होंने बताया उनके पिताजी फौज में थे. पौड़ी में ही उनकी पढ़ाई लिखाई हुई. हालांकि, अब नरेंद्र सिंह नेगी के पुत्र देहरादून में काम करते हैं. नेगी भी कभी पौड़ी तो कभी देहरादून में रहते हैं.

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नेगी दा के बारे में कहा जाता है कि उनके गीतों में पूरा पहाड़ समाया हुआ है. उत्तराखंड की संस्कृति का कोई ऐसा पहलू नहीं है जिसे लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने ना छुआ हो. अपने गीतों और रचनाओं के बारे में बात करते हुए नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि उन्होंने अपना पूरा जीवन पहाड़ों में बिताया है. यही नहीं जीवन के इस पड़ाव में भी वह कोशिश करते हैं कि पहाड़ों के बीच ही रहें. वे हमेशा पहाड़ी संस्कृति से जुड़े रहे हैं. जिसका कारण है कि पहाड़ उनके जीवन में गहराई तक बसा हुआ है. ये ही उनका रचनाओं में निकलकर सामने आता है.

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नेगी दा ने हमेशा ही लिखे जन पक्षीय गीत: लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने शुरू से ही कोशिश की है कि उनके गीतों में लोगों की भावनाएं हों. जिस कारण उन्होंने हमेशा ही जन पक्षीय गीत लिखे हैं. इसके अलावा आम लोगों की भावनाएं उनकी परेशानियां और उनसे जुड़ी तमाम बातों को भी उन्होंने समझकर अपने गीतों में उतारा. नरेंद्र सिंह नेगी बताते हैं उन्होंने कभी भी किसी के प्रचार या फिर प्रसार के लिए गीत नहीं लिखे. हमेशा उनकी एक ही लाइन रही है जिस वजह से वह लोगों में जनप्रिय हैं.

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किसान आंदोलन पर नेगी दा का पक्ष: देश में चल रहे किसान आंदोलन पर बोलते हुए उत्तराखंड के जनकवि नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा वह इस कानून को लेकर काफी अध्ययन कर रहे हैं, वे समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर इस कानून को लेकर किसी को क्या समस्या हो सकती है? लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कोई भी सरकार अपनी राजनीतिक रणनीति इतनी कमजोर नहीं बना सकती है कि वह देश के एक बड़े हिस्से के रूप में मौजूद किसानों को नाराज करें या फिर उनका अहित करें. उन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतनी कमजोर रणनीति नहीं बनाएंगे जिसमें किसानों का अहित होगा. उन्होंने कहा इस कानून को ठीक से समझने की जरूरत है.

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भू कानून पर जनता के साथ नेगी दा: प्रदेश में चल रहे भू-कानून आंदोलन को लेकर भी लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने विचार रखे. उन्होंने कहा यह मांग उत्तराखंड में कई सालों से चलती आ रही है. नेगी दा ने जनता का समर्थन करते हुए करते हुए कहा उत्तराखंड में हिमाचल की तरह सख्त कानून की जरूरत है.

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