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उत्तराखंड में बाघ और हाथियों से भी घातक सांप, गुलदार के बाद सबसे ज्यादा बन रहा लोगों की मौत की वजह

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Published : Dec 12, 2022, 1:07 PM IST

Updated : Dec 12, 2022, 5:57 PM IST

उत्तराखंड में गुलदार के बाद सांप लोगों की मौत का कारण बन रहा है. लेकिन इस ओर न तो उत्तराखंड वन विभाग सचेत है और न ही लोग जागरूक हैं. एक आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में सांप के काटने से हर साल एक दर्शन से अधिक लोग अपनी जान गंवा देते हैं.

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देहरादून: उत्तराखंड में भले ही मानव वन्यजीव संघर्ष के नाम पर बाघ, भालू और हाथियों का खौफ दिखाई देता हो, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य में सर्पदंश सबसे ज्यादा घातक है. आंकड़े बताते हैं कि गुलदार के बाद सांपों के काटने से सबसे ज्यादा लोगों की जान जा रही है. हैरानी की बात यह है कि इसके बावजूद न तो वन विभाग का इस ओर कुछ खास ध्यान है और ना ही इसके लिए लोगों में उपचार से जुड़ी कोई जागरूकता है.

उत्तराखंड में बाघ और हाथियों से भी घातक सांप.

न जाने ऐसी क्या बात है कि इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो रहे सांपों पर किसी की गंभीरता ही नहीं है. खास तौर पर उत्तराखंड, जहां अक्सर गुलदार, बाघ, हाथी और भालूओं के हमले को लेकर लोग सड़कों पर आ जाते हैं. वहां सांपों की समस्या कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. आज मानव वन्यजीव संघर्ष उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश भर में कई राज्यों के लिए एक बड़ी समस्या है.

गुलदार के बाद सर्पदंश से सबसे ज्यादा मौतेंः उत्तराखंड में तो आए दिन मानव वन्यजीव संघर्ष के मामले सामने आते रहते हैं, लेकिन इनमें चर्चा खास तौर पर गुलदार, बाग या हाथी की ही होती है. उस सर्पदंश को हम भूल जाते हैं जिसके कारण गुलदार के बाद सबसे ज्यादा मौतें हो रही हैं. सांपों को लेकर इस नजरअंदाजगी पर जब वन मंत्री सुबोध उनियाल से ईटीवी भारत ने सवाल किया तो उन्होंने इस सवाल को भी नजरअंदाज करते हुए सभी वन्यजीवों पर बोलते हुए लोगों में जागरूकता बढ़ाने की बात कही. इसके लिए बकायदा एनसीसी कैडेट्स का सहारा लेने का भविष्य का प्लान भी बताया.

NCC कैडेट्स करेंगे जागरूकः सुबोध उनियाल ने कहा कि प्रदेश में करीब 40 हजार एनसीसी कैडेट्स हैं और उनके जरिए 2 लाख लोगों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है. प्रयास किया जा रहा है कि एक ब्रांड एंबेसडर की तरह इन लोगों का उपयोग कर मानव वन्यजीव संघर्ष के बारे में जागरूक किया जाए. मानव वन्यजीव संघर्ष के दौरान होने वाली राज्य स्तरीय बैठकों में चर्चा उन्हीं वन्यजीवों की होती है जिन पर सालों से तमाम सरकारें नियम नीति बनाने की बात कहती है. इस मामले में सांपों के खतरे को तो जैसे भुला ही दिया गया है.

अब आंकड़ों के जरिए जानिए प्रदेश में सर्पदंश कितना बड़ा खतरा है.

  • उत्तराखंड में साल 2020 में 15, 2021 में 21 और 2022 के 9 महीनों के दौरान 8 लोगों की मौत हुई.
  • इस तरह सांपों के काटने से पिछले 3 सालों में 44 लोगों ने अपनी जान गंवाई.
  • सांपों के काटने से घायल होने वाले लोगों की संख्या पिछले 3 सालों में 145 रही.
  • इसमें साल 2020 में 53. साल 2021 में 63 और साल 2022 के 9 महीनों के दौरान 29 लोग सांपों के काटने से घायल हुए.
  • तुलनात्मक रूप से देखें तो हाथियों के हमले में 2020 में 11, 2021 में 12 और 2022 में 5 लोगों की मौत हुई.
  • इस तरह 3 साल में हाथियों के हमले में 28 लोगों ने जान गंवाई.
  • उधर बाघ के हमले में पिछले 3 सालों में 13 लोगों ने जान गंवाई.

भारत में सबसे ज्यादा सर्पदंश से मौत के मामलेः आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया भर में सांपों के काटने से मौत के मामले सबसे ज्यादा भारत में रिकॉर्ड किए गए हैं. दुनिया भर में सांप के काटने से मरने वाले लोगों की 80% संख्या अकेले भारत की है. यह स्थिति तब है जब देश में अधिकतर सांप जहरीले नहीं हैं.

