देहरादून: कोरोना और लॉकडाउन की दोहरी मार हर वर्ग पर पड़ी है. लॉकडाउन के बाद के बाद भूखे भिखारियों के आंखों में आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. एक तरफ तो उत्तराखंड के भिखारियों को लॉकडाउन में कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ा. वहीं, दूसरी तरफ अनलॉक से भी उन्हें कोई फायदा मिलता नजर नहीं आ रहा है. हालांकि, उत्तराखंड में भिक्षावृत्ति प्रतिबंधित है. लेकिन ETV BHARAT अपनी इस रिपोर्ट के जरिए देहरादून के भिखारियों की दयनीय स्थिति को दिखा रहा है.
उत्तराखंड को तीर्थाटन और पर्यटन के लिए जाना जाता है. लिहाजा, प्रदेश में भिक्षाटन भी तेजी से बढ़ा है. राजधानी देहरादून के तमाम छोटे-बड़े चौराहे पर जगह-जगह भीख मांगते बच्चे, बूढ़े, महिलाएं दिखने लगी हैं. बीते कुछ सालों में ही देहरादून सहित प्रदेश के कई पर्यटक स्थलों में भिखारियों की तादाद तेजी से बढ़ी है. कुछ समय पहले तक उत्तराखंड के शहरों में इनकी तादाद बेहद कम थी. लेकिन समय के साथ भिक्षाटन की तलाश में अलग-अलग राज्यों से इनका आना जारी रहा. नतीजतन इन भिखारियों की तादाद पर्वतीय राज्यों में सबसे ज्यादा उत्तराखंड में बताई जा रही है.
लॉकडाउन के दौरान के विभिन्न इलाकों में भिक्षाटन करने वालों को तमाम समाजिक संगठनों और स्थानीय लोग भोजन उपलब्ध कराते थे. लेकिन अनलॉक के बाद से सड़क किनारे रहने वाले भिखारियों को लोग खाना देने से बच रहे हैं. क्योंकि, लोगों को लग रहा है कि अनलॉक प्रक्रिया में भिखारी भिक्षाटन कर जीवन यापन कर रहे हैं. वहीं, भिखारियों को अब मॉनसून की मार भी सताने लगी है. तेज बारिश और जलभराव के बीच भिखारी सड़कों पर भिक्षाटन करने में असमर्थ नजर आ रहे हैं और सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.
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देहरादून के सामाजिक कार्यकर्ता जय सिंह रावत का कहना है कि अभी तक सड़क किनारे भिखारी लोगों से मिले पैसे पर जीवन यापन करते थे. लेकिन लोगों की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ा हुआ है. जिसकी वजह से लोग अब भिखारियों को पैसे देने से बच रहे हैं. ऐसे में सरकार को भिखारियों के लिए कल्याणकारी योजना चलाने की जरूरत है. जय सिंह रावत का कहना है कि उत्तराखंड में भिक्षावृत्ति प्रतिबंधित है. भिक्षावृत्ति कुछ लोग मजबूरन या कुछ लोगों से जबरन करवाया जाता है. सरकार को चाहिए की अगर कोई भीख मांगता है तो उसका पुनर्वास किया जाए, ताकि वह दोबारा भीख मांगने को मजबूर न हो.
देहरादून के भिखारियों की दयनीय स्थिति पर बोलते हुए बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान पार्टी द्वारा न सिर्फ राशन का वितरण किया गया, बल्कि मोदी किचन के जरिए जरूरतमंदों को खाना उपलब्ध कराया गया. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने गरीब कल्याण योजना भी चलाई है, जिसका फायदा गरीबों को मिल रहा है. वहीं, कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि लॉकडाउन के चलते जो भिक्षा देने वाला थे, उनकी जेबें खाली हो गईं हैं. ऐसे में भिखारियों की हालत क्या होगी, यह इस बात को आसानी से समझा जा सकता है.
उत्तराखंड में भिखारियों की संख्या
दरअसल, 2011 की जनगणना पर आधारित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 4 लाख 13 हजार 670 भिखारी हैं. पश्चिम बंगाल में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है. दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश है और तीसरे स्थान पर बिहार है. उत्तराखंड में भी भिखारियों की संख्या बड़े राज्यों के मुकाबले कम है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, उत्तराखंड में 247 बच्चों के साथ भिखारियों की संख्या करीब 3 हजार 320 है. ऐसे में सरकार गंभीरता से ऐसे मामलों में योजनाएं बनानी चाहिए.
उत्तराखंड में भिक्षावृत्ति प्रतिबंधित
उत्तराखंड में भीख मांगने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगते या देते हुए पकड़े जाने पर यह अपराध की श्रेणी में होगा और इसमें बगैर वारंट के गिरफ्तारी हो सकेगी. अधिनियम में अपराध साबित होने पर जुर्माने के साथ एक से तीन साल तक की सजा का प्रावधान है.
वहीं, दूसरी बार अपराध सिद्ध होने पर सजा की अवधि पांच साल तक हो सकती है. निजी स्थलों पर भिक्षावृत्ति की लिखित और मौखिक शिकायत पर अधिनियम की धाराओं के तहत कार्रवाई होगी. किशोर न्याय अधिनियम के तहत अभी तक 14 साल तक के बच्चों से भिक्षावृत्ति को संज्ञेय अपराध माना गया था और इस पर पूरी तरह से रोक थी, लेकिन अब सभी उम्र के लोगों पर सार्वजनिक स्थलों में भीख मांगने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है.