देहरादूनः अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिम तेंदुओं की संख्या भले ही एक बड़ी चिंता का सबब रही हो, लेकिन उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री नेशनल पार्क से आई खबर ने इस विलुप्त प्रजाति को लेकर वन्यजीव प्रेमियों को सुखद अनुभूति दी है. भारतीय वन्यजीव संस्थान की तकनीकी मदद से की गई गणना में हिम तेंदुओं की बढ़ती संख्या का पता चला है और गंगोत्री नेशनल पार्क में हिम तेंदुओं के नए आंकड़ों से हर कोई गदगद दिख रहा है.
उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री नेशनल पार्क हिम तेंदुओं का सुरक्षित ठौर साबित हो रहा है. भारतीय वन्यजीव संस्थान ने इसको लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है. इसे कई सालों तक पार्क में वैज्ञानिक तरीके से गणना के बाद बनाया गया है. दरअसल, राज्य में पहली बार बड़े स्तर पर हिम तेंदुए और भालुओं की संख्या को जानने के लिए 300 से ज्यादा कैमरा ट्रैप लगाए गए हैं.
इसके अलावा WII (Wildlife Institute of India) की तकनीकी मदद के साथ दूसरे कई तरीकों से भी गंगोत्री नेशनल पार्क में गणना का काम किया गया. हालांकि, मध्य हिमालय क्षेत्र में करीब 18 डिवीजन में हिम तेंदुओं की गणना की जा रही है. लेकिन इस चरण में गंगोत्री नेशनल पार्क में कैमरा ट्रैप में रिकॉर्ड हुए करीब 40 हिम तेंदुओं की मौजूदगी का पता चला है. चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन डॉ. पराग धकाते कहते हैं कि इन आंकड़ों के जरिए गंगोत्री नेशनल पार्क में हिम तेंदुओं और इसकी भोजन श्रृंखला यानी अन्य वन्य जीवों की बेहतर स्थिति का पता चलता है.
गंगोत्री नेशनल पार्क में हिम तेंदुओं के साथ इनके भोजन श्रृंखला में भरल, भेड़, कस्तूरी मृग समेत साही, लोमड़ी और हिमालयी थार की भी अच्छी खासी संख्या है. यही नहीं, तीतर, मोनाल और कुक्कुट जैसे कई पक्षी भी यहां मौजूद हैं. भारतीय वन्यजीव संस्थान ने यहां पर जैव विविधता के साथ वन्यजीवों की मौजूदगी और इस क्षेत्र में शोध का काम भी किया है. अनुमानतः यहां पर 3500 मीटर से 5500 मीटर तक की ऊंचाई में हिम तेंदुओं की मौजूदगी का पता चला है. यही नहीं करीब 100 वर्ग किलोमीटर में दो हिम तेंदुओं की भी मौजूदगी दर्ज की गई है. भारतीय वन्यजीव संस्थान और वन विभाग के संयुक्त प्रयास से किए जा रहे अध्ययन के चलते भविष्य में मानव वन्य जीव संघर्ष के रोकथाम में भी मदद मिलेगी.
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स्नो लेपर्ड अपने नाम के अनुसार बर्फीले या ठंडी जगहों पर ऊंचे स्थानों पर पाए जाते हैं. इनकी खाल पर स्लेटी और सफेद फर इन्हें ठंडे क्षेत्रों में ठंड से बचाए रखते हैं. स्नो लेपर्ड रात को ही सक्रिय होते हैं और यह अकेले रहकर अपने भोजन की तलाश करते हैं. जानकारी के मुताबिक, स्नो लेपर्ड करीब 1.4 मीटर तक लंबे होते हैं, जबकि इनकी पूंछ 90 से 100 सेंटीमीटर तक लंबी हो सकती है. यही नहीं, इनका वजन भी करीब 75 किलोग्राम तक हो सकता है. बताया जाता है कि 90 से 100 दिनों के गर्भाधान के बाद स्नो लेपर्ड दो से तीन शावक को जन्म देते हैं. गंगोत्री नेशनल पार्क के अलावा बाकी जगहों पर भी इनकी गणना की कोशिशें की जा रही हैं. लेकिन जिस तरह गंगोत्री नेशनल पार्क में उनकी मौजूदगी को लेकर आंकड़े सामने आए हैं, वह इनके संरक्षण की दिशा में बेहतर कार्य होने को दर्शाता है.