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Reality Check: उत्तराखंड सचिवालय में सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर ऐसे हैं हालात

ईटीवी भारत ने उत्तराखंड सचिवालय में प्लास्टिक यूज को लेकर रियलिटी चेक किया. क्या प्लास्टिक के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम रंग ला पाई? देकिए चौंकाने वाला खुलासा.

उत्तराखंड के सचिवालय में प्लास्टिक यूज का रिएलिटी चैक
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Published : Nov 23, 2019, 9:02 AM IST

Updated : Nov 23, 2019, 9:45 AM IST

देहरादून: प्लास्टिक पर प्रतिबंध की शुरुआत उत्तराखंड में सबसे पहले सचिवालय से कई महीने पहले की गई थी. समय-समय पर सचिवालय में प्लास्टिक बैन को लेकर तमाम आयोजन भी किए गए. लेकिन क्या प्लास्टिक के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम रंग ला पाई? जहां अफसरों की फौज रहती हो, उस सचिवालय में प्लास्टिक यूज बंद हुआ या नहीं? ईटीवी भारत की टीम ने जमीनी हकीकत जानी, जहां कई चौंकाने वाली बाते सामने आईं.

प्लास्टिक बैन को लेकर उत्तराखंड सचिवालय का रिएलिटी चेक.
अक्सर ऐसा माना जाता है कि अगर आपको किसी भी प्रदेश का आंकलन करना हो तो उस प्रदेश के सचिवालय को देख लें. प्लास्टिक बैन को लेकर भी उत्तराखंड में इसकी सबसे पहले शुरुआत प्रदेश के सचिवालय से की गई थी. हालांकि उत्तराखंड सचिवालय में प्लास्टिक कई महीने पहले प्रतिबंधित करने का शासनादेश जारी हो चुका है. लेकिन जब पीएम मोदी ने खुद सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ मुहिम छेड़ी तो प्रदेश सरकार हरकत में आई और लंबी मानव श्रृंखला बनाकर प्लास्टिक के खिलाफ जंग छेड़ दी.

पढ़ेंः देहरादून: पॉलीथिन पर पाबंदी को लेकर सख्त निगम, 50 टीमों का किया गठन
ऐसा नहीं है कि सचिवालय में प्लास्टिक बैन का असर नहीं दिखा. कुछ हद तक प्लास्टिक पर बैन सफल रहा, लेकिन ये कह देना कि प्लास्टिक पूरी तरह खत्म हो गया, गलत होगा. एसीएस सचिवालय प्रशासन राधा रतूड़ी की मानें तो सचिवालय में प्लास्टिक के प्रयोग को लेकर कई बड़े बदलाव किये गए हैं. फाइलों में, दैनिक कार्यों में प्लास्टिक का उपयोग प्रतिबंधित है. प्लास्टिक के डस्टबिन की जगह रिंगाल के डस्टबिन पर भी विचार किया जा रहा है.

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ईटीवी भारत का सचिवालय में रिएलटी चेक
उत्तराखंड सचिवालय में पहले पानी की बोतलें, डिसपोजल ग्लास, प्लेट इत्यादि बेधड़क तरीके से इस्तेमाल की जाती थी, लेकिन प्रतिबंध के बाद अब सचिवालय में बमुश्किल ही प्लास्टिक की ये चीजें देखने को मिलती हैं. सचिवालय में स्थित इंद्रा अम्मा भोजनालय में पहले प्लास्टिक की बोतलें इस्तेमाल होती थी वो अब बंद हो चुकी हैं. कैंटीन में पैकिंग खाने के लिए टिफिन का प्रयोग किया जाने लगा है.

पढ़ेंः प्लास्टिक जुटाने में देहरादून के इन स्कूलों ने मारी बाजी, जानिए कौन बना विनर

लेकिन, यहां है बदलाव की जरूरत
सचिवालय में रियलिटी चेक के दौरान ऐसा नहीं कि प्लास्टिक कहीं नजर नहीं आया. सचिवालय में बायो क्रस रिवर्स प्लास्टिक बैंडिग मशीन को स्वजल द्वारा 3 जनवरी 2018 को लगाया गया था. लेकिन उद्घाटन के कुछ महीनों बाद ही मशीन प्लास्टिक का अड्डा बन चुकी है. सचिवालय में संचालित हो रही जीएमवीएन की एक और कैंटीन में प्लास्टिक आसानी से नजर आ जाएगा. सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि सचिवालय का मुख्य पार्क जहां झंडारोहण होता हैं, वहां पर भी प्लास्टिक बोतल गिरी मिली.