अब जानिए उत्तराखंड और देशभर में सांपों की स्थिति...

  • भारत में 70% सांपों के जहरीला नहीं होने की बात कही जाती है.
  • एक अध्ययन के मुताबिक, देश में करीब 64 हजार लोग हर साल सांपों के काटने से जान गंवा देते हैं.
  • उत्तराखंड में मुख्य तौर पर इंडियन कोबरा, सेंड वाइपर, करैत, इंडियन करैत, रसेल वाइपर के काटने से लोग जान गंवा देते हैं.
  • देश में करीब 200 से ज्यादा प्रजातियों के सांप मौजूद हैं.
  • सांप के जहर से ज्यादा उसके काटने पर घबराहट से लोग जान गंवा देते हैं.
  • समय पर सही इलाज नहीं मिलने के कारण भी लोगों की जान जाती है.
  • मेडिकल छात्रों को एकेडमिक रूप में भी सांपों के काटने से जुड़े विषय पर कम जानकारी ही दी जाती है.

झाड़ फूंक से गंवा रहे जानः वैसे बरसात के समय जलभराव के बाद सांपों को अपने बिलों से बाहर निकलना पड़ता है. इसी दौरान सबसे ज्यादा सांप के काटने के मामले भी आते हैं. सांपों के काटने से जान गवाने वालों की सबसे ज्यादा संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में होती है. यहां झाड़-फूंक के चक्कर में लोग अस्पतालों का रुख नहीं करते और अपनी जान गंवा देते हैं. चिकित्सक भी मानते हैं कि इसको लेकर जागरूकता जरूरी है. साथ ही समय पर मरीज को अस्पताल पहुंचाना भी आवश्यक है, ताकि सही और समय से इलाज मिल सके.

वन विभाग की तरफ से सांपों से बचने के लिए उपाय

  • अपने घर के बिस्तर दीवारों से लगाकर ना सोएं. अगर आप को सांप दिखता है तो उसे मारें नहीं, वन विभाग को इसकी सूचना दें, ताकि उसका रेस्क्यू किया जा सके.
  • अगर आपकी रसोई में कोई खाना बच जाता है तो उसे अपने घर के आस-पास बिल्कुल भी ना फेंके. फेंके गए खाने के लिए चूहे और मेंढक पहुंचते हैं. इनकी वजह से सांप भी वहां तक पहुंच जाते हैं.
  • रोज घर में फिनाइल का पोछा लगाएं. कार और दोपहिया वाहनों को स्टार्ट करने से पहले पूरी तरह से चेक कर लें. कहीं बारिश के दौरान आपकी गाड़ी में सांप तो नहीं है जो छुप कर बैठा हो.
  • बारिश के दौरान देर रात को घर से बाहर ना निकलें.

देहरादून: उत्तराखंड में भले ही मानव वन्यजीव संघर्ष के नाम पर बाघ, भालू और हाथियों का खौफ दिखाई देता हो, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य में सर्पदंश सबसे ज्यादा घातक है. आंकड़े बताते हैं कि गुलदार के बाद सांपों के काटने से सबसे ज्यादा लोगों की जान जा रही है. हैरानी की बात यह है कि इसके बावजूद न तो वन विभाग का इस ओर कुछ खास ध्यान है और ना ही इसके लिए लोगों में उपचार से जुड़ी कोई जागरूकता है.

उत्तराखंड में बाघ और हाथियों से भी घातक सांप.

न जाने ऐसी क्या बात है कि इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो रहे सांपों पर किसी की गंभीरता ही नहीं है. खास तौर पर उत्तराखंड, जहां अक्सर गुलदार, बाघ, हाथी और भालूओं के हमले को लेकर लोग सड़कों पर आ जाते हैं. वहां सांपों की समस्या कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. आज मानव वन्यजीव संघर्ष उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश भर में कई राज्यों के लिए एक बड़ी समस्या है.

गुलदार के बाद सर्पदंश से सबसे ज्यादा मौतेंः उत्तराखंड में तो आए दिन मानव वन्यजीव संघर्ष के मामले सामने आते रहते हैं, लेकिन इनमें चर्चा खास तौर पर गुलदार, बाग या हाथी की ही होती है. उस सर्पदंश को हम भूल जाते हैं जिसके कारण गुलदार के बाद सबसे ज्यादा मौतें हो रही हैं. सांपों को लेकर इस नजरअंदाजगी पर जब वन मंत्री सुबोध उनियाल से ईटीवी भारत ने सवाल किया तो उन्होंने इस सवाल को भी नजरअंदाज करते हुए सभी वन्यजीवों पर बोलते हुए लोगों में जागरूकता बढ़ाने की बात कही. इसके लिए बकायदा एनसीसी कैडेट्स का सहारा लेने का भविष्य का प्लान भी बताया.

