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जन्मदिन पर सर जॉर्ज एवरेस्ट को किया गया याद, मसूरी से ही खोजी थी दुनिया की कई ऊंची चोटियां

भारत के प्रथम सर्वेयर जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट की आज 232वीं जयंती है. सर जॉर्ज एवरेस्ट वेल्स सर्वेक्षक थे. इसके साथ ही वह 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल रहे. सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का नाम पड़ा है.

सर जॉर्ज एवरेस्ट को किया गया याद
सर जॉर्ज एवरेस्ट को किया गया याद
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Published : Jul 4, 2023, 8:41 PM IST

Updated : Jul 4, 2023, 9:10 PM IST

जन्मदिन पर सर जॉर्ज एवरेस्ट को किया गया याद

मसूरी: भारत के सर्वेयर जनरल रहे सर जॉर्ज एवरेस्ट ने अपनी प्रयोगशाला मसूरी में स्थापित कर देश-दुनिया की कई ऊंची चोटियों की खोज कर उनको मानचित्र में स्थान दिया. दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है. मसूरी में मंगलवार 4 जुलाई को सर जॉर्ज एवरेस्ट के जन्मदिवस के मौके पर मसूरी पर्यटन विभाग ने जॉर्ज एवरेस्ट हाउस में उनको याद किया. सहायक पर्यटन अधिकारी हीरालाल आर्य के नेतृत्व में सर जार्ज एवरेस्ट के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनको याद किया गया.

4 जुलाई 1790 को क्रिकवेल (यूनाइटेड किंगडम) में पीटर एवरेस्ट व एलिजाबेथ एवरेस्ट के घर जन्मे सर जॉर्ज एवरेस्ट ने 1832 से लेकर 1843 तक दुनिया की कई ऊंची चोटियों की खोज मसूरी में रहकर की थी. इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि सर जॉर्ज साल 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल भी रहे थे. भारद्वाज बताते हैं कि सर जॉर्ज एवरेस्ट ने अपने जीवन का एक लंबा अरसा पहाड़ों की रानी मसूरी में गुजारा था.

वेल्स के इस सर्वेयर व जियोग्राफर ने ही पहली बार एवरेस्ट की सही ऊंचाई और लोकेशन बताई थी, इसलिए ब्रिटिश सर्वेक्षक एंड्रयू वॉ की सिफारिश पर वर्ष 1865 में इस शिखर का नामकरण उनके नाम पर हुआ. इससे पहले इस चोटी को पीक-15 नाम से जाना जाता था, जबकि, तिब्बती लोग इसे चोमोलुंग्मा और नेपाली सागरमाथा कहते थे. मसूरी स्थित सर जॉर्ज एवरेस्ट के घर और प्रयोगशाला में ही वर्ष 1832 से 1843 के बीच भारत की कई ऊंची चोटियों की खोज हुई और उन्हें मानचित्र पर उकेरा गया.
ये भी पढ़ेंः 23 करोड़ की लागत से जॉर्ज एवरेस्ट हाउस का कायाकल्प, जीर्णोद्धार के बाद देखिए आर्किटेक्चर

इस प्रतिभावान युवक ने रॉयल आर्टिलरी में कैडेट के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया था. वर्ष 1806 में इनको भारत भेजा गया. भारत आकर सर जॉर्ज ने सबसे पहले कलकत्ता (कोलकाता) और वाराणसी के बीच संचार व्यवस्था कायम करने का काम दिया गया. इसके लिए जॉर्ज को टेलीग्राफ स्थापित और संचालित करने का काम सौंपा गया.

वर्ष 1816 में जावा के गवर्नर सर स्टैमफोर्ड रैफल्स के बुलाने पर सर जॉर्ज इस द्वीप का सर्वेक्षण करने के लिए चले गए. यहां से 1818 में वो भारत लौटे और यहां सर्वेयर जनरल लैंबटन के मुख्य सहायक के रूप में कार्य करने लगे. कुछ वर्ष काम करने के बाद जॉर्ज फिर कुछ दिनों के इंग्लैंड लौटे, ताकि वहां अपने सामने सर्वेक्षण के नए उपकरण तैयार करवाकर उन्हें भारत ला सकें. भारत लौटने के बाद सर जॉर्ड कलकत्ता में रहे और सर्वे टीमों के उपकरणों के कारखाने की व्यवस्था देखते रहे.
ये भी पढ़ेंः Memorandum To CM: मसूरी के ट्रेडर्स ने जॉर्ज एवरेस्ट हाउस की टेंडर प्रक्रिया पर उठाए सवाल, जांच की मांग

वर्ष 1830 में जॉर्ज भारत के सर्वेयर जनरल नियुक्त हुए. वहीं, वर्ष 1847 में सर जॉर्ज ने भारत के मेरिडियन आर्क के दो वर्गों के मापन पर लेखनी प्रकाशित की. इस काम के लिए जॉर्ड को रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ने पदक से नवाजा गया. उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसायटी और रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी की फैलोशिप के लिए भी चुना गया.

वर्ष 1854 में उन्हें प्रमोशन के तौर पर कर्नल की उपाधि मिली. इसके बाद साल 1861 में सर जॉर्ज को 'ऑर्डर ऑफ द बाथ' के कमांडर के तौर पर नियुक्ति मिली. एक दिसंबर 1866 को लंदन के हाईड पार्क गार्डन स्थित घर में उनकी मौत हुई. जॉर्ज को चर्च होव ब्राइटो के पास सेंट एंड्रयूज में दफनाया गया.