देहरादून: प्लास्टिक पर प्रतिबंध की शुरुआत उत्तराखंड में सबसे पहले सचिवालय से कई महीने पहले की गई थी. समय-समय पर सचिवालय में प्लास्टिक बैन को लेकर तमाम आयोजन भी किए गए. लेकिन क्या प्लास्टिक के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम रंग ला पाई? जहां अफसरों की फौज रहती हो, उस सचिवालय में प्लास्टिक यूज बंद हुआ या नहीं? ईटीवी भारत की टीम ने जमीनी हकीकत जानी, जहां कई चौंकाने वाली बाते सामने आईं.

प्लास्टिक बैन को लेकर उत्तराखंड सचिवालय का रिएलिटी चेक.
अक्सर ऐसा माना जाता है कि अगर आपको किसी भी प्रदेश का आंकलन करना हो तो उस प्रदेश के सचिवालय को देख लें. प्लास्टिक बैन को लेकर भी उत्तराखंड में इसकी सबसे पहले शुरुआत प्रदेश के सचिवालय से की गई थी. हालांकि उत्तराखंड सचिवालय में प्लास्टिक कई महीने पहले प्रतिबंधित करने का शासनादेश जारी हो चुका है. लेकिन जब पीएम मोदी ने खुद सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ मुहिम छेड़ी तो प्रदेश सरकार हरकत में आई और लंबी मानव श्रृंखला बनाकर प्लास्टिक के खिलाफ जंग छेड़ दी.

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ऐसा नहीं है कि सचिवालय में प्लास्टिक बैन का असर नहीं दिखा. कुछ हद तक प्लास्टिक पर बैन सफल रहा, लेकिन ये कह देना कि प्लास्टिक पूरी तरह खत्म हो गया, गलत होगा. एसीएस सचिवालय प्रशासन राधा रतूड़ी की मानें तो सचिवालय में प्लास्टिक के प्रयोग को लेकर कई बड़े बदलाव किये गए हैं. फाइलों में, दैनिक कार्यों में प्लास्टिक का उपयोग प्रतिबंधित है. प्लास्टिक के डस्टबिन की जगह रिंगाल के डस्टबिन पर भी विचार किया जा रहा है.

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ईटीवी भारत का सचिवालय में रिएलटी चेक
उत्तराखंड सचिवालय में पहले पानी की बोतलें, डिसपोजल ग्लास, प्लेट इत्यादि बेधड़क तरीके से इस्तेमाल की जाती थी, लेकिन प्रतिबंध के बाद अब सचिवालय में बमुश्किल ही प्लास्टिक की ये चीजें देखने को मिलती हैं. सचिवालय में स्थित इंद्रा अम्मा भोजनालय में पहले प्लास्टिक की बोतलें इस्तेमाल होती थी वो अब बंद हो चुकी हैं. कैंटीन में पैकिंग खाने के लिए टिफिन का प्रयोग किया जाने लगा है.

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लेकिन, यहां है बदलाव की जरूरत
सचिवालय में रियलिटी चेक के दौरान ऐसा नहीं कि प्लास्टिक कहीं नजर नहीं आया. सचिवालय में बायो क्रस रिवर्स प्लास्टिक बैंडिग मशीन को स्वजल द्वारा 3 जनवरी 2018 को लगाया गया था. लेकिन उद्घाटन के कुछ महीनों बाद ही मशीन प्लास्टिक का अड्डा बन चुकी है. सचिवालय में संचालित हो रही जीएमवीएन की एक और कैंटीन में प्लास्टिक आसानी से नजर आ जाएगा. सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि सचिवालय का मुख्य पार्क जहां झंडारोहण होता हैं, वहां पर भी प्लास्टिक बोतल गिरी मिली.

Intro:This is Special Story--
Note- खबर की फीड FTP से (uk_deh_03_plastic_ban_reality_check_in_sachivalay_pkg_7205800) नाम से भेजी जा रही है।