NCC कैडेट्स करेंगे जागरूकः सुबोध उनियाल ने कहा कि प्रदेश में करीब 40 हजार एनसीसी कैडेट्स हैं और उनके जरिए 2 लाख लोगों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है. प्रयास किया जा रहा है कि एक ब्रांड एंबेसडर की तरह इन लोगों का उपयोग कर मानव वन्यजीव संघर्ष के बारे में जागरूक किया जाए. मानव वन्यजीव संघर्ष के दौरान होने वाली राज्य स्तरीय बैठकों में चर्चा उन्हीं वन्यजीवों की होती है जिन पर सालों से तमाम सरकारें नियम नीति बनाने की बात कहती है. इस मामले में सांपों के खतरे को तो जैसे भुला ही दिया गया है.

अब आंकड़ों के जरिए जानिए प्रदेश में सर्पदंश कितना बड़ा खतरा है.

  • उत्तराखंड में साल 2020 में 15, 2021 में 21 और 2022 के 9 महीनों के दौरान 8 लोगों की मौत हुई.
  • इस तरह सांपों के काटने से पिछले 3 सालों में 44 लोगों ने अपनी जान गंवाई.
  • सांपों के काटने से घायल होने वाले लोगों की संख्या पिछले 3 सालों में 145 रही.
  • इसमें साल 2020 में 53. साल 2021 में 63 और साल 2022 के 9 महीनों के दौरान 29 लोग सांपों के काटने से घायल हुए.
  • तुलनात्मक रूप से देखें तो हाथियों के हमले में 2020 में 11, 2021 में 12 और 2022 में 5 लोगों की मौत हुई.
  • इस तरह 3 साल में हाथियों के हमले में 28 लोगों ने जान गंवाई.
  • उधर बाघ के हमले में पिछले 3 सालों में 13 लोगों ने जान गंवाई.

भारत में सबसे ज्यादा सर्पदंश से मौत के मामलेः आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया भर में सांपों के काटने से मौत के मामले सबसे ज्यादा भारत में रिकॉर्ड किए गए हैं. दुनिया भर में सांप के काटने से मरने वाले लोगों की 80% संख्या अकेले भारत की है. यह स्थिति तब है जब देश में अधिकतर सांप जहरीले नहीं हैं.

अब जानिए उत्तराखंड और देशभर में सांपों की स्थिति...

  • भारत में 70% सांपों के जहरीला नहीं होने की बात कही जाती है.
  • एक अध्ययन के मुताबिक, देश में करीब 64 हजार लोग हर साल सांपों के काटने से जान गंवा देते हैं.
  • उत्तराखंड में मुख्य तौर पर इंडियन कोबरा, सेंड वाइपर, करैत, इंडियन करैत, रसेल वाइपर के काटने से लोग जान गंवा देते हैं.
  • देश में करीब 200 से ज्यादा प्रजातियों के सांप मौजूद हैं.
  • सांप के जहर से ज्यादा उसके काटने पर घबराहट से लोग जान गंवा देते हैं.
  • समय पर सही इलाज नहीं मिलने के कारण भी लोगों की जान जाती है.
  • मेडिकल छात्रों को एकेडमिक रूप में भी सांपों के काटने से जुड़े विषय पर कम जानकारी ही दी जाती है.

झाड़ फूंक से गंवा रहे जानः वैसे बरसात के समय जलभराव के बाद सांपों को अपने बिलों से बाहर निकलना पड़ता है. इसी दौरान सबसे ज्यादा सांप के काटने के मामले भी आते हैं. सांपों के काटने से जान गवाने वालों की सबसे ज्यादा संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में होती है. यहां झाड़-फूंक के चक्कर में लोग अस्पतालों का रुख नहीं करते और अपनी जान गंवा देते हैं. चिकित्सक भी मानते हैं कि इसको लेकर जागरूकता जरूरी है. साथ ही समय पर मरीज को अस्पताल पहुंचाना भी आवश्यक है, ताकि सही और समय से इलाज मिल सके.

वन विभाग की तरफ से सांपों से बचने के लिए उपाय

  • अपने घर के बिस्तर दीवारों से लगाकर ना सोएं. अगर आप को सांप दिखता है तो उसे मारें नहीं, वन विभाग को इसकी सूचना दें, ताकि उसका रेस्क्यू किया जा सके.
  • अगर आपकी रसोई में कोई खाना बच जाता है तो उसे अपने घर के आस-पास बिल्कुल भी ना फेंके. फेंके गए खाने के लिए चूहे और मेंढक पहुंचते हैं. इनकी वजह से सांप भी वहां तक पहुंच जाते हैं.
  • रोज घर में फिनाइल का पोछा लगाएं. कार और दोपहिया वाहनों को स्टार्ट करने से पहले पूरी तरह से चेक कर लें. कहीं बारिश के दौरान आपकी गाड़ी में सांप तो नहीं है जो छुप कर बैठा हो.
  • बारिश के दौरान देर रात को घर से बाहर ना निकलें.
Last Updated : Dec 12, 2022, 5:57 PM IST
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