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि मसूरी के हाथीपांव पार्क रोड क्षेत्र के 172 एकड़ में बने जॉर्ज एवरेस्ट हाउस और इससे लगभग 50 मीटर दूरी पर स्थित लैब का जीर्णोद्धार किया गया है. जॉर्ज एवरेस्ट हाउस का पुनर्निर्माण कर आसपास के क्षेत्र को करीब 23 करोड़ की लागत से विकसित किया गया है. सर जॉर्ज से जुडे़ इतिहास को लेकर म्यूजियम का भी निर्माण कराया गया है, जो यहां आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है.
ये भी पढ़ेंः सेंट जॉर्ज कॉलेज में तीन दिवसीय 'मैनरफेस्ट' प्रतियोगिता का समापन, प्रीतम भरतवाण ने अपने गीत से बांधा समा

जन्मदिन पर सर जॉर्ज एवरेस्ट को किया गया याद

मसूरी: भारत के सर्वेयर जनरल रहे सर जॉर्ज एवरेस्ट ने अपनी प्रयोगशाला मसूरी में स्थापित कर देश-दुनिया की कई ऊंची चोटियों की खोज कर उनको मानचित्र में स्थान दिया. दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है. मसूरी में मंगलवार 4 जुलाई को सर जॉर्ज एवरेस्ट के जन्मदिवस के मौके पर मसूरी पर्यटन विभाग ने जॉर्ज एवरेस्ट हाउस में उनको याद किया. सहायक पर्यटन अधिकारी हीरालाल आर्य के नेतृत्व में सर जार्ज एवरेस्ट के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनको याद किया गया.

4 जुलाई 1790 को क्रिकवेल (यूनाइटेड किंगडम) में पीटर एवरेस्ट व एलिजाबेथ एवरेस्ट के घर जन्मे सर जॉर्ज एवरेस्ट ने 1832 से लेकर 1843 तक दुनिया की कई ऊंची चोटियों की खोज मसूरी में रहकर की थी. इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि सर जॉर्ज साल 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल भी रहे थे. भारद्वाज बताते हैं कि सर जॉर्ज एवरेस्ट ने अपने जीवन का एक लंबा अरसा पहाड़ों की रानी मसूरी में गुजारा था.

वेल्स के इस सर्वेयर व जियोग्राफर ने ही पहली बार एवरेस्ट की सही ऊंचाई और लोकेशन बताई थी, इसलिए ब्रिटिश सर्वेक्षक एंड्रयू वॉ की सिफारिश पर वर्ष 1865 में इस शिखर का नामकरण उनके नाम पर हुआ. इससे पहले इस चोटी को पीक-15 नाम से जाना जाता था, जबकि, तिब्बती लोग इसे चोमोलुंग्मा और नेपाली सागरमाथा कहते थे. मसूरी स्थित सर जॉर्ज एवरेस्ट के घर और प्रयोगशाला में ही वर्ष 1832 से 1843 के बीच भारत की कई ऊंची चोटियों की खोज हुई और उन्हें मानचित्र पर उकेरा गया.
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इस प्रतिभावान युवक ने रॉयल आर्टिलरी में कैडेट के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया था. वर्ष 1806 में इनको भारत भेजा गया. भारत आकर सर जॉर्ज ने सबसे पहले कलकत्ता (कोलकाता) और वाराणसी के बीच संचार व्यवस्था कायम करने का काम दिया गया. इसके लिए जॉर्ज को टेलीग्राफ स्थापित और संचालित करने का काम सौंपा गया.

वर्ष 1816 में जावा के गवर्नर सर स्टैमफोर्ड रैफल्स के बुलाने पर सर जॉर्ज इस द्वीप का सर्वेक्षण करने के लिए चले गए. यहां से 1818 में वो भारत लौटे और यहां सर्वेयर जनरल लैंबटन के मुख्य सहायक के रूप में कार्य करने लगे. कुछ वर्ष काम करने के बाद जॉर्ज फिर कुछ दिनों के इंग्लैंड लौटे, ताकि वहां अपने सामने सर्वेक्षण के नए उपकरण तैयार करवाकर उन्हें भारत ला सकें. भारत लौटने के बाद सर जॉर्ड कलकत्ता में रहे और सर्वे टीमों के उपकरणों के कारखाने की व्यवस्था देखते रहे.
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वर्ष 1830 में जॉर्ज भारत के सर्वेयर जनरल नियुक्त हुए. वहीं, वर्ष 1847 में सर जॉर्ज ने भारत के मेरिडियन आर्क के दो वर्गों के मापन पर लेखनी प्रकाशित की. इस काम के लिए जॉर्ड को रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ने पदक से नवाजा गया. उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसायटी और रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी की फैलोशिप के लिए भी चुना गया.

वर्ष 1854 में उन्हें प्रमोशन के तौर पर कर्नल की उपाधि मिली. इसके बाद साल 1861 में सर जॉर्ज को 'ऑर्डर ऑफ द बाथ' के कमांडर के तौर पर नियुक्ति मिली. एक दिसंबर 1866 को लंदन के हाईड पार्क गार्डन स्थित घर में उनकी मौत हुई. जॉर्ज को चर्च होव ब्राइटो के पास सेंट एंड्रयूज में दफनाया गया.

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि मसूरी के हाथीपांव पार्क रोड क्षेत्र के 172 एकड़ में बने जॉर्ज एवरेस्ट हाउस और इससे लगभग 50 मीटर दूरी पर स्थित लैब का जीर्णोद्धार किया गया है. जॉर्ज एवरेस्ट हाउस का पुनर्निर्माण कर आसपास के क्षेत्र को करीब 23 करोड़ की लागत से विकसित किया गया है. सर जॉर्ज से जुडे़ इतिहास को लेकर म्यूजियम का भी निर्माण कराया गया है, जो यहां आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है.
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Last Updated : Jul 4, 2023, 9:10 PM IST
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