एंकर- प्लास्टिक पर प्रतिबंध की शुरुआत उत्तराखंड में सबसे पहले सूबे के हृदय स्थल सचिवालय से कई महीने पहले की गई थी। समय समय पर सचिवालय में प्लास्टिक बैन को लेकर तमाम आयोजन भी कये गये हैं तो वहीं ईटीवी भारत की टीम ने उत्तराखंड सचिवालय में प्लास्टिक बैन की जमीनी हकीकत को जाना और देखा कि सचिवालय से प्लास्टिक कितना दूर हुआ है। 
Body:ओपनिंग पीटीसी धीरज सजवाण
वीओ- किसी भी राज्य का हृदय स्थल उसके सचिवालय को माना जाता है। यह माना जाता है कि अगर आपको प्रदेश का आंकलन करना हो तो उस प्रदेस के सचिवालय को देख लें। प्लास्टिक बैन को लेकर भी उत्तराखंड में इसकी सबसे पहले शुरुआत प्रदेश के सचिवालय से की गई थी। हालांकी उत्तराखंड सचिवालय में प्लास्टिक कई महीने पहले प्रतिबंधित करने का शासनादेश जारी हो चुका था लेकिन जब पीएम मोदी द्वारा प्लास्टिक मुक्त भारत पर जोर दिया गया तो उत्तराखंड सरकार ने इसे ज्यादा गंभीरता से लिआ और प्लास्टिक को लेकर पूरे प्रदेश में एक अभियान के तहत इसकी शुरुआत की गई लेकिन अगर बात उत्तराखंड सचिवालय की करे तो यहां पर प्लास्टिक बैन का असर कुछ हद तक तो दिख रहा है लेकिन कुछ जगहों पर अभी भी काम करने की जरुरत है। एसीएस सचिवालय प्रशासन राधा रतुड़ी का कहना है कि सचिवालय में प्लास्टिक के प्रयोग को लेकर कई बड़े बदलाव किये गये हैं। उन्होने कहा कि फाइलों में, देनिक कार्यों में प्लास्टिक का उपयोग प्रतिबंधित है तो वहीं प्लास्टिक के डस्टबिन की जगह रिंगाल के डस्टबिन पर भी विचार किया जा रहा है।
 बाइट- राधा रतूड़ी, एसीएस सचिवालय प्रशासन 

रियलिटी चैके में यहां दिखा बदलाव--
उत्तराखंड सचिवालय में पहले पानी की बोतलें, डिशबोजल ग्लास, प्लेट इत्यादी बेधड़क तरीके से इस्तेमाल की जाती थी लेकिन सचिवालय में प्रतिबध लगने के बाद अब सचिवालय में बमुश्किल ही प्लास्टिक की पानी की बोतलें, डिशबोजल्स देखने को मिलते हैं। कार्यलयों में फाइंलों पर अब किसी भी तरह का प्लास्टिक नजर नही आता है। सड़कों में पार्क  इत्यादी में कोई प्लास्टिक नजर नही आता है। इंद्रा अम्मा भोजनालय में पहले प्लास्टिक की बोतलें इस्तेमाल होती थी वो बंद हो चुकी है। प्लास्टिक डिशबोजल भी यहां बंद हो चुके हैं। केंटिन से खाने पीने के लिए जब कुछ पैकिंग किया जाता था तो वो प्लास्टिक में पैक होता था लेकिन अब इंद्रा अम्मा भोजनालय ने टिफिन खरीद लिए हैं और अब पैकिंग खाने के लिए टिफिन का प्रयोग किया जाता है। 

यहां बदलाव की जरुरुत---
सचिवालय में रियलिटी चैक करते वक्त एसा नही की हमें कहीं प्लास्टिक नजर नही आया। दरअसल सबसे पहले हमें प्लास्टिक इंद्रा अम्मा भोजनायल के बगल में लगी उस मशीन के इर्द-गिर्द नजर आया जिसे प्लास्टिक की बोतलों के निस्तारण के लिए लगाया गया था। सचिवालय में इस बायो क्रस रिवर्स प्लास्टिक बैंडिग मशीन को स्वजल द्वारा 3 जनवरी 2018 को लगया गया था और इसका उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री त्रीवेंद्र रावत ने किया था।  उद्घाटन के बाद मात्र कुछ महीनों तक चली यह मशीन आज कंडप अवस्था में और प्लास्टिक का अड्डा बन चुकी है। इस मशीन के चारों तरफ आपको प्लास्टिक ही प्लास्टिक नजर आयेगा। इसके बाद इंंद्रा अम्मा केंटीन में तो प्लास्टिक नही है लेकिन सचिवालय में सचांलित हो रही जीएमवीएन की एक और कैंटीन में आपको प्लास्टिक आसानी से नजर आ जाएगा। यहां प्लास्टिक के एसे पेकेट जिल्हे एक बार इस्तेमाल किजा जाता है, जिसबोजल इत्यादी आपको खुले में गिरे मिल जाएगे। यही नही केंटीन के अंदर भी प्लास्टिक की पोलीथीन का इस्तेमाल कैमरे में कैद हुआ। इसके बाद सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि सचिवालय का मुख्य पार्क जहां झंडा रोहन होता है वहां पर भी प्लास्टिक बोतल गिरी मिली, साफाई क्रमचारी को इस पर ध्यान देना चाहिए। 
क्लोसिंग पीटीसी धीरज सजवाण Conclusion:
Last Updated : Nov 23, 2019, 9:45 AM IST
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