देहरादूनः राज्य गठन के 18 साल बीते जाने के बाद राज्य सरकार, उत्तर प्रदेश के कुछ अधिनियमों को ही रद्द कर पाई है. अभी भी कई एक्टों में बदलाव करने की दरकार है. इसी कड़ी में सरकार ने यूपी के अधिनियमों में से अनुपयोगी अधिनियम की छंटाई शुरू कर दी है. पहले चरण में 23 अधिनियमों को छांटकर राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति राजेश टंडन ने प्रभावहीन करने की संस्तुति राज्य सरकार के पास भेज दी है.
इन अधिनियमों को रद्द करने की संस्तुति के बाद उत्तर प्रदेश से लिए गए कई अनुपयोगी एक्ट जल्द ही उत्तराखंड के कानून के रूप में नजर आएंगे. जिसे लेकर विधि आयोग ने कवायद तेज कर दी है. जिससे राज्य को आर्थिक रूप से मजबूत किया जा सके.
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इन अधिनियमों को प्रभावहीन और रद्द करने पर हुई है संस्तुति-
- उत्तर प्रदेश विज्ञापन कर अधिनियम, 1981 को 30 जुलाई 2018 को हुई बैठक में निष्प्रयोजन और निष्प्रभावी होने के कारण प्रभावहीन किए जाने की संस्तुति राज्य सरकार को भेजी जा चुकी है.
- उत्तराखंड माल के स्थानीय क्षेत्र में प्रवेश कर अधिनियम,2008 को निष्प्रयोजन और निष्प्रभावी होने पर रद्द करने की संस्तुति.
- उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा अधिनियम,1972 के स्थान पर उत्तरांचल विद्यालय शिक्षा अधिनियम संख्या-8 वर्ष 2006 लागू होने के बाद रद्द.
- संयुक्त प्रांतीय संपत्ति के हस्तगत करने का (बाढ़ सहायक) अधिनियम,1948 के स्थान पर उत्तरांचल आपदा न्यूनीकरण, प्रबंधन और निवारण अधिनियम, 2005 अधिनियमित किए जाने के कारण अनुपयोगी हो गया है.
- संयुक्त प्रांत आकाशीय रज्जुमार्ग अधिनियम,1922 के स्थान पर उत्तराखंड रज्जूमार्ग विधेयक, 2014 अधिनियम संख्या-2 वर्ष 2015 लागू हो गई है. जिसके बाद इसे प्रभावहीन किया जा रहा है.
- उत्तर प्रदेश प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातत्वीय स्थानों और अवशेषों पर परीक्षण अधिनियम, 1956 के स्थान पर केंद्र सरकार के the ancient monuments and archaeological sites and remains (amendment and validation) act, 2010 लागू. अनुपयोगी होने के बाद होगी रद्द.
- संयुक्त प्रांत बदरीनाथ (स्वच्छता और सुधार) अधिनियम,1975 के समस्त अधिकार कर्तव्य नोटिफाइड कमेटी को प्रत्यावर्तित किया गया है.
- उत्तर प्रदेश की श्री बदरीनाथ और श्री केदारनाथ मंदिर एक्ट,1939 के स्थान पर चारधाम यात्रा अधिनियम बनाई गई है.
- देहरादून अधिनियम, 1871 इस अधिनियम का उत्तराखंड राज्य में उपयोगिता और विवाद लंबित ना होने के कारण प्रभावहीन किया जा रहा है.
- उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय (प्रशासन की नियुक्ति) अधिनियम,1961 ये अधिनियम विशेष 3 सितंबर 1961 को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में स्थानीय निकायों में चुनाव से संबंधित है. इसे भी रद्द किया जाएगा.
- उत्तराखंड प्रदेश श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम,1983 यह अधिनियम बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर से संबंधित होने पर प्रभावहीन किया जाएगा.
- तेंदू पत्ता (व्यापार विनिमय) अधिनियम,1972 यह अधिनियम केवल इलाहाबाद, मिर्जापुर, बांदा, हमीरपुर, झांसी और वाराणसी जिले में 2 मार्च 1972 को लागू हुआ था. इसे भी प्रभावहीन किया जाएगा.
- उत्तर प्रदेश पशु क्रय कर अधिनियम,1976 के स्थान पर रेगुलेशन ऑफ लाइव स्टॉक मार्केट रूल्स एक्ट, 2017 आने के कारण इसे भी रद्द किया जाएगा.
- उत्तर प्रदेश कॉर्नियल ग्राफ्टिंग अधिनियम,1964 ये अधिनियम उत्तर प्रदेश के लिए 1950 में लागू हुआ था. इसे भी रद्द किया जाएगा.
- उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक अधिनियम,1964 और उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1965 की जगह पर उत्तराखंड सहकारी समिति अधिनियम 2006 लागू हो गई है.
- उत्तर प्रदेश कोर्ट फीस छूट (रेमिशन) अधिनियम,1950 यह अधिनियम उत्तर प्रदेश से संबंधित होने, उत्तराखंड राज्य में इसकी आवश्यकता ना होने पर प्रभावहीन किया जा रहा है.
- बंजर भूमि (दावे) अधिनियम,1863 यह अधिनियम काफी पुराना होने के वजह से रद्द किया जा रहा है.
- उत्तर प्रदेश विधि (हरियाणा से आंतरिक राज्यक्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम,1989 यह अधिनियम उत्तर प्रदेश के हरियाणा राज्य से संबंधित होने से रद्द किया जा रहा है.
- बनारस पारिवारिक भू-संपदा अधिनियम,1904 (उत्तर प्रदेश अधिनियम, 1904) ये अधिनियम बनारस जिले से संबंधित होने पर प्रभावहीन किया जा रहा है.
- उत्तर प्रदेश भूमि विकास कर अधिनियम,1972 इस अधिनियम को भी प्रभावहीन किया जा रहा है.
- स्थानीय निकाय (प्रशासन की नियुक्ति) अधिनियम,1961 और स्थानीय निकाय (अनहर्ता निवारण) अधिनियम,1975, म्युनिसिपैलिटी नोटिफाइड और टाउन एरिया (अल्पकालिक व्यवस्था) अधिनियम,1994- इन तीनों अधिनियम के स्थान पर उत्तराखंड में केवल दो अधिनियम लागू हैं. पहला उत्तरांचल (उत्तरप्रदेश नगरपालिका अधिनियम,1916) अनुकूलन, उपांतरण आदेश, 2002 और दूसरा उत्तरांचल (उत्तरप्रदेश नगर निगम अधिनियम,1959)अनुकूलन और उपान्तरण आदेश, 2002 लागू है.
वहीं, राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति राजेश टंडन ने बताया कि साल 2000 में राज्य बनने के दौरान एडॉप्शन एक्ट के तहत उत्तर प्रदेश के एक्ट उत्तराखंड में अडॉप्ट किए गए थे, लेकिन उन एक्ट में कई एक्ट ऐसे भी थे, जो उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों से ही जुड़े हुए थे. जिसका अब उत्तराखंड राज्य के लिए जरूरी नहीं है. लिहाजा इन अधिनियम को चिन्हित किया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि अभी तक करीब 23 अधिनियम को चिन्हित कर प्रभावहीन किया जा रहा है. जिसकी संस्तुति के लिए राज्य सरकार को भेजा गया है. साथ ही बताया कि उत्तर प्रदेश से अडॉप्ट हुए सभी अधिनियम को लेकर ए से जेड तक का कोड बनाया जा रहा है. सभी अधिनियम को लेकर बैठक भी की जा रही